राजनीति
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ बिल के पक्ष में 269 वोट, इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम से कराई गई वोटिंग
नई दिल्ली, 17 दिसंबर। लोकसभा में मंगलवार को केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ बिल पेश किया। इस बिल के पेश होने के बाद सांसद में जोरदार हंगामा हुआ। विपक्ष के सांसदों ने इस बिल को लोकतंत्र के खिलाफ बताया। इन सब के बीच इस बिल को स्वीकार कराने के लिए लोकसभा में वोटिंग कराई गई।
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ बिल के समर्थन में कुल 269 सांसदों ने वोटिंग की तो वहीं, इस बिल के खिलाफ 198 सांसदों ने मत दिया। इस बिल को स्वीकार कराने के लिए इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम से वोटिंग कराई गई।
कांग्रेस, सपा और एनसीपी ने इस बिल को जेपीसी के पास भेजे जाने की मांग की।
बिल को अब विचार-विमर्श के लिए संसद की संयुक्त समिति के पास भेजा जाएगा।
बता दें कि लोकसभा में इस बिल को पेश किए जाने का कांग्रेस, टीएमसी, समाजवादी पार्टी, शिवसेना उद्धव गुट समेत कई विपक्षी दलों ने विरोध किया। सपा सांसद धर्मेंद्र यादव ने कहा कि जो एक साथ 8 राज्यों में विधानसभा चुनाव नहीं करा पाए वह पूरे देश में एक साथ चुनाव की बात करते हैं। वहीं, टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा कि यह बिल संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।
कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने कहा, “हम इस बिल का कड़े शब्दों में विरोध करते हैं। इस बिल के जरिए राष्ट्रपति को ज्यादा शक्ति दी गई है कि वह अब 82 ए के द्वारा विधानसभा को भंग कर सकते हैं। ये अतिरिक्त शक्ति राष्ट्रपति के साथ चुनाव आयोग को भी दी गई है। 2014 के चुनाव में 3700 करोड़ खर्च हुआ, इसके लिए ये असंवैधानिक कानून लाए हैं। संविधान में लिखा है कि पांच साल के कार्यकाल से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। वन नेशन, वन इलेक्शन बिल पूरे भारत के चुनाव को प्रभावित करेगा, हम ये नहीं होने देंगे। हम इसका विरोध करते हैं। इस बिल को जेपीसी में भेजा जाए।”
वहीं, तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक का समर्थन किया। चंद्रबाबू नायडू की पार्टी के सांसद चंद्रशेखर ने कहा कि एक साथ चुनाव होने से देश का पैसा बचेगा। अगर एक साथ चुनाव होते हैं, तो लगभग 40 प्रतिशत खर्च बचेगा। इसी तरह हर पार्टी का पैसा भी बचेगा।
अंतरराष्ट्रीय समाचार
सीरिया में 8,80,000 से अधिक लोग हुए विस्थापित : यूएन
संयुक्त राष्ट्र, 17 दिसंबर। सीरिया में हिंसक संघर्ष बढ़ने के बाद 8,80,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए है। संयुक्त राष्ट्र के मानवीय सहायताकर्ताओं ने यह बात कही।
रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र के सहयोगियों ने अनुमान लगाया है कि लगभग 6 प्रतिशत विस्थापित कम से कम एक प्रकार की विकलांगता के साथ जी रहे हैं।
मानवीय मामलों के समन्वय के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (ओसीएचए) ने कहा, “वापसी की गतिविधियां तेज हुई हैं, सहयोगियों ने रविवार को 2,20,000 से अधिक लोगों के लौटने की सूचना दी है। वहीं, इसके अतिरिक्त, 40,000 से अधिक विस्थापित लोग पूर्वोत्तर सीरिया में लगभग 250 सामूहिक केंद्रों में रह रहे हैं।”
कार्यालय ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र और भागीदार भोजन, पानी, नकदी, टेंट और कंबल की सप्लाई कर रहे हैं। वहीं, वैश्विक टीम मेडिकल टीम और आपूर्ति भी तैनात कर रहा है।
सीरियाई अरब रेड क्रिसेंट और रेड क्रॉस की अंतरराष्ट्रीय समिति ने संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूएनआईसीईएफ) के सहयोग से शुक्रवार को सीरिया के अलेप्पो प्रांत में तिशरीन बांध की सुविधा की तत्काल और महत्वपूर्ण मरम्मत के लिए एक संयुक्त मिशन चलाया।
यूएनआईसीईएफ ने बैकअप जनरेटर को बिजली देने के लिए ईंधन की भी व्यवस्था की, जिससे बांध की सुरक्षित जल निकासी और जल आपूर्ति की सुरक्षा हो सके। पिछले सप्ताह बांध के पास हिंसा के कारण बिजली सप्लाई बाधित हुई, पानी और अन्य प्रमुख सेवाएं बाधित हुईं, जिससे क्षेत्र के लाखों लोग प्रभावित हुए।
सोमवार को, मानवीय मामलों के लिए संयुक्त राष्ट्र के अवर महासचिव और इमरजेंसी रिलीफ कोऑर्डिनेटर टॉम फ्लेचर ने राहत प्रतिक्रिया पर चर्चा करने के लिए दमिश्क में सीरियाई संक्रमणकालीन अधिकारियों से मुलाकात की।
ओसीएचए ने अपनी एक सप्ताह की मध्य पूर्व यात्रा के बारे में कहा, “क्षेत्र में इतने तेजी से हो रहे बदलावों और दीर्घकालिक जरूरतों के समय, फ्लेचर की यात्रा में लेबनान, तुर्की और जॉर्डन में भी रुकना शामिल होगा।” –आईएएएनएस एससीएच/एमके
अंतरराष्ट्रीय समाचार
ईयर एंडर 2024 : संघर्षों में उलझते देश, भविष्य के लिए मुश्किल संकेत
नई दिल्ली, 17 दिसंबर। साल 2024 में विश्व शांति के लिहाज से निराशाजनक रहा। ऐसी घटनाएं हुईं जिसके बाद जानकार यह आशंका जताने लगे कि क्या दुनिया अगले कुछ वर्षों में एक बड़े युद्ध का सामना करने जा रही है। आखिर वो कौन सी घटनाएं इस साल घटीं जो निकट भविष्य में एक बड़े संकट की तरफ इशारा कर रही हैं।
रूस-यूक्रेन युद्, इजरायल-हमास संघर्ष: रूस और यूक्रेन युद्ध 2024 में भी जारी रहा। अमेरिका और उसके सहयोगी जहां यूक्रेन के साथ डटकर खड़े रहे वहीं रूस भी पीछे हटने को तैयार नही है। साल के आखिर में दो ऐसी घटनाएं हुईं जिन्होंने ये संकेत दिया कि निकट भविष्य में शांति कायम होने की उम्मीद बहुत कम है।
पिछले दिनों वाशिंगटन ने यूक्रेन को रूस के भीतर लंबी दूरी की अमेरिकी मिसाइलों के इस्तेमाल की अनुमति दे दी। इसके अमेरिका ने एक और बड़ा फैसला लेते हुए यूक्रेन को एंटी-पर्सनल लैंडमाइंस भेजने का फैसला किया है। इसकी प्रतिक्रिया में रूस ने अपनी परमाणु नीति में संशोधन कर दिया। इसमें नई शर्तें तय की गई हैं कि कब परमाणु हथियारों का इस्तेमाल किया जा सकता है। रूस के इस कदम को भी यूक्रेन युद्ध से जोड़कर देखा गया है।
इजरायल-हमास संघर्ष : 7 अक्टूबर 2023 इजरायल में हमास के बड़े हमले के जवाब में यहूदी राष्ट्र ने फिलिस्तीनी ग्रुप के कब्जे वाली गाजा पट्टी में सैन्य अभियान शुरू किया था। हमास के हमले में करीब 1200 लोग मारे गए थे जबकि 250 से अधिक लोगों को बंधक बनाया गया था। 2024 में गाजा युद्ध अपने सबसे क्रूर और भीषणतम चरण में प्रवेश कर गया। हमास को तबाह करने पर उतारू इजरायल ने गाजा पट्टी को खंडहर में तब्दील कर दिया। तमाम अतंरराष्ट्रीय आलोचना के बावजूद इजरायल के रवैये में कोई बदलाव नहीं आया। युद्ध के दौरान अमेरिका उसके साथ चट्टान के साथ खड़ा रहा है। लिहाज कोई भी इंटरनेशनल प्रेशर यहूदी राष्ट्र को परेशान नहीं कर पाया।
इजरायल-हिजबुल्लाह : गाजा युद्ध ने इजरायल-हिजबुल्लाह तनाव को भी चरम पर पहुंचा दिया। इजरायली सेना ने 23 सितंबर से लेबनानी ग्रुप पर बड़े पैमाने पर हवाई हमले शुरू कर दिए। उसने सीमा पार एक ‘सीमित’ जमीनी अभियान भी चलाया, जिसका उद्देश्य कथित तौर पर हिजबुल्लाह को कमजोर करना बताया गया। इजरायली हमलों में हिजबुल्लाह के चीफ हसन नसरल्लाह समेत कई कमांडरों की मौत हो गई और उसके कई ठिकानों को भारी नुकसान पहुंचा। लंबे खूनी संघर्ष के बाद इजरायल और लेबनान की बीच एक समझौता हो गया। लेकिन विश्लेषकों ने इस बेहद ‘कमजोर सुलह’ बताया। समझौते के बाद भी इजरायल के हमले जारी रहे।
सीरिया; 13 साल से गृहयुद्ध में उलझा यह देश पिछले कुछ वर्षों में अपेक्षकृत शांत रहा लेकिन 2024 में हालात बदल गए। विद्रोही गुटों ने नंवबर में सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल सद के खिलाफ बड़ा ऑपरेशन शुरू कर दिया। लंब समय से विद्रोहियों का सफलतापूर्व मुकाबला करने वाले असद इस बार अपनी सत्ता नहीं बचा पाए। 8 दिसंबर को उन्हें सत्ता छोड़कर भागना पड़ा। फिलहाल सीरिया का भविष्य अधर में है। विश्लेषक मानते हैं कि सीरिया के लिए आने वाला समय बेहद कठिन है, यह भी कहना मुश्किल है कि क्या सीरिया एक रह पाएगा।
इजरायल-ईरान संघर्ष : 2024 में पहली बार ईरान और इजरायल में सीधा सैनिक टकराव देखने को मिला। गाजा में इजरायली सैन्य कार्रवाई का ईरान तीखा विरोध कर रहा था। वह हिजबुल्लाह का भी समर्थक है ऐसे में उसके सीधे इजरायल के साथ टकराव की स्थिति बनने लगी।
1 अप्रैल को, इजरायल ने सीरिया के दमिश्क में एक ईरानी वाणिज्य दूतावास परिसर पर बमबारी की, जिसमें कई वरिष्ठ ईरानी अधिकारी मारे गए। जवाब में, ईरान और उसके प्रतिरोध सहयोगियों की धुरी ने इजरायल से जुड़े जहाज एमएससी एरीज को जब्त कर लिया। तेहरान और उसके सहयोगियों ने 13 अप्रैल को इजरायल के अंदर मिसाइल और ड्रोन हमले किए। इसके बाद इजरायल ने 19 अप्रैल को ईरान और सीरिया में जवाबी हमले किए।
31 जुलाई को तेहरान में हमास के राजनीतिक नेता इस्माइल हानिया की हत्या के बाद तनाव बढ़ गया। ईरान और हिजबुल्लाह ने इजरायल पर हत्या का आरोप लगाया। अक्टूबर 2024 में ईरान ने यहूदी राष्ट्र पर मिसाइलें दागी। इसके बाद इजरायल ने 25 अक्टूबर को ईरान के खिलाफ और जवाबी हमले किए।
सूडान : सूडान 15 अप्रैल 2023 से गृहयुद्ध में जारी हैं। अर्धसैनिक रैपिड सपोर्ट फोर्सेज (आरएसएफ) और सूडानी सशस्त्र बल (एसएएफ) खूनी संघर्ष में उलझे हैं। अंतरराष्ट्रीय संगठनों के अनुमानों के अनुसार, सूडान में चल रहे युद्ध में 27,120 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और 14 मिलियन से अधिक लोग देश के भीतर या विदेश में विस्थापित हुए हैं।
राजनीति
साल 2014, 2019 और 2024 का चुनाव कांग्रेस हारी है, नेहरू नहीं : मनोज झा 
नई दिल्ली, 17 दिसंबर। वर्ष 2014, 2019 और 2024 का चुनाव पंडित जवाहरलाल नेहरू नहीं हारे हैं। यह चुनाव विपक्ष ने हारे हैं, कांग्रेस हारी है। संविधान पर चर्चा के दौरान राष्ट्रीय जनता दल के राज्यसभा सांसद प्रो. मनोज कुमार झा ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि जब से संसद में आया हूं, नेहरू जी पर बहुत चर्चा होती है। उन्होंने सत्ता पक्ष से कहा कि अगर 100 साल तक भी आप चुनाव जीतेंगे तो नेहरू को तब भी वहीं खड़ा पाएंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि नेहरू संसदीय लोकतंत्र के प्रतीक हैं, वह लोकतंत्र की ढाल हैं।
चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि जयप्रकाश (जेपी) ने जब आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी को चिट्ठी लिखी तो उन्होंने इंदिरा गांधी को नेहरू की याद दिलाई थी। जवाहरलाल नेहरू ऐसे व्यक्ति थे कि जब उनकी आलोचना नहीं होती थी तो वे छद्म नाम से अपनी आलोचना स्वयं करते थे। जब हम संविधान दिवस मना रहे हैं तो क्या हमें स्वतंत्रता की बात नहीं करनी चाहिए। आज आप नेहरू जी के बारे में कहते हैं कि उन्हें यह काम करना चाहिए या उन्होंने वह काम नहीं किया। 25 साल बाद जब संविधान के 100 वर्ष पूरे हो जाएंगे तब यदि आपके बारे में भी यही बातें कही जाएगी तो वह अच्छा नहीं लगेगा।
मनोज झा ने कहा कि हम भूल जाते हैं कि 1947 में इस देश की क्या हालत थी, जवाहरलाल नेहरू, अंबेडकर, पटेल, आजाद ने नींव डाली है। वे नींव हैं, उन्होंने नींव डाली है। आप इस इमारत का सेकंड, थर्ड फ्लोर बना रहे हैं। लेकिन, उन्होंने नींव डाली है। उन्होंने ग्राउंड फ्लोर बनाया है। आप 5 फ्लोर और बनाइए, लेकिन नींव के बगैर फ्लोर किसी काम का नहीं है। सीवर और सेप्टिक टैंक में जहरीली गैस से मरने वाले लोग कौन हैं, क्या वह ‘एक हैं तो सेफ हैं’ में नहीं आते।
उन्होंने कहा कि जब आजादी की बात हो तो हम उसका मूल्यांकन करें। इस देश में नाम और सरनेम से भी चीजें तय होती हैं। खालिद नाम है, जेल में रहोगे, सुनवाई नहीं होगी। हैदर नाम है सुनवाई नहीं होगी।
शरजील इमाम नाम है तो सुनवाई नहीं होगी। गुलफिशा होगी तो सुनवाई नहीं होगी। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ का मूलवासी बचाओ मंच है, उसे गैर कानूनी बना देते हैं। किसान विरोध करें तो देशद्रोही हैं। छात्र नौकरी मांग रहे हैं। कुछ छात्र तो केवल परीक्षा समय पर करने की मांग कर रहे हैं, उन्हें आप कहते हो कि वे अराजक हैं। बांग्लादेश में जो हो रहा है, मैं उस पीड़ा को साझा करता हूं। 1971 के बारे में पढ़ा था, अब देख रहे हैं। जब देश आजादी का जश्न मना रहा था तब महात्मा गांधी नोआखाली में शांति के लिए दर-दर भटक रहे थे।
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