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Wednesday,13-August-2025
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भारत में 90 प्रतिशत से अधिक एचएएम सड़क परियोजनाएं स्थिर गति से बढ़ रहीं आगे : क्रिसिल

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नई दिल्ली, 18 दिसंबर। भारत में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय (एमओआरटीएच) द्वारा प्रदान की गई हाइब्रिड एन्युइटी मॉडल (एचएएम) के तहत सड़क परियोजनाएं स्थिर गति से आगे बढ़ रही हैं। बुधवार को आई एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 90 प्रतिशत से अधिक एचएएम सड़क परियोजनाएं स्थिर गति से आगे बढ़ रहीं हैं।

क्रिसिल रेटिंग्स के विश्लेषण के अनुसार, समय पर काम को आगे बढ़ाना और ‘कंफर्टेबल डेट प्रोटेक्शन मीट्रिक’ इन परियोजनाओं के क्रेडिट जोखिम प्रोफाइल को सपोर्ट करेंगे।

पिछले पांच वित्त वर्षों में, 2024 को छोड़कर, एमओटीएच द्वारा प्रदान की गई लगभग एक चौथाई परियोजनाएं एचएएम के तहत थीं, जो इस क्षेत्र में मॉडल के महत्व को दर्शाती हैं।

इसकी सफलता का श्रेय अपॉइंट की गई तारीख की घोषणा से पहले कम से कम 80 प्रतिशत राइट-ऑफ-वे (आरओडब्ल्यू) उपलब्धता की आवश्यकता, जहां आरओडब्ल्यू प्राप्त नहीं हुआ है, वहां परियोजना की लंबाई को डी-स्कोपिंग और डी-लिंकिंग और कैश फ्लो के सूचकांक के आधार पर मुद्रास्फीति और ब्याज दर हेजिंग जैसे प्रावधानों को दिया जा सकता है।

क्रिसिल रेटिंग्स के निदेशक आनंद कुलकर्णी ने कहा, “हमारा अनुभव है कि लगभग 66 प्रतिशत निर्माणाधीन प्रोजेक्ट लेंथ तय समय पर या उससे पहले पूरी होने की उम्मीद है। अन्य 26 प्रतिशत या तो मामूली रूप से विलंबित हैं या समय सीमा विस्तार के लिए अप्रूवल की प्रतीक्षा कर रहे हैं।”

उन्होंने कहा कि इससे निर्माणाधीन प्रोजेक्ट लेंथ का केवल 8 प्रतिशत ही सामग्री निष्पादन से संबंधित चुनौतियों का सामना कर रहा है।

एक बार पूरा हो जाने पर, एचएएम परियोजनाएं आमतौर पर केंद्रीय काउंटपार्टी से स्थिर नकदी प्रवाह की समय पर प्राप्ति जैसे लाभों के कारण मजबूत क्रेडिट प्रोफाइल को दिखाती हैं।

क्रिसिल रेटिंग्स की एसोसिएट डायरेक्टर साइना कथावाला ने कहा, “इसके अलावा, क्रिसिल द्वारा रेटिंग प्राप्त पोर्टफोलियो के ‘कंफर्टेबल डेट प्रोटेक्शन मीट्रिक’, जैसा कि 1.3-1.4 गुना के अनुमानित औसत ऋण सेवा कवरेज अनुपात में दिखाई देता है, इन परियोजनाओं के क्रेडिट जोखिम प्रोफाइल को सपोर्ट करते हैं।”

रिपोर्ट के अनुसार, क्रेडिट जोखिम प्रोफाइल अब तक स्थिर बनी हुई है, लेकिन एचएएम की बढ़ती लोकप्रियता और बोली मानदंडों में ढील के साथ, पिछले चार वित्त वर्षों में बोलीदाताओं की संख्या दोगुनी से अधिक हो गई है। –आईएएनएस एसकेटी/सीबीटी

व्यापार

आरबीआई 2025 की चौथी तिमाही में रेपो रेट में कर सकता है 25 आधार अंक की कटौती: एचएसबीसी

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नई दिल्ली, 13 अगस्त। जून से जारी हाई-फ्रीक्वेंसी डेटा में अगर नरमी कायम रहती है तो भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) इस वर्ष की चौथी तिमाही में रेपो रेट में 25 आधार अंक की कटौती कर सकता है। यह जानकारी बुधवार को जारी रिपोर्ट में दी गई।

एचएसबीसी ग्लोबल इन्वेस्टमेंट रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार,अगर हाई-फ्रीक्वेंसी इंटीकेटर्स आने वाले महीनों में कमजोर रहते हैं तो आरबीआई विकास दर का अनुमान घटा सकता है। ऐसे में केंद्रीय बैंक द्वारा 2025 की चौथी तिमाही में रेपो रेट को 0.25 प्रतिशत घटाकर 5.25 प्रतिशत किया जा सकता है।

आरबीआई की ओर से अगस्त की मौद्रिक नीति में रेपो रेट को 5.5 प्रतिशत पर रख गया था। इससे पहले जून की मौद्रिक नीति में केंद्रीय बैंक ने रेपो रेट में 0.50 प्रतिशत की कटौती की थी।

जुलाई में खुदरा महंगाई दर सालाना आधार पर 1.55 प्रतिशत रही है। यह महंगाई का आठ वर्ष का निचला स्तर था। खाद्य उत्पादों की कीमतों में मामूली बढ़ोतरी है, लेकिन ऊर्जा की कीमतों और मुख्य महंगाई दर में नरमी जारी है।

रिपोर्ट में बताया गया कि वित्त वर्ष 26 में महंगाई औसत 3.2 प्रतिशत पर रहने की उम्मीद है। इसकी वजह कम आधार होना, अनाज का अच्छा भंडार, खरीफ फसलों की अच्छी बुआई और कमोडिटी की कीमतों का कमजोर होना है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सब्जियों की कीमतें, जो पहले छह महीने तक अवस्फीति में थीं, उम्मीद से ज्यादा तेजी से बढ़ी हैं, जिसके कारण आंकड़े अप्रत्याशित रहे।

सब्जियों को छोड़कर, मुख्य महंगाई दर घटकर 3.6 प्रतिशत रह गई, जो पहले 3.8 प्रतिशत थी।

खाद्य पदार्थों की कीमतें छह महीने बाद अपस्फीति से उबरीं, जिनमें 0.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 9.7 प्रतिशत भार वाले भारी अनाजों में लगातार दूसरे महीने गिरावट जारी रही।

रिपोर्ट में आगे कहा गया है, “दालों, चीनी और फलों की गिरती कीमतों ने खाद्य तेल, अंडे, मांस, मछली और सब्जियों की कीमतों में वृद्धि की आंशिक रूप से भरपाई कर दी। वार्षिक महंगाई लाल निशान में रही, जिससे मुख्य आंकड़े आठ साल के निचले स्तर पर आ गए।”

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राष्ट्रीय समाचार

प्रधानमंत्री जन धन योजना ने भारत के डिजिटल फाइनेंशियल इकोसिस्टम की रखी नींव

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नई दिल्ली, 13 अगस्त। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता तुहिन ए सिन्हा के अनुसार, पिछले एक दशक में प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) ने भारत में एक परिवर्तनकारी प्रभाव डाला है, जिसने महिलाओं, ग्रामीण और हाशिए पर रहने वाली आबादी के लिए वित्तीय समावेशन को एक नई परिभाषा दी है।

एक मीडिया आर्टिकल में, सिन्हा ने बताया कि कैसे पीएमजेडीवाई भारत के सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन की आधारशिला बन गई है और सभी के लिए बैंकिंग तक पहुंच में क्रांतिकारी बदलाव लाकर एक वैश्विक मानक स्थापित किया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अगस्त 2014 में शुरू की गई, पीएमजेडीवाई योजना का उद्देश्य बैंकिंग सेवाओं से वंचित प्रत्येक परिवार को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में लाना है।

सिन्हा ने कहा कि पिछले 10 वर्षों में योजना ने निर्बाध सरकारी हस्तांतरण को संभव बनाया है, हाशिए पर रहने वाले समुदायों को सशक्त बनाया है और भारत के डिजिटल फाइनेंशियल इकोसिस्टम की नींव रखी है।

उन्होंने आगे कहा, “इस पहल का सकारात्मक प्रभाव शुरुआती उम्मीदों से कहीं आगे तक पहुंचा है और वित्तीय समावेशन के मामले में दुनिया के लिए एक उपयुक्त मानक स्थापित किया है।”

पीएमजेडीवाई के सार्वभौमिक बैंकिंग पहुंच प्रदान करने के लक्ष्य को साहसिक बताते हुए, उन्होंने योजना के डिज़ाइन, जैसे शून्य-शेष खाते, न्यूनतम कागजी कार्रवाई और दुर्घटना बीमा के साथ मुफ्त रुपे डेबिट कार्ड को गरीब लोगों तक पहुंच बढ़ाने का श्रेय दिया।

पीएमजेडीवाई ने लैंगिक और क्षेत्रीय असमानताओं को पाटा है और आधार और मोबाइल नंबरों के साथ इसके सहमति-आधारित इंटीग्रेशन ने वित्तीय पहुंच के लिए एक मजबूत ढांचा तैयार किया है।

इस मॉडल ने अफ्रीका और दक्षिण एशिया के देशों को भारत के वैश्विक डीपीआई रिपॉजिटरी के माध्यम से इसी तरह के मॉडल अपनाने के लिए भी प्रेरित किया है।

सिन्हा ने कहा, “पिछले 10 वर्षों में पीएमजेडीवाई का प्रदर्शन इसके परिवर्तनकारी प्रभाव का प्रमाण है।”

सिन्हा ने कहा कि अगस्त 2015 में 17.9 करोड़ पीएमजेडीवाई खातों से, अगस्त 2023 तक यह संख्या तिगुनी होकर 50.14 करोड़ हो गई। केवल 8.2 प्रतिशत खाते शून्य-शेष राशि वाले हैं, जो सक्रिय उपयोग को दर्शाता है और अगस्त 2022 तक 81.2 प्रतिशत चालू रहेंगे।

2015 और 2022 के बीच जमा राशि में भी 7.6 गुना वृद्धि हुई है, जो बढ़ी हुई वित्तीय भागीदारी को दर्शाती है।

इसी प्रकार, रुपे कार्ड और यूपीआई के कारण, डिजिटल लेनदेन में भी भारी वृद्धि हुई है, जो कि वित्त वर्ष 2017-18 में 1,471 करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2022-23 तक 11,394 करोड़ हो गया।

पीओएस और ई-कॉमर्स पर रुपे कार्ड से लेनदेन वित्त वर्ष 2017-18 के 67 करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2022-23 में 126 करोड़ हो गया, जबकि इसी अवधि में यूपीआई लेनदेन 92 करोड़ से बढ़कर 8,371 करोड़ हो गया।

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राष्ट्रीय समाचार

भारत-यूके सीईटीए से भारत के खनिज क्षेत्र को होगा लाभ

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नई दिल्ली, 13 अगस्त। खान मंत्रालय के अनुसार, भारत-ब्रिटेन व्यापक आर्थिक एवं व्यापार समझौता (सीईटीए) घरेलू खनिज क्षेत्र के लिए लाभकारी सिद्ध होगा।

खान मंत्रालय के सचिव वी.एल. कांता राव ने एफटीए भागीदार देश में बेहतर बाजार पहुंच और प्रतिस्पर्धात्मकता के संदर्भ में भारतीय खनिज क्षेत्र, विशेष रूप से एल्युमीनियम उद्योग के लिए अवसरों पर प्रकाश डाला।

सीईटीए प्रावधानों का बेहतर उपयोग करने के लिए उन्होंने रोड शो के माध्यम से ब्रिटेन में उत्पाद की मांग को समझने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने दोनों देशों के बीच आरएंडडी सहयोग के अवसरों का भी उल्लेख किया।

खान मंत्रालय ने भारत-ब्रिटेन सीईटीए से उत्पन्न होने वाले संभावित लाभों और अवसरों पर चर्चा करने हेतु भारतीय खनिज उद्योग को एक साथ लाने के उद्देश्य से एक वेबिनार का आयोजन किया।

इस वेबिनार में उद्योग जगत के 230 से अधिक प्रतिभागी शामिल हुए।

एल्यूमीनियम एसोसिएशन ऑफ इंडिया की ओर से वेदांता समूह के सीईओ (एल्यूमीनियम) राजीव कुमार ने भारत-यूके सीईटीए के बाद भारतीय एल्यूमीनियम उद्योग के लिए अवसरों पर एक प्रस्तुति दी।

नाल्को के सीएमडी बी.पी. सिंह, बाल्को के सीईओ राजेश कुमार, एफआईएमआई के डीजी बी.के. भाटिया और हिंडाल्को, एएसएमए तथा एमआरएआई के अन्य उद्योगपतियों ने अपने वक्तव्यों में इस व्यापार समझौते का स्वागत किया और उन तरीकों पर प्रकाश डाला, जिनसे भारतीय खनिज उद्योग, विशेष रूप से प्राथमिक और माध्यमिक एल्यूमीनियम क्षेत्र, यूके के बाजार में गति प्राप्त कर सकता है।

जेएनएआरडीडीसी के निदेशक डॉ. अनुपम अग्निहोत्री ने इस बारे में जानकारी साझा की कि अनुसंधान एवं विकास में संस्थागत सहयोग को कैसे आगे बढ़ाया जा सकता है।

भारत-यूके समझौते के तहत, भारत 90 प्रतिशत ब्रिटिश उत्पादों पर शुल्क में कटौती करेगा, जबकि यूके 99 प्रतिशत भारतीय निर्यात पर शुल्क कम करेगा।

विभिन्न क्षेत्रों में टैरिफ लाइनों और नियामक बाधाओं में इस महत्वपूर्ण ढील का उद्देश्य बाजार तक पहुंच बढ़ाना और दोनों पक्षों के व्यवसायों की लागत कम करना है।

भारतीय उपभोक्ताओं के लिए इस समझौते से स्कॉच व्हिस्की, जिन, लग्जरी कार, सौंदर्य प्रसाधनों और चिकित्सा उपकरणों जैसी आयातित वस्तुओं की कीमतें कम होंगी।

भारतीय निर्यातकों, विशेष रूप से कपड़ा और चमड़ा क्षेत्र के निर्यातकों को शून्य शुल्क से लाभ होगा, जिससे बांग्लादेश और कंबोडिया जैसे देशों के मुकाबले उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी।

यह समझौता यह भी सुनिश्चित करता है कि भारतीय कृषि निर्यात को जर्मनी जैसे प्रमुख यूरोपीय निर्यातकों के साथ टैरिफ समानता प्राप्त हो, जिससे भारतीय किसानों को काफी लाभ होने की उम्मीद है।

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