राजनीति
प्रति दस लाख आबादी में मात्र 20 जज का होना चिंतनीय : प्रधान न्यायाधीश

चीफ जस्टिस एन वी रमण ने शनिवार को इस बात पर चिंता जताई कि देश में प्रति दस लाख आबादी में मात्र 20 जज ही हैं, जो बहुत ही कम है। मुख्यमंत्रियों और हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के 11वें संयुक्त सम्मेलन को संबोधित करते हुए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रमण ने कहा कि देश में न तो जज और न ही उनके फैसले विरोधात्मक हैं बल्कि न्यायिक प्रक्रिया ही विरोधात्मक है।
उन्होंने कहा कि जज सिर्फ अपने संवैधानिक कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं। अदालतों का काम न्याय देना है और इसे इसी तरह से देखा जाना चाहिये।
उन्होंने जजों की नियुक्ति की मांग करते हुये सरकार से कहा, “अधिक पदों के सृजन और नियुक्तियां करने के मामले में अधिक दरियादिल बनें ताकि एक उन्नत लोकतंत्र के अनुरूप देश में आबादी और जजों को अनुपात संतुलित हो। जजों के जितने पद अभी आवंटित हैं, उसके अनुसार, प्रति दस लाख आबादी में मात्र 20 जज हैं।”
चीफ जस्टिस ने कहा कि हाई कोर्ट के जजों के लिये 1,104 पद आवंटित हैं, जिनमें से 388 पदों के लिये रिक्तियां हैं और 180 सिफारिशों में से 126 नियुक्तियां देश के विभिन्न हाई कोर्ट में की गई हैं।
उन्होंने बताया कि केंद्र से 50 प्रस्तावों पर अभी अनुमोदन मिलना बाकी है और हाई कोर्ट ने करीब 100 नाम केंद्र सरकार को भेजे हैं, जो अभी सुप्रीम कोर्ट को प्राप्त नहीं हुये हैं।
उन्होंने कहा, “जब हम आखिरी बार 2016 में मिले थे, तो उस वक्त देश में जजों के कुल आवंटित पद 20,811 थे और अब यह संख्या 24,112 है। छह साल में पदों की संख्या में 16 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। दूसरी तरफ जिला अदालतों में केसों के लंबित होने के मामले दो करोड़ 65 लाख से बढ़कर चार करोड़ 11 लाख हो गये हैं। लंबित मामलों में 54.64 प्रतिशत की तेजी आयी है। इससे पता चलता है कि जजों के लिये आवंटित पदों की संख्या कितनी अपर्याप्त है।”
उन्होंने कहा कि नीति निर्माण अदालत के अधिकार क्षेत्र में नहीं है लेकिन जब नागरिक ही आवाज उठायें तो अदालतें मना नहीं कर सकती हैं।
चीफ जस्टिस रमण ने कहा कि अदालतों के आदेश को सरकार वर्षो तक लागू नहीं करती है। इससे अदालत की अवमाननना की याचिकाओं की संख्या बढ़ती है, जो केसों के बोझ की अलग ही श्रेणी है।
उन्होंने कहा कि अदालत के आदेश के बावजूद जानबूझकर सरकार का कार्रवाई न करना लोकतंत्र के हित में नहीं है।
उन्होंने जजों से कहा कि वे फैसले सुनाते वक्त लक्ष्मण रेखा का ध्यान रखें। अगर शासन कानून सम्मत है तो न्यायपालिका को कभी भी उसके रास्ते में नहीं आना चाहिये। न्यायपालिका जनकल्याण संबंधित चिंताओं को समझती है।
चीफ जस्टिस ने कहा कि कार्यपालिका कई बार अपनी मर्जी से निर्णय का बोझ न्यायपालिका पर डाल देती है। नीतिनिर्माण न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में नहीं है लेकिन जब नागरिक अपनी शिकायत लेकर अदालत में पहुंचे तो अदालतें उसे मना नहंी कर सकती हैं।
उन्होंने कहा कि देश की 140 करोड़ आबादी निश्चित ही न्याय प्रणाली के लिये परीक्षा के समान है क्योंकि दुनिया के किसी भी देश को इतनी बड़ी संख्या में और इतने तरह के विवादों को नहीं सुनना पड़ता है।
उन्होंने कहा कि अगर सरकारी मशीनरी सही से काम करे, पुलिस कानून के दायरे में काम करे और सरकार मुकदमेबाजी से बचे तो अदालतों का बोझ बहुत कम हो जायेगा।
चीफ जस्टिस ने कहा कि अगर एक तहसीलदार किसान की भूमि सर्वेक्षण या राशन कार्ड से संबंधित शिकायत पर कार्रवाई करे तो वह किसान अदालत का दरवाजा खटखटाने की नहीं सोचेगा। अगर कोई नगर निगम या ग्राम पंचायत अपने काम को सही से करे तो नागरिकों को अदालत का रुख नहीं करना पड़ेगा।
चीफ जस्टिस ने कहा कि अगर राजस्व अधिकारी कानूनी प्रक्रिया के तहत भूमि अधिग्रहण करें तो अदालतों में भूमि विवाद के मामलों का बोझ नहीं बढ़ेगा। लंबित मामलों में इनकी हिस्सेदारी 66 प्रतिशत है।
उन्होंने कहा कि अगर पुलिस जांच सही से हो और अगर अवैध गिरफ्तारी न की जाये और हिरासत में अत्याचार न किये जायें तो किसी भी पीड़ित को अदालत नहीं आना पड़ेगा।
चीफ जस्टिस ने कहा कि उन्हें यह बात नहीं समझ में आती कि आखिर सरकारी विभागों के बीच या सरकारी विभागों के अंदर तथा सरकारी उपक्रमों तथा सरकार के बीच का विवाद अदालत क्यों पहुंचता है।
उन्होंने कहा कि कानून और संविधान का पालन करना सुशासन की पहली शर्त है। हालांकि, इसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है और कानून को लागू करने की जल्दबाजी में कानून विभागों की रायशुमारी भी नहीं की जाती है।
इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजुजू, केंद्रीय राज्य मंत्री एस पी बघेल, सुप्रीम कोर्ट के जज, हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस और राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल हुए।
महाराष्ट्र
मुंबई: जेजे अस्पताल में महिला डॉक्टर ने की आत्महत्या की कोशिश; हालत स्थिर, जांच जारी

मुंबई: जेजे अस्पताल की एक डॉक्टर द्वारा अटल सेतु से कूदकर आत्महत्या करने की घटना के बाद, उसी अस्पताल की एक और महिला डॉक्टर ने गुरुवार रात अपने हॉस्टल के कमरे में आत्महत्या करने की कोशिश की। उसे तुरंत इलाज दिया गया और उसकी हालत फिलहाल स्थिर है।
अस्पताल प्रशासन ने चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान विभाग के साथ मिलकर घटना की जाँच के लिए स्वतंत्र समितियाँ गठित की हैं। डॉक्टर ने दवा का ओवरडोज़ ले लिया था, लेकिन उनके सहकर्मियों ने उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया, जिससे उनकी जान बच गई।
आत्महत्या के प्रयास के पीछे के सटीक कारण अभी भी स्पष्ट नहीं हैं। जेजे अस्पताल के डीन डॉ. अजय भंडारवार ने कहा कि दो अलग-अलग जाँच समितियों, एक अस्पताल की और दूसरी चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान विभाग की, की रिपोर्ट आने के बाद स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।
महाराष्ट्र
मुंबई: एनसीपी (सपा) विधायक जितेंद्र आव्हाड पर विधानसभा के बाहर पुलिस वाहन को रोकने का मामला दर्ज

मुंबई: महाराष्ट्र विधानसभा परिसर में एनसीपी नेता के समर्थकों और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच हुए विवाद के बाद मुंबई के मरीन ड्राइव पुलिस स्टेशन में एनसीपी (सपा) नेता जितेंद्र आव्हाड के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई है। एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार यह मामला सामने आया है।
एनसीपी (सपा) विधायक जितेंद्र आव्हाड और भाजपा विधायक गोपीचंद पडलकर के समर्थकों के बीच टकराव दोनों विधायकों के बीच तनावपूर्ण चर्चा के बाद हुआ।
एक अधिकारी ने बताया कि मुंबई पुलिस ने महाराष्ट्र विधान भवन में एक विरोध प्रदर्शन के दौरान लोक सेवकों को उनके कर्तव्यों के निर्वहन में बाधा डालने के आरोप में आव्हाड के खिलाफ मामला दर्ज किया है। पडलकर और आव्हाड दोनों ने अपने समर्थकों के बीच हुए विवाद पर सदन में अपनी निराशा व्यक्त की।
गुरुवार शाम महाराष्ट्र विधानसभा में भाजपा विधायक गोपीचंद पडलकर और राकांपा नेता जितेंद्र आव्हाड के कार्यकर्ताओं के बीच झड़प हुई, जिससे सदन की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँची। अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने इस मुद्दे को संबोधित किया, जिस पर आव्हाड ने जान से मारने की धमकियाँ दीं।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने स्थिति पर निराशा व्यक्त की और विधानसभा अध्यक्ष की टिप्पणियों को आव्हाड के दावों से अलग कर दिया। पडलकर की गाड़ी द्वारा आव्हाड को कथित तौर पर टक्कर मारने के बाद शुरू हुआ विवाद हिंसा में बदल गया। फडणवीस ने जाँच की माँग की, जबकि उद्धव ठाकरे ने सरकार की निष्क्रियता की आलोचना की।
महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने कहा कि गुरुवार को हुए विवाद में शामिल और राज्य विधानसभा की सुरक्षा द्वारा गिरफ्तार किए गए दो विधायकों के सहयोगियों पर सदन के विशेषाधिकार हनन का मामला दर्ज किया जाएगा।
महाराष्ट्र
कांग्रेस ने हनी ट्रैप कांड में मंत्रियों और अधिकारियों के फंसे होने का आरोप लगाया; महाराष्ट्र विधानसभा में जांच की मांग की

कांग्रेस नेता नाना पटोले ने आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ महायुति सरकार के कई मंत्री और वरिष्ठ अधिकारी हनी ट्रैप कांड में शामिल हैं। पटोले ने गुरुवार को महाराष्ट्र विधानसभा में कथित सबूत के तौर पर एक पेन ड्राइव पेश की और दावा किया कि इसमें इस कांड को उजागर करने वाली संवेदनशील जानकारी है।
विधानसभा में बोलते हुए पटोले ने कहा, “72 से ज़्यादा वरिष्ठ अधिकारी और कुछ मंत्री हनी ट्रैप का शिकार हो चुके हैं। संवेदनशील जानकारियाँ निकालकर असामाजिक तत्वों को दी जा रही हैं। कुछ अधिकारियों को तो आत्महत्या के विचार तक करने की हद तक ब्लैकमेल किया गया है। मामले की गंभीरता के बावजूद, सरकार इस मामले पर एक सामान्य बयान भी देने से कतरा रही है।”
उन्होंने आगे दावा किया कि ठाणे, नासिक और मुंबई जैसे शहर इन हनी ट्रैप गतिविधियों के केंद्र बन गए हैं। पटोले ने आगे कहा, “मेरा इरादा किसी की छवि खराब करने का नहीं है, लेकिन सरकार इसे गंभीरता से नहीं ले रही है। इन जालों के ज़रिए महत्वपूर्ण सरकारी दस्तावेज़ लीक किए जा रहे हैं, और मैं अध्यक्ष से निर्देश जारी करने का आग्रह करता हूँ।”
विधान परिषद में भी यह मुद्दा उठा, जहाँ विपक्ष के नेता अंबादास दानवे ने इन दावों को दोहराया। दानवे ने कहा कि ऐसी जानकारी सामने आई है कि राजनीतिक नेता और वरिष्ठ अधिकारी हनी ट्रैप में शामिल हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसी घटनाएँ प्रशासनिक गोपनीयता और राज्य में कानून-व्यवस्था के लिए खतरा पैदा करती हैं।
दानवे ने कहा, “पहलगाम हमले के दौरान, इसी तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों को केंद्र सरकार ने पकड़ा था। आशंका है कि इन जालों के ज़रिए गोपनीय प्रशासनिक जानकारी और महत्वपूर्ण फ़ाइलें लीक हुई हैं। पुलिस ने ठाणे और नासिक में पूछताछ शुरू कर दी है। राज्य की सुरक्षा की दृष्टि से इस मामले को गंभीरता से लिया जाना चाहिए।”
उन्होंने इस संभावना पर भी बल दिया कि कुछ व्यक्तियों ने ब्लैकमेल के माध्यम से प्रशासनिक लाभ प्राप्त किया होगा। उन्होंने सरकार से अपनी स्थिति स्पष्ट करने तथा मामले की गहन जांच करने का आग्रह किया।
बुधवार को, एनसीपी (शरद पवार गुट) के विधायक जितेंद्र आव्हाड ने भी इस कांड से नासिक की छवि पर पड़ने वाले असर को लेकर चिंता जताई। आव्हाड ने कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि समृद्ध विरासत वाले शहर नासिक को ऐसे मामलों से जोड़ा जा रहा है। हम किस तरह की राजनीतिक संस्कृति को बढ़ावा दे रहे हैं? लोग सिर्फ़ पैसा कमाने के लिए अनैतिकता की हद तक गिर रहे हैं।”
हालांकि राज्य सरकार ने अभी तक कोई औपचारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने इस मुद्दे को स्वीकार करते हुए कहा कि सरकार ने इस मामले पर ध्यान दिया है।
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