खेल
वसीम जाफर ने की ऋषभ पंत की तारीफ
भारत के पूर्व क्रिकेटर वसीम जाफर विकेटकीपर-बल्लेबाज ऋषभ पंत की 113 गेंदों में नाबाद 125 रनों की अविश्वसनीय पारी से हैरान हैं, जिसमें 16 चौके और दो छक्के शामिल थे, उन्होंने कहा कि यह देखना अच्छा है कि बाएं हाथ का बल्लेबाज सीरीज चेंज करने वाले मैच में बेहतरीन पारी खेल रहा है। पंत ने इंग्लैंड के दौरे की शुरुआत पहली पारी में 146 रन की पारी से की थी और इसके बाद एजबेस्टन में पुनर्निर्धारित पांचवें टेस्ट की दूसरी पारी में 56 रनों की एक और प्रभावशाली पारी खेली। रविवार को, पंत ने नाबाद 125 रनों के साथ दौरे का अंत किया, जिससे भारत को 2-1 से वनडे श्रृंखला में जीत मिली।
जाफर ने ईएसपीएन क्रिकइन्फो से कहा, “ऋषभ पंत शानदार फॉर्म में हैं और अपने छोटे से करियर में पहले ही कुछ अविश्वसनीय पारियां खेल चुके हैं। यह देखना शानदार है कि केवल 24 साल की उम्र में कैसे श्रृंखला-बदलने वाली पारियां खेल रहे हैं। उन्होंने इंग्लैंड के इस छोटे से दौरे में दो उत्कृष्ट पारियां खेली हैं। जबकि टेस्ट मैच में परिणाम भारत के पक्ष में नहीं गया, जहां उन्होंने शतक बनाया, उन्होंने इस बार सुनिश्चित किया कि वह मैच को अंजाम पर खत्म करें।
जाफर ने बताया कि पंत हार्दिक पांड्या (71) की पारी से भी संतुष्ट थे, जो पांचवें विकेट के लिए 133 रन की साझेदारी में आक्रामक थे, उन्होंने भारत को 16.2 ओवर में 72/4 से बचाया और एक बार ऑलराउंडर आउट हो गए, तो बाएं हाथ के बल्लेबाज ने अपने आक्रामक स्ट्रोक से भारत को 47 गेंद शेष रहते 260 रनों का पीछा करने में मदद की।
लॉर्डस में 100 रन की हार के बाद कप्तान रोहित शर्मा ने बल्लेबाजों से अपनी मानसिकता बदलने और रन चेज करने के लिए सक्षम होने की बात कही थी। अब पंत और पांड्या ने शानदार प्रदर्शन किया, तो जाफर को लगा कि रोहित इस बात से प्रसन्न होंगे कि मैनचेस्टर में शीर्ष क्रम के जल्दी आउट होने के बाद दोनों ने कैसे पारी को आगे बढ़ाया और मैच में भारत को जीत दिलाई।
खेल
आईसीसी रैंकिंग: दीप्ति शर्मा बनी नंबर वन टी20 गेंदबाज, मंधाना को एक स्थान का नुकसान

SPORT
नई दिल्ली, 23 दिसंबर: भारतीय महिला क्रिकेट टीम की स्टार ऑलराउंडर दीप्ति शर्मा टी20 फॉर्मेट की नई नंबर वन गेंदबाज बन गई हैं।
दीप्ति शर्मा ने ऑस्ट्रेलिया की एनाबेल सदरलैंड को पछाड़ते हुए नंबर वन का ताज हासिल किया है। शीर्ष दस में दीप्ति एकमात्र भारतीय गेंदबाज हैं। दूसरे स्थान पर ऑस्ट्रेलिया की एनाबेल सदरलैंड, तीसरे स्थान पर पाकिस्तान की सादिया इकबाल हैं। दोनों को 1-1 स्थान का नुकसान हुआ है। चौथे स्थान पर इंग्लैंड की सोफी एक्लेस्टन और पांचवें स्थान पर लॉरेन बेल हैं। छठे स्थान पर दक्षिण अफ्रीका की एन मल्बा, सातवें स्थान पर ऑस्ट्रेलिया की जॉर्जिया वॉरहेम, आठवें पर इंग्लैंड की चॉर्ली डेन, नौवें स्थान पर वेस्टइंडीज की एफी फ्लेचर और दसवें स्थान पर पाकिस्तान की नशरा संधु हैं।
महिलाओं की नई वनडे रैंकिंग में दक्षिण अफ्रीका की कप्तान लौरा वोल्वार्ड्ट एक बार फिर से स्मृति मंधाना को पछाड़ते हुए नंबर वन स्थान पर काबिज हो गई हैं। उन्हें एक स्थान का फायदा हुआ है। मंधाना दूसरे स्थान पर हैं, उन्हें एक स्थान का नुकसान हुआ है।
तीसरे स्थान पर ऑस्ट्रेलिया की एश्ले गार्डनर, चौथे स्थान पर नट सेवियर ब्रंट, पांचवें स्थान पर ऑस्ट्रेलिया की बेथ मूनी, छठे स्थान पर ऑस्ट्रेलिया की एलीसा हिली, सातवें स्थान पर न्यूजीलैंड की सोफी डिवाइन, आठवें स्थान पर ऑस्ट्रेलिया की एल्सी पेरी, नौवें स्थान पर हेली मैथ्यूज और दसवें स्थान पर भारत की जेमिमा रोड्रिग्ज हैं।
महिलाओं की वनडे रैंकिंग में सिर्फ मंधाना और वोल्वॉर्ड्ट की रैंकिंग में ही बदलाव दिखा है।
महिलाओं की टी20 बल्लेबाजों की रैंकिंग में ऑस्ट्रेलिया की बेथ मूनी पहले, वेस्टइंडीज की हेली मैथ्यूज दूसरे, भारत की स्मृति मंधाना तीसरे, ऑस्ट्रेलिया की ताहिला मैकग्राथ चौथे, दक्षिण अफ्रीका की लौरा वोल्वार्ड्ट पांचवें, श्रीलंका की चमारी अट्टपट्टू छठे, दक्षिण अफ्रीका की तंजिम ब्रिट्स सातवें, न्यूजीलैंड की सुजी बेट्स आठवें और भारत की जेमिमा रोड्रिग्स नौवें स्थान पर हैं। रोड्रिग्स को पांच स्थान का फायदा हुआ है। शेफाली वर्मा दसवें स्थान पर हैं। उन्हें एक स्थान का नुकसान हुआ है।
खेल
24 दिसंबर विशेष: विश्वनाथन आनंद पहली बार विश्व चैंपियन बने

नई दिल्ली, 23 दिसंबर: शतरंज की दुनिया में विश्वनाथन आनंद का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। आनंद ने शह और मात के इस खेल में दुनिया के धुरंधरों को पछाड़ते हुए वैश्विक स्तर पर भारत और अपनी प्रतिष्ठा कायम की थी। विश्वनाथन आनंद पांच बार विश्व चैंपियन रहे। उन्होंने पहला विश्व चैंपियन खिताब 2000 में जीता था।
11 दिसंबर 1969 को तमिलनाडु के मयिलादुथुराई में जन्मे आनंद को बचपन से ही शतरंज में रुचि थी। 6 साल की उम्र में ही आनंद अपने से बड़े बच्चों पर भारी पड़ने लगे थे। 14 साल की उम्र में वे सब-जूनियर शतरंज चैंपियनशिप बने और 15 साल की उम्र में सबसे कम उम्र के अंतरराष्ट्रीय मास्टर बनने का गौरव हासिल कर लिया। 1988 में 19 साल की उम्र में विश्वनाथन आनंद देश के पहले ग्रैंडमास्टर बन गए।
शतरंज की दुनिया में लगातार सफलता की सीढ़ियां चढ़ते विश्वनाथन आनंद के लिए साल 2000 बेहद गौरवपूर्ण था। यह वह साल था, जब पूरी दुनिया को हैरान करते हुए विश्वनाथन आनंद ने पहली बार विश्व चैंपियन का खिताब जीता। 2000 में फिडे विश्व कप का आयोजन 27 नवंबर से 24 दिसंबर तक नई दिल्ली और तेहरान में किया गया था। विश्वनाथन आनंद ने अलेक्सी शिरोव को हराकर खिताब जीता था। यह खिताब अगले एक दशक में शतरंज में आनंद युग के शुरुआत का शंखनाद था। आनंद ने 2007, 2008, 2010 और 2012 में भी विश्व चैंपियन का खिताब जीता।
56 साल के आनंद ने शतरंज से पूरी तरह संन्यास नहीं लिया है, लेकिन उन्होंने शीर्ष स्तर के टूर्नामेंटों में हिस्सा लेना कम कर दिया है। वह अपनी अकादमी और युवा खिलाड़ियों के विकास पर ध्यान लगाए हुए हैं। कभी-कभी वह टूर्नामेंट खेलते हैं और फिडे के उपाध्यक्ष भी हैं।
शतरंज की दुनिया में वैश्विक स्तर पर भारत को प्रतिष्ठित करने वाले विश्वनाथन आनंद को भारत सरकार ने 1985 में अर्जुन पुरस्कार, 1988 में पद्मश्री, 1991-92 में खेल रत्न, 2001 में पद्मभूषण और 2008 में पद्मविभूषण से नवाजा था।
राजनीति
‘वंदे मातरम’ केवल गीत नहीं, राष्ट्र की चेतना और साहस का मंत्र है : सीएम योगी

लखनऊ, 22 दिसंबर : राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में सोमवार को उत्तर प्रदेश विधानसभा में विशेष चर्चा सत्र का आयोजन किया गया। इस चर्चा सत्र में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि ‘वंदे मातरम’ केवल एक गीत नहीं है, बल्कि यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम की चेतना, क्रांतिकारियों के साहस और राष्ट्र के आत्मसम्मान का मंत्र है।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में संभवतः उत्तर प्रदेश पहली विधानसभा है, जहां इस ऐतिहासिक विषय पर विस्तार से चर्चा हो रही है।
मुख्यमंत्री योगी के अनुसार, यह चर्चा किसी गीत की वर्षगांठ भर नहीं है, बल्कि भारत माता के प्रति राष्ट्रीय कर्तव्यों की पुनर्स्थापना का अवसर है। ‘वंदे मातरम’ का सम्मान केवल एक अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि यह हमारे संवैधानिक मूल्यों और राष्ट्रीय दायित्वों का बोध कराता है। यह राष्ट्र की आत्मा, संघर्ष और संकल्प का प्रतीक है। यह केवल काव्य नहीं था, बल्कि मातृभूमि की आराधना, सांस्कृतिक चेतना और राष्ट्रवाद की अभिव्यक्ति का माध्यम है।
सीएम योगी ने कहा कि जब ‘वंदे मातरम’ अपनी रजत जयंती मना रहा था, तब देश ब्रिटिश हुकूमत के अधीन था। 1857 के प्रथम स्वातंत्र्य समर की विफलता के बाद अंग्रेजी शासन दमन और अत्याचार की पराकाष्ठा पर था। काले कानूनों के माध्यम से जनता की आवाज को दबाया जा रहा था, यातनाएं दी जा रही थीं, लेकिन ‘वंदे मातरम’ ने देश की सुप्त चेतना को जीवित रखा। जब देश इसकी रजत और स्वर्ण जयंती मना रहा था, तब भी ब्रिटिश शासन कायम था। उस समय स्वतंत्रता की चेतना को आगे बढ़ाने का मंच कांग्रेस के अधिवेशन रहे, जहां वर्ष 1896 में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने पहली बार इसे स्वर दिया। यह पूरे देश के लिए एक मंत्र बन गया।
मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि जब ‘वंदे मातरम’ की शताब्दी आई, तब वही कांग्रेस सत्ता में थी, जिसने कभी देश की आत्मा जगाने वाले इस गीत को अपने मंच पर स्थान दिया था, मगर उसने देश पर आपातकाल थोपकर संविधान का गला घोंटने का कार्य किया। यह इतिहास का एक ऐसा कालखंड था, जिसे भुलाया नहीं जा सकता। आज जब ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूरे हो रहे हैं, तब भारत प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में आत्मविश्वास के साथ ‘विकसित भारत’ की ओर बढ़ रहा है। राष्ट्रगीत के अमर रचयिता बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का जो सपना था, उसे नया भारत साकार करने की दिशा में आगे बढ़ चुका है। इसी कारण यह चर्चा सदन में अत्यंत सामयिक है।
मुख्यमंत्री ने वर्ष 1857 के प्रथम स्वातंत्र्य समर का उल्लेख करते हुए कहा कि बैरकपुर में मंगल पांडेय, गोरखपुर में शहीद बंधु सिंह, मेरठ में धन सिंह कोतवाल और झांसी में रानी लक्ष्मीबाई के नेतृत्व में देशभर में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष हुआ। स्वातंत्र्य समर की विफलता के बाद उपजी हताशा के दौर में ‘वंदे मातरम’ ने देश की सोई हुई आत्मा को जगाने का काम किया। उस समय डिप्टी कलेक्टर के रूप में ब्रिटिश शासन में कार्यरत बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने आम जनमानस की भावनाओं को ‘वंदे मातरम’ के माध्यम से स्वर दिया।
उन्होंने कहा कि ‘वंदे मातरम’ औपनिवेशिक मानसिकता के प्रतिकार का प्रतीक बना। भारत माता केवल भूभाग नहीं थी, बल्कि हर भारतीय की भावना थी। स्वाधीनता राजनीति नहीं, बल्कि साधना थी। ‘सुजलाम, सुफलाम् मलयज-शीतलाम् शस्यश्यामलाम् मातरम्’ की पंक्तियों ने भारतीय मानस में चेतना का संचार किया और भारत की प्रकृति, समृद्धि, सौंदर्य और शक्ति को एक साथ मूर्त रूप दिया।
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