अंतरराष्ट्रीय समाचार
भारत ने कश्मीर में हस्तक्षेप के खिलाफ चीन को चेताया
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जम्मू एवं कश्मीर पर एक चर्चा शुरू कराने की बीजिंग की असफल कोशिश के बाद नई दिल्ली ने भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने की कोशिश के खिलाफ चीन को गुरुवार को चेतावनी दी है। विदेश मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में सरकार ने कहा कि यह पहली बार नहीं है, जब चीन ने एक ऐसे विषय को उठाने की मांग की है, जो पूरी तरह से भारत का आंतरिक मामला है।
सरकार ने कहा, पहले की तरह ही इस बार भी चीन के इस प्रयास को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से बहुत कम समर्थन मिला। हम भारत के आंतरिक मामलों में चीन के हस्तक्षेप को खारिज करते हैं। साथ ही चीन से अपील करते हैं कि वह इस तरह के निष्फल प्रयासों के बाद समुचित निष्कर्ष निकाले।
सरकार को बुधवार को अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की विदेश मामलों की समिति से समर्थन को लेकर एक का पत्र मिला है, जिसमें लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन की ओर से दिखाई जा रही आक्रामकता के लिए उसे जिम्मेदार ठहराया गया है।
प्रतिनिधि सभा की विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष और डेमोक्रेट रैंकिंग सदस्य एलियॉट एंगल एवं रैंकिंग रिपब्लिकन सदस्य माइकल टी मैक्कॉल ने संयुक्त रूप से यह पत्र लिखा है। उन्होंने कहा कि वे अमेरिका-भारत संबंधों के लिए मजबूत द्विदलीय समर्थन प्रदर्शित करना चाहते हैं।
उन्होंने कहा, दोनों दलों के सदस्य भारत एवं अमेरिका के बीच मजबूत संबंधों के 21वीं सदी पर मजबूत प्रभाव को समझते हैं। जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल फरवरी में कहा था कि हमारे संबंध अब केवल साझेदारी नहीं हैं, बल्कि ये पहले से कहीं अधिक मजबूत एवं करीबी हैं। ये मजबूत संबंध ऐसे समय में और अधिक महत्वपूर्ण हैं, जब भारत चीन के साथ लगती सीमा पर उसके (चीन के) आक्रामक रुख का सामना कर रहा है। चीन का यह व्यवहार हिंद प्रशांत में चीन सरकार के अवैध कदमों और उसकी आक्रामकता का हिस्सा है।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि अमेरिका अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने के भारत के प्रयासों के समर्थन में अडिग रहेगा।
अमेरिकी हाउस कमेटी ने अपने पत्र में जम्मू-कश्मीर में चल रही गंभीर सुरक्षा और आतंकवाद जैसी चिंताओं को भी स्वीकार किया और कहा कि वह लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए हमारी साझा प्रतिबद्धताओं को बनाए रखते हुए भारत सरकार के साथ इन चिंताओं को दूर करने के लिए काम करना चाहते हैं।
उन्होंने कहा, द्विपक्षीय संबंधों को हमारे समर्थन के साथ ही, हम इस बात पर चिंता जताते हैं कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने और उसे केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद पिछले एक साल में वहां हालात सामान्य नहीं हुए हैं।
अंतरराष्ट्रीय समाचार
अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने ट्रंप प्रशासन को इलिनोइस में नेशनल गार्ड तैनात करने से रोका

वॉशिंगटन, 24 दिसंबर: अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेशनल गार्ड को इलिनोइस राज्य में भेजने से रोक दिया है, जिससे प्रशासन को झटका लगा है।
मीडिया के अनुसार, कोर्ट ने 6-3 वोटों से ट्रंप प्रशासन के अनुरोध को खारिज कर दिया।
कोर्ट ने अपनी वेबसाइट पर पब्लिश एक ऑर्डर में कहा, “इस शुरुआती स्टेज पर, सरकार ऐसा कोई अथॉरिटी सोर्स नहीं बता पाई है जो सेना को इलिनोइस में कानूनों को लागू करने की इजाजत दे।”
यह विवाद 4 अक्टूबर का है, जब ट्रंप ने इलिनोइस नेशनल गार्ड के 300 सदस्यों को इलिनोइस में, खासकर शिकागो और उसके आसपास एक्टिव फेडरल सर्विस में बुलाया था। कोर्ट के अनुसार, अगले दिन टेक्सास नेशनल गार्ड के सदस्यों को भी फेडरल सर्विस में शामिल किया गया और शिकागो भेजा गया।
9 अक्टूबर को, इलिनोइस के नॉर्दर्न डिस्ट्रिक्ट के यूएस डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने एक अस्थाई रोक लगाने वाला ऑर्डर जारी किया, जिसमें इलिनोइस में नेशनल गार्ड को फेडरल सर्विस में शामिल करने और उनकी तैनाती पर रोक लगा दी गई।
यह फैसला 16 अक्टूबर को सेवेंथ सर्किट के यूएस कोर्ट ऑफ अपील्स ने बरकरार रखा, जिसने प्रशासन को नेशनल गार्ड को फेडरल सर्विस में शामिल करने की इजाजत दी, लेकिन उनके सदस्यों को तैनात करने की नहीं। इसके बाद ट्रंप प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
व्हाइट हाउस की प्रवक्ता एबिगेल जैक्सन ने इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि राष्ट्रपति ने “फेडरल कानून लागू करने वाले अधिकारियों की सुरक्षा के लिए नेशनल गार्ड को एक्टिव किया था ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दंगाई फेडरल इमारतों और प्रॉपर्टी को नुकसान न पहुंचाएं।”
इलिनोइस के डेमोक्रेटिक गवर्नर जेबी प्रित्जकर ने शिकागो के डेमोक्रेटिक मेयर के साथ मिलकर इस तैनाती का कड़ा विरोध किया था। उन्होंने इस फैसले का स्वागत करते हुए इसे ‘इलिनोइस और अमेरिकी लोकतंत्र के लिए एक बड़ी जीत’ बताया।
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बांग्लादेश में बढ़ती राजनीतिक और धार्मिक हिंसा पर ब्रिटेन की संसद में चर्चा, सांसदों ने जताई चिंता

लंदन, 18 दिसंबर: बांग्लादेश में जारी हिंसक घटनाओं की चर्चा ब्रिटेन की संसद तक शुरू हो गई है। दरअसल, ब्रिटेन की कंजर्वेटिव पार्टी के सांसद बॉब ब्लैकमैन ने संसद में एक कार्यक्रम का आयोजन किया। इस इवेंट में बांग्लादेश में राजनीतिक और धार्मिक हिंसा में खतरनाक बढ़ोतरी और लोकतंत्र के लिए बढ़ते खतरों को लेकर चर्चा हुई। कार्यक्रम में बांग्लादेश यूनिटी फोरम और डॉटी स्ट्रीट चैंबर्स के बैरिस्टर आदि शामिल हुए।
बांग्लादेश में जिस तरह के हालात बने हुए हैं, वह पूरी दुनिया के सामने है। इसे लेकर अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने भी चिंता जाहिर की है। अगले साल फरवरी में आम चुनाव से पहले चुनावी हिंसा के मामले बढ़ रहे हैं। यूनुस की अंतरिम सरकार में अवामी लीग पर चुनाव लड़ने पर बैन लगा दिया गया है। इसे लेकर ब्रिटेन के सांसदों ने भी चिंता जाहिर की।
कार्यक्रम के दौरान ब्रिटेन के सांसदों, वकीलों और कार्यकर्ताओं ने अवामी लीग पर गैर-कानूनी बैन के बाद बांग्लादेश में फरवरी 2026 में होने वाले चुनावों से पहले हमलों को लेकर चर्चा की।
उन्होंने देश में स्वतंत्र, निष्पक्ष और सबको साथ लेकर चलने वाले चुनावों के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर अवामी लीग को भाग लेने की इजाजत नहीं दी गई तो आने वाले चुनावों में संवैधानिक वैधता की कमी होगी और लाखों आम बांग्लादेशियों को वोट देने का अधिकार नहीं मिलेगा।
कार्यक्रम में शामिल लोगों ने देश के इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल (आईसीटी) में बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ कार्यवाही के दौरान सही प्रक्रिया की कमी की भी आलोचना की। इसके अलावा, अधिकारियों पर न्यायपालिका को राजनीतिक दबाव के एक टूल के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप लगाया।
ब्रिटेन के बैरिस्टरों ने इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट और यूए के स्पेशल रिपोर्टरों को पत्र लिखकर बांग्लादेश में बदले की हिंसा, बिना कानूनी कार्रवाई के फांसी, मनमानी हिरासत और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकारों के गलत इस्तेमाल में बढ़ोतरी पर चिंता जताई है।
पिछले महीने, बॉब ब्लैकमैन ने बांग्लादेश की मुहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार से देश में स्वतंत्र, निष्पक्ष और सबको साथ लेकर चलने वाले चुनाव सुनिश्चित करने की अपील की थी।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पिछले साल जुलाई में हुए प्रदर्शनों के बाद मुश्किलों का सामना करने वाले अल्पसंख्यकों को देश के सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में बराबर का हिस्सा बनाया जाना चाहिए।
ब्लैकमैन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर किए गए पोस्ट में कहा, “मैं बांग्लादेश की मौजूदा सरकार से बांग्लादेश में स्वतंत्र, निष्पक्ष, पारदर्शी, हिस्सा लेने वाले और सबको साथ लेकर चलने वाले चुनाव सुनिश्चित करने की अपील करता हूं। चुनाव लोकतंत्र की नींव हैं और लोगों की इच्छा की सच्ची झलक हैं।”
बयान में कहा गया, “यूनुस सरकार ने कानून का राज फिर से स्थापित करने और न्याय और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के वादे के साथ पद संभाला था। हालांकि वादों के बावजूद, लोकतांत्रिक सुधार और संवैधानिक मूल्यों और शासन को फिर से शुरू करने की दिशा में उम्मीद के मुताबिक प्रगति नहीं हुई है।”
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पीएम मोदी करेंगे ओमान के सुल्तान से मुलाकात, समुद्री व्यापार समेत कई द्विपक्षीय मुद्दों पर होगी चर्चा

मस्कट, 18 दिसंबर: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को ओमान के सुल्तान हैथम बिन तारिक से अहम मुलाकात करेंगे। बैठक में भारत और ओमान के बीच द्विपक्षीय संबंधों के पूरे दायरे पर विस्तार से चर्चा होगी। दोनों नेता व्यापार, निवेश, ऊर्जा सहयोग, रक्षा और सुरक्षा, तकनीक, कृषि और सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर बातचीत करेंगे। साथ ही साझा रुचि वाले क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर भी चर्चा करेंगे।
प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के दौरान एक बिजनेस फोरम का आयोजन भी किया जाएगा, जहां वे भारत और ओमान के व्यापारिक नेताओं को संबोधित करेंगे। इस मंच का उद्देश्य दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश को ज्यादा मजबूत करना है ताकि आर्थिक सहयोग को नई दिशा मिल सके।
इससे पहले बुधवार को प्रधानमंत्री मोदी तीन देशों के दौरे के तीसरे और अंतिम चरण में ओमान की राजधानी मस्कट पहुंचे। मस्कट एयरपोर्ट पर ओमान के रक्षा मामलों के उपप्रधानमंत्री सैय्यद शिहाब बिन तारिक अल सईद ने गर्मजोशी से प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत किया। एयरपोर्ट पर प्रधानमंत्री मोदी को गार्ड ऑफ ऑनर भी दिया गया।
होटल पहुंचने पर भारतीय समुदाय के लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी का जोरदार स्वागत मिला। सैकड़ों की संख्या में मौजूद भारतीयों ने हाथों में तिरंगा लेकर ‘मोदी मोदी’, ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम’ के नारे लगाए। प्रधानमंत्री ने वहां मौजूद लोगों से बातचीत की और स्वागत समारोह के दौरान सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का भी आनंद लिया।
यह प्रधानमंत्री मोदी की ओमान की दूसरी यात्रा है। इससे पहले वे फरवरी 2018 में ओमान गए थे। यह यात्रा भारत-ओमान के बीच लगातार मजबूत हो रहे रणनीतिक संबंधों को दर्शाती है। खास बात यह है कि यह दौरा ऐसे समय हो रहा है, जब भारत और ओमान के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना के 70 वर्ष पूरे हो रहे हैं। इससे पहले ओमान के सुल्तान हैथम बिन तारिक दिसंबर 2023 में भारत के राजकीय दौरे पर आए थे, जो दोनों देशों के बीच उच्चस्तरीय राजनीतिक संपर्क को दर्शाता है।
यात्रा से पहले मीडिया को जानकारी देते हुए विदेश मंत्रालय में सचिव (कांसुलर, पासपोर्ट एवं वीजा, ओवरसीज इंडियन अफेयर्स) अरुण कुमार चटर्जी ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी इस यात्रा के दौरान ओमान के सुल्तान के साथ द्विपक्षीय संबंधों की व्यापक समीक्षा करेंगे और क्षेत्रीय व अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर भी चर्चा करेंगे। उन्होंने बताया कि भारत और ओमान के संबंध सदियों पुराने समुद्री व्यापार और लोगों के आपसी संपर्क पर आधारित हैं।
भारत और ओमान के बीच इस समय एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी है, जिसमें ऊर्जा सुरक्षा, समुद्री सहयोग और क्षेत्रीय स्थिरता जैसे क्षेत्रों में मजबूत सहयोग शामिल है। खाड़ी क्षेत्र में ओमान भारत का एक अहम साझेदार है। पीएम मोदी की यह यात्रा दोनों देशों के रिश्तों को ज्यादा मजबूत करने और आने वाले वर्षों में सहयोग को नई गति देने की उम्मीद जगाती है। पीएम मोदी ओमान पहुंचने से पहले इथियोपिया की दो दिवसीय राजकीय यात्रा पूरी कर चुके हैं।
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