राष्ट्रीय समाचार
भारत में पहली बार प्रयोगशाला में विकसित होगा मछली का मांस
एक ऐतिहासिक कदम में आईसीएआर-सेंट्रल मरीन फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएमएफआरआई) ने भारत में पहली बार प्रयोगशाला में विकसित मछली के मांस को विकसित करने की अग्रणी पहल की है।
परियोजना का उद्देश्य भारत को समुद्री मछली के मांस के क्षेत्र में प्रगति करने के लिए स्थापित करना है, जिससे समुद्री भोजन की बढ़ती मांग को पूरा किया जा सके और जंगली संसाधनों पर अत्यधिक दबाव कम किया जा सके।
संवर्धित मछली का मांस या प्रयोगशाला में विकसित मछली का मांस मछली से विशिष्ट कोशिकाओं को अलग करके और उन्हें पशु मुक्त मीडिया घटक का उपयोग करके प्रयोगशाला सेटिंग में विकसित करके उत्पादित किया जाता है।
अंतिम उत्पाद मछली के मूल स्वाद बनावट और पोषण गुणों को दोहराएगा।
प्रारंभिक चरण में संस्थान किंग फिश पोम्फ्रेट और सीयर मछली जैसी उच्च मूल्य वाली समुद्री मछलियों के सेल आधारित मांस को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
इसके अनुरूप सीएमएफआरआई ने इस पहल को सार्वजनिक निजी भागीदारी मोड में शुरू करने के लिए ‘नीट मीट बायोटेक’ के साथ एक सहयोगात्मक अनुसंधान समझौता किया है, जो संवर्धित मांस विकसित करने की दिशा में काम कर रहा है।
सीएमएफआरआई के निदेशक डॉ. ए. गोपालकृष्णन और नीट मीट बायोटेक के सह-संस्थापक और सीईओ डॉ. संदीप शर्मा ने इस संबंध में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।
एमओयू के अनुसार सीएमएफआरआई उच्च मूल्य वाली समुद्री मछली प्रजातियों के प्रारंभिक सेल लाइन विकास पर अनुसंधान करेगा।
इसमें आगे के अनुसंधान और विकास के लिए मछली कोशिकाओं को अलग करना और विकसित करना शामिल है।
इसके अतिरिक्त सीएमएफआरआई परियोजना से संबंधित आनुवंशिक, जैव रासायनिक और विश्लेषणात्मक कार्य संभालेगा।
संस्थान बुनियादी सुविधाओं के साथ एक सेल कल्चर प्रयोगशाला से सुसज्जित है, जो सेलुलर जीव विज्ञान में अनुसंधान के लिए ठोस आधार प्रदान करता है।
सेल कल्चर तकनीक में अपनी विशेषज्ञता के साथ नीट मीट सेल अटैचमेंट के लिए मचान या माइक्रो कैरियर के सेल ग्रोथ मीडिया विकास के अनुकूलन और बायो-रिएक्टर के माध्यम से उत्पादन को बढ़ाने का नेतृत्व करेगा।
नीट मीट, सेल कल्चर तकनीक में अपनी विशेषज्ञता के साथ, सेल ग्रोथ मीडिया के अनुकूलन, सेल अटैचमेंट के लिए मचान या सूक्ष्म वाहक के विकास और बायो-रिएक्टर के माध्यम से उत्पादन को बढ़ाने का नेतृत्व करेगा।
वे परियोजना के लिए आवश्यक उपभोग्य वस्तुएं, जनशक्ति और कोई भी अतिरिक्त उपकरण भी प्रदान करेंगे।
सीएमएफआरआई के निदेशक डॉ. ए. गोपालकृष्णन ने कहा कि इस परियोजना का लक्ष्य इस क्षेत्र में विकास को गति देना है, यह सुनिश्चित करना है कि भारत इस उभरते उद्योग में पीछे न रह जाए।
गोपालकृष्णन ने कहा, ”यह सार्वजनिक निजी भागीदारी भारत और सिंगापुर, इजरायल और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे अन्य देशों के बीच अंतर को पाटने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो पहले से ही सुसंस्कृत समुद्री खाद्य अनुसंधान को आगे बढ़ा रहे हैं।
लैब में विकसित की गई मछली पर्यावरण और खाद्य सुरक्षा लाभों के लिए अपार संभावनाएं प्रदान करती है और यह सहयोग इस क्षेत्र में नीट मीट की तकनीकी जानकारी के साथ सीएमएफआरआई की समुद्री अनुसंधान विशेषज्ञता का लाभ उठाता है, जो भारत में समुद्री खाद्य उत्पादन के लिए एक स्थायी और सुरक्षित भविष्य का मार्ग प्रशस्त करता है।”
शर्मा ने कहा कि परियोजना की अवधारणा का प्रमाण कुछ महीनों के भीतर स्थापित किया जा सकता है।
राजनीति
1984 के सिख विरोधी दंगे: सज्जन कुमार के खिलाफ मामले में आज अंतिम दलीलें सुनेगा राउज एवेन्यू कोर्ट

नई दिल्ली, 29 अक्टूबर: 1984 के सिख विरोधी दंगों से जुड़े एक मामले में दिल्ली के राउस एवेन्यू कोर्ट ने आरोपी सज्जन कुमार के खिलाफ चल रहे केस की सुनवाई पूरी कर ली है। ये मामला जनकपुरी और विकासपुरी इलाकों में हुई हिंसा का है। बुधवार को कोर्ट दोनों पक्षों की आखिरी दलीलों को सुनेगा।
7 जुलाई को सज्जन कुमार ने अदालत में खुद को निर्दोष बताते हुए कहा था कि उन्होंने कभी भी इस तरह के अपराध नहीं किए और उनके खिलाफ कोई सबूत भी नहीं है। इससे पहले, 9 नवंबर 2023 को इस केस की पीड़िता मंजीत कौर ने अपना बयान कोर्ट में दर्ज कराया था।
सज्जन कुमार उस समय सांसद थे जब दंगे हुए थे। उन पर आरोप है कि उन्होंने भीड़ को सिख समुदाय के लोगों को मारने के लिए उकसाया।
1984 के सिख विरोधी दंगे तब शुरू हुए जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके सिख अंगरक्षक द्वारा हत्या कर दी गई। इसके पीछे कारण यह था कि इंदिरा गांधी ने उस साल पहले स्वर्ण मंदिर में छिपे आतंकवादियों को खदेड़ने के लिए भारतीय सेना को भेजने का फैसला किया था। इस फैसले से सिख समुदाय में आक्रोश था।
प्रधानमंत्री की हत्या के बाद, कई लोग सिखों को निशाना बनाने लगे। खासकर दिल्ली में बड़ी संख्या में आगजनी और हत्याएं हुईं। ये दंगे पूरे देश में फैल गए और 3,000 से अधिक सिखों की जानें गईं। सबसे ज्यादा हिंसा और मौतें दिल्ली में हुईं, जहां 2,700 से ज्यादा लोग मारे गए।
तीन दशकों तक कई बड़े नेताओं पर दंगों में शामिल होने के आरोप लगे, लेकिन उन्हें सजा नहीं हुई। हालांकि, यह स्थिति बदल गई जब दिल्ली हाई कोर्ट ने सज्जन कुमार को दोषी ठहराया और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई। उनके वकील ने बताया कि सज्जन कुमार इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे।
सज्जन कुमार पर कई मामले दर्ज हैं। इनमें से एक केस दिल्ली में पांच लोगों के परिवार की हत्या से जुड़ा है। वर्तमान केस में उन पर आरोप है कि उन्होंने जनकपुरी में दो सिखों, सोहन सिंह और उनके दामाद अवतार सिंह की हत्या में भूमिका निभाई। इसके अलावा, उन पर विकासपुरी में गुरचरण सिंह को आग के हवाले करने का भी आरोप है।
राउज एवेन्यू कोर्ट में बयान देते समय 77 वर्षीय सज्जन कुमार ने कहा कि उन पर झूठे आरोप लगाए गए हैं और यह केस राजनीतिक रूप से उनके खिलाफ बनाया गया है।
हिंसा की जांच के लिए गठित नानावटी आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में 587 एफआईआर दंगों के सिलसिले में दर्ज हुई। इन दंगों में 2,733 लोग मारे गए। इनमें से लगभग 240 केस पुलिस ने अज्ञात बताकर बंद कर दिए और 250 केसों में आरोपी बरी हो गए। केवल 28 केसों में दोषी पाए गए, जिनमें लगभग 400 लोग शामिल थे। इन लोगों में करीब 50 को हत्या के लिए सजा मिली, जिनमें सज्जन कुमार भी शामिल हैं।
सज्जन कुमार उस समय वरिष्ठ कांग्रेस नेता और सांसद थे। उन्हें दिल्ली के पालम कॉलोनी में 1 और 2 नवंबर 1984 को पांच लोगों की हत्या के एक और केस में भी दोषी ठहराया गया। दिल्ली हाई कोर्ट ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई। इस सजा को चुनौती देने के लिए उनकी अपील अब सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
राष्ट्रीय समाचार
डीजीसीए ने पायलटों की मेडिकल जांच आसान की, 10 नए एयरोमेडिकल सेंटर जोड़े

नई दिल्ली, 29 अक्टूबर: नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने पायलटों और एयरक्रू की मेडिकल जांच को तेज और आसान बनाने के लिए बड़ा कदम उठाया है। मंगलवार को 10 नए एयरोमेडिकल मूल्यांकन केंद्रों को मंजूरी दी गई, जो देश के अलग-अलग हिस्सों में फैले हैं।
डीजीसीए के इस कदम से क्लास 1, 2 और 3 मेडिकल जांच की क्षमता बढ़ेगी, और पायलटों को समय पर सर्टिफिकेट मिल सकेगा।
पहले सिर्फ 8 केंद्र थे, जो सिर्फ क्लास 1 की शुरुआती जांच करते थे। अब नए केंद्र सभी तरह की जांच करेंगे, जिसमें शुरुआती, स्पेशल, अस्थायी अयोग्यता के बाद और उम्र से जुड़ी जांच भी शामिल हैं।
ये केंद्र भारतीय वायुसेना के बोर्डिंग सेंटरों के अलावा हैं। सभी में आधुनिक मशीनें, अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर और विशेष डॉक्टर उपलब्ध हैं। डीजीसीए के सख्त नियम और आईसीएओ (अंतरराष्ट्रीय मानक) का पालन होगा।
नए केंद्रों की लोकेशन की बात करें तो अपोलो हॉस्पिटल्स (नई दिल्ली, बेंगलुरु, हैदराबाद, चेन्नई, इंदौर), मुंबई: नानावटी हॉस्पिटल्स, पुणे: रूबी हॉल क्लिनिक, वीएम मेडिकल केयर सेंटर, नई दिल्ली: मैक्स मल्टी स्पेशियलिटी सेंटर और मेदांता मेडिसिटी शामिल हैं।
डीजीसीए का कहना है कि इससे जांच में देरी कम होगी, पायलटों की कमी नहीं होगी और उड़ान सुरक्षा मजबूत रहेगी। भारत दुनिया का सबसे तेज बढ़ता एविएशन मार्केट है, इसलिए नियामक ढांचे को मजबूत करना जरूरी है।
इस संबंध में सभी विस्तृत दिशा-निर्देशों और अनुदेशों के साथ डीजीसीए की आधिकारिक वेबसाइट पर ‘सार्वजनिक सूचना’ प्रकाशित की गई है।
यह विस्तार चिकित्सा प्रमाणन प्रक्रिया को अधिक कुशल और कम समय लेने वाला बनाकर विमानन समुदाय के कल्याण के प्रति डीजीसीए की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जिससे प्रशासनिक देरी के कारण संभावित पायलटों की कमी को कम करने में मदद मिलेगी।
यह पहल दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते विमानन बाजार की मांगों को पूरा करने के लिए भारत के नागरिक विमानन नियामक ढांचे को आधुनिक बनाने और बढ़ाने के डीजीसीए के निरंतर प्रयास का एक हिस्सा है।
अंतरराष्ट्रीय समाचार
सोनम वांगचुक की नजरबंदी मामले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

नई दिल्ली, 29 अक्टूबर: सुप्रीम कोर्ट लद्दाख स्थित जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत नजरबंदी को चुनौती देने वाली याचिका पर बुधवार को सुनवाई करेगा।
वांगचुक की पत्नी गीतांजलि जे अंगमो की ओर से दायर इस मामले में उनकी नजरबंदी की वैधता और अधिकारियों द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया पर सवाल उठाए गए हैं।
इस महीने की शुरुआत में, न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की पीठ ने अंगमो को अपनी रिट याचिका में संशोधन करने की अनुमति दी थी, जब उनके वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सरकार की ओर से दिए गए नए विवरण शामिल करने की अनुमति मांगी थी।
सिब्बल ने अदालत को बताया कि केंद्र सरकार ने वांगचुक को नजरबंदी के आधार बता दिए हैं, जिससे मूल याचिका में संशोधन करना जरूरी हो गया है। उन्होंने कहा, “मैं याचिका में संशोधन करूंगा ताकि मामला यहीं जारी रह सके।” इसके बाद, अदालत ने मामले की अगली सुनवाई बुधवार को तय कर दी।
सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिका में मूल रूप से यह तर्क दिया गया था कि अधिकारी एनएसए की धारा 8 के तहत हिरासत के आधार प्रस्तुत करने में विफल रहे हैं, जिसके अनुसार बंदियों को एक निश्चित समय के भीतर उनकी हिरासत के कारणों के बारे में सूचित किया जाना आवश्यक है।
हालांकि, लेह प्रशासन ने जिला मजिस्ट्रेट रोमिल सिंह डोंक के माध्यम से दायर अपने हलफनामे में दावा किया कि निर्धारित अवधि के भीतर बंदी को कारणों से विधिवत अवगत करा दिया गया था।
इस बीच, एनएसए के तहत गठित सलाहकार बोर्ड ने हाल ही में वांगचुक की हिरासत की समीक्षा की। पूर्व न्यायाधीश एमके हुजुरा (अध्यक्ष), जिला न्यायाधीश मनोज परिहार और सामाजिक कार्यकर्ता स्पल जयेश अंगमो सहित तीन सदस्यीय पैनल ने राजस्थान के जोधपुर सेंट्रल जेल में तीन घंटे तक बंद कमरे में सुनवाई की। कार्यवाही के दौरान वांगचुक और उनकी पत्नी दोनों मौजूद थे।
सुनवाई कथित तौर पर एनएसए लगाने के प्रशासन के औचित्य और वांगचुक के प्रतिनिधित्व पर केंद्रित थी, जिसमें इसे चुनौती दी गई थी।
सोनम वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत हिरासत में लिया गया था। इसके बाद देशव्यापी विरोध प्रदर्शन हुए और नागरिक अधिकार समूहों ने भी इसकी आलोचना की। उन्होंने वांगचुक की हिरासत को मनमाना और अनुचित बताया।
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