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Monday,15-September-2025
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मुंबई प्रेस एक्सक्लूसिव न्यूज

नासिक में 30 मरीजों के मिलने से मचा हड़कंप, महाराष्ट्र में कोरोना के डेल्टा वेरिएंट ने बढ़ाई चिंता

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महाराष्ट्र में पुणे के बाद नासिक में बड़ी संख्या में डेल्टा वेरिएंट संक्रमित मरीजों के मिलने से हड़कंप मच गया है। नासिक में 30 मरीजों में डेल्टा वेरिएंट की पुष्टि हुई है। इससे पहले पुणे में भी दो मरीज सामने आए थे। WHO के मुताबिक करीब 135 देशों में डेल्टा वेरिएंट पाया जा चुका है। नासिक जिला अस्पताल के सर्जन डॉक्टर किशोर श्रीनिवास ने बताया, ‘नासिक में 30 मरीज डेल्टा वेरिएंट से संक्रमित मिले हैं। इनमें से 28 ग्रामीण इलाकों से हैं। हमने सैंपल को जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए पुणे भेजा, जहां से डेल्टा वेरिएंट होने की पुष्टि हुई है।’

सरकार ने शुक्रवार को लोकसभा को बताया कि देश में चार अगस्त तक कोविड के डेल्टा प्लस स्वरूप के 83 मामले सामने आए। स्वास्थ्य राज्य मंत्री भारती पवार ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि सबसे अधिक महाराष्ट्र में 33, मध्य प्रदेश में 11 और तमिलनाडु में 10 मामले दर्ज किए गए हैं। मंत्री ने बताया कि वायरस के ‘जिनोमिकट डेटा’ का विश्लेषण लगातार किया जा रहा है। WHO के अनुसार, एक वायरस खुद की नकल करता है उसकी कॉपियां बनाता है, जो एकदम सामान्य बात है। वायरस में होने वाले इन बदलावों को म्यूटेशन कहते हैं। एक या एक से ज्यादा नए म्यूटेशन वाले वायरस को ऑरिजनल वायरस के वैरिएंट के रूप में जाना जाता है। विशेषज्ञ कहते हैं कि जब कोविड-19 वायरस की बात हो, तो यह कई स्ट्रेन में बदल गया है, जिनमें से डेल्टा वैरिएंट B.1.617.2 को अब तक का सबसे खतरनाक वैरिएंट माना जा रहा है।

बुखार, खांसी, सिरदर्द और गले में खराश कोविड के आम लक्षण हैं। लेकिन नाक बहना जैसा लक्षण पहले कभी नहीं देख गया । सूंघने की क्षमता कम हो जाना या चली जाना भी बेहद आम था, लेकिन अब नौवां सबसे आम लक्षण है। विशेषज्ञों का मानना है कि लक्षणों में बदलाव टीकाकरण अभियान का परिणाम हो सकता है। इसके अलावा लक्षणों में बदलाव के पीछे वायरस का विकास भी एक कारण हो सकता है। डेल्टा वैरिएंट की विभिन्न विशेषताओं को देखते हुए लक्षण बदलना स्वभाविक है। लेकिन लक्षण आखिर क्यों बदल रहे हैं, इस सवाल का जवाब निर्धारित करना मुश्किल है।

महाराष्ट्र

सुप्रीम कोर्ट द्वारा वक्फ कानून पर दिए गए अंतरिम आदेश का स्वागत, सच्चाई के सामने कोई भी ताकत ज्यादा देर तक टिक नहीं सकती: आरिफ नसीम खान

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NASIM KHAN SUPRIM COURT

मुंबई: कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य और महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री नसीम खान ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा वक्फ अधिनियम पर दिए गए अंतरिम आदेश का गर्मजोशी से स्वागत किया है और कहा है कि अदालत का यह फैसला एक बार फिर मोदी सरकार को आईना दिखाता है। भाजपा सरकार को यह गलतफहमी है कि संसद में प्रचंड बहुमत मिलने के बाद उसे संविधान को रौंदने का अधिकार मिल गया है, लेकिन अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि लोकतंत्र में सबसे बड़ी ताकत संविधान है, किसी राजनीतिक दल का बहुमत नहीं। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश मोदी सरकार के अहंकार पर करारा तमाचा है और याद दिलाता है कि संविधान की आवाज को कोई दबा नहीं सकता।

मीडिया को दिए अपने बयान में नसीम खान ने कहा कि पिछले कई वर्षों में भाजपा सरकार ने बार-बार ऐसे कानून बनाए हैं जिनका उद्देश्य समाज के कमज़ोर वर्गों को निशाना बनाना और संवैधानिक मूल्यों को कमज़ोर करना है। वक्फ संशोधन अधिनियम भी उसी कड़ी की एक कड़ी है जिसके ज़रिए सरकार ने अल्पसंख्यकों की धार्मिक और सामाजिक स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने की कोशिश की। बहरहाल, सर्वोच्च न्यायालय के इस अंतरिम आदेश ने यह सिद्ध कर दिया है कि न्यायालय अभी भी संवैधानिक अधिकारों का रक्षक है और किसी भी सरकार को अपनी शक्ति के मद में संविधान के ढाँचे को विकृत करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। उन्होंने लोगों से संवैधानिक संस्थाओं में विश्वास रखने और यह मानने की अपील की कि सत्य के सामने कोई भी शक्ति अधिक समय तक टिक नहीं सकती। उन्होंने कहा कि आज का दिन उन सभी नागरिकों के लिए आशा की किरण है जो पिछले कई महीनों से इस कानून के लागू होने से चिंता में डूबे हुए थे।

गौरतलब है कि पिछले साल केंद्र की भाजपा सरकार ने अपने संख्यात्मक बहुमत के आधार पर वक्फ संशोधन विधेयक को लोकसभा और राज्यसभा दोनों से पारित करा लिया था। देश के विभिन्न राज्यों से इस कानून के खिलाफ कई याचिकाएँ दायर की गई थीं, जिनमें यह रुख अपनाया गया था कि यह संशोधन कानून न केवल भारतीय संविधान की भावना के विरुद्ध है, बल्कि अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों पर भी सीधा हमला करता है। आज देश की सर्वोच्च अदालत ने एक महत्वपूर्ण अंतरिम आदेश जारी करते हुए इस विवादास्पद संशोधन कानून के कई प्रावधानों के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी। इस फैसले ने न केवल सरकार की स्थिति को कमजोर किया, बल्कि इस कानून को लेकर चिंतित लाखों लोगों को अस्थायी राहत भी प्रदान की। अदालत के इस कदम को राजनीतिक, सामाजिक और कानूनी हलकों में संविधान की सर्वोच्चता के प्रदर्शन के रूप में देखा जा रहा है।

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महाराष्ट्र

वक्फ संशोधन अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से न्यायपालिका में विश्वास बहाल हुआ, कोर्ट ने आपत्तियों को स्वीकार कर उस पर स्थगन आदेश लगाया: रईस शेख

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SUPRIM COURT RAIS SHAIKH

मुंबई: भिवंडी पूर्व से समाजवादी पार्टी के विधायक रईस शेख ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा वक्फ बोर्ड (संशोधन) अधिनियम, 2025 के कुछ प्रावधानों पर दी गई अंतरिम रोक का स्वागत किया है और संतोष व्यक्त किया है।

अदालत के फैसले पर रईस शेख ने कहा कि वक्फ बोर्ड की समिति में अधिकतम चार गैर-मुस्लिम सदस्य हो सकते हैं। यानी 11 में से बहुमत मुसलमानों का होना चाहिए। अदालत ने निर्देश दिया है कि जहाँ तक संभव हो, बोर्ड का मुख्य कार्यकारी अधिकारी एक मुस्लिम होना चाहिए।

वक्फ बोर्ड का सदस्य बनने की शर्त पाँच साल तक इस्लाम का पालन करना थी। इस प्रावधान को यह कहते हुए स्थगित कर दिया गया कि जब तक सरकार स्पष्ट कानून नहीं बनाती, यह प्रावधान लागू नहीं होगा। रईस शेख ने कहा कि अदालत का यह स्पष्टीकरण कि वक्फ ट्रिब्यूनल और उच्च न्यायालय द्वारा वक्फ संपत्ति के स्वामित्व का फैसला होने तक वक्फ बोर्ड को उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता, केंद्र सरकार के मुँह पर तमाचा है।

यह फैसला अस्थायी है। जब तक इस कानून के नियम नहीं बन जाते, तब तक कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता। लेकिन यह अंतरिम निर्णय संतोषजनक है और न्यायालय में विश्वास बढ़ाता है।

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मुंबई प्रेस एक्सक्लूसिव न्यूज

वक्फ बिल ऑर्डर ! जाने किन चीजों पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई है रोक

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SUPRIM COURT

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम 2025 को लेकर एक अहम फैसला सुनाया। अदालत ने अधिनियम को पूरी तरह से रद्द या स्थगित करने से इनकार कर दिया, लेकिन इसके कई विवादित प्रावधानों पर अस्थायी रोक लगा दी है। यह फैसला देशभर में चर्चा का विषय बन गया है क्योंकि वक़्फ़ कानून लंबे समय से राजनीतिक और सामाजिक बहस के केंद्र में रहा है।

कौन-कौन से प्रावधान निलंबित हुए?

  1. पांच साल से इस्लाम का पालन करने की शर्त
    अधिनियम में कहा गया था कि कोई भी व्यक्ति वक़्फ़ बनाने के लिए कम से कम पाँच वर्ष से “प्रैक्टिसिंग मुस्लिम” होना चाहिए। अदालत ने इस पर रोक लगाते हुए कहा कि जब तक इस शब्द की स्पष्ट परिभाषा तय नहीं होती, इसे लागू नहीं किया जा सकता।
  2. ज़िला कलेक्टर की भूमिका
    कानून में ज़िला कलेक्टर को यह अधिकार दिया गया था कि वे यह तय करें कि कोई संपत्ति वक़्फ़ है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रावधान पर रोक लगाई है, यह कहते हुए कि इससे नागरिकों के अधिकारों और न्यायिक प्रक्रिया पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
  3. वक़्फ़ बोर्ड और परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या पर सीमा
    संशोधन में प्रावधान था कि राज्य वक़्फ़ बोर्ड में अधिकतम 3 और केंद्रीय वक़्फ़ परिषद में अधिकतम 4 गैर-मुस्लिम सदस्य शामिल किए जा सकेंगे। अदालत ने इस प्रावधान को भी निलंबित कर दिया है।
  4. वक़्फ़ बोर्ड के CEO का मुस्लिम होना
    अधिनियम में कहा गया था कि यथासंभव वक़्फ़ बोर्ड के CEO मुस्लिम समुदाय से हों। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रावधान पर भी रोक लगा दी।

पीठ ने स्पष्ट किया कि कानून को पूरी तरह से निलंबित करना उचित नहीं होगा, परंतु जिन धाराओं को चुनौती दी गई है, उन पर सुनवाई पूरी होने तक रोक लगाई जाती है। अदालत ने सभी पक्षों को अगली सुनवाई में विस्तृत बहस का अवसर देने की बात कही है।

इस फैसले को लेकर राजनीतिक हलकों में हलचल तेज हो गई है। विरोधी दलों ने सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय को न्याय और संवैधानिक मूल्यों की जीत बताया है, वहीं सरकार का मानना है कि कानून का उद्देश्य वक़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाना था।

फिलहाल यह आदेश अंतरिम है और अंतिम फैसला आने तक लागू रहेगा। सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई में यह तय होगा कि इन प्रावधानों को स्थायी रूप से रद्द किया जाएगा या इनमें संशोधन की गुंजाइश होगी।

यह फैसला वक़्फ़ प्रबंधन और इससे जुड़े समुदायों पर गहरा असर डालने वाला माना जा रहा है, और आने वाले समय में इस पर देशव्यापी बहस और तेज हो सकती है।

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