अंतरराष्ट्रीय समाचार
यूरोपीय संघ-ब्रिटेन के बीच 7वें दौर की वार्ता भी बेनतीजा

यूरोपीय संघ (ईयू) के मुख्य वार्ताकार मिशेल बार्नियर ने कहा कि भविष्य के संबंधों को लेकर ईयू और ब्रिटेन के बीच सातवें दौर की वार्ता के बाद भी कोई सफलता नहीं मिली है। गौरतलब है कि ब्रिटेन और ईयू के बीच ब्रेक्जिट के बाद व्यापार संबंधों को लेकर बातचीत चल रही है।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, शुक्रवार को ब्रसेल्स में एक संवाददाता सम्मेलन में बार्नियर ने कहा, “जो लोग इस सप्ताह बातचीत के तेजी से आगे बढ़ने की उम्मीद कर रहे थे, उन्हें निराशा हुई होगी।”
उन्होंने कहा, “इस सप्ताह अक्सर ऐसा महसूस हुआ कि जैसे हम आगे बढ़ने से ज्यादा पीछे की ओर जा रहे हैं।”
बार्नियर ने ब्रिटिश वातार्कारों पर ‘यूरोपीय संघ के लिए मौलिक महत्व के मुद्दों पर आगे बढ़ने की कोई वास्तविक इच्छा’ नहीं दिखाने का आरोप लगाया।
उन्होंने कहा कि दोनों पक्ष व्यापार, मत्स्य पालन, गवर्नेस और कानून प्रवर्तन सहित कई मुद्दों पर असहमत बने रहे, हालांकि ऊर्जा सहयोग और एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग जैसे तकनीकी मुद्दों पर प्रगति हुई।
इस चेतावनी के साथ कि ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के बीच समझौता ‘इस स्तर पर असंभव प्रतीत होता है’, बार्नियर ने कहा कि उन्होंने सोचा कि अपेक्षाकृत हमारे पास कम समय होने के बावजूद यह अभी भी संभव है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि इसे हासिल करने के लिए, ब्रिटिश पक्ष को अगले दौर के दौरान स्पष्ट, रचनात्मक प्रस्तावों के साथ आगे आने की आवश्यकता होगी। अगले दौर की वार्ता सितंबर में लंदन में होगी।
वहीं, शुक्रवार को एक बयान में, ब्रिटेन के मुख्य वातार्कार डेविड फ्रॉस्ट ने कहा कि ब्रेक्जिट के बाद का समझौता करना आसान नहीं होगा।
उन्होंने एक बयान में कहा, “हमने यूरोपीय संघ के साथ बातचीत के सातवें दौर का समापन कर लिया है। जैसा कि मैंने पिछले सप्ताह कहा था, समझौता अभी भी संभव है, और यह अभी भी हमारा लक्ष्य है, लेकिन यह स्पष्ट है कि इसे हासिल करना आसान नहीं होगा।”
फ्रॉस्ट ने कहा कि ईयू के साथ समझौता करने के लिए ब्रिटेन कड़ी मेहनत करेगा।
ब्रिटेन 31 जनवरी यूरोपीयसंघ की सदस्य्ता से अलग हो गया था लेकिन अभी भी ब्लॉक के नियमों का पालन कर रहा है जब तक कि ट्रांजिशन की अवधि 31 दिसंबर को समाप्त नहीं हो जाती और भविष्य में होने वाले व्यापार सौदे को लेकर कोई समझौता नहीं हो जाता।
यदि ट्रांजिशन अवधि खत्म होने से पहले ब्रिटेन और यूरोपीय संघ व्यापार समझौता करने में विफल रहते हैं तो दोनों पक्ष विश्व व्यापार संगठन की शर्तों के तहत व्यापार करेंगे, जिसके तहत नए सीमा नियंत्रण और टैरिफ का मतलब उनके व्यापार के लिए अतिरिक्त लागत होगा।
अंतरराष्ट्रीय समाचार
अमेरिका के लिए भारत ‘अत्यंत महत्वपूर्ण’: मार्को रूबियो

न्यूयॉर्क, 23 सितंबर। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने कहा कि भारत उनके देश के लिए ‘अत्यंत महत्वपूर्ण’ है। इसके साथ ही, उन्होंने व्यापार के क्षेत्र में भारत के साथ चल रहे सहयोग का स्वागत किया।
सोमवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात के बाद, रुबियो ने कहा कि अमेरिका के लिए भारत बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने व्यापार, रक्षा, ऊर्जा, दवाइयां, महत्वपूर्ण खनिज और अन्य द्विपक्षीय मुद्दों पर भारत सरकार के निरंतर सहयोग की सराहना की।
अमेरिका और भारत ने मिलकर एक स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए सहयोग जारी रखने पर सहमति जताई, जिसमें क्वाड के माध्यम से भी काम होगा।
यह बयान उस वक्त सामने आया है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाए और भारत को लेकर कई कठोर बयान दिए, लेकिन इसके बाद भी उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके 75वें जन्मदिन पर बधाई दी।
इसके अलावा, विदेश मंत्री जयशंकर के साथ रुबियो की मुलाकात महत्वपूर्ण थी, क्योंकि यह उनकी उस दिन की पहली आधिकारिक बैठक थी। रुबियो संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र के लिए आए विश्व नेताओं के साथ कई द्विपक्षीय बैठकें कर रहे हैं।
जयशंकर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में बताया कि बातचीत के दौरान द्विपक्षीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा हुई। प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में प्रगति के लिए निरंतर संवाद की आवश्यकता पर हम सहमत हुए। उन्होंने कहा कि वे संपर्क में रहेंगे।
कॉन्फ्रेंस रूम में जाने से पहले, वे बाहर मौजूद मीडिया के सामने सौहार्दपूर्ण ढंग से आए, हाथ मिलाया, लेकिन सवालों के जवाब देने से मना कर दिया।
बाद में, जयशंकर ने भारत में अमेरिका के राजदूत सर्जियो गोर से मुलाकात की।
अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने एक्स पोस्ट में कहा कि वे दोनों अमेरिका-भारत संबंधों को और मजबूत करने के लिए उत्सुक हैं।
गोर को दक्षिण और मध्य एशिया के लिए ट्रंप का विशेष दूत भी बनाया गया है। उनकी नियुक्ति को सीनेट की मंजूरी की जरूरत है, जैसा कि सभी राजदूत पदों के लिए होता है
अंतरराष्ट्रीय समाचार
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह 22 सितंबर से मोरक्को की दो दिवसीय आधिकारिक यात्रा करेंगे

RAJNATH SINGH
नई दिल्ली, 20 सितंबर। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह 22 सितंबर से 23 सितंबर तक मोरक्को की दो दिवसीय आधिकारिक यात्रा करेंगे। यह यात्रा मोरक्को रक्षा मंत्री अब्देलतीफ लोदी के निमंत्रण पर होगी। यह किसी भारतीय रक्षा मंत्री की मोरक्को की पहली यात्रा होगी, जो भारत और मोरक्को के बीच बढ़ते रणनीतिक सहयोग को दर्शाती है।
रक्षा मंत्रालय के अनुसार, राजनाथ सिंह की इस यात्रा का प्रमुख आकर्षण टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स की नई निर्माण इकाई का उद्घाटन होगा, जो बेरेचिड में व्हील्ड आर्मर्ड प्लेटफॉर्म 8×8 का निर्माण करेगी। यह संयंत्र अफ्रीका में पहला भारतीय रक्षा विनिर्माण संयंत्र है, जो एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है और आत्मनिर्भर भारत पहल के तहत भारत के रक्षा उद्योग की बढ़ती वैश्विक उपस्थिति को दर्शाता है।
इस यात्रा के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह मोरक्को के रक्षा मंत्री अब्देलतीफ लोदी के साथ द्विपक्षीय बैठक करेंगे, जिसका उद्देश्य रक्षा, रणनीतिक और औद्योगिक सहयोग को मजबूत करना है। वे मोरक्को के उद्योग और व्यापार मंत्री रियाद मेजूर से भी मुलाकात करेंगे, ताकि औद्योगिक साझेदारी के नए अवसर तलाशे जा सकें।
राजनाथ सिंह अपनी यात्रा के दौरान रबात में भारतीय समुदाय से भी बातचीत करेंगे।
यात्रा के दौरान, भारत और मोरक्को के बीच रक्षा सहयोग के क्षेत्र में एक सहमति ज्ञापन (एमओयू) पर भी हस्ताक्षर किए जाने की उम्मीद है। यह समझौता द्विपक्षीय रक्षा संबंधों को संस्थागत ढांचा प्रदान करेगा, जिसमें आपसी प्रशिक्षण, औद्योगिक साझेदारी और अन्य सहयोग शामिल होंगे।
रक्षा मंत्रालय के अनुसार, भारतीय नौसेना के जहाज हाल के सालों में नियमित रूप से कैसाब्लांका बंदरगाह पर आते रहे हैं और यह समझौता इस साझेदारी को और सुदृढ़ करेगा।
गौरतलब है कि भारत और मोरक्को के संबंधों ने 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मोरक्को के सम्राट मोहम्मद षष्ठम की भारत में हुई मुलाकात के बाद से गति पकड़ी है। आगामी यात्रा से खासकर रक्षा और रणनीतिक क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों को नई ऊर्जा मिलने की उम्मीद है।
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ट्रंप ने एच-1बी वीजा नियमों को सख्त किया, अब 100,000 डॉलर सालाना फीस लगेगी

TRUMP
वाशिंगटन, 20 सितंबर। अमेरिका में काम कर रहे भारतीय टेक्नोलॉजी पेशेवरों और बड़ी कंपनियों के लिए एक बड़ा झटका है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा प्रोग्राम में बड़े बदलाव करने के लिए एक घोषणा पत्र पर साइन किए हैं।
इस घोषणापत्र के अनुसार, अब प्रत्येक आवेदन के लिए प्रति वर्ष 1,00,000 डॉलर का शुल्क देना होगा। ट्रंप का कहना है कि इसका मकसद विदेशी कामगारों की बजाय अमेरिकी लोगों को नौकरी देना है।
व्हाइट हाउस में आदेश पर हस्ताक्षर करते हुए ट्रंप ने कहा, “हम चाहते हैं कि हमारी नौकरियां हमारे नागरिकों को मिलें। हमें अच्छे कामगार चाहिए और यह कदम उसी दिशा में है।”
अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लूटनिक ने भी इस फैसले का बचाव किया। उन्होंने कहा कि अब बड़ी कंपनियां विदेशी लोगों को सस्ते में काम पर नहीं रखेंगी, क्योंकि पहले सरकार को 1 लाख डॉलर देने होंगे और फिर कर्मचारी को वेतन देना होगा। तो, यह आर्थिक रूप से ठीक नहीं है। आप किसी को प्रशिक्षित करेंगे। आप हमारे देश के किसी अच्छे विश्वविद्यालय से हाल ही में स्नातक हुए किसी व्यक्ति को प्रशिक्षित करेंगे, अमेरिकियों को प्रशिक्षित करेंगे। हमारी नौकरियां छीनने के लिए लोगों को लाना बंद करें। यही यहां की नीति है।
नए नियम के अनुसार, एच-1बी वीज़ा अधिकतम छह साल के लिए ही मान्य रहेगा, चाहे नया आवेदन हो या नवीनीकरण। आदेश में कहा गया है कि इस वीज़ा का गलत इस्तेमाल किया जा रहा था, जिससे अमेरिकी कामगारों को नुकसान हो रहा था और यह अमेरिका की अर्थव्यवस्था व सुरक्षा के लिए ठीक नहीं है।
ट्रंप और लुटनिक दोनों ने ज़ोर देकर कहा कि सभी प्रमुख तकनीकी कंपनियां “इसमें शामिल” हैं।
ट्रंप ने एक नया “गोल्ड कार्ड प्रोग्राम” भी शुरू किया है। इसमें कोई व्यक्ति 10 लाख डॉलर देकर वीज़ा ले सकता है, जबकि कंपनियों को 20 लाख डॉलर देने होंगे।
अभी हर साल करीब 85 हजार नए एच-1बी वीजा दिए जाते हैं। इनमें सबसे ज्यादा हिस्सा भारतीयों को मिलता है। प्यू रिसर्च के आंकड़ों के अनुसार, 2023 में लगभग 73 प्रतिशत एच-1बी वीजा भारतीयों को मिले थे, जबकि चीन के लोगों को 12 प्रतिशत मिले।
इस फैसले से अमेरिका में काम कर रहे हजारों भारतीय पेशेवरों और वहां की टेक्नोलॉजी कंपनियों पर गहरा असर पड़ सकता है।
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