राजनीति
वोट बैंक बचाने के चक्कर में नरम पड़े अखिलेश
यूपी में विधानसभा चुनाव के बाद दो सीटों पर हो रहे लोकसभा उप चुनाव का मुकबला बड़ा रोचक हो गया है। आजमगढ़ और रामपुर में सपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। बड़े पसोपेश के बाद सपा ने दोनों सीटों पर उम्मीदवार तय किए हैं। वोट बैंक के चक्कर में पार्टी मुखिया काफी नरम दिखे।
रामपुर और आजमगढ़ संसदीय सीट पर होने वाले उपचुनाव को वर्ष 2024 के चुनाव से पहले के लिटमस टेस्ट के तौर पर देखा जा रहा है। अभी तक के राजनीतिक परि²श्यों को देखें दोनों ही संसदीय सीटों पर यादव और मुस्लिम वोटर ही जीत हार तय करते हैं।
सपा के एक नेता ने बताया कि पार्टी पहले आजमगढ़ से पूर्व सांसद बलिहारी बाबू के बेटे सुशील आनंद को चुनाव लड़ाने की चर्चा तेज थी, लेकिन यादव मुस्लिम बेल्ट में गैर यादव उम्मींदवार को लेकर पार्टी की स्थानीय इकाई में काफी असंतोष था। कई नामों पर सहमति नहीं बन पा रही थी। इसे देखते हुए अखिलेश कोई जोखिम नहीं लेना चाहते थे।
सुशील आनंद ने सपा अध्यक्ष के नाम अपने पत्र में उनका आभार जताते हुए कहा कि उन्होंने एक दलित परिवार के बेटे को उपचुनाव का टिकट दिया था, लेकिन दुर्भाग्य से उनका नाम गांव और शहर की वोटर लिस्ट में है। उन्होंने कहा कि उन्होंने गांव वाली लिस्ट से अपना नाम काटने का आवेदन भी किया था, लेकिन प्रशासन द्वारा अभी तक नाम हटाया नहीं गया है। आनंद ने आरोप लगाते हुए कहा कि ऐसे में अगर वह नामांकन कर भी देते हैं, तो भाजपा सरकार के दबाव में उनका नामांकन रद्द किया जा सकता है। इसलिए पार्टी अब उनकी जगह किसी अन्य तो टिकट दे दे।
सुशील आनंद के इनकार के बाद सपा ने धर्मेंद्र यादव को आजमगढ़ सीट से मैदान में उतारा। धर्मेन्द्र यादव वहां से चुनाव लड़ना नहीं चाहते थे। उनका संसदीय क्षेत्र बदायूं रहा है। वहां इस बार उनके हारने पर उनकी जगह भाजपा से सपा में आए स्वामी प्रसाद की बेटी सांसद है। लेकिन अखिलेश के कहने पर वह उपचुनाव लड़ने के लिए तैयार हो गए।
वरिष्ठ राजनीतिक जानकर प्रसून पांडेय कहते हैं कि रामपुर में मुस्लिम वोट सहेजने के लिए उन्होंने यहां पर कमान आजम के हांथ में दे दी। अखिलेश चाहते थे कि आजम के परिवार से किसी को टिकट दे दें। इससे जीत आसान हो जाए। वह आजम को मनाने में वह कामयाब नहीं हो सके। अब यहां पर आजम ने अपने शार्गिद को मैदान में उतारा है। वह कितना कामयाब होंगे यह तो परिणाम बताएगा।
पांडेय ने कहा कि भाजपा ने भी यहां सपा के खिलाफ कभी आजम के ही सिपहसालार रहे शख्स को मैदान में उतार कर पेंच फंसाने की कोशिश की है। अगर सपा जीती तो आजम के सिर पर सेहरा बंधेगा अगर हारी इन्हें जिम्मेंदार भी माना जाएगा। इसी कारण आजम ने नामांकन के दौरान मतदाताओं से भावनात्मक आपील करके माहौल बनाने का प्रयास किया है।
चुनावी आंकड़े की माने तो आजमगढ़ की बात करें तो यहां पर तकरीबन 18.38 लाख मतदाता है जिसमें ओबीसी मतदाता तकरीबन साढ़े छह लाख है। विधानसभा चुनाव 2022 में यहां पर सारी सीटों पर सपा के पाले में गयी है। अगर 2019 की बात करें तो यहां पर तकरीबन 6.21 लाख वोट अखिलेश यादव को और भाजपा के दिनेश लाल निरहुआ को 3.61 लाख वोट मिले थे। उस दौरान सपा बसपा ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। इससे दलित मुस्लिम और ओबीसी वोट सब सपा के पाले में गिरा था। लेकिन अब परिस्थियां बदली है। बसपा ने यहां से मुस्मिल दांव खेलते हुए गुड्डू जमाली को मैदान में उतार कर दलित मुस्लिम एका दिखाकर बाजी पलटने में लगाया है।
करीब दो दशकों से यूपी की राजनीति को कवर वाले वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक राजीव श्रीवास्तव के अनुसार अखिलेश यादव उप चुनाव के निर्णय लेने में विवश दिखे। दोनों जगह प्रत्याशी चयन करने में देरी दिखाई। रामपुर में भी आजम के आगे दबाव में रहे। पहले उनकी पत्नी के चुनाव लड़ने की बातें हुई लेकिन बाद में निर्णय बदला। आजमगढ़ में पहले सुशील आनंद को प्रत्याशी बनाया। बाद में वोट बैंक और स्थानीय नेताओं के दबाव में अपने परिवार का सहारा लेना पड़ा। उनके इस निर्णय से पार्टी असहज दिखी।
महाराष्ट्र
समाजवादी पार्टी के MLA रईस शेख ने उर्दू के प्रति BJP की दुश्मनी की आलोचना की

RAIS SHAIKH
मुंबई; राज्य में नगर पंचायत और म्युनिसिपल काउंसिल चुनाव का प्रचार अपने चरम पर है और BJP नेताओं ने अपने उम्मीदवारों के प्रचार के लिए उर्दू में बुकलेट छपवाई हैं। ‘भिवंडी ईस्ट’ से समाजवादी पार्टी के MLA रईस शेख ने BJP की उर्दू बुकलेट का स्वागत किया है। MLA शेख ने दावा किया कि BJP को देर से ही सही, यह एहसास हो गया है कि उर्दू किसी एक धर्म की भाषा नहीं है।
रायगढ़ जिले के ‘अरण’ से BJP MLA महेश बाल्दी के कार्यकर्ता म्युनिसिपल काउंसिल चुनाव के दौरान उर्दू में बुकलेट बांट रहे हैं। इस ओर इशारा करते हुए MLA रईस शेख ने कहा कि ‘एक तरफ वे धर्म के आधार पर मुसलमानों से नफरत करते हैं और जब उनके वोटों की जरूरत होती है, तो वे उर्दू भाषा का सहारा लेते हैं’, जो BJP की दोधारी तलवार है। राज्य के मत्स्य पालन और बंदरगाह मंत्री नीतीश राणे को BJP की उर्दू में प्रचार बुकलेट छपवाने पर अपनी भावनाएं जाहिर करनी चाहिए।
राज्य में एक उर्दू साहित्य अकादमी है। हालांकि, इस अकादमी को मुसलमानों के लिए काम करने वाली संस्था माना जाता है। उर्दू अकादमी की हालत ऐसी है कि न कोई फंड है, न कोई ऑफिस, न कोई स्टाफ। उर्दू भाषा के सेंटर, उर्दू स्कूल, उर्दू बोलने वाले टीचर, उर्दू घरों को फंड और जगह नहीं दी जा रही है। BJP सरकार ने पांच दशकों से चल रही उर्दू महीने की ‘लोक राज्य’ को बंद कर दिया है। MLA रईस शेख ने पूछा है कि उर्दू भाषा और मुसलमानों की इतनी दुश्मनी रखने वाली BJP को चुनाव के समय उर्दू मुस्लिम वोटों पर अफसोस क्यों होना चाहिए? उर्दू किसी धर्म की भाषा नहीं है। उर्दू बोलने वाले लेखकों और गीतकारों ने बॉलीवुड के विकास में बहुत योगदान दिया है। राज्य में 75 लाख उर्दू बोलने वाले हैं और राज्य में रोज़ाना 25 उर्दू अखबार छपते हैं। MLA रईस शेख ने BJP को सलाह दी है कि वह अपनी मतलबी राजनीति के लिए भाषा और धर्म के आधार पर नफरत फैलाने की अपनी साजिश पर रोक लगाए।
अपराध
वसई स्कूली छात्रा की मौत का मामला: 13 साल की बच्ची के लिए 100 स्क्वाट की सजा जानलेवा साबित होने पर शिक्षक गिरफ्तार

CRIME
वसई: वसई स्थित श्री हनुमंत विद्या मंदिर स्कूल में 13 वर्षीय छात्रा की मौत के मामले में शिक्षिका ममता यादव के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया गया है। आरोप है कि शिक्षिका द्वारा दी गई सजा के कारण छात्रा की तबीयत बिगड़ गई और अंततः उसकी मौत हो गई। पुलिस ने मेडिकल रिपोर्ट मिलने के बाद मामला दर्ज कर बुधवार को शिक्षिका को गिरफ्तार कर लिया।
छात्रा काजल गौंड, वसई पूर्व के सातीवली स्थित श्री हनुमंत विद्या मंदिर स्कूल में छठी कक्षा में पढ़ती थी। 8 नवंबर को कुछ बच्चे स्कूल देर से पहुँचे। कक्षा शिक्षिका ममता यादव ने काजल समेत सभी बच्चों को स्कूल बैग कंधे पर लादकर 100 उठक-बैठक करने की सज़ा दी।
स्कूल से घर लौटने के बाद काजल की तबीयत बिगड़ गई। उसे इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। इस घटना के गंभीर परिणाम हुए। मंगलवार को पुलिस को जेजे अस्पताल से पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली।
नतीजतन, वालिव पुलिस ने आखिरकार शिक्षिका ममता यादव पर भारतीय दंड संहिता की धारा 304 (गैर इरादतन हत्या) और किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम की धारा 75 के तहत मौत के लिए ज़िम्मेदार होने का मामला दर्ज किया। शिक्षिका को बुधवार शाम को गिरफ्तार कर लिया गया।
वालिव पुलिस स्टेशन के वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक दिलीप घुगे ने बताया, “शुरुआत में इस मामले में आकस्मिक मौत का मामला दर्ज किया गया था। हालांकि, जांच और मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर शिक्षिका के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया गया है और उसे कल शाम गिरफ्तार कर लिया गया।”
राष्ट्रीय समाचार
महाराष्ट्र: वसई में 100 सिट-अप्स की सजा के बाद स्टूडेंट की मौत, एसआईटी जांच की मांग

HIGH COURT
मुंबई, 20 नवंबर: वसई की 13 साल की बच्ची काजल गौड़ की मौत ने पूरे महाराष्ट्र को हिलाकर रख दिया है। स्कूल में 10 मिनट देर से आने पर टीचर ने उसे 100 सिट-अप्स करने की सजा दी। इसके बाद उसकी तबीयत बिगड़ती गई और जेजे हॉस्पिटल में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।
इस पूरे मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट में एक पिटीशन दायर की गई है, जिसमें कोर्ट से खुद संज्ञान लेकर कार्रवाई करने की मांग की गई है।
यह पिटीशन वकील स्वप्ना प्रमोद कोडे ने चीफ जस्टिस चंद्रशेखर को संबोधित करते हुए फाइल की है। उन्होंने कोर्ट से अपील की है कि इस मामले की जांच तेजी से करवाई जाए, क्योंकि यह सिर्फ एक बच्ची की मौत का मामला नहीं, बल्कि एक इंसानी और संवैधानिक मुद्दा है।
पिटीशन में मांग की गई है कि एक स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम बनाई जाए, जो स्कूल के गैरकानूनी कामकाज और इस मौत के पीछे की सभी परिस्थितियों की जांच करे। साथ ही स्कूल मैनेजमेंट और आरोपी टीचर के खिलाफ तुरंत एफआईआर दर्ज की जाए।
पिटीशन के मुताबिक, 8 नवंबर 2025 को क्लास 6 की स्टूडेंट काजल गौड़ को देर से आने पर 100 सिट-अप्स करने को कहा गया। काजल की हालत स्कूल से घर लौटने के बाद बिगड़ने लगी। उसे पहले वसई के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया, फिर हालात खराब होने पर जेजे हॉस्पिटल ले जाया गया, जहां 14 नवंबर को उसकी मौत हो गई।
वालिव पुलिस ने अभी तक सिर्फ एक्सीडेंटल डेथ की रिपोर्ट दर्ज की है और एफआईआर दर्ज करने के लिए फॉरेंसिक रिपोर्ट के नतीजों का इंतजार कर रही है।
वहीं, स्कूल की तरफ से दावा किया गया कि उन्हें काजल की खराब सेहत के बारे में पता था और उन्होंने उसके माता-पिता से मेडिकल मदद लेने को कहा था, लेकिन सजा देने वाली टीचर ममता यादव को पता नहीं था कि काजल सजा पाने वाले बच्चों के समूह में है। प्रिंसिपल का कहना है कि टीचर उसे पहचान नहीं पाई क्योंकि उसकी हाइट छोटी थी, हालांकि जांच पूरी होने तक टीचर को सस्पेंड कर दिया गया है।
पिटीशन में बताया गया है कि हर नागरिक को जीवन और गरिमा से जीने का हक है। किसी भी इंसान की जान कानून के बिना नहीं ली जा सकती। यहां एक नाबालिग बच्ची को ऐसी सजा दी गई जो उसकी जान ले बैठी। यह न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है और एक बड़े अपराध की ओर इशारा करता है।
वकील स्वप्ना कोडे ने कोर्ट से मांग की है कि एसआईटी गठित की जाए जो पूरी घटना की तेजी से जांच करे और स्कूल प्रबंधन व आरोपी टीचर के खिलाफ मामला दर्ज करे। स्कूल के अवैध संचालन की जांच हो और जरूरत पड़े तो उसकी मान्यता रद्द कर दी जाए। पूरे राज्य में शारीरिक सजा पर रोक लगाने के लिए निर्देश जारी किए जाएं। काजल के भाई समेत प्रभावित स्टूडेंट्स की पढ़ाई का भविष्य सुरक्षित किया जाए।
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