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Wednesday,10-December-2025
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भारत में अब तक देखे गए म्यूटेंट पर असरदार हैं हमारे टीके : विशेषज्ञ

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Randeep-Guleria

भारत के शीर्ष दो कोविड-19 विशेषज्ञों, नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) वी. के. पॉल और एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने कहा कि भारत में अब तक देखे गए म्यूटेंट पर हमारे टीके प्रभावी हैं। कोविड-19 टीकों के बारे में लोगों की विभिन्न शंकाओं को दूर करते हुए, इन विशेषज्ञों ने भारत में उपयोग किए जाने वाले दो टीकों (वैक्सीन) – सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के कोविशील्ड और भारत बायोटेक के कोवैक्सिन के बारे में लोगों की ओर से पूछे जाने वाले विभिन्न सवालों के जवाब दिए।

इन दो मेड इन इंडिया टीकों को इस साल आपातकालीन उपयोग के लिए ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) की मंजूरी मिली, जिसके बाद यहां 16 जनवरी से दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान की शुरूआत हुई।

पॉल और गुलेरिया दोनों ने सोशल मीडिया पर चल रही अफवाहों को झूठी और निराधार करार दिया, जिनमें कहा जा रहा है कि टीके लेने के बाद हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है या टीके लेने के बाद लोग मर जाते हैं। इन्होंने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों और दूरदराज के ब्लॉकों में कुछ लोगों में इस प्रकार की गलत धारणा है।

लोगों द्वारा सामान्य तौर पर पूछे जाने वाले सवाल, जैसे अगर मुझे कोविड संक्रमण हो गया है, तो कितने दिनों के बाद मैं टीका लगवा सकता हूं?

इस पर डॉ. गुलेरिया ने कहा, नवीनतम दिशानिर्देशों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जिस व्यक्ति को कोविड-19 का संक्रमण हुआ है, वह ठीक होने के दिन से तीन महीने बाद टीका लगवा सकता है। ऐसा करने से शरीर को मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में मदद मिलेगी और टीके का असर बेहतर होगा।

यह पूछे जाने पर कि क्या टीका लेने के बाद रक्त का थक्का बनना आम बात है, गुलेरिया ने कहा, यह पहले भी देखा गया है कि सर्जरी के बाद रक्त का थक्का बनना भारतीय आबादी में अमेरिका और यूरोपीय आबादी की तुलना में कम होता है। वैक्सीन प्रेरित थ्रोम्बोसिस या थ्रोम्बोसाइटोपेनिया नाम का यह दुष्प्रभाव भारत में बहुत दुर्लभ है, जो यूरोप की तुलना में बहुत कम अनुपात में पाया जाता है। इसलिए इससे डरने की जरूरत नहीं है। इसके लिए उपचार भी उपलब्ध हैं, जिन्हें जल्दी निदान होने पर अपनाया जा सकता है।

इस सवाल का जवाब देते हुए डॉ. पॉल ने कहा, इस जटिलता के कुछ मामले सामने आए हैं, खासकर एस्ट्रा-जेनेका वैक्सीन के संबंध में। यह जटिलता यूरोप में हुई, जहां यह जोखिम उनकी जीवनशैली, शरीर और आनुवंशिक संरचना के कारण उनकी युवा आबादी में कुछ हद तक मौजूद पायी गई। लेकिन, मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि हमने भारत में इन आंकड़ों की व्यवस्थित रूप से जांच की है और पाया है कि रक्त के थक्के जमने की ऐसी घटनाएं यहां लगभग नगण्य हैं – इतनी नगण्य कि किसी को इसके बारे में चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। यूरोपीय देशों में, ये जटिलताएं हमारे देश की तुलना में लगभग 30 गुना अधिक पाई गई है।

क्या एलर्जी वाले लोगों को टीका लगाया जा सकता है?, इस पर प्रतिक्रिया देते हुए, पॉल ने कहा, अगर किसी को एलर्जी की गंभीर समस्या है, तो डॉक्टरी सलाह के बाद ही कोविड का टीका लगवाना चाहिए। हालांकि, अगर यह केवल मामूली एलर्जी – जैसे सामान्य सर्दी, त्वचा की एलर्जी आदि का सवाल है, तो टीका लेने में संकोच नहीं करना चाहिए।

इस पर डॉ. गुलेरिया ने कहा, एलर्जी की पहले से दवा लेने वालों को इन्हें रोकना नहीं चाहिए, टीका लगवाते समय नियमित रूप से दवा लेते रहना चाहिए। यह भी जानना महत्वपूर्ण है कि टीकाकरण के कारण उत्पन्न होने वाली एलर्जी के प्रबंधन के लिए सभी टीकाकरण स्थलों पर व्यवस्था की गई है। अत: हम सलाह देते हैं कि यदि आपको गंभीर एलर्जी हो, तो भी आप दवा लेते रहें और जाकर टीकाकरण लगवाएं।

मनोरंजन

‘तन्वी: द ग्रेट’ को मिला इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ ऑस्ट्रेलिया में सम्मान, खुशी से झूमे अनुपम खेर

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मुंबई, 10 दिसंबर: हिंदी सिनेमा में 4 दशकों से ज्यादा तक अपनी वर्सटाइल एक्टिंग से दर्शकों के दिलों पर राज करने वाले अभिनेता अनुपम खेर आज भी फिल्मों में सक्रिय हैं।

अभिनेता के लिए ये साल 2025 का साल सबसे बेहतरीन रहा है क्योंकि उनकी फिल्म ‘तन्वी: द ग्रेट’ को सिर्फ भारत में सम्मान और प्यार नहीं मिला है, बल्कि विदेशों में भी फिल्म को पसंद किया जा रहा है। अब अभिनेता की फिल्म को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ ऑस्ट्रेलिया में सम्मान मिला है।

ऑस्ट्रेलिया के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में ‘तन्वी: द ग्रेट’ फिल्म को बेस्ट स्क्रीनप्ले फिल्म के अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है और उससे पहले इसी फिल्म की लीड एक्ट्रेस को शुभांगी दत्त बेस्ट एक्ट्रेस के अवॉर्ड से नवाजा गया। वैश्विक स्तर पर अपनी फिल्म को मिले इतने प्यार और सम्मान के लिए उन्होंने पूरी टीम को बधाई दी है और अपनी खुशी सोशल मीडिया के जरिए फैंस के साथ शेयर की है।

उन्होंने कैप्शन में लिखा, ‘तन्वी: द ग्रेट’ की बड़ी जीत। हाल ही में संपन्न हुए ऑस्ट्रेलिया के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में हमने सर्वश्रेष्ठ पटकथा और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीता। मेरे सह-लेखकों अभिषेक दीक्षित और अंकुर सुमन को उनके समर्पण और प्रतिभा के लिए हार्दिक बधाई और प्रिय शुभांगी दत्त को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीतने के लिए एक बार फिर बधाई।

उन्होंने आगे लिखा, “पूरी टीम ने फिल्म के निर्माण में अपना दिल, मेहनत और आत्मा लगा दी है। ये फिल्म हम सब के लिए बहुत खास है।”

साल 1982 में ‘आगमन’ से फिल्म से डेब्यू करने वाले अनुपम खेर के लिए फिल्म ‘तन्वी: द ग्रेट’ बहुत खास है, क्योंकि इस फिल्म का डायरेक्शन उन्होंने खुद किया है और फिल्म की कहानी भी दिल के बहुत करीब है। फिल्म की कहानी को अभिनेता ने अपनी भांजी की जिंदगी से लिया है, जो ऑटिज्म से पीड़ित है लेकिन बहुत प्रतिभाशाली हैं। वे बहुत अच्छा गाना गाती हैं और उनकी वीडियो को अभिनेता अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर भी करते हैं।

‘तन्वी: द ग्रेट’ को पहले 11 जुलाई को सिनेमाघरों में रिलीज किया गया था। हालांकि बॉक्स ऑफिस पर फिल्म को अपेक्षित सफलता नहीं मिलने से अभिनेता बहुत दुखी हुए थे और उन्होंने कहा था कि अच्छी फिल्मों को दर्शकों तक पहुंचाना बहुत जरूरी है, जिसके बाद फिल्म को 26 सितंबर को रिलीज किया गया। फिल्म को 56वें ​​भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में दिखाया गया और अब फिल्म एक के बाद एक अवॉर्ड भी जीत रही है।

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राजनीति

सीजेआई के खिलाफ ‘मोटिवेटेड’ कैंपेन पर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के 44 पूर्व जजों ने जताई कड़ी आपत्ति

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नई दिल्ली, 10 दिसंबर: देश के 44 पूर्व सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) पर रोहिंग्या प्रवासियों से जुड़ी टिप्पणियों को लेकर चल रहे ‘प्रेरित और भड़काऊ अभियान’ की कड़ी निंदा की है।

न्यायाधीशों ने इस मामले में 5 दिसंबर को जारी ओपन लेटर का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट की प्रतिष्ठा को प्रभावित करने का यह प्रयास स्वीकार्य नहीं है। बता दें कि पत्र में कहा गया था कि 2 दिसंबर की सुनवाई में रोहिंग्या शरणार्थियों पर अमानवीय टिप्पणी हुई।

पूर्व न्यायाधीशों ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया पर तर्कसंगत आलोचना हो सकती है, लेकिन वर्तमान में जो कुछ हो रहा है, वह नियमित अदालत कार्यवाही को पक्षपातपूर्ण रूप में पेश कर न्यायपालिका की वैधता पर सवाल उठाने का प्रयास है। उन्होंने विशेष रूप से बताया कि सीजेआई केवल यह पूछ रहे थे कि कानून के तहत रोहिंग्या के कौन से अधिकार या दर्जे का दावा किया जा रहा है।

पत्र में न्यायाधीशों ने यह भी रेखांकित किया कि कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि भारत में किसी भी व्यक्ति (नागरिक या विदेशी) के साथ यातना, गुमनामी या अमानवीय व्यवहार नहीं किया जा सकता और हर व्यक्ति की गरिमा का सम्मान होना चाहिए। इस बात को नजरअंदाज कर अदालत पर अमानवीयता का आरोप लगाना गंभीर विकृति है।

पूर्व न्यायाधीशों ने रोहिंग्या प्रवासियों की स्थिति और कानूनी परिप्रेक्ष्य स्पष्ट करते हुए कहा कि रोहिंग्या प्रवासी भारतीय कानून के तहत शरणार्थी नहीं हैं। अधिकांश मामलों में उनकी भारत में प्रविष्टि अनियमित या अवैध है। केवल दावा करने से उन्हें कानूनी शरणार्थी दर्जा नहीं मिल सकता। भारत 1951 के यूएन शरणार्थी सम्मेलन और 1967 के प्रोटोकॉल का हिस्सा नहीं है। इसलिए भारत के कर्तव्य उसके संविधान, विदेशी और प्रवास कानूनों और सामान्य मानवाधिकारों से तय होते हैं, न कि किसी अंतरराष्ट्रीय संधि से।

अवैध प्रवासियों द्वारा आधार कार्ड, राशन कार्ड और अन्य पहचान दस्तावेज प्राप्त करना गंभीर चिंता का विषय है। यह सिस्टम की विश्वसनीयता को कमजोर करता है और दस्तावेजी धोखाधड़ी तथा संगठित नेटवर्क की आशंका पैदा करता है।

ऐसे मामलों में कोर्ट-नियंत्रित विशेष जांच दल (एसआईटी) की स्थापना आवश्यक है, जो जांच करे कि अवैध प्रवासियों ने कैसे पहचान और कल्याण दस्तावेज प्राप्त किए, कौन से अधिकारी और मध्यस्थ शामिल हैं और क्या कोई तस्करी या सुरक्षा-संबंधित नेटवर्क सक्रिय हैं।

रोहिंग्या की स्थिति म्यांमार में भी जटिल है, जहां उन्हें अवैध प्रवासी माना जाता है और नागरिकता का विवाद है। इस पृष्ठभूमि में भारतीय अदालतों को कानूनी श्रेणियों के आधार पर निर्णय लेने की आवश्यकता है, न कि राजनीतिक नारे या लेबल के आधार पर।

पूर्व न्यायाधीशों ने यह स्पष्ट किया कि न्यायपालिका का हस्तक्षेप संवैधानिक सीमाओं के भीतर है और यह देश की अखंडता बनाए रखते हुए मानव गरिमा की रक्षा कर रहा है।

संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में देश के कई वरिष्ठ और प्रतिष्ठित पूर्व न्यायाधीश शामिल हैं। इनमें सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस अनिल दवे, जस्टिस हेमंत गुप्ता, राजस्थान हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अनिल देव सिंह, दिल्ली एवं जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीसी पटेल और पटना हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस पीबी बाजंथरी समेत 44 प्रमुख पूर्व जजों के नाम शामिल हैं।

पूर्व न्यायाधीशों ने कहा, “भारत का संवैधानिक क्रम मानवता और सतर्कता दोनों की मांग करता है। न्यायपालिका ने मानव गरिमा की रक्षा करते हुए राष्ट्रीय अखंडता बनाए रखी है और इसे सकारात्मक समर्थन मिलना चाहिए, न कि नकारात्मक प्रचार।”

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अंतरराष्ट्रीय समाचार

अमेरिका में ट्रंप को नहीं मिल रहा आम जनता का साथ! बढ़ती महंगाई को लेकर लोगों में असंतोष

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न्यूयॉर्क, 10 दिसंबर: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर से टैरिफ को लेकर दिए हालिया बयानों से हलचल मचा दी है। पूरी दुनिया में टैरिफ का दबाव बनाने वाले ट्रंप अब अपने ही देश में बढ़ती महंगाई को लेकर घिरते नजर आ रहे हैं।

दरअसल, अमेरिकी राष्ट्रपति घरेलू चुनाव को देखते हुए आम जनता के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में लग गए हैं। ट्रंप भले ही टैरिफ के जरिए दूसरे देशों पर दबाव बनाने की कोशिशों में किसी हद तक कामयाब रहे हों, लेकिन अमेरिकी जमीन पर जनता में उनके फैसलों को लेकर असंतोष साफ जाहिर है।

मंगलवार को पेंसिलवेनिया के एक कसीनो रिजॉर्ट में ट्रंप एक रैली में शामिल हुए। इस दौरान वह एक बार फिर से अपने पुराने दावों को दोहराते नजर आए। रैली में मौजूद लोग उम्मीद कर रहे थे कि ट्रंप बढ़ती महंगाई से राहत के लिए कोई खास ऐलान कर सकते हैं। उन्होंने पेट्रोल की कम कीमतों, रिकॉर्ड निवेश और नौकरियां बढ़ाने के अपने पुराने दावों को ही दोहराया।

इस दौरान उन्होंने डेमोक्रेट्स और पूर्व की बाइडेन सरकार पर तंज कसा। इसके साथ ही ट्रंप ने ट्रांसजेंडर स्पोर्ट्स, अप्रवास और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे मुद्दों पर फिर से बयानबाजी करते नजर आए। उन्होंने कहा कि ताकत के जरिए शांति लाना उनका लक्ष्य है, और दावा किया कि टैरिफ को लेकर उनके फैसले सफल रहे। अप्रवासी के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि बाइडेन के नेतृत्व में कई खतरनाक अवैध प्रवासी देश में आ गए।

विशेषज्ञों का मानना है कि घरेलू मुद्दों की अनदेखी को लेकर रिपब्लिकन पार्टी के भीतर भी चिंता बढ़ गई है। पार्टी सांसद टोनी गोंजालेस ने चेतावनी दी कि अगर रिपब्लिकन आर्थिक मुद्दों पर ध्यान नहीं देंगे, तो यह उनके लिए नुकसानदेह साबित होगा।

हालांकि, जनता के मुद्दों से जुड़ने के लिए ट्रंप ने बढ़ती महंगाई को लेकर ज्यादा कुछ तो नहीं कहा, लेकिन बिना किसी नीति के ‘अमेरिका को फिर से किफायती बनाने’ का नारा दिया।

बता दें, डेमोक्रेट्स हाल के चुनावों में महंगाई और घरों की कीमतों को मुख्य मुद्दा बनाकर आगे बढ़ रहे हैं। कुछ हालिया सर्वे में ट्रंप के लिए मुश्किलें नजर आ रही हैं। कई सर्वे में उनकी अप्रूवल रेटिंग 44 फीसदी पर ही सिमट कर रह गई। अधिकतर लोग ट्रंप के फैसलों से नाखुश नजर आ रहे हैं; उनकी नजर में अमेरिका गलत दिशा में जा रहा है।

वहीं ट्रंप जनता को लुभाने की तमाम कोशिशें कर रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ने 2,000 डॉलर के “टैरिफ डिविडेंड चेक” और नवजात बच्चों के लिए “ट्रंप अकाउंट” का वादा किया है। इसके अलावा, किसानों को टैरिफ वॉर के नुकसान की भरपाई के लिए 12 अरब डॉलर देने की घोषणा की है।

अमेरिका में अब भी महंगाई 3 फीसदी के आसपास है। हालांकि, ट्रंप सरकार इसे तेज गिरावट नहीं मान रही है। ट्रंप इसे बाइडेन के दौर की 19 फीसदी महंगाई का प्रभाव बता रहे हैं।

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