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Wednesday,18-June-2025
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पूर्व सैन्य अफसर की बयानबाजी असहनीय : बांग्लादेशी सेना

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Chaudhary-Hassan-Sarawardi

बांग्लादेश में वीरता पुरस्कार ‘बीर बिक्रम’ से सम्मानित हो चुके एक पूर्व वरिष्ठ सैन्य अफसर के बयानों पर बांग्लादेश सेना ने कहा है कि इस तरह की बातें एक नकारात्मक मिसाल पेश करती हैं और साथ ही बल के अन्य सदस्यों पर इनका नकारात्मक असर होता है।

सोशल मीडिया पर लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) चौधरी हसन सरवर्दी के तीखे बयानों के बाद बांग्लादेश की सेना ने रविवार को एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “चौधरी हसन सरवर्दी का ऐसा व्यवहार शर्मनाक और बांग्लादेश सेना के सदस्यों के लिए असहनीय है। इस तरह की गतिविधियां एक नकारात्मक उदाहरण पेश करती हैं और बल के अन्य सदस्यों पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं।”

बांग्लादेश सशस्त्र बलों की मीडिया व समाचार एजेंसी इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर) ने सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल चौधरी हसन सरवर्दी ‘बीर बिक्रम’ पर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि ‘सरवर्दी ने सेना व सैन्य छावनी तक अपनी पहुंच के बारे में विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर झूठ फैलाया है।’

आईएसपीआर ने एक मीडिया विज्ञप्ति में कहा, “लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर अपनी पदोन्नति हासिल करने के बाद हसन सरवर्दी ने कई महिलाओं के साथ अवैध संबंध बनाए। उनके व्यवहार ने अधिकारियों को असहज किया और उन्हें सचेत रहने की सलाह दी गई।”

विज्ञप्ति में कहा गया है, “जब वह एलपीआर (पोस्ट रिटायरमेंट लीव) पर थे तो उन्होंने संबंधित अधिकारियों की अनुमति के बिना 16 अगस्त, 2018 को अपनी पहली पत्नी को तलाक दे दिया।”

बयान के अनुसार, ‘सरवर्दी ने सैन्य कानून का उल्लंघन करते हुए 21 नवंबर, 2018 को दूसरी बार अपनी वर्दी पहनकर शादी की। अपनी दूसरी शादी से पहले वह एक प्रसिद्ध महिला मीडियाकर्मी के साथ रह रहे थे। इसके अलावा, उन्होंने जिस महिला से शादी की, वह विवादित व्यक्ति है।’

विज्ञप्ति में कहा गया है, इन सभी को ध्यान में रखते हुए अधिकारी को छावनी और छावनी के तहत क्षेत्रों में अवांछित व्यक्ति घोषित किया गया था, जिससे वह इलाज के लिए सीएमएच, अधिकारियों के क्लब में प्रवेश, सीएसडी दुकान आदि सुविधाओं के इस्तेमाल से वंचित हो गया।

17 जुलाई को सरवर्दी के बारे में अफवाह फैली कि सैन्य अफसर व बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के पूर्व सिक्योरिटी चीफ स्टाफ को ‘गिरफ्तार’ कर लिया गया है।

सरवर्दी 2010 के बांग्लादेश शेयर बाजार घोटाले में तत्कालीन प्रधानमंत्री के एक विवादास्पद सलाहकार के साथ शामिल थे और एक बड़े उद्योगपति के नेतृत्व वाली पाकिस्तान लॉबी ने सेना प्रमुख के रूप में उनके नाम को तब बढ़ावा देने की कोशिश की थी जब जनरल आई करीम भुइयां सेवानिवृत्त हुए थे।

लेकिन, उनके पाकिस्तान कनेक्शन और इस संदिग्ध उद्योगपति के साथ उनके संबंध ने भारत को सतर्क कर दिया था।

सरवर्दी ने भारत की अपनी यात्रा के दौरान भारत के तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह के साथ अपनी मुलाकात में अपने पक्ष की जोरदार पैरवी की थी लेकिन भारतीय सैन्य जनरल पड़ोसी देशों के जनरलों के मामलों को अपनी सरकार के समक्ष नहीं रखा करते।

बांग्लादेश सरकार के अंदर पैठ बनाए कट्टर साजिशकर्ता ने नागरिक व सैन्य प्रशासन में अपने बढ़ते प्रभाव का उपयोग कर यह सुनिश्चित करने की कोशिश की कि सरवर्दी को ‘प्रोटेक्टिव कस्टडी’ में ले लिया जाए ताकि उसे सत्ता बदलने की साजिश मामले में कड़ी पूछताछ से बचाया जा सके। सरकार ने अन्य एजेंसियों को इस सत्ता पलट मामले की साजिश की जांच सौंपी हुई है।

बांग्लादेश में प्रेस की स्वतंत्रता पर वास्तविक सवाल उठाते हुए यहां तक कोशिश की गई कि भारत में वाणिज्य दूतावास आधारित नेटवर्क का उपयोग कर इस सबसे जुड़ी खबरों को भारतीय मीडिया में चलने से रोक दिया जाए।

हालांकि, यह स्टोरी ईस्टर्नलिंक और लुकईस्ट जैसे शीर्ष मीडिया प्लेटफार्म पर चलीं।

कोशिश यह रही कि सोशल मीडिया होस्ट कनक सरवर के साथ विवादास्पद साक्षात्कार के बाद सरवर्दी को तब तक के लिए भूमिगत कर दिया जाए जब तक इससे पैदा विवाद शांत न हो जाए। बीएनपी जमात मीडिया सलाहकार कनक ने एकुशे टेलीविजन पर पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे तारेक जिया का एक साक्षात्कार प्रसारित करने के बाद अवैध रूप से बांग्लादेश छोड़ दिया।

नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर बांग्लादेश के एक शीर्ष खुफिया अधिकारी ने कहा, अवामी लीग सरकार में बहुत ऊपर तक पहुंचने वाला पाकिस्तानी झुकाव रखने वाला सलाहकार पहली बार भारी दबाव में है। अब वह केवल अपनी खुद की संलिप्तता को छिपाने में लगा हुआ है क्योंकि सरवर्दी को किसी भी कठिन पूछताछ का सामना नहीं करना पड़ रहा है और वह चुपचाप छोड़ा जा सकता है क्योंकि उसे औपचारिक रूप से गिरफ्तार नहीं किया गया है और यहां तक कि उसकी हिरासत के तथ्य को भी बताया गया है।”

इस एडवाइजर और उसके बुद्धिमान संगी-साथियों ने भी अपनी ‘मीडिया संपत्तियों’ को उन भारतीय वेबसाइटों को बदनाम करने में लगा दिया है जिन्होंने शेख हसीना की सरकार को गिराने की साजिश की रिपोर्ट प्रसारित की है। उनके हमले का केंद्र ईस्टर्नलिंक के संपादकीय निदेशक सुबीर भौमिक हैं जो बीबीसी-रॉयटर के दिग्गज पत्रकार और ऑक्सफोर्ड-फ्रैंकफर्ट फेलो हैं जिनकी साइट ने शेख हसीना का तख्ता पलटने की साजिश को उजागर किया था।

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अंतरराष्ट्रीय समाचार

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने दक्षिण सूडान के खिलाफ हथियार प्रतिबंध को रिन्यू किया

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संयुक्त राष्ट्र, 31 मई। सुरक्षा परिषद ने दक्षिण सूडान के खिलाफ हथियार प्रतिबंध को एक साल के लिए रिन्यू करने हेतु एक प्रस्ताव पारित किया, जो 31 मई, 2026 तक लागू रहेगा। इसके साथ ही व्यक्तियों और संस्थाओं के खिलाफ यात्रा प्रतिबंध और संपत्ति जब्त करने के लक्षित प्रतिबंध भी लागू होंगे।

मिडिया ने बताया कि ये प्रस्ताव 2781, जिसे नौ वोट के पक्ष में और छह वोट के बहिष्कार के साथ अपनाया गया। इस प्रस्ताव में विशेषज्ञों के पैनल का कार्यकाल भी 1 जुलाई, 2026 तक बढ़ा दिया गया है। यह पैनल दक्षिण सूडान प्रतिबंध समिति के काम में मदद करता है।

सुरक्षा परिषद के अफ्रीकी सदस्य – अल्जीरिया, सिएरा लियोन, सोमालिया ने चीन, पाकिस्तान और रूस के साथ वोट देने से परहेज किया।

इस प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि सुरक्षा परिषद हथियार प्रतिबंधों की समीक्षा करने के लिए तैयार है। अगर दक्षिण सूडान 2021 के प्रस्ताव 2577 में तय किए गए मुख्य लक्ष्यों पर प्रगति करता है, तो इन प्रतिबंधों को बदला, निलंबित किया या धीरे-धीरे हटाया जा सकता है। यह दक्षिण सूडान के अधिकारियों को इस संबंध में और प्रगति हासिल करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

सुरक्षा परिषद ने यह भी तय किया है कि इन प्रतिबंधों की लगातार समीक्षा की जाएगी। सुरक्षा परिषद ने स्थिति के जवाब में उपायों को समायोजित करने की तत्परता व्यक्त की है, जिसमें उपायों में संशोधन, निलंबन, हटाने या सुदृढ़ करना शामिल है।

प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र महासचिव से अनुरोध किया गया है कि वे दक्षिण सूडान में संयुक्त राष्ट्र मिशन और विशेषज्ञों के पैनल के साथ निकट परामर्श में 15 अप्रैल, 2026 तक प्रमुख मानदंडों पर हासिल की गई प्रगति का आकलन करें।

इसके साथ ही दक्षिण सूडान के अधिकारियों से भी अनुरोध किया गया है कि वे उसी तारीख तक इस संबंध में हासिल की गई प्रगति पर सैंक्शन कमेटी को रिपोर्ट करें।

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अंतरराष्ट्रीय समाचार

यूएस सुप्रीम कोर्ट ने किया ट्रंप सरकार का रास्ता साफ, 5 लाख लोगों पर मंडराया निर्वासन का खतरा

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न्यूयॉर्क, 31 मई। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने ट्रंप सरकार का रास्ता साफ कर दिया है। कोर्ट ने फेडरल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के उस आदेश को हटा दिया है, जिसके तहत क्यूबा, ​​हैती, निकारागुआ और वेनेजुएला के चार देशों के पांच लाख से अधिक प्रवासियों के लिए मानवीय पैरोल सुरक्षा को बरकरार रखा गया था।

मिडिया रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने ट्रंप प्रशासन को एक अन्य मामले में लगभग 350,000 वेनेजुएला के प्रवासियों के लिए अस्थायी कानूनी स्थिति को रद्द करने की भी अनुमति दी है।

स्थानीय मीडिया ने शुक्रवार को बताया कि इस कदम ने ट्रंप प्रशासन के लिए हजारों प्रवासियों के लिए अस्थायी कानूनी सुरक्षा को फिलहाल खत्म करने का रास्ता साफ कर दिया है और निर्वासन के दायरे में आने वाले लोगों की कुल संख्या को लगभग दस लाख तक पहुंचा दिया है।

अमेरिका-मेक्सिको बॉर्डर पर आने वाले प्रवासियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए, बाइडेन प्रशासन ने 2022 के अंत और 2023 की शुरुआत में क्यूबा, ​​हैती, निकारागुआ और वेनेजुएला के लोगों के लिए पैरोल कार्यक्रम बनाया, जिसके तहत उन्हें कुछ प्रोसेस से गुजरने के बाद दो साल तक अमेरिका में काम करने की इजाजत दी गई। इस प्रोग्राम ने लगभग 5,32,000 लोगों को निर्वासन से बचाया।

लेकिन अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत के तुरंत बाद, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने होमलैंड सिक्योरिटी सेक्रेटरी क्रिस्टी नोएम को सभी पैरोल प्रोगाम को टर्मिनेट करने का निर्देश देते हुए एक कार्यकारी आदेश जारी किया। कार्यकारी आदेश पर कार्रवाई करते हुए नोएम ने मार्च में पैरोल प्रोग्राम को समाप्त करने की घोषणा की, जिसके तहत पैरोल के किसी भी अनुदान की वैधता 24 अप्रैल तक समाप्त हो जाएगी।

मैसाचुसेट्स में एक फेडरल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के जज ने नोएम द्वारा प्रवासियों की अस्थायी कानूनी स्थिति को पूरी तरह से रद्द करने के फैसले को रोकने पर सहमति जताई। उस समय कई पैरोलियों और एक गैर-लाभकारी संगठन सहित 23 व्यक्तियों के एक ग्रुप ने नोएम द्वारा प्रोग्राम को समाप्त करने को चुनौती दी थी।

ट्रंप प्रशासन ने पहले पहले सर्किट के लिए यूएस कोर्ट ऑफ अपील्स में अपील की, जिसने अपील लंबित रहने तक जिला न्यायालय के आदेश को रोकने से इनकार कर दिया और फिर सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग की।

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अंतरराष्ट्रीय समाचार

अमेरिकी युद्धविराम प्रस्ताव फिलिस्तीनी मांगों पर खरा नहीं : हमास

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गाजा, 30 मई। हमास के एक वरिष्ठ नेता ने कहा है कि गाजा पट्टी में युद्ध रोकने के लिए अमेरिका का जो प्रस्ताव आया है, उस पर विचार किया जा रहा है। हालांकि, यह प्रस्ताव हमास और फिलिस्तीनी लोगों की मुख्य मांगों को पूरा नहीं करता।

मिडिया के मुताबिक, हमास के राजनीतिक ब्यूरो के सदस्य बासम नईम ने गुरुवार को एक बयान में कहा कि उन्हें अमेरिका के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ द्वारा पिछले हफ्ते दिए गए युद्धविराम प्रस्ताव पर इजरायल की प्रतिक्रिया मिल गई है।

नईम के मुताबिक, इजरायल ने फिलिस्तीन की मुख्य मांगों को नहीं माना। इनमें लड़ाई को पूरी तरह खत्म करना और गाजा पर लगी पुरानी नाकेबंदी हटाना शामिल है।

उन्होंने कहा कि यह प्रस्ताव युद्धविराम के दौरान भी इजरायल के कब्जे और लोगों की तकलीफों को जारी रहने देगा।

नईम ने कहा, “इसके बावजूद हमास का नेतृत्व फिलिस्तीनी जनता के खिलाफ जारी हिंसा और मानवीय संकट को ध्यान में रखते हुए ज़िम्मेदारी के साथ इस प्रस्ताव पर विचार कर रहा है।”

हमास ने पहले कहा था कि उसे मध्यस्थों के जरिए नया युद्धविराम प्रस्ताव मिला है। वह इसका मूल्यांकन इस तरह कर रहा है कि यह फिलिस्तीनी लोगों के हितों की रक्षा करे और गाजा के लोगों के लिए स्थायी शांति और राहत लाने में मदद करे।

हमास ने पहले कहा था कि वह विटकॉफ के साथ एक समझौते के “सामान्य ढांचे” पर सहमत हो गया है। इस समझौते का मकसद स्थायी युद्धविराम करना, इजरायल की गाजा से पूरी तरह वापसी सुनिश्चित करना, राहत सामग्री की आपूर्ति शुरू करना और हमास से एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी समिति को सत्ता सौंपना है।

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