अंतरराष्ट्रीय समाचार
दक्षिण कोरिया में 9 साल बाद जन्म दर में पहली वृद्धि दर्ज करने का अनुमान
सियोल, 27 जनवरी। दक्षिण कोरिया में नौ साल बाद पहली बार जन्म दर बढ़ने का अनुमान है, लेकिन इसमें क्षेत्रीय अंतर भी देखने को मिल रहा है। यह जानकारी सोमवार को देश के सांख्यिकी विभाग ने दी।
जनवरी से नवंबर के बीच 2,20,094 बच्चों का जन्म हुआ, जो पिछले साल की तुलना में 3 प्रतिशत ज्यादा है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में यह संख्या 7.7 प्रतिशत कम थी, जिससे जन्म दर में लगातार आठवें साल गिरावट दर्ज की गई थी।
आंकड़ों से पता चलता है कि सियोल और अन्य महानगरीय क्षेत्रों में जन्म दर बढ़ी है, जबकि अन्य क्षेत्रों में यह वृद्धि कम रही। सियोल में पिछले साल जनवरी और मार्च को छोड़कर जन्म दर में बढ़ोतरी जारी रही।
खास बात यह है कि सियोल में सितंबर से लगातार तीन महीने तक जन्म दर में दहाई अंक की वृद्धि देखी गई। इसी तरह, राजधानी के आसपास के ग्योंगगी प्रांत में भी सितंबर से नवंबर तक तीन महीने तक दहाई अंक की वृद्धि दर्ज की गई।
इसके विपरीत, उत्तर चुंगचोंग प्रांत और दक्षिणी द्वीप जेजू में वृद्धि की दर अपेक्षाकृत कम रही, जहां नवंबर में क्रमशः 3.1 प्रतिशत और 6 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई।
सांख्यिकी विभाग ने बताया कि क्षेत्रीय अंतर का मुख्य कारण यह है कि नवविवाहित और 20-30 की उम्र के लोग अधिकतर महानगरों में रहना पसंद करते हैं।
दक्षिण कोरिया लंबे समय से गिरती जन्म दर की समस्या से जूझ रहा है, क्योंकि युवा लोग शादी और परिवार शुरू करने में देरी कर रहे हैं या इसे टाल रहे हैं।
2045 तक दक्षिण कोरिया में सबसे बुजुर्ग जनसंख्या होने की उम्मीद है, जब 37.3 प्रतिशत लोग वरिष्ठ नागरिक होंगे।
दिसंबर में सरकारी आंकड़ों के अनुसार, देश में 65 या उससे अधिक उम्र के लोगों की संख्या 1.02 करोड़ हो गई, जो कुल 5.12 करोड़ जनसंख्या का 20 प्रतिशत है।
सरकार ने इस समस्या को हल करने के लिए शादी और बच्चों की परवरिश को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कई योजनाएं शुरू की हैं, जिनमें नवविवाहितों के लिए लाभ और चाइल्डकेयर सहायता शामिल हैं।
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भारत की महिला शांति सैनिक, संघर्ष क्षेत्रों में महिलाओं के लिए बनी प्रेरणा

संयुक्त राष्ट्र, 28 अक्टूबर: भारत की महिला शांति सैनिक संघर्ष वाले इलाकों की महिलाओं को प्रेरणा देती हैं और आम नागरिकों की सुरक्षा को बेहतर बनाती हैं, यह बात संयुक्त राष्ट्र शांति निर्माण आयोग को बताई गई।
डीएमके के राज्यसभा सांसद पी. विल्सन ने सोमवार को महिला, शांति और सुरक्षा पर आयोग की बैठक में कहा कि संयुक्त राष्ट्र मिशनों में तैनाती के मामले में अग्रणी रहीं भारतीय महिला शांति सैनिक अपने उदाहरण से संघर्ष क्षेत्रों में महिलाओं को प्रेरित करती हैं कि वे भी शांति बनाने में लीडर की भूमिका निभा सकती हैं।
उन्होंने कहा कि वे समुदायों में विश्वास पैदा करती हैं और कमजोर वर्गों, खासकर महिलाओं और बच्चों को आशा प्रदान करती हैं।
विल्सन ने जोर देकर कहा कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे लैंगिक हिंसा से निपटने में मदद करती हैं और यह सुनिश्चित करती हैं कि शांति प्रक्रियाएं समाज के सभी वर्गों की जरूरतों और दृष्टिकोणों को प्रतिबिंबित करें।
विल्सन ने अपने भाषण की शुरुआत तमिल अभिवादन “वणक्कम” से की और अंत में धन्यवाद कहा। वे महासभा में प्रतिनिधिमंडल में शामिल होने वाले सांसदों में से एक हैं।
सोमवार की बैठक सुरक्षा परिषद द्वारा एक ऐतिहासिक प्रस्ताव को अपनाए जाने की 25वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित की गई थी, जिसमें संयुक्त राष्ट्र मिशनों में महिलाओं की भूमिका बढ़ाने, उन्हें शांति वार्ता में शामिल करने और हिंसा से उनकी रक्षा करने का आह्वान किया गया था।
विस्लॉन ने कहा कि प्रस्ताव पारित होने से बहुत पहले, भारतीय महिला चिकित्सा अधिकारियों ने 1960 के दशक में कांगो में शांति अभियान में अपनी सेवाएं दी थीं।
उन्होंने कहा कि भारत की शांति स्थापना विरासत को अद्वितीय बनाने वाली बात यह है कि यह उन पहले देशों में से एक था जिसने यह माना कि महिलाएं स्थायी शांति की अपरिहार्य प्रतिनिधि हैं। संयुक्त राष्ट्र की पहली महिला पुलिस इकाई भारत से आई थी जब इसे 2007 में लाइबेरिया में तैनात किया गया था, और इस अग्रणी पहल ने स्थानीय महिलाओं को अपनी राष्ट्रीय पुलिस और सुरक्षा सेवाओं में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने कहा कि नई दिल्ली स्थित संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना केंद्र लिंग-संवेदनशील प्रशिक्षण के लिए एक वैश्विक उत्कृष्टता केंद्र है जो महिला शांति सैनिकों के लिए पाठ्यक्रम संचालित करता है। इस वर्ष की शुरुआत में, भारत ने ग्लोबल साउथ की महिला शांति सैनिकों के लिए अपनी तरह के पहले अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की मेजबानी की।
विल्सन ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर, महिलाओं के नेतृत्व ने समाज को बदल दिया है और 14 लाख से ज्यादा महिलाएं जमीनी स्तर पर प्रतिनिधि चुनी गई हैं।
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आज से तीन दिवसीय भारत दौरे पर रहेगा यूरोपीय संसद के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समिति के सात सदस्यों का प्रतिनिधिमंडल

नई दिल्ली, 27 अक्टूबर: यूरोपीय संसद की अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समिति (आईएनटीए) के सात सदस्यों का एक प्रतिनिधिमंडल 27 अक्टूबर को भारत की यात्रा पर दिल्ली पहुंचेगा। आईएनटीए सदस्यों का यह दौरा 27 से 29 अक्टूबर 2025 तक होगा, जिसमें यूरोपीय संघ और भारत के बीच व्यापार, आर्थिक और निवेश संबंधों पर चर्चा होगी।
वहीं, इस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व भारत के लिए आईएनटीए की स्थायी प्रतिवेदक क्रिस्टीना मैस्ट्रे और एसएंडडी आईएनटीए समन्वयक ब्रैंडो बेनिफी करेंगे।
बता दें, इस मिशन के दौरान, आईएनटीए सदस्य अलग-अलग स्टेकहोल्डरों के साथ बातचीत करेंगे ताकि यह पता लगाया जा सके कि व्यापार वार्ता में क्या-क्या अवसर और चुनौतियां हैं। आईएनटीए सदस्य मंत्रिस्तरीय और संसदीय दोनों स्तरों पर अलग-अलग बैठकें आयोजित करेंगे।
आईएनटीए सदस्य यूरोपीय व्यापार महासंघ और भारतीय उद्योग परिसंघ के साथ बैठक करेंगे, और इसके अलावा सिविल सोसायटी के साथ विशिष्ट बैठकें आयोजित की जाएंगी।
दो सह-अध्यक्षों क्रिस्टीना मैस्ट्रे (एस एंड डी, स्पेन) और ब्रैंडो बेनिफेई (एस एंड डी, इटली) के अलावा, प्रतिनिधिमंडल में जुआन इग्नासियो जोइदो (ईपीपी, स्पेन), वाल्डेमर बुडा (ईसीआर, पोलैंड), बैरी कोवेन (रिन्यू, आयरलैंड), विसेंट मार्जा इबानेज (स्पेन, ग्रीन्स/ईएफए), और भारत के साथ संबंधों के लिए ईपी प्रतिनिधिमंडल की अध्यक्ष एंजेलिका नीबलर (ईपीपी, जर्मनी) शामिल हैं।
इससे पहले 18 से 20 दिसंबर 2023 में एमईपी के प्रतिनिधिमंडलों ने भारत का दौरा किया था। इस प्रतिनिधिमंडल में यूरोपीय संसद की दो समितियों, भारत के साथ संबंधों हेतु प्रतिनिधिमंडल (डी-आईएन) और सुरक्षा और रक्षा संबंधी उप-समिति (एसईडीई) के एमईपी सम्मिलित थे।
दोनों प्रतिनिधिमंडल ने लोकतंत्र, कानून के शासन का पालन, बहुपक्षवाद, नियमों पर आधारित व्यापार और नियमों पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था आदि जैसे साझा मूल्यों पर आधारित भारत-यूरोपीय संघ साझेदारी, भू-राजनीतिक कन्वर्जेन्स, आपूर्ति श्रृंखला सुरक्षा, डिजिटल संवेद्यता, एआई और सामुद्रिक सुरक्षा पर सार्थक चर्चाएं की थीं।
यूरोपीय संसद के सदस्यों के इस दौरे ने भारत-यूरोपीय संघ संबंधों, हमारे साझा संसदीय मूल्यों और आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा सहयोग को गहन बनाने की प्रतिबद्धता को मजबूत बनाया।
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संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्य होने पर गर्व: यूक्रेन

कीव, 24 अक्टूबर: संयुक्त राष्ट्र दिवस पर यूक्रेन के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी करते हुए रूस का घेराव किया। यूक्रेन ने कहा कि उन्हें संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्य होने पर गर्व है।
संयुक्त राष्ट्र सिद्धांतों के 80 वर्ष पूरे होने पर यूक्रेन के विदेश मंत्रालय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर पोस्ट कर कहा कि यूक्रेन को संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्यों में से एक होने पर गर्व है। 1945 में यूक्रेनी प्रतिनिधिमंडल ने सैन फ्रांसिस्को में यूएन चार्टर पर हस्ताक्षर किए और इसकी प्रस्तावना तथा मुख्य उद्देश्यों व सिद्धांतों के प्रारूपण का नेतृत्व किया।
उन्होंने कहा कि यूक्रेन के हस्ताक्षर 50 अन्य संस्थापक देशों के हस्ताक्षरों के साथ मौजूद हैं। वैसे, संयुक्त राष्ट्र चार्टर में रूस के हस्ताक्षर नहीं मिलते, क्योंकि रूस ने कभी इस पर हस्ताक्षर नहीं किए। वास्तव में 1991 तक, यूक्रेन सोवियत संघ के गणराज्यों में से एक बना रहा। तब भी, यूक्रेनी राजनयिकों ने उल्लेखनीय व्यावसायिकता का परिचय दिया। न्यूयॉर्क, जिनेवा और पेरिस स्थित यूक्रेन के मिशन राजनयिकों की पीढ़ियों के लिए प्रशिक्षण स्थल बन गए।
विदेश मंत्रालय ने कहा कि 1991 में स्वतंत्रता बहाली के बाद यूक्रेन के अंतरराष्ट्रीय समुदाय में शीघ्र पुनः एकीकरण में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
बता दें कि द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद 24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन किया गया था। हालांकि, इसकी नींव 1 जनवरी 1942 को रखी गई थी। संयुक्त राष्ट्र संघ को अस्तित्व में लाने का उद्देश्य युद्ध जैसी भयावह त्रासदी को रोकना और विश्व में शांति स्थापित करना था। 1 जनवरी 1942 को 26 देशों ने संयुक्त राष्ट्र की घोषणा पर हस्ताक्षर किया। इसके बाद 26 जून 1945 को सैन फ्रांसिस्को में इसका मसौदा तैयार किया गया। 50 देशों ने मिलकर संयुक्त राष्ट्र संघ के लिए मसौदा तैयार किया और हस्ताक्षर किए।
इसके बाद 24 अक्टूबर 1945 को आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र की स्थापना हुई। भारत भी संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्यों में से एक है। भारत ने 26 जून को संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर किया था।
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