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Thursday,04-September-2025
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आपदा

वायनाड भूस्खलन: केरल उच्च न्यायालय ने आपदा राहत निधि के एसडीएमए के आंकड़ों को ‘गलत’ बताया

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केरल उच्च न्यायालय ने शनिवार को राज्य सरकार और उसके आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एसडीएमए) की आलोचना करते हुए कहा कि वायनाड के भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों के पुनर्वास के संबंध में धनराशि के बारे में उनके आंकड़े “गलत” हैं।

न्यायमूर्ति ए.के. जयशंकरन नांबियार और न्यायमूर्ति मोहम्मद नियास सी.पी. की पीठ ने यह भी सवाल उठाया कि धनराशि देने में महीनों तक देरी क्यों हो रही है और कहा कि यह एक और आपदा में तब्दील हो रही है।

इसमें कहा गया है कि केंद्र से सहायता मांगते समय राज्य सरकार को सटीक आंकड़े उपलब्ध कराने चाहिए।

अदालत ने पाया कि लेखापरीक्षा सटीक नहीं थी तथा धन का प्रबंधन उचित तरीके से नहीं किया जा रहा था।

इसने सरकार और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एसडीएमए) को धनराशि के संबंध में सटीक आंकड़े प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

इसने निर्देश दिया कि पुनर्वास के लिए राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (एसडीआरएफ) में से आवंटित 677 करोड़ रुपये की राशि, खर्च की गई राशि और आवश्यक राशि को अदालत के समक्ष रखा जाना चाहिए।

राज्य सरकार ने अदालत को बताया कि वह गुरुवार को पीठ द्वारा मांगी गई विस्तृत जानकारी उपलब्ध करा देगी।

सुनवाई के दौरान पीठ ने राज्य सरकार से दूसरों पर दोषारोपण बंद करने तथा ऐसा रुख न अपनाने को कहा जिससे आपदा के पीड़ितों का अपमान हो।

अदालत की यह टिप्पणियां और निर्देश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के वित्त अधिकारी द्वारा इस वर्ष जुलाई में वायनाड में हुए भूस्खलन के संबंध में आपदा राहत और पुनर्वास निधि के संबंध में लेखा प्रस्तुत करने के बाद आए।

वित्त अधिकारी शुक्रवार को अदालत के निर्देश के बाद उपस्थित हुए थे, जिसमें वायनाड के भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों के पुनर्निर्माण और पुनर्वास के लिए कितनी धनराशि की आवश्यकता है और केंद्र द्वारा कितनी वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी, इसकी जानकारी देने को कहा गया था।

अदालत ने यह भी पूछा था कि आपदा से पहले राहत कोष में कितनी राशि थी, उसमें से उपयोग के लिए कितनी राशि उपलब्ध थी और केंद्र द्वारा आवंटित राशि का कितना हिस्सा उपयोग किया गया।

ये प्रश्न वायनाड जिले में भूस्खलन से तीन गांवों के तबाह होने और 200 से अधिक लोगों की जान जाने के मद्देनजर राज्य में प्राकृतिक आपदाओं की रोकथाम और प्रबंधन के लिए उच्च न्यायालय द्वारा शुरू की गई याचिका पर सुनवाई के दौरान पूछे गए।

आपदा

धराली : 50 नागरिक, 1 जेसीओ और 8 जवान लापता- सेना का बचाव अभियान जारी

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नई दिल्ली, 7 अगस्त। उत्तराखंड के उत्तरकाशी में धराली में आई आपदा के बाद से ही रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है। क्षेत्र अब भी काफी हद तक संपर्क से कटा हुआ है। बड़तवारी, लिंचिगाड़, गंगरानी, हर्षिल और धराली में कई स्थानों पर सड़कें बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं।

50 नागरिक, भारतीय सेना के एक जेसीओ और 8 जवान अब भी लापता हैं। वहीं, गंगोत्री में करीब 180 से 200 पर्यटक फंसे हुए हैं, जिन्हें भारतीय सेना और आईटीबीपी द्वारा भोजन, चिकित्सा सहायता और आश्रय उपलब्ध कराया जा रहा है। मौसम और कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के चलते राहत व पुनर्स्थापन कार्य में बाधाएं बनी हुई हैं। बावजूद इसके सेना यहां राहत व बचाव कार्यों में जुटी हुई है।

भारतीय सेना के अनुसार, पर्यटकों को नेलोंग हेलीपैड से निकाला जाएगा। हर्षिल का सैन्य हेलीपैड पूरी तरह से चालू है, जबकि नेलोंग हेलीपैड भी चालू है और गंगोत्री से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है, जिससे राहत कार्यों में सुविधा मिल रही है। हालांकि, धराली का नागरिक हेलीपैड कीचड़ भरे भूस्खलन के कारण अभी भी काम नहीं कर रहा है।

सेना ने मानवीय सहायता और आपदा राहत अभियान तेज कर दिया है और नागरिक प्रशासन व अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर काम कर रही है। सड़कें कट जाने और संचार व्यवस्था बाधित होने के चलते सेना लगातार दिन-रात राहत कार्यों में जुटी है। सेना के 225 से अधिक जवान, जिनमें इंजीनियर, चिकित्सा दल और बचाव विशेषज्ञ शामिल हैं, मौके पर तैनात हैं। यहां एक रीको रडार टीम पहले से सक्रिय है और दूसरी टीम को तैनात किया जा रहा है। सेना के अधिकारियों ने बताया कि सर्च एंड रेस्क्यू डॉग्स को भी तैनात किया गया है, जो लापता लोगों को खोजने में सहायता कर रहे हैं।

चिनूक और एमआई-17 हेलिकॉप्टर, जो जॉलीग्रांट में तैनात हैं, जल्द ही मौसम की अनुमति मिलने पर लोगों को निकालने और राहत सामग्री पहुंचाने के लिए उड़ान भरेंगे। सहस्त्रधारा से चलने वाले पांच नागरिक हेलिकॉप्टर एसडीआरएफ के सहयोग से मटली, भटवारी और हर्षिल के बीच लगातार उड़ानें भर रहे हैं। साथ ही, आईटीबीपी के मटली हेलीपैड पर एक अस्थायी एविएशन बेस तैयार किया जा रहा है ताकि हेलिकॉप्टर अभियानों में तेजी लाई जा सके। भारतीय सेना के अनुसार, अब तक 70 नागरिकों को सुरक्षित बचाया गया है।

3 नागरिकों की मौत की पुष्टि हुई है, जबकि 50 से अधिक लोग अभी भी लापता हैं (नागरिक प्रशासन के अनुसार)। सेना ने 1 जेसीओ और 8 जवानों के लापता होने की जानकारी दी है। 9 सैनिकों और 3 नागरिकों को हेलिकॉप्टर से देहरादून लाया गया है। 3 गंभीर रूप से घायल नागरिकों को एम्स ऋषिकेश ले जाया गया है, जबकि 8 अन्य को उत्तरकाशी जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है। 2 शव बरामद किए गए हैं।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने धाराली का दौरा कर स्थिति का जायजा लिया और राहत कार्यों की समीक्षा की। सेना की सेंट्रल कमांड के कमांडर और यूबी एरिया के जीओसी भी मौके पर राहत अभियानों की निगरानी कर रहे हैं। सेंट्रल कमांड के चीफ ऑफ स्टाफ हेलिकॉप्टर संचालन के लिए सेंट्रल एयर कमांड मुख्यालय से समन्वय कर रहे हैं।

अब अगले 24–48 घंटों में पैराट्रूप्स और चिकित्सा दलों को चिनूक हेलिकॉप्टर से हर्षिल भेजा जाएगा, वहीं एनडीआरएफ कर्मियों और मेडिकल स्टाफ को एमआई-17 हेलिकॉप्टर से नेलोंग ले जाया जाएगा।

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आपदा

उत्तराखंड में बादल फटने से महाराष्ट्र के 24 नागरिक फंसे, सुप्रिया सुले ने सीएम धामी से मदद मांगी

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पुणे, 6 अगस्त। उत्तरकाशी में बादल फटने की घटना के बाद महाराष्ट्र के 24 नागरिक उत्तराखंड में फंस गए हैं। उनकी सुरक्षा को लेकर एनसीपी (एसपी) सांसद सुप्रिया सुले ने चिंता जाहिर की। साथ ही उन्होंने उत्तराखंड में फंसे नागरिकों के नाम के साथ मोबाइल नंबर भी जारी किए हैं। उन्होंने कहा कि पिछले 24 घंटों से उनसे संपर्क न होने के कारण परिवार के लोग काफी चिंतित हैं।

एनसीपी (एसपी) सांसद सुप्रिया सुले ने बुधवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “महाराष्ट्र के मंचर क्षेत्र के लगभग 24 नागरिक उत्तराखंड में हाल ही में हुए बादल फटने की घटना के कारण फंसे हुए हैं। पिछले 24 घंटों से उनसे संपर्क न होने के कारण उनके परिवार के लोग काफी चिंतित हैं।”

सुप्रिया सुले ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मदद की अपील की। उन्होंने कहा, “उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और उत्तराखंड मुख्यमंत्री कार्यालय से अनुरोध है कि कृपया हस्तक्षेप करें और उन्हें जल्द से जल्द बचाने में मदद करें।”

उन्होंने उत्तराखंड में फंसे हुए कुछ लोगों के नाम और मोबाइल नंबर भी एक्स पर शेयर किया है, जिनमें अशोक किसान भोर (9890600661), सविता शंकर काले (9527085169), अशोक टेमकर (9867571585), लीला रोकड़े (9130346544), माणिक ढोरे (9822364243), मारुति शिंदे (9284153045), समृद्धि जंगम (9936819132), सतीश मांगड़े (9766663401), लीना जंगम (9769621996), पुरूषोत्तम (9881403519), संगीता वालू (8830146903), शिंदे गहिनीनाथ (9881930966), अरुणा सातकर (9860758977), विट्ठल खेडकर (9405851609), सुनीता धोरे (7499490903), नितिन जाधव (9325666487) और मंगल (8805255991) शामिल है।

सुप्रिया सुले ने उत्तराखंड सरकार से अनुरोध किया है कि वहां फंसे लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करे और उन्हें जल्द से जल्द बचाने में मदद करें।

इस बीच, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बुधवार को उत्तराकाशी में बादल फटने की घटना को लेकर राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र में अधिकारियों के साथ बैठक की। उन्होंने सभी अधिकारियों को स्वास्थ्य सुविधाओं को दुरुस्त करने के निर्देश दिए, ताकि अगर किसी भी प्रकार की आपातकालीन स्थिति पैदा हो, तो उससे कुशलतापूर्वक निपटा जा सके।

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अंतरराष्ट्रीय

एक ‘काली रात’ जो कहर बनकर टूटी, कई अफगानी नींद से फिर कभी नहीं उठे

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नई दिल्ली, 21 जून। दिन 22 जून, साल 2022! जिसे अफगानिस्तान सबसे भयावह दिन के तौर पर याद करता है। यह वही दिन है, जब भूकंप के एक जोरदार झटके से अफगानिस्तान में जान-माल का भारी नुकसान हुआ था।

वक्त देर रात करीब 1 बजकर 24 मिनट का था… लोग उस वक्त गहरी नींद में थे। तभी एक जोरदार झटके से उनकी आंख खुली। यह 6.1 की तीव्रता का भूकंप था। इस भूकंप को न सिर्फ अफगानिस्तान में, बल्कि पाकिस्तान और भारत सहित 310 मील के क्षेत्र में मौजूद लोगों ने महसूस किया।

यूएस जियोलॉजिकल सर्वे (यूएसजीएस) के अनुसार इस भूकंप का केंद्र खोस्त से लगभग 28.5 मील दक्षिण-पश्चिम में पाकिस्तान की सीमा के पास था।

रात का काला अंधेरा जब खत्म हुआ, तो सुबह की हल्की रोशनी में दर्दनाक मंजर नजर आ रहा था। कई घर मलबे में तब्दील हो चुके थे। इन मलबों के नीचे कई लाशें दफ्न थीं। हालांकि, कुछ लोग अभी भी जीवन के लिए संघर्ष कर रहे थे।

इस भूकंप में 1000 से ज्यादा लोगों की मौतें हुईं। 1500 से ज्यादा लोग जख्मी हुए। यह 1998 के बाद से अफगानिस्तान में सबसे भयानक भूकंप था। पहले से ही आतंक और चरमपंथियों की मार से जूझ रहे अफगानिस्तान को इस जोरदार भूकंप ने झकझोर कर रख दिया।

यह आपदा तालिबान सरकार के लिए एक मुश्किल परीक्षा थी। बचाव दल राहत कार्य के लिए एकजुट था, लेकिन पहले ही कई अंतरराष्ट्रीय सहायता एजेंसियां यह देश छोड़ चुकी थीं।

बदहाली इस कदर थी कि लोगों को कंबल में लपेटकर हेलीकॉप्टर तक ले जाया जा रहा था। कुछ लोगों का इलाज वहीं धूल और मलबे के बीच जमीन पर किया जा रहा था।

अमेरिकी भूगर्भीय सर्वेक्षण के भूकंप विज्ञानी रॉबर्ट सैंडर्स का मानना है कि यूं तो दुनिया के दूसरे स्थानों पर इतनी तीव्रता का भूकंप इस कदर तबाही नहीं मचाता, लेकिन इमारतों की क्वालिटी और जनसंख्या घनत्व ही अफगानिस्तान में इस तरह की तबाही का कारण बना।

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