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अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस : महात्मा गांधी का दर्शन, आज भी दुनिया के लिए बेहद जरूरी

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नई दिल्ली, 1 अक्टूबर: वर्तमान में मानवता के एक चिंताजनक क्षरण को देखा जा सकता है। हिंसा संवाद का स्थान ले रही है। नागरिक संघर्ष का खामियाजा भुगत रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन हो रहा है। मानवाधिकारों का हनन हो रहा है और शांति की नींव खतरे में है।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी समझते थे कि अहिंसा कमजोरों का हथियार नहीं है, यह साहसी लोगों की ताकत है। यह घृणा के बिना अन्याय का विरोध करने, क्रूरता के बिना उत्पीड़न का सामना करने और प्रभुत्व के माध्यम से नहीं, बल्कि सम्मान के माध्यम से शांति स्थापित करने की शक्ति है।

महात्मा गांधी ने न सिर्फ इन आदर्शों की बात की, बल्कि उन्हें जीते भी थे। इस खतरनाक और विभाजित समय में महात्मा गांधी की इस सोच को न सिर्फ याद किया जाना जरूरी है, बल्कि उसके आत्मसात करने की खास जरूरत है। 2 अक्टूबर को ‘अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस’ इसी खास उद्देश्य और भाव के साथ मनाया जाना चाहिए।

हर साल 2 अक्टूबर को मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस, गांधीवादी सिद्धांतों के सम्मान के लिए समर्पित है। यह दिवस महात्मा गांधी की जयंती पर मनाया जाता है और सामाजिक एवं राजनीतिक परिवर्तन के साधन के रूप में अहिंसा के प्रति उनके दर्शन और प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

ब्रिटिश शासन से भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में उनकी केंद्रीय भूमिका के कारण महात्मा गांधी की जयंती का अत्यधिक महत्व है। अहिंसा और शांतिपूर्ण प्रतिरोध के मार्ग पर चलते हुए उन्होंने लाखों भारतीयों को शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों, बहिष्कारों और भूख हड़तालों के माध्यम से स्वतंत्रता हासिल करने के लिए प्रेरित किया। विशेषकर 1930 के दांडी मार्च ने उत्पीड़न का सामना करने के लिए अहिंसा की शक्ति में उनके विश्वास को दर्शाया।

महात्मा गांधी के लिए, अहिंसा सिर्फ एक राजनीतिक साधन नहीं, बल्कि एक जीवन पद्धति थी, जो इस विश्वास पर आधारित थी कि शांति शांतिपूर्ण साधनों से ही हासिल की जा सकती है।

महात्मा गांधी ने कहा था, “अहिंसा मानव जाति के पास सबसे बड़ी शक्ति है। यह विनाश के सबसे शक्तिशाली हथियार से भी अधिक शक्तिशाली है।”

यह विश्वास दुनिया भर के आंदोलनों को प्रेरित करता रहा है, संयुक्त राज्य अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग जूनियर के नागरिक अधिकारों के संघर्ष से लेकर दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला के रंगभेद के विरुद्ध संघर्ष तक, उनके विचारों ने अनगिनत नेताओं और आंदोलनों को प्रभावित किया और प्रतिरोध के साथ ही सुधार के एक शक्तिशाली साधन के रूप में अहिंसा की सार्वभौमिक अपील को रेखांकित किया।

उनका दर्शन हमें याद दिलाता है कि शांति एक दूर का आदर्श मात्र नहीं है, बल्कि यह हासिल करने वाला लक्ष्य है। उनकी शिक्षाएं आशा और मेल-मिलाप का एक शाश्वत संदेश देती हैं।

इस दिवस की शुरुआत ईरानी नोबेल पुरस्कार विजेता शिरीन एबादी की ओर से 2004 में रखे गए एक प्रस्ताव से हुई। अहिंसा दिवस को विश्व स्तर पर मनाने का विचार मुंबई में आयोजित ‘विश्व सामाजिक मंच’ में रखा गया। 15 जून 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सर्वसम्मति से 2 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस घोषित किया। दुनिया से यह आग्रह किया गया कि वह शांति और अहिंसा के विचार पर अमल करें और महात्मा गांधी के जन्म दिवस को ‘अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाएं। इसमें 142 देशों की सह-प्रायोजकता थी।

इस प्रस्ताव में शिक्षा और जन जागरूकता के माध्यम से अहिंसा के संदेश के प्रसार पर जोर दिया गया। संयुक्त राष्ट्र ने इस दिन को विश्व स्तर पर शांति, सद्भाव और एकता को बढ़ावा देने में अहिंसा की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए निर्धारित किया था।

2 अक्टूबर को महात्मा गांधी के स्वतंत्रता और अहिंसा के प्रति समर्पण को श्रद्धांजलि के रूप में मनाया जाता है। यह अन्याय और असमानता के विरुद्ध अहिंसक प्रतिरोध की शक्ति की याद दिलाता है।

अपराध

दिल्ली ब्लास्ट मामला: मुंबई में तीन संदिग्ध हिरासत में लिए गए, पूछताछ जारी

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मुंबई, 18 नवंबर: दिल्ली में कार ब्लास्ट मामले के आरोपी से जुड़े तीन व्यक्तियों को मुंबई पुलिस ने हिरासत में लिया है। अधिकारियों के अनुसार, विशेष टीम द्वारा गुप्त अभियान में इन लोगों को शहर के अलग-अलग स्थानों से पकड़ा गया। पूछताछ के बाद इन्हें आगे की जांच के लिए दिल्ली भेजा जा रहा है।

अधिकारियों ने बताया कि हिरासत में लिए गए लोग सोशल मीडिया ऐप के माध्यम से ब्लास्ट केस के मुख्य आरोपी के संपर्क में थे। पुलिस का कहना है कि ये व्यक्ति भी ठीक उसी तरह संपन्न परिवारों से ताल्लुक रखते हैं, जैसे इस मॉड्यूल के दो प्रमुख आरोपी डॉ. उमर मोहम्मद और डॉ. मुज़म्मिल। राज्य के कई जिलों में भी इसी तरह की जांच जारी है।

सोमवार को सूत्रों ने बताया कि जांच में एन्क्रिप्टेड बातचीत और हथियार सप्लाई के सबूत मिले हैं, जो एक बेहद संगठित आतंकी नेटवर्क की ओर इशारा करते हैं। यह नेटवर्क उस मॉड्यूल से जुड़ा है जिसमें डॉ. उमर मोहम्मद की मौत 10 नवंबर को दिल्ली के लाल किले के पास हुए विस्फोट में हुई। इस धमाके में 13 लोगों की मौत हुई थी और दर्जनों घायल हुए थे।

सूत्रों के अनुसार, उमर ने करीब तीन महीने पहले सिग्नल ऐप पर एक एन्क्रिप्टेड ग्रुप बनाया था, जिसका नाम विशेष कैरेक्टरों से रखा गया था ताकि निगरानी से बचा जा सके। इस समूह में उसने मुज़म्मिल, आदिल राथर, मुज़फ्फर राथर और मौलवी इरफान अहमद वागे को जोड़ा था। यही चैनल आंतरिक समन्वय का मुख्य माध्यम था।

जांच में तब अहम मोड़ आया जब डॉ. शाहीन शाहिद की कार से एक असॉल्ट राइफल और पिस्तौल बरामद हुई। माना जा रहा है कि ये हथियार उमर ने ही 2024 में इरफ़ान को सौंपे थे। शाहीन पहले भी इरफ़ान के कमरे में मुज़म्मिल के साथ इन हथियारों को देख चुका था। संदेह है कि मॉड्यूल के संचालन के लिए सबसे ज़्यादा फंडिंग शाहीन ने ही की।

अब तक के प्रमाणों से स्पष्ट है कि मॉड्यूल के भीतर एक तय पदानुक्रम और ज़िम्मेदारियों का बंटवारा था। तीन डॉक्टर उमर, मुज़म्मिल और शाहीन मुख्य रूप से आर्थिक मदद जुटाते थे, जिसमें मुज़म्मिल प्रमुख भूमिका में था। इरफ़ान की जिम्मेदारी कश्मीरी युवाओं की भर्ती थी। उसी ने गिरफ्तार दो युवकों आरिफ़ निसार डार उर्फ़ साहिल और यासिर उल अशरफ को नेटवर्क में शामिल किया था।

जांचकर्ताओं ने कई बार हथियारों के इधर-उधर ले जाए जाने की घटनाएं भी रिकॉर्ड की हैं। अक्टूबर 2023 में आदिल और उमर एक मस्जिद में इरफ़ान से मिले थे और एक बैग में छिपी राइफल लेकर वहां पहुंचे थे। बैरल साफ करने के बाद वे लौट गए। नवंबर में आदिल फिर इरफ़ान के घर एक राइफल लेकर पहुंचा। उसी दिन मुज़म्मिल और शाहीन भी वहां पहुंचे। हथियार इरफ़ान के पास रखा गया और अगले दिन आदिल उसे लेने लौटा।

यह नेटवर्क फरीदाबाद के उस मॉड्यूल से जुड़ा पाया गया है, जिसे 9 नवंबर को तब उजागर किया गया था जब पुलिस ने अल-फलाह यूनिवर्सिटी से जुड़े डॉ. मुज़म्मिल के किराए के कमरों से 2,900 किलो विस्फोटक और गोला-बारूद जब्त किया था।

10 नवंबर को लाल किले के पास जिस कार में विस्फोट हुआ, उसे अल-फलाह यूनिवर्सिटी से जुड़े दूसरे डॉक्टर उमर चला रहा था। इसी घटना के बाद मॉड्यूल की गहरी जांच शुरू हुई और कई राज्यों में छापेमारी तेज कर दी गई है और जांच जारी है।

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अपराध

मुंबई: नवाब मलिक को बड़ा झटका, कोर्ट ने डिस्चार्ज याचिका खारिज की, आज तय होंगे आरोप

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मुंबई, 18 नवंबर: महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री और एनसीपी नेता नवाब मलिक को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में बड़ा झटका लगा है। पीएमएलए की एक विशेष अदालत ने मलिक और उनकी कंपनी की ओर से दायर डिस्चार्ज याचिका को खारिज कर दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने आदेश दिया है कि 18 नवंबर को आरोप तय करने की प्रक्रिया के दौरान सभी आरोपी कोर्ट में मौजूद रहें। इस फैसले के बाद नवाब मलिक को मंगलवार को कोर्ट में पेश होना है।

मलिक की कंपनी ‘मलिक इन्फ्रास्ट्रक्चर’ की ओर से डिस्चार्ज याचिका दायर की गई थी। कंपनी की ओर से कहा गया कि ईडी का पूरा मामला अंदाजों और अनुमान पर आधारित है, क्योंकि जिस समय कथित अवैध सौदा हुआ, उस समय कंपनी का अस्तित्व ही नहीं था।

कोर्ट ने कंपनी की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि मामले में पर्याप्त प्राथमिक सबूत मौजूद हैं। कोर्ट ने कहा कि शुरुआती जांच से यह स्पष्ट होता है कि नवाब मलिक ने डी-कंपनी से जुड़ी हसीना पारकर, सलीम पटेल और आरोपी सरदार खान के साथ मिलकर कुर्ला स्थित एक कीमती प्लॉट को अवैध रूप से कब्जे में लिया और फिर उसे मनी लॉन्ड्रिंग के जरिए वैध बनाने की कोशिश की। इस प्लॉट में 16 करोड़ रुपए की अपराध से अर्जित धन शामिल बताया गया है।

पूर्व मंत्री ने कोर्ट से यह प्रक्रिया 6 हफ्ते तक टालने की गुहार लगाई थी। उनका कहना था कि बॉम्बे हाई कोर्ट में उनकी याचिका पर जल्द सुनवाई होनी है, इसलिए फैसला आने तक निचली अदालत को इंतजार करना चाहिए। उनके वकील तारक सैयद का दावा है कि ईडी ने कई ऐसे दस्तावेज कोर्ट में पेश नहीं किए हैं जो आरोपी के पक्ष में हैं। उनका कहना था कि यदि सभी दस्तावेज पेश किए जाएं तो आरोप तय करने की स्थिति ही नहीं बनती।

हालांकि, स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर सुनील गोंसाल्वेस ने कहा कि हाई कोर्ट ने इस मामले पर कोई स्टे नहीं दिया है, इसलिए निचली अदालत की सुनवाई रोकी नहीं जा सकती।

कोर्ट ने ईडी की दलीलें मानते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के निर्देशों के अनुसार सांसदों और विधायकों से जुड़े मामलों का त्वरित निपटारा अनिवार्य है। ऐसे में कोर्ट स्वयं से मामला स्थगित नहीं कर सकती। इस आधार पर नवाब मलिक की मांग खारिज कर दी गई।

बता दें कि ईडी ने नवाब मलिक को फरवरी 2022 में गिरफ्तार किया था। आरोप है कि उन्होंने दाऊद इब्राहिम की बहन हसीना पारकर की मदद से मुंबई के कुर्ला में लगभग तीन एकड़ की जमीन को गलत तरीके से कब्जे में लिया। इस सौदे में 16 करोड़ रुपए की अपराध से जुड़ी रकम शामिल होने का आरोप है। फर्जी दस्तावेजों के इस्तेमाल का भी आरोप लगाया गया है।

इस मामले में मलिक के साथ दो कंपनियों को भी आरोपी बनाया गया है। मई 2022 से प्रक्रिया जारी है, लेकिन औपचारिक तौर पर आरोप तय नहीं हो पाए थे। अब अदालत के आदेश के बाद 18 नवंबर को सभी आरोपियों पर आरोप तय किए जाएंगे।

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राजनीति

केरल सरकार ने एसआईआर को स्थगित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की याचिका, आईयूएमएल ने भी की मांग

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SUPRIM COURT

तिरुवनंतपुरम, 18 नवंबर: केरल सरकार ने निर्वाचन आयोग के विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) प्रक्रिया के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। राज्य सरकार ने याचिका में मांग की है कि स्थानीय निकाय चुनावों के समाप्त होने तक एसआईआर को स्थगित किया जाए।

राज्य सरकार के साथ ही, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर एसआईआर प्रक्रिया को तत्काल रोकने की मांग की है। दोनों याचिकाओं में मुख्य तर्क यही है कि एसआईआर और स्थानीय निकाय चुनावों का एक साथ होना प्रशासनिक रूप से असंभव है और इससे मतदाताओं के अधिकारों का हनन होगा।

केरल सरकार की याचिका आर्टिकल 32 के तहत दाखिल की गई है। इसमें कहा गया है कि राज्य में 1,200 स्थानीय स्वशासन संस्थाएं (एलएसजीआई) हैं, जिनमें 941 ग्राम पंचायतें, 152 ब्लॉक पंचायत, 14 जिला पंचायत, 87 नगर पालिकाएं और 6 निगम शामिल हैं। इनके कुल 23,612 वार्डों के लिए चुनाव दो चरणों में 9 और 11 दिसंबर को होने हैं, जबकि गिनती 13 दिसंबर को होगी।

एसआईआर प्रक्रिया 4 नवंबर से शुरू हो चुकी है और ड्राफ्ट मतदाता सूची 4 दिसंबर को प्रकाशित होनी है। याचिका में तर्क दिया गया कि इन चुनावों के लिए 1,76,000 कर्मियों और 68,000 सुरक्षा बलों की जरूरत है, जबकि एसआईआर के लिए अतिरिक्त 25,668 कर्मी चाहिए। इससे प्रशासनिक मशीनरी पर भारी दबाव पड़ेगा और सामान्य शासन व्यवस्था ठप हो जाएगी।

सरकार ने यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 243-ई और 243-यू तथा केरल पंचायत राज अधिनियम की धारा 38 और नगर निगम अधिनियम की धारा 94 के तहत स्थानीय निकाय चुनाव पिछले परिषदों की पहली बैठक के पांच वर्ष के भीतर अनिवार्य हैं। वहीं, एसआईआर के लिए कोई ऐसा संवैधानिक बाध्यकारी प्रावधान नहीं है।

याचिका में निर्वाचन आयोग से अपील की गई है कि चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक एसआईआर को स्थगित किया जाए, क्योंकि इससे किसी को कोई नुकसान नहीं होगा। राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह SIR की वैधता पर बाद में सवाल उठा सकती है, लेकिन फिलहाल केवल स्थगन की मांग कर रही है।

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