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Wednesday,29-October-2025
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सोनम वांगचुक की नजरबंदी मामले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

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नई दिल्ली, 29 अक्टूबर: सुप्रीम कोर्ट लद्दाख स्थित जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत नजरबंदी को चुनौती देने वाली याचिका पर बुधवार को सुनवाई करेगा।

वांगचुक की पत्नी गीतांजलि जे अंगमो की ओर से दायर इस मामले में उनकी नजरबंदी की वैधता और अधिकारियों द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया पर सवाल उठाए गए हैं।

इस महीने की शुरुआत में, न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की पीठ ने अंगमो को अपनी रिट याचिका में संशोधन करने की अनुमति दी थी, जब उनके वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सरकार की ओर से दिए गए नए विवरण शामिल करने की अनुमति मांगी थी।

सिब्बल ने अदालत को बताया कि केंद्र सरकार ने वांगचुक को नजरबंदी के आधार बता दिए हैं, जिससे मूल याचिका में संशोधन करना जरूरी हो गया है। उन्होंने कहा, “मैं याचिका में संशोधन करूंगा ताकि मामला यहीं जारी रह सके।” इसके बाद, अदालत ने मामले की अगली सुनवाई बुधवार को तय कर दी।

सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिका में मूल रूप से यह तर्क दिया गया था कि अधिकारी एनएसए की धारा 8 के तहत हिरासत के आधार प्रस्तुत करने में विफल रहे हैं, जिसके अनुसार बंदियों को एक निश्चित समय के भीतर उनकी हिरासत के कारणों के बारे में सूचित किया जाना आवश्यक है।

हालांकि, लेह प्रशासन ने जिला मजिस्ट्रेट रोमिल सिंह डोंक के माध्यम से दायर अपने हलफनामे में दावा किया कि निर्धारित अवधि के भीतर बंदी को कारणों से विधिवत अवगत करा दिया गया था।

इस बीच, एनएसए के तहत गठित सलाहकार बोर्ड ने हाल ही में वांगचुक की हिरासत की समीक्षा की। पूर्व न्यायाधीश एमके हुजुरा (अध्यक्ष), जिला न्यायाधीश मनोज परिहार और सामाजिक कार्यकर्ता स्पल जयेश अंगमो सहित तीन सदस्यीय पैनल ने राजस्थान के जोधपुर सेंट्रल जेल में तीन घंटे तक बंद कमरे में सुनवाई की। कार्यवाही के दौरान वांगचुक और उनकी पत्नी दोनों मौजूद थे।

सुनवाई कथित तौर पर एनएसए लगाने के प्रशासन के औचित्य और वांगचुक के प्रतिनिधित्व पर केंद्रित थी, जिसमें इसे चुनौती दी गई थी।

सोनम वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत हिरासत में लिया गया था। इसके बाद देशव्यापी विरोध प्रदर्शन हुए और नागरिक अधिकार समूहों ने भी इसकी आलोचना की। उन्होंने वांगचुक की हिरासत को मनमाना और अनुचित बताया।

अंतरराष्ट्रीय समाचार

पीएम मोदी ने प्रधानमंत्री साने ताकाइची को दी बधाई, भारत-जापान संबंध को लेकर फोन पर हुई चर्चा

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PM MODI

नई दिल्ली, 29 अक्टूबर: भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जापान की पीएम से फोन पर बातचीत की। जापान को हाल ही में पहली महिला प्रधानमंत्री मिली हैं। साने ताकाइची ने जापान की प्रधानमंत्री के तौर पर जिम्मेदारी संभाली है। पीएम मोदी ने जापान की प्रधानमंत्री बनने के लिए ताकाइची को बधाई दी।

पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर इसकी जानकारी देते हुए लिखा, “जापान की प्रधानमंत्री साने ताकाइची के साथ गर्मजोशी से बातचीत हुई। उन्हें पदभार ग्रहण करने पर बधाई दी और आर्थिक सुरक्षा, रक्षा सहयोग और प्रतिभा गतिशीलता पर केंद्रित भारत-जापान विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी को आगे बढ़ाने के हमारे साझा दृष्टिकोण पर चर्चा की। हम इस बात पर सहमत हुए कि वैश्विक शांति, स्थिरता और समृद्धि के लिए भारत-जापान के मजबूत संबंध अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।”

बता दें, पीएम ताकाइची ने हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात की थी। अमेरिकी राष्ट्रपति इन दिनों एशिया दौरे पर हैं। एशिया दौरे के दूसरे चरण के तहत ट्रंप जापान के टोक्यो पहुंचे थे।

ट्रंप के जापान दौरे पर दोनों देशों के बीच कई समझौतों पर मुहर लगी। देशों ने रेयर अर्थ मिनरल्स की आपूर्ति को लेकर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। अमेरिका स्मार्टफोन से लेकर फाइटर जेट्स तक कई तरह के प्रोडक्ट्स के लिए जरूरी इन मटीरियल्स पर चीन के दबदबे को खत्म करना चाहता है, उस पर निर्भरता कम करना चाहता है। जापान के अहम सुरक्षा और व्यापार पार्टनर संग ऐसा ही करीबी रिश्ता ताकाइची को देश में अपनी कमजोर राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने में मदद कर सकता है।

जापानी मीडिया के अनुसार, ट्रंप ने अमेरिका से ज्यादा सुरक्षा उपकरण खरीदने की जापान की कोशिशों की भी तारीफ की। वहीं पीएम ताकाइची ने कंबोडिया-थाईलैंड और इजरायल-हमास के बीच सीजफायर कराने में ट्रंप की भूमिका को “अभूतपूर्व” बताया। यही वजह है कि उन्होंने दूसरे वर्ल्ड लीडर्स की तरह ट्रंप को शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया।

जापानी मीडिया के अनुसार ताकाइची का अंदाज जनता को पसंद आ रहा है, लेकिन अभी भी वे निचले सदन में बहुमत से दो वोट दूर हैं। ऐसे में उम्मीद पक्की है कि जो डील सील हुई है, वह जापानी पीएम की स्थिति को और मजबूत करेगी। ट्रंप के साथ जापान का यह गठबंधन नई ऊर्जा भरने का काम करेगा।

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ट्रंप प्रशासन की नीतियों के बावजूद रिपब्लिकन और डेमोक्रेट सांसदों ने मिलकर किया भारत-अमेरिका संबंधों का समर्थन

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वाशिंगटन, 28 अक्टूबर: अमेरिका में रिपब्लिकन और डेमोक्रेट दोनों पार्टियों के सांसद मिलकर भारत-अमेरिका संबंधों को मजबूत करने में जुट गए हैं। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है, जब कुछ महीने पहले ट्रंप प्रशासन ने भारत के हितों के खिलाफ कई नीतियां लागू की थीं। सांसदों का कहना है कि दोनों पार्टियों को मिलकर इस साझेदारी का समर्थन करना चाहिए और भारत-अमेरिका रिश्तों को मजबूत रखना चाहिए।

पिछले दस दिनों में कम से कम छह संयुक्त पत्र और प्रस्ताव तैयार किए गए हैं। इन पत्रों में भारतीय अमेरिकी समुदाय के हितों की सुरक्षा करने और भारत-अमेरिका के सहयोग को बनाए रखने पर जोर दिया गया है। इसके साथ ही ट्रंप प्रशासन से उन नीतियों के लिए जवाबदेही मांगी गई है।

पिछले हफ्ते अमेरिकी सांसदों ने रटगर्स यूनिवर्सिटी में एक कार्यक्रम को लेकर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम हिंदुओं के खिलाफ गलत धारणाओं और पूर्वाग्रह को बढ़ावा दे सकता है, खासकर तब जब अमेरिका में हिंदू मंदिरों पर हमले की घटनाएं बढ़ रही हैं।

इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में जॉर्जिया से डेमोक्रेट सैनफोर्ड बिशप, इलिनॉय से श्री थानेदार, वर्जीनिया से सुहास सुब्रमण्यम और जॉर्जिया से रिपब्लिकन रिच मैककॉर्मिक शामिल थे।

इसके दो दिन पहले छह सांसदों ने राष्ट्रपति ट्रंप और वाणिज्य सचिव हावर्ड लुटनिक को पत्र लिखा। इसमें उन्होंने एच-1बी वीजा नियमों को लेकर अपनी चिंता जताई।

पत्र में कहा गया कि यह नई नीतियां अमेरिकी नियोक्ताओं के लिए मुश्किलें बढ़ाएंगी और अमेरिका की वैश्विक प्रतिस्पर्धा को कमजोर करेंगी।

इस पत्र पर डेमोक्रेट सुहास सुब्रमण्यम और रिपब्लिकन सांसद जॉय ओबरनोल्टे और डॉन बेकन समेत अन्य सांसदों ने भी हस्ताक्षर किए।

17 अक्टूबर को चार अमेरिकी सांसदों ने राष्ट्रपति ट्रंप को पत्र लिखा और भारत में होने वाले क्वाड लीडर्स समिट और एशिया की अन्य बैठकों में हिस्सा लेने का आग्रह किया।

उसी दिन, प्रतिनिधि सभा में एक संयुक्त प्रस्ताव भी पेश किया गया। इसमें भारतीय अमेरिकी समुदाय के अमेरिका में योगदान को मान्यता देने और भारतीय अमेरिकियों के खिलाफ नस्लीय हमलों की निंदा करने की बात कही गई।

इस प्रस्ताव में भारत-अमेरिका के रिश्ते को दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक साझेदारियों में से एक बताया गया।

यह कदम पिछले दिनों 19 डेमोक्रेट सांसदों के पत्र से अलग था, जिसमें उन्होंने ट्रंप को भारत-अमेरिका संबंधों को सुधारने और फिर से मजबूत करने की सलाह दी थी। उस समय कोई रिपब्लिकन सांसद इसमें शामिल नहीं हुआ था।

डेमोक्रेट और रिपब्लिकन दोनों पार्टियों के नेताओं को आलोचना का सामना करना पड़ा, क्योंकि उन्होंने लंबे समय तक चुप्पी बनाए रखी थी। ट्रंप प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी जैसे ट्रेड एडवाइजर पीटर नवारो और वाणिज्य सचिव हावर्ड लुटनिक लगातार भारत के खिलाफ नीतियां बना रहे थे। ये नीतियां भारत के रूस से तेल खरीदने और व्यापार संतुलन को लेकर थीं।

अगस्त में ट्रंप प्रशासन ने भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाए। इसमें रूस से तेल आयात पर 25 प्रतिशत का अतिरिक्त शुल्क भी शामिल था।

इसके बाद सितंबर में ट्रंप ने एच-1बी वीजा नियम में बदलाव किया और इसके लिए 100,000 डॉलर का आवेदन शुल्क लगाया। 2024 में एच-1बी वीजा पाने वाले 70 प्रतिशत से अधिक लोग भारतीय थे, जिससे भारत के हित सीधे प्रभावित हुए।

कुछ डेमोक्रेट सांसदों ने इस पर सार्वजनिक विरोध किया, लेकिन रिपब्लिकन सांसदों ने हाल तक चुप्पी बनाए रखी। अक्टूबर की शुरुआत में डेमोक्रेट सांसद अमी बेरा ने मिडिया से कहा कि कुछ रिपब्लिकन सांसद सिर्फ इसलिए चुप हैं क्योंकि वे राष्ट्रपति ट्रंप से डरते हैं। उन्होंने कहा कि सांसदों को भारत-अमेरिका संबंधों का समर्थन करने के लिए आगे आना चाहिए।

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भारत की महिला शांति सैनिक, संघर्ष क्षेत्रों में महिलाओं के लिए बनी प्रेरणा

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संयुक्त राष्ट्र, 28 अक्टूबर: भारत की महिला शांति सैनिक संघर्ष वाले इलाकों की महिलाओं को प्रेरणा देती हैं और आम नागरिकों की सुरक्षा को बेहतर बनाती हैं, यह बात संयुक्त राष्ट्र शांति निर्माण आयोग को बताई गई।

डीएमके के राज्यसभा सांसद पी. विल्सन ने सोमवार को महिला, शांति और सुरक्षा पर आयोग की बैठक में कहा कि संयुक्त राष्ट्र मिशनों में तैनाती के मामले में अग्रणी रहीं भारतीय महिला शांति सैनिक अपने उदाहरण से संघर्ष क्षेत्रों में महिलाओं को प्रेरित करती हैं कि वे भी शांति बनाने में लीडर की भूमिका निभा सकती हैं।

उन्होंने कहा कि वे समुदायों में विश्वास पैदा करती हैं और कमजोर वर्गों, खासकर महिलाओं और बच्चों को आशा प्रदान करती हैं।

विल्सन ने जोर देकर कहा कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे लैंगिक हिंसा से निपटने में मदद करती हैं और यह सुनिश्चित करती हैं कि शांति प्रक्रियाएं समाज के सभी वर्गों की जरूरतों और दृष्टिकोणों को प्रतिबिंबित करें।

विल्सन ने अपने भाषण की शुरुआत तमिल अभिवादन “वणक्कम” से की और अंत में धन्यवाद कहा। वे महासभा में प्रतिनिधिमंडल में शामिल होने वाले सांसदों में से एक हैं।

सोमवार की बैठक सुरक्षा परिषद द्वारा एक ऐतिहासिक प्रस्ताव को अपनाए जाने की 25वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित की गई थी, जिसमें संयुक्त राष्ट्र मिशनों में महिलाओं की भूमिका बढ़ाने, उन्हें शांति वार्ता में शामिल करने और हिंसा से उनकी रक्षा करने का आह्वान किया गया था।

विस्लॉन ने कहा कि प्रस्ताव पारित होने से बहुत पहले, भारतीय महिला चिकित्सा अधिकारियों ने 1960 के दशक में कांगो में शांति अभियान में अपनी सेवाएं दी थीं।

उन्होंने कहा कि भारत की शांति स्थापना विरासत को अद्वितीय बनाने वाली बात यह है कि यह उन पहले देशों में से एक था जिसने यह माना कि महिलाएं स्थायी शांति की अपरिहार्य प्रतिनिधि हैं। संयुक्त राष्ट्र की पहली महिला पुलिस इकाई भारत से आई थी जब इसे 2007 में लाइबेरिया में तैनात किया गया था, और इस अग्रणी पहल ने स्थानीय महिलाओं को अपनी राष्ट्रीय पुलिस और सुरक्षा सेवाओं में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।

उन्होंने कहा कि नई दिल्ली स्थित संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना केंद्र लिंग-संवेदनशील प्रशिक्षण के लिए एक वैश्विक उत्कृष्टता केंद्र है जो महिला शांति सैनिकों के लिए पाठ्यक्रम संचालित करता है। इस वर्ष की शुरुआत में, भारत ने ग्लोबल साउथ की महिला शांति सैनिकों के लिए अपनी तरह के पहले अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की मेजबानी की।

विल्सन ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर, महिलाओं के नेतृत्व ने समाज को बदल दिया है और 14 लाख से ज्यादा महिलाएं जमीनी स्तर पर प्रतिनिधि चुनी गई हैं।

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