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भारत-नेपाल संबंध : देउबा-मोदी मुलाकात के बाद क्या लौट आएगी आपसी संबंधों की गर्माहट

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नेपाल और भारत के बीच परेशानियों और बकाया मुद्दों में से एक सीमा विवाद है, जिसने कुछ समय के लिए काठमांडू और नई दिल्ली के बीच बड़ी गलतफहमियां पैदा कर दी थीं। दरअसल, साल 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद भारत ने कालापानी में अपनी सैना तैनात कर दी थी, जिस पर ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के तत्कालीन शासकों के बीच सुगौली संधि (1816) के बाद से नेपाल का कब्जा था। इसका ठीक से पता नहीं है कि ये नेपाल सरकार का निर्णय था या भारत ने कालापानी में अपनी सेना रखने की अनुमति मांगी थी, लेकिन इसका सामरिक महत्व है, क्योंकि यह नेपाल, भारत और चीन के बीच स्थित है।

जब भारत ने नवंबर 2019 के पहले सप्ताह में अपने नए राजनीतिक मानचित्र का अनावरण किया, तब कालापानी विवाद फिर से शुरू हो गया और नेपाल ने इस मुद्दे को हल करने के लिए बातचीत के लिए भारत में राजनयिकों को भेजकर निर्णय का विरोध किया। भारत ने तब कहा था कि इस मामले को कूटनीतिक तरीके से सुलाझाया जाना चाहिए।

भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के हिमालय में लिपुलेख के माध्यम से एक नई 8 किमी लंबी सड़क का उद्घाटन करने के बाद यह मुद्दा तीव्र हो गया, जिसे नेपाल भी अपना क्षेत्र मानता है। तब तत्कालीन के.पी. शर्मा ओली सरकार ने सड़क के विस्तार का विरोध किया और भारत पर नेपाल के साथ पूर्व परामर्श के बिना यथास्थिति को बदलने का आरोप लगाया।

सड़क भारत को तिब्बत से जोड़ने और मानसरोवर जाने के इच्छुक भारतीय तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए थी। नेपाल ने भारत और चीन के बीच लिपुलेख के रास्ते सड़क का विस्तार करने के 2015 के फैसले का पहले ही विरोध किया था।

भारत और चीन ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा के दौरान लिपुलेख के माध्यम से व्यापार गलियारे विकसित करने का फैसला किया था, लेकिन नेपाल सरकार ने इसका विरोध किया था।

साल 2020 में राजनाथ सिंह ने नई सड़क का उद्घाटन किया, तब यह मुद्दा फिर से तेज हो गया।

लिपुलेख के रास्ते सड़क बनाने के भारत के एकतरफा फैसले का विरोध करते हुए नेपाल ने भारत में कुछ राजनयिक भेजे और समझौते के लिए बातचीत की मांग की। लेकिन तब भारत ने कोरोना महामारी के कारण बातचीत को टाल दिया था।

भारत की प्रतिक्रिया के बाद ओली सरकार ने कालापानी और लिपुलेख को अपने क्षेत्र में शामिल करते हुए नेपाल के एक नए राजनीतिक मानचित्र का अनावरण किया। फिर, दोनों पक्षों के बीच ‘काटरेग्राफिक युद्ध की स्थिति’ बन गई थी।

नेपाल सरकार ने संशोधित आधिकारिक नक्शा जारी किया, जिसमें भारतीय क्षेत्र के कुछ हिस्सों को शामिल किया गया है। तब भारत के विदेश मंत्रालय के तत्कालीन प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा था, ‘यह एकतरफा कार्य ऐतिहासिक तथ्यों और सबूतों पर आधारित नहीं है।’

इसके बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया। हालांकि, प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की हाल की भारत यात्रा के दौरान सीमा विवाद तीन साल के अंतराल के बाद फिर से सामने आया। उन्होंने मोदी के साथ प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता के दौरान इस मुद्दे को उठाया।

मशहूर नेपाल के मानचित्रकार और सर्वेक्षण विभाग के पूर्व महानिदेशक बुद्धि नारायण श्रेष्ठ ने आईएएनएस को बताया कि “अब भारत के साथ आगे की बातचीत के लिए दरवाजा खुल गया है, जिस तरह से हमारे प्रधानमंत्री ने भारत के साथ इस मामले को उठाया है, हमें उम्मीद है कि जल्द ही कुछ प्रगति होगी।”

नई दिल्ली में हैदराबाद हाउस में 2 अप्रैल को देउबा और मोदी के बीच प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता के बाद नेपाल के प्रधानमंत्री ने कहा, “हमने सीमा मामलों पर चर्चा की और मैंने उनसे (मोदी) स्थापित तंत्र के माध्यम से उन्हें हल करने का आग्रह किया।”

भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने कहा कि सीमा मुद्दे को सुलझाने पर आम सहमति बनी है। एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर ‘संक्षिप्त चर्चा’ हुई।

उन्होंने कहा, “दोनों पक्षों को हमारे करीबी और मैत्रीपूर्ण संबंधों को ध्यान में रखते हुए चर्चा और बातचीत करने की जरूरत है। ऐसे मुद्दों पर राजनीतिकरण से बचने की जरूरत है।”

लेकिन देउबा-मोदी वार्ता के बाद जारी किए गए एक भारतीय बयान में हालांकि इस मुद्दे पर चुप्पी साधी हुई थी।

सुस्ता और कालापानी में सीमा रेखा से निपटने के लिए नेपाल और भारत के पास विदेश सचिव और तकनीकी स्तर पर तंत्र हैं। सुस्ता और कालापानी को छोड़कर नेपाल और भारत के साथ सीमा कार्यो को पूरा करने के लिए एक अलग सीमा कार्य समूह (बीडब्ल्यूजी) भी अनिवार्य है।

श्रेष्ठ ने कहा कि देउबा की यात्रा से द्विपक्षीय वार्ता के द्वार खुल गए हैं और दोनों पक्षों के लिए मौजूदा तंत्र को पुनर्जीवित करना बेहतर मौका है।

उन्होंने आगे कहा, “नेपाल और भारत के प्रधानमंत्रियों ने 2014 में सीमा विवाद से निपटने और उसे दूर करने के लिए विदेश सचिव स्तर पर एक तंत्र स्थापित किया था। उन्हें विवाद को सुलझाने के लिए तकनीकी स्तर से प्रतिक्रिया और इनपुट प्राप्त करने के लिए कहा गया था। अब समय आ गया है कि नेपाल और भारत सीमा विवाद के समाधान के लिए विदेश सचिव स्तर के तंत्र को पुनर्जीवित करें।”

नेपाल और भारत के बीच नवंबर 2019 में संबंध बिगड़ने लगे, जब दिल्ली ने अपने क्षेत्र में कालापानी सहित एक नया नक्शा जारी किया।

जैसे ही विवाद फिर से शुरू हुआ, तब श्रृंगला ने नवंबर 2020 के अंत में नेपाल की यात्रा की थी और तत्कालीन विदेश मंत्री प्रदीप ग्यावली ने जुलाई 2021 में भारत की यात्रा की थी। लेकिन दोनों यात्राएं तनाव को कम नहीं कर सकीं।

इस साल जनवरी में फिर से भारतीय प्रधानमंत्री मोदी द्वारा की गई एक टिप्पणी ने नेपाल में एक नया हंगामा खड़ा कर दिया।

उत्तराखंड के हल्द्वानी में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने घोषणा की थी कि उनकी सरकार ने लिपुलेख तक एक सड़क का विस्तार किया है और इसे और आगे बढ़ाने की योजना है।

नेपाल के राजनीतिक दलों ने मोदी के बयान पर नाराजगी जताते हुए इसे गैर-जरूरी बताया और उन्होंने मांग की कि देउबा सरकार भारत को जवाब दे।

मुख्य विपक्षी सीपीएन-यूएमएल ने भारत के साथ इस मुद्दे को उठाने में विफल रहने के लिए सरकार की आलोचना की, जबकि सत्तारूढ़ गठबंधन ने भारत के बयान पर आपत्ति जताई।

नेपाल के संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ज्ञानेंद्र बहादुर कार्की ने 16 जनवरी को कहा कि सरकार इस तथ्य के बारे में दृढ़ और स्पष्ट है कि महाकाली नदी के पूर्व में लिपुलेख, लिंपियाधुरा और कालापानी क्षेत्र नेपाल का अभिन्न अंग है।

उन्होंने कहा था कि नेपाल सरकार भारत सरकार से नेपाली क्षेत्र से होकर जाने वाली किसी भी सड़क के एकतरफा निर्माण/विस्तार को रोकने का अनुरोध कर रही है।

उन्होंने आगे कहा, “नेपाल सरकार दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों की भावना के अनुसार राजनयिक चैनलों के माध्यम से ऐतिहासिक संधियों और समझौतों, तथ्यों, मानचित्रों और साक्ष्य के आधार पर सीमा मुद्दों को हल करने के लिए प्रतिबद्ध है।”

नेपाली राजनयिकों और अधिकारियों का कहना है कि नेपाल और भारत के बीच हालिया घटनाक्रम जहां दोनों पक्षों ने विवाद को सुलझाने के लिए अपनी उत्सुकता दिखाई है, ये स्वागत योग्य है, लेकिन इसमें कुछ और समय लग सकता है।

नेपाल के विदेश मंत्री नारायण खड़का ने भी कहा कि मोदी और देउबा मौजूदा सीमा विवाद को मौजूदा तंत्र, बातचीत और कूटनीति के जरिए सुलझाने और उसका समाधान करने पर सहमत हुए हैं। उन्होंने आगे कहा, “बातचीत के दौरान दोनों प्रधानमंत्रियों ने सीमा मुद्दों पर भी चर्चा की और दोनों नेता मौजूदा तंत्र के माध्यम से और बातचीत और कूटनीति के माध्यम से ऐसे मुद्दों को हल करने पर सहमत हुए।”

प्रधानमंत्री देउबा द्वारा सार्वजनिक रूप से अपने भारतीय समकक्ष से द्विपक्षीय तंत्र की स्थापना के माध्यम से सीमा मुद्दे को हल करने का आग्रह करने के बाद खड़का का बयान महत्वपूर्ण है।

नेपाल के पूर्व राजदूत और दो प्रधानमंत्रियों के पूर्व विदेश नीति सलाहकार दिनेश भट्टराई ने आईएएनएस को बताया कि कम से कम शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व को यह अहसास है कि सीमा विवादों को सुलझाना चाहिए और लंबे समय तक अधर में नहीं रहना चाहिए।

उन्होंने कहा, चूंकि भारतीय विदेश सचिव ने कहा कि इस मुद्दे को संबोधित किया जाना चाहिए। यह दर्शाता है कि भारत ने विवाद को स्वीकार कर लिया है।

भट्टराई ने कहा, “इस मुद्दे को मेज पर लाया गया है और दोनों पक्षों को बैठकर सौहार्दपूर्ण समाधान खोजना चाहिए। इसमें कुछ और समय लग सकता है। हमें कई बार बैठक करनी पड़ सकती है और शायद इसे हल करने के लिए बातचीत में सालों लग सकते हैं लेकिन दोनों पक्षों को स्थिति को भड़काना नहीं चाहिए क्योंकि यह एक संवेदनशील मुद्दा है और इससे कूटनीतिक तरीकों और तंत्रों से निपटा जाना चाहिए।”

महाराष्ट्र

वारिस पठान को पता है नितेश राणे क्या कर रहे हैं। नितेश राणे की पठान को धमकी

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मुंबई: महाराष्ट्र भाजपा नेता और मंत्री नितेश राणे ने एक बार फिर मुसलमानों के खिलाफ ज़हर उगला और कहा कि यह उनके पिता का पाकिस्तान और कराची नहीं, बल्कि हिंदू राष्ट्र और देव भाऊ की सरकार है। ऐसे में अगर कोई व्यवस्था और माहौल बिगाड़ने की कोशिश करेगा, तो उसे जवाब दिया जाएगा। नितेश राणे ने एआईएमआईएम के राष्ट्रीय प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी पर निशाना साधा और कहा कि जिस जगह ओवैसी की रैली हुई, वह अहमदनगर नहीं, बल्कि अहलिया नगर है। सरकार ने अहमदनगर और औरंगाबाद का नाम बदल दिया है, इसके बावजूद लोग अहमदनगर को अहलिया नगर और औरंगाबाद को छत्रपति संभाजी नगर कहने से बचते हैं। ऐसे लोग भारत के संविधान को नहीं, बल्कि शरिया को मानते हैं। उन्होंने कहा कि अगर ओवैसी राज्य का माहौल बिगाड़ने की कोशिश करेंगे, तो सरकार को यह सोचने पर मजबूर होना पड़ेगा कि उन्हें रैली करने की अनुमति दी जाए या नहीं, क्योंकि वह अपनी राजनीतिक रैली के लिए यहां आते हैं।

एडवोकेट वारिस पठान को धमकी देते हुए नितेश राणे ने कहा कि वारिस पठान जानते हैं कि नितेश राणे क्या हैं। उन्होंने कहा कि वारिस पठान समय और जगह तय कर लें, नितेश राणे ज़रूर आएंगे, तब पता चलेगा कि क्या होगा। नितेश राणे ने मुसलमानों के ख़िलाफ़ उकसावे का परिचय देते हुए कहा कि जब हमारे देवी-देवताओं की मूर्ति का अपमान किया जाता है और हिंसा की जाती है, तब भाईचारा कहाँ चला जाता है और भारत का संविधान कहाँ चला जाता है? उन्होंने कहा कि अगर कोई राज्य की शांति भंग करने की कोशिश करता है, तो उसे पता होना चाहिए कि यहाँ देवेंद्र फडणवीस की हिंदुत्ववादी सरकार है।

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राजनीति

महागठबंधन मजबूती के साथ चुनाव लड़ेगा और जीतेगा: मोहिबुल्लाह नदवी

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नई दिल्ली, 10 अक्टूबर: बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर इंडिया ब्लॉक गठबंधन में सीट बंटवारे पर अभी तक तस्वीर साफ नहीं हो पाई है। इस बीच, समाजवादी पार्टी के सांसद मोहिबुल्लाह नदवी ने दावा किया है कि महागठबंधन मजबूती के साथ चुनाव लड़ेगा और जीत हासिल करेगा।

मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि सीट बंटवारे को लेकर जो भी मतभेद हैं, उन्हें जल्द सुलझा लिया जाएगा। महागठबंधन चुनावी मैदान में उतरने के लिए पूरी तरह तैयार है।

समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव की पुण्यतिथि पर सपा सांसद मोहिबुल्लाह नदवी ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।

उन्होंने कहा कि मुलायम सिंह यादव ने हमें समाजवाद की विचारधारा दी। उनकी शिक्षाओं से प्रेरित होकर हमारे नेता अखिलेश यादव समाज के सभी वर्गों तक इस विचारधारा को पहुंचाने का काम कर रहे हैं। पूरा देश मुलायम सिंह यादव को याद कर रहा है। सभी लोग उनके परिवार और पार्टी के लिए दिल से दुआ कर रहे हैं।

एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत पर दिए बयान पर मोहिबुल्लाह नदवी ने कहा कि संविधान ने जाति व्यवस्था को समाप्त कर दिया है। भारतीय होना हमारी सबसे बड़ी पहचान है।

सभी को एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए। चाहे दलित समाज हो या वंचित समाज, सभी इस देश का हिस्सा हैं। जिन लोगों ने चीफ जस्टिस का अपमान करने की कोशिश की, वह सनातन का अपमान है। किसी को भी ऐसा करने का अधिकार नहीं है।

बसपा प्रमुख मायावती द्वारा समाजवादी पार्टी पर लगाए गए आरोपों का जवाब देते हुए नदवी ने कहा कि मायावती को इस समय दलितों के साथ खड़ा होना चाहिए था। बाबासाहेब आंबेडकर ने जो संविधान देश को दिया, वह आज खतरे में है। संविधान और उसकी विचारधारा को बचाने की सबसे ज्यादा जरूरत है। मायावती को छोटी-मोटी बातों में उलझकर या झगड़ा करके अपने नजरिए से नहीं भटकना चाहिए।

मायावती ने अपनी रैली में भाजपा की तारीफ की थी और सपा पर कई आरोप लगाए थे, जिसमें दलितों से जुड़े स्मारकों के नाम बदलने की बात शामिल थी। इस पर नदवी ने कहा कि ऐसा बिल्कुल नहीं है। बाबासाहेब का संविधान और उनकी विचारधारा समाजवाद से सबसे ज्यादा मेल खाती है। उत्तर प्रदेश में दलितों पर हुए अत्याचारों के खिलाफ समाजवादी पार्टी हमेशा खड़ी रही है।

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राजनीति

बिहार में सीट बंटवारे पर महागठबंधन में असमंजस, कौन रखेगा हिमालय से ऊंचा सिर और समुद्र से गहरा दिल?

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पटना, 10 अक्टूबर : बिहार विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, लेकिन महागठबंधन के घटक दलों में सीट बंटवारे को लेकर पेंच फंसा है। मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री पद के चेहरों पर संशय की स्थिति है।

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने शुक्रवार को पटना में संसदीय दल की बैठक बुलाई तो कांग्रेस के नेता पप्पू यादव ने सीटों के लिए राजद को सुझाव दिया है कि उसे बड़ा दिल दिखाना चाहिए।

पूर्णिया से सांसद पप्पू यादव ने सीट बंटवारे पर कहा, “सभी को बड़ा दिल करने की जरूरत है। हिमालय से ऊंचा सिर और समुद्र से गहरा दिल रखने की जरूरत है।” इससे पहले उन्होंने राजद को सुझाव दिया था कि पार्टी को बड़ा दिल दिखाते हुए 100 से कम सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए।

पप्पू यादव ने पटना में मीडिया से बातचीत करते हुए मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री पद के लिए महागठबंधन में दावेदारी को लेकर भी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “हम लोगों के लिए मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री कोई मुद्दा नहीं है। हम लोगों के लिए मुख्य मुद्दा है कि कैसे एनडीए सरकार को यहां से हटाया जा सके।”

इस बीच, बिहार विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के वरिष्ठ पर्यवेक्षक अशोक गहलोत ने सीट बंटवारे पर प्रतिक्रिया दी है।

उन्होंने कहा, “लालू प्रसाद यादव से मुलाकात नहीं हुई। मुलाकात का कार्यक्रम था, लेकिन अभी यह नहीं हुई है।”

वहीं कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने कहा, “सीटों को लेकर बातचीत जारी है। वक्त आने पर फैसले के बाद में बता दिया जाएगा।” उन्होंने यह भी कहा कि जल्द ही सीट बंटवारे को लेकर ऐलान कर दिया जाएगा।

चुनाव के लिए कांग्रेस के वरिष्ठ पर्यवेक्षक अधीर रंजन चौधरी भी पटना पहुंचे हुए हैं। उन्होंने सीट बंटवारे पर कहा कि हमारी रोज बड़ी मीटिंग चल रही है। जल्द फैसला होने वाला है। उन्होंने यह भी कहा कि सीट बंटवारे को लेकर कोई अंदरूनी झगड़ा नहीं है।

हालांकि, मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री फेस पर सवाल का जवाब दिए बगैर अधीर रंजन चौधरी निकल गए।

महागठबंधन में सीट बंटवारे पर कांग्रेस सांसद तारिक अनवर ने कहा, “कोई भी पेच अटका नहीं है। हम लगातार बातचीत कर रहे हैं और सब कुछ सुचारू रूप से चल रहा है। जल्दबाजी करने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि हमारे पास अभी पर्याप्त समय है।”

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