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Thursday,21-August-2025
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उत्तराखंड हिमस्खलन : सीएम धामी ने किया आपदा नियंत्रण कक्ष का दौरा

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देहरादून, 1 मार्च। उत्तराखंड में आए हिमस्खलन की वजह से सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के 52 श्रमिकों के फंसने के बाद राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शुक्रवार शाम आपदा नियंत्रण कक्ष का दौरा किया और स्थिति का जायजा लिया। उन्होंने अधिकारियों को बचाव कार्य तेजी से करने के निर्देश दिए।

मुख्यमंत्री धामी लगातार राहत और बचाव कार्यों पर नजर बनाए हुए हैं और यह सुनिश्चित करने में लगे हैं कि सभी प्रभावित लोगों को सुरक्षित निकाला जाए और हर संभव मदद दी जाए। उन्होंने कहा कि सभी एजेंसियां युद्धस्तर पर काम कर रही हैं ताकि फंसे हुए मजदूरों को जल्द से जल्द सुरक्षित बाहर निकाला जा सके।

उन्होंने एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, आईटीबीपी और सेना से भी मिलकर तेजी से बर्फ हटाने की अपील की।

मुख्यमंत्री धामी ने जोशीमठ में अस्थायी नियंत्रण कक्ष स्थापित करने की घोषणा की, जिससे बचाव कार्यों की बेहतर निगरानी की जा सके। उन्होंने रिपोर्टर्स से बातचीत में कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ), गृह मंत्रालय (एचएमओ) और रक्षा मंत्रालय (आरएमओ) लगातार हालात की जानकारी ले रहे हैं। भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टर भी तैयार हैं और मौसम साफ होते ही उन्हें बचाव कार्य में लगाया जाएगा। कुछ बचाव दल सड़क के रास्ते भी भेजे गए हैं।

इसके अलावा, सरकार ने उन मजदूरों के परिवारों की मदद के लिए एक हेल्पलाइन शुरू की है जो विभिन्न राज्यों से आए हैं। मुख्यमंत्री ने कहा, “हम बस यही प्रार्थना कर रहे हैं कि सभी लोग सुरक्षित बाहर आ जाएं।”

उत्तराखंड के आपदा प्रबंधन सचिव विनोद कुमार सुमन ने बताया कि अब तक 33 मजदूरों को बचा लिया गया है, जबकि 22 मजदूर अभी भी लापता हैं। खराब मौसम की वजह से बचाव कार्य में मुश्किलें आ रही हैं।

पहले खबर आई थी कि 57 मजदूर फंसे हैं, लेकिन बाद में साफ हुआ कि इनमें से 2 मजदूर छुट्टी पर थे। इस तरह कुल 55 मजदूर हिमस्खलन की चपेट में आए थे, जिनमें से 33 को बचा लिया गया है और बाकी 22 की तलाश जारी है।

उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की सूची के अनुसार, फंसे हुए श्रमिक बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और जम्मू-कश्मीर के रहने वाले हैं। हालांकि, 10 मजदूरों के गृह राज्य की जानकारी सूची में नहीं दी गई है।

सुमन ने बताया कि हिमस्खलन वाली जगह पर करीब सात फीट ऊंची बर्फ जमा हो गई है, जिससे बचाव कार्य मुश्किल हो रहा है। फिर भी, 65 से ज्यादा जवान इस अभियान में जुटे हुए हैं।

आपदा

धराली : 50 नागरिक, 1 जेसीओ और 8 जवान लापता- सेना का बचाव अभियान जारी

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नई दिल्ली, 7 अगस्त। उत्तराखंड के उत्तरकाशी में धराली में आई आपदा के बाद से ही रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है। क्षेत्र अब भी काफी हद तक संपर्क से कटा हुआ है। बड़तवारी, लिंचिगाड़, गंगरानी, हर्षिल और धराली में कई स्थानों पर सड़कें बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं।

50 नागरिक, भारतीय सेना के एक जेसीओ और 8 जवान अब भी लापता हैं। वहीं, गंगोत्री में करीब 180 से 200 पर्यटक फंसे हुए हैं, जिन्हें भारतीय सेना और आईटीबीपी द्वारा भोजन, चिकित्सा सहायता और आश्रय उपलब्ध कराया जा रहा है। मौसम और कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के चलते राहत व पुनर्स्थापन कार्य में बाधाएं बनी हुई हैं। बावजूद इसके सेना यहां राहत व बचाव कार्यों में जुटी हुई है।

भारतीय सेना के अनुसार, पर्यटकों को नेलोंग हेलीपैड से निकाला जाएगा। हर्षिल का सैन्य हेलीपैड पूरी तरह से चालू है, जबकि नेलोंग हेलीपैड भी चालू है और गंगोत्री से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है, जिससे राहत कार्यों में सुविधा मिल रही है। हालांकि, धराली का नागरिक हेलीपैड कीचड़ भरे भूस्खलन के कारण अभी भी काम नहीं कर रहा है।

सेना ने मानवीय सहायता और आपदा राहत अभियान तेज कर दिया है और नागरिक प्रशासन व अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर काम कर रही है। सड़कें कट जाने और संचार व्यवस्था बाधित होने के चलते सेना लगातार दिन-रात राहत कार्यों में जुटी है। सेना के 225 से अधिक जवान, जिनमें इंजीनियर, चिकित्सा दल और बचाव विशेषज्ञ शामिल हैं, मौके पर तैनात हैं। यहां एक रीको रडार टीम पहले से सक्रिय है और दूसरी टीम को तैनात किया जा रहा है। सेना के अधिकारियों ने बताया कि सर्च एंड रेस्क्यू डॉग्स को भी तैनात किया गया है, जो लापता लोगों को खोजने में सहायता कर रहे हैं।

चिनूक और एमआई-17 हेलिकॉप्टर, जो जॉलीग्रांट में तैनात हैं, जल्द ही मौसम की अनुमति मिलने पर लोगों को निकालने और राहत सामग्री पहुंचाने के लिए उड़ान भरेंगे। सहस्त्रधारा से चलने वाले पांच नागरिक हेलिकॉप्टर एसडीआरएफ के सहयोग से मटली, भटवारी और हर्षिल के बीच लगातार उड़ानें भर रहे हैं। साथ ही, आईटीबीपी के मटली हेलीपैड पर एक अस्थायी एविएशन बेस तैयार किया जा रहा है ताकि हेलिकॉप्टर अभियानों में तेजी लाई जा सके। भारतीय सेना के अनुसार, अब तक 70 नागरिकों को सुरक्षित बचाया गया है।

3 नागरिकों की मौत की पुष्टि हुई है, जबकि 50 से अधिक लोग अभी भी लापता हैं (नागरिक प्रशासन के अनुसार)। सेना ने 1 जेसीओ और 8 जवानों के लापता होने की जानकारी दी है। 9 सैनिकों और 3 नागरिकों को हेलिकॉप्टर से देहरादून लाया गया है। 3 गंभीर रूप से घायल नागरिकों को एम्स ऋषिकेश ले जाया गया है, जबकि 8 अन्य को उत्तरकाशी जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है। 2 शव बरामद किए गए हैं।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने धाराली का दौरा कर स्थिति का जायजा लिया और राहत कार्यों की समीक्षा की। सेना की सेंट्रल कमांड के कमांडर और यूबी एरिया के जीओसी भी मौके पर राहत अभियानों की निगरानी कर रहे हैं। सेंट्रल कमांड के चीफ ऑफ स्टाफ हेलिकॉप्टर संचालन के लिए सेंट्रल एयर कमांड मुख्यालय से समन्वय कर रहे हैं।

अब अगले 24–48 घंटों में पैराट्रूप्स और चिकित्सा दलों को चिनूक हेलिकॉप्टर से हर्षिल भेजा जाएगा, वहीं एनडीआरएफ कर्मियों और मेडिकल स्टाफ को एमआई-17 हेलिकॉप्टर से नेलोंग ले जाया जाएगा।

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आपदा

उत्तराखंड में बादल फटने से महाराष्ट्र के 24 नागरिक फंसे, सुप्रिया सुले ने सीएम धामी से मदद मांगी

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पुणे, 6 अगस्त। उत्तरकाशी में बादल फटने की घटना के बाद महाराष्ट्र के 24 नागरिक उत्तराखंड में फंस गए हैं। उनकी सुरक्षा को लेकर एनसीपी (एसपी) सांसद सुप्रिया सुले ने चिंता जाहिर की। साथ ही उन्होंने उत्तराखंड में फंसे नागरिकों के नाम के साथ मोबाइल नंबर भी जारी किए हैं। उन्होंने कहा कि पिछले 24 घंटों से उनसे संपर्क न होने के कारण परिवार के लोग काफी चिंतित हैं।

एनसीपी (एसपी) सांसद सुप्रिया सुले ने बुधवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “महाराष्ट्र के मंचर क्षेत्र के लगभग 24 नागरिक उत्तराखंड में हाल ही में हुए बादल फटने की घटना के कारण फंसे हुए हैं। पिछले 24 घंटों से उनसे संपर्क न होने के कारण उनके परिवार के लोग काफी चिंतित हैं।”

सुप्रिया सुले ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मदद की अपील की। उन्होंने कहा, “उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और उत्तराखंड मुख्यमंत्री कार्यालय से अनुरोध है कि कृपया हस्तक्षेप करें और उन्हें जल्द से जल्द बचाने में मदद करें।”

उन्होंने उत्तराखंड में फंसे हुए कुछ लोगों के नाम और मोबाइल नंबर भी एक्स पर शेयर किया है, जिनमें अशोक किसान भोर (9890600661), सविता शंकर काले (9527085169), अशोक टेमकर (9867571585), लीला रोकड़े (9130346544), माणिक ढोरे (9822364243), मारुति शिंदे (9284153045), समृद्धि जंगम (9936819132), सतीश मांगड़े (9766663401), लीना जंगम (9769621996), पुरूषोत्तम (9881403519), संगीता वालू (8830146903), शिंदे गहिनीनाथ (9881930966), अरुणा सातकर (9860758977), विट्ठल खेडकर (9405851609), सुनीता धोरे (7499490903), नितिन जाधव (9325666487) और मंगल (8805255991) शामिल है।

सुप्रिया सुले ने उत्तराखंड सरकार से अनुरोध किया है कि वहां फंसे लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करे और उन्हें जल्द से जल्द बचाने में मदद करें।

इस बीच, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बुधवार को उत्तराकाशी में बादल फटने की घटना को लेकर राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र में अधिकारियों के साथ बैठक की। उन्होंने सभी अधिकारियों को स्वास्थ्य सुविधाओं को दुरुस्त करने के निर्देश दिए, ताकि अगर किसी भी प्रकार की आपातकालीन स्थिति पैदा हो, तो उससे कुशलतापूर्वक निपटा जा सके।

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अंतरराष्ट्रीय

एक ‘काली रात’ जो कहर बनकर टूटी, कई अफगानी नींद से फिर कभी नहीं उठे

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नई दिल्ली, 21 जून। दिन 22 जून, साल 2022! जिसे अफगानिस्तान सबसे भयावह दिन के तौर पर याद करता है। यह वही दिन है, जब भूकंप के एक जोरदार झटके से अफगानिस्तान में जान-माल का भारी नुकसान हुआ था।

वक्त देर रात करीब 1 बजकर 24 मिनट का था… लोग उस वक्त गहरी नींद में थे। तभी एक जोरदार झटके से उनकी आंख खुली। यह 6.1 की तीव्रता का भूकंप था। इस भूकंप को न सिर्फ अफगानिस्तान में, बल्कि पाकिस्तान और भारत सहित 310 मील के क्षेत्र में मौजूद लोगों ने महसूस किया।

यूएस जियोलॉजिकल सर्वे (यूएसजीएस) के अनुसार इस भूकंप का केंद्र खोस्त से लगभग 28.5 मील दक्षिण-पश्चिम में पाकिस्तान की सीमा के पास था।

रात का काला अंधेरा जब खत्म हुआ, तो सुबह की हल्की रोशनी में दर्दनाक मंजर नजर आ रहा था। कई घर मलबे में तब्दील हो चुके थे। इन मलबों के नीचे कई लाशें दफ्न थीं। हालांकि, कुछ लोग अभी भी जीवन के लिए संघर्ष कर रहे थे।

इस भूकंप में 1000 से ज्यादा लोगों की मौतें हुईं। 1500 से ज्यादा लोग जख्मी हुए। यह 1998 के बाद से अफगानिस्तान में सबसे भयानक भूकंप था। पहले से ही आतंक और चरमपंथियों की मार से जूझ रहे अफगानिस्तान को इस जोरदार भूकंप ने झकझोर कर रख दिया।

यह आपदा तालिबान सरकार के लिए एक मुश्किल परीक्षा थी। बचाव दल राहत कार्य के लिए एकजुट था, लेकिन पहले ही कई अंतरराष्ट्रीय सहायता एजेंसियां यह देश छोड़ चुकी थीं।

बदहाली इस कदर थी कि लोगों को कंबल में लपेटकर हेलीकॉप्टर तक ले जाया जा रहा था। कुछ लोगों का इलाज वहीं धूल और मलबे के बीच जमीन पर किया जा रहा था।

अमेरिकी भूगर्भीय सर्वेक्षण के भूकंप विज्ञानी रॉबर्ट सैंडर्स का मानना है कि यूं तो दुनिया के दूसरे स्थानों पर इतनी तीव्रता का भूकंप इस कदर तबाही नहीं मचाता, लेकिन इमारतों की क्वालिटी और जनसंख्या घनत्व ही अफगानिस्तान में इस तरह की तबाही का कारण बना।

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