राष्ट्रीय समाचार
महाराष्ट्र : पुणे में जीबीएस के मामले बढ़े, 3 की मौत

मुंबई, 31 जनवरी। महाराष्ट्र में गिलियन बैरे सिंड्रोम का प्रकोप लगातार बढ़ता जा रहा है। पुणे में जीबीएस के बढ़ते मामलों को लेकर स्वास्थ्य महकमा अलर्ट मोड में है। वर्तमान स्थिति और मरीजों की संख्या को लेकर विभाग ने कुछ आंकड़े भी जारी किए हैं।
महाराष्ट्र राज्य स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, 30 जनवरी तक गिलियन बेरे सिंड्रोम (जीबीएस) के 130 संदिग्ध मामलों की पहचान की गई है। इनमें से 73 मामलों में जीबीएस की पुष्टि हो चुकी है। 3 मरीजों की मौत हो चुकी है।
इन प्रभावित मरीजों में से 25 पुणे नगर निगम क्षेत्र से, 74 नए जोड़े गए गांवों से, 13 पिंपरी चिंचवड़ नगर निगम से, 9 पुणे ग्रामीण क्षेत्र से और 9 अन्य जिलों से हैं।
वर्तमान में 20 मरीजों की हालत गंभीर है और उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया है। स्वास्थ्य विभाग मरीजों की देखभाल में जुटा है और स्थिति पर नजर रखी जा रही है।
इससे पहले 29 जनवरी को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने प्रशासन से मरीजों के इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों में विशेष व्यवस्था करने को कहा था।
कैबिनेट बैठक में जनस्वास्थ्य विभाग द्वारा दिए गए प्रेजेंटेशन के दौरान उन्होंने जीबीएस के बारे में मौजूदा जमीनी स्तर की स्थिति की समीक्षा की थी।
मुख्यमंत्री कार्यालय ने एक बयान में कहा था कि जीबीएस के मरीजों का इलाज किया जा रहा है, लेकिन उन्होंने निर्देश दिया है कि मरीजों को उचित इलाज मिले, इसके लिए सरकारी अस्पतालों में विशेष व्यवस्था की जाए। इस बीमारी का इलाज राज्य स्वास्थ्य बीमा योजना महात्मा ज्योतिबा फुले जन आरोग्य योजना में शामिल है। अगर कोई और प्रक्रिया की जरूरत है, तो वह जनस्वास्थ्य विभाग द्वारा की जानी चाहिए।
वहीं, उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने कहा था कि प्रशासन को पहले ही निर्देश जारी किए जा चुके हैं कि पुणे शहर के मरीजों का इलाज पुणे नगर निगम के कमला नेहरू अस्पताल और पिंपरी चिंचवड़ नगर निगम के यशवंतराव चव्हाण मेमोरियल अस्पताल में किया जाए।
राज्य के स्वास्थ्य मंत्री प्रकाश अबितकर ने स्पष्ट किया था कि जीबीएस एक दुर्लभ बीमारी है और यह संक्रामक नहीं है क्योंकि यह कम प्रतिरक्षा के कारण होती है।
राष्ट्रीय समाचार
वक्फ परिषद के गठन में हिंदू सदस्यों की भूमिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से स्पष्टीकरण मांगा, गुरुवार को फिर सुनवाई

नई दिल्ली, 16 अप्रैल। वक्फ (संशोधन) अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को महत्वपूर्ण सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की पीठ ने मुस्लिम पक्ष और संशोधन समर्थक दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं। सुनवाई के दौरान विभिन्न संशोधित धाराओं जैसे कि धारा 3, 9, 14, 36 और 83 पर विशेष चर्चा हुई।
मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ताओं ने दलील दी कि इन संशोधनों से उनके संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। विशेष रूप से संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 में मिले धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों का हनन हुआ है। उनका कहना था कि संशोधन उनके धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करता है।
वहीं, केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल और अधिनियम के समर्थकों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिलाया कि वक्फ अधिनियम में किए गए संशोधन पूरी तरह संविधान सम्मत हैं और इनमें मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की कोई बात नहीं है।
सुनवाई के दौरान माननीय न्यायालय ने अपने प्रारंभिक अवलोकन में यह कहा कि अधिकांश संशोधन संविधान के अनुरूप प्रतीत होते हैं। हालांकि, न्यायालय ने ‘यूजर’ की परिभाषा पर स्पष्टता मांगी है। इसके अलावा, वक्फ परिषद के गठन में हिंदू सदस्यों की भूमिका को लेकर भी कोर्ट ने केंद्र सरकार से स्पष्टीकरण की मांग की है।
कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल और हिंदू पक्ष के अधिवक्ताओं से इन दोनों मुद्दों पर विशेष रूप से सहायता और स्पष्टीकरण देने को कहा है। अब इस मामले की अगली सुनवाई गुरुवार दोपहर 2 बजे होगी।
इससे पहले मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष इस अहम मामले में वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने अपनी दलीलें रखनी शुरू कीं। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने बहस की शुरुआत की, जिसके बाद अभिषेक मनु सिंघवी ने अपनी दलीलें पेश कीं।
अधिवक्ता सिंघवी ने कोर्ट के समक्ष कहा कि देशभर में करीब आठ लाख वक्फ संपत्तियां हैं, जिनमें से चार लाख से अधिक संपत्तियां ‘वक्फ बाई यूजर’ के तौर पर दर्ज हैं। उन्होंने इस बात को लेकर चिंता जताई कि वक्फ अधिनियम में किए गए संशोधन के बाद इन संपत्तियों पर खतरा उत्पन्न हो गया है।
सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा कि जब वे दिल्ली हाईकोर्ट में थे, तब उन्हें बताया गया था कि वह जमीन वक्फ संपत्ति है। उन्होंने कहा, “हमें गलत मत समझिए, हम यह नहीं कह रहे हैं कि सभी वक्फ बाई यूजर संपत्तियां गलत हैं।”
इसके साथ ही बुधवार को दोनों पक्षों के बीच बहस जारी रही और सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दो बजे फिर से सुनवाई का समय दिया है।
राष्ट्रीय समाचार
वक्फ पर सर्वोच्च न्यायालय में बहस, सीजेआई बोले- आर्टिकल 26 धर्मनिरपेक्ष, यह सभी पर लागू

suprim court
नई दिल्ली, 16 अप्रैल। वक्फ कानून को लेकर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष इस अहम मामले में वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने अपनी दलीलें रखनी शुरू कीं। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने बहस की शुरुआत की, जिसके बाद अभिषेक मनु सिंघवी ने अपनी दलीलें पेश कीं।
सिब्बल ने अनुच्छेद 26 का जिक्र किया। फिर कहा अगर मुझे वक्फ बनाना है तो मुझे सबूत देना होगा कि मैं 5 साल से इस्लाम का पालन कर रहा हूं, अगर में मुस्लिम ही जन्मा हूं तो मैं ऐसा क्यों करूंगा? मेरा पर्सनल लॉ यहां पर लागू होगा। अगर वक्फ बनाने वाला कागजात देता है तो वक्फ कायम रहेगा। इस पर सीजीआई ने कहा अनुच्छेद 26 धर्मनिरपेक्ष है और ये सभी समुदायों पर लागू होता है।
वहीं, अधिवक्ता सिंघवी ने कोर्ट के समक्ष कहा कि देशभर में करीब आठ लाख वक्फ संपत्तियां हैं, जिनमें से चार लाख से अधिक संपत्तियां ‘वक्फ बाई यूजर’ के तौर पर दर्ज हैं। उन्होंने इस बात को लेकर चिंता जताई कि वक्फ अधिनियम में किए गए संशोधन के बाद इन संपत्तियों पर खतरा उत्पन्न हो गया है।
सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा कि जब वे दिल्ली हाईकोर्ट में थे, तब उन्हें बताया गया था कि वह जमीन वक्फ संपत्ति है। उन्होंने कहा, “हमें गलत मत समझिए, हम यह नहीं कह रहे हैं कि सभी वक्फ बाई यूजर संपत्तियां गलत हैं।”
बहस के दौरान सिंघवी ने यह भी कहा कि उन्हें यह तक सुनने में आया है कि संसद भवन की जमीन भी वक्फ की है। उन्होंने कोर्ट से पूछा कि क्या अयोध्या केस में जो फैसले दिए गए, वे इस मामले में लागू नहीं होते? उन्होंने संशोधित वक्फ अधिनियम पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की और कहा कि जब तक इस पर अंतिम निर्णय नहीं आता, तब तक संशोधन लागू नहीं किया जाना चाहिए।
इस बीच, अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने भी कहा कि अधिनियम की धारा 3(आर) के तीन पहलुओं पर ध्यान देना जरूरी है। खासकर इस बात पर कि ‘इस्लाम का पालन करना’ यदि आवश्यक धार्मिक अभ्यास माना जाता है, तो इसका प्रभाव नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर भी पड़ सकता है। अहमदी ने कहा कि यह अस्पष्टता पैदा करता है ।
राजनीति
लोगों को जोड़ने वाली कर्म की राजनीति से ही सभी की भलाई संभव : मायावती

लखनऊ, 16 अप्रैल। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अध्यक्ष मायावती ने बुधवार को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्य में पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों और जिला अध्यक्षों के साथ अहम बैठक की। इस बैठक में दोनों राज्यों में पार्टी संगठन की समीक्षा की गई।
बैठक में बसपा प्रमुख मायावती ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि डबल इंजन की भाजपा सरकार सर्वसमाज के करोड़ों गरीब बहुजनों के समुचित हित, कल्याण एवं विकास के हिसाब से कार्य न करके, सपा सरकार की तरह ही, केवल कुछ क्षेत्र व समूह विशेष के लोगों के लिए ही समर्पित है और वैसा ही दिखना भी चाहती है, जिससे यूपी का बहु-अपेक्षित व अति-प्रतीक्षित विकास प्रभावित हो रहा है। जबकि, बसपा की सभी चारों सरकारों में सर्वसमाज को न्याय दिलाने और विकास में उचित भागीदार बनाने के साथ-साथ कानून द्वारा कानून का राज सख्ती से स्थापित करके खासकर करोड़ों दलितों, पिछड़ों, महिलाओं, किसानों और बेरोजगारों आदि अन्य उपेक्षितों के हितों की रक्षा, सुरक्षा व उन्हें न्याय दिलाने पर विशेष बल दिया गया था, जिससे यहां हर तरफ अमन चैन का माहौल था। इसलिए यूपी और उत्तराखंड भाजपा सरकार को भी धर्म को कर्म के बजाय कर्म को धर्म मानकर कार्य करने का सही संवैधानिक दायित्व निभाना जरूरी है, जिसमें ही जन व देशहित पूरी तरह से निहित है।
उन्होंने कहा कि वैसे तो बहुजनों में भी खासकर दलित समाज के वोटों के स्वार्थ की खातिर बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर को उनकी जयंती आदि पर याद करने की होड़ सी लगी रही है, किंतु ऐसे समय में भी उनकी प्रतिमाओं का अनादर व उनके अनुयायियों को प्रताड़ित करने और हत्या आदि की वारदातें यह साबित करती हैं कि इन बीएसपी विरोधी पार्टियों में बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर के प्रति आदर-सम्मान, निष्ठा व ईमानदारी राजनीति से प्रेरित छलावा है।
बैठक में “ट्रंप टैरिफ गेम” को लेकर पूरी दुनिया में मची आर्थिक खलबली और उथलपुथल का संज्ञान लेते हुए बसपा प्रमुख मायावती ने कहा कि दुनिया की सबसे विशाल आबादी वाला विकासशील देश होने के नाते भारत के करोड़ों गरीब व पिछड़े बहुजनों की महंगाई, गरीबी व बेरोजगारी आदि की विशेष समस्याएं व चिंताएं हैं, जिसका सरकार को अपनी नीति बनाते समय जरूर खास ध्यान रखना चाहिए। इसके साथ ही, ऐसे अकस्मात आए नए आर्थिक चुनौतियों का सामना करते समय भारत को अपने आत्म-सम्मान पर किसी प्रकार की कोई आंच नहीं आने देना चाहिए, यही सरकार से जन अपेक्षा है।
उन्होंने आगे कहा कि देश व खासकर उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड राज्य में भी द्वेष व विभाजन की संकीर्ण राजनीति खत्म होनी चाहिए तथा लोगों को जोड़ने वाली कर्म की राजनीति के जरिए जन व देशहित में कार्य करना जरूरी है।
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