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भारत को तम्बाकू के उपयोग में कटौती के लिए जागरूकता, मजबूत नीतियों का निर्माण करना जरूरी : शीर्ष वैश्विक विशेषज्ञ

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Bejon-Misra

प्रश्न : भारत को विश्व में तंबाकू उत्पादों का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता कहा जाता है। भारत में तंबाकू नियंत्रण के मौजूदा उपायों को कैसे मजबूत किया जा सकता है? उत्तर : भारत तंबाकू का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता और उत्पादक है। देश में विभिन्न प्रकार के तंबाकू उत्पाद बहुत कम कीमत पर उपलब्ध हैं। भारत में तम्बाकू के उपयोग का सबसे प्रचलित रूप धुआं रहित तम्बाकू है और आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले उत्पाद खैनी, गुटखा, तम्बाकू के साथ सुपारी और जर्दा हैं। तम्बाकू के सामान्य धूम्रपान रूपों में बीड़ी, सिगरेट और हुक्का का उपयोग किया जाता है। कैंसर, फेफड़े की बीमारी, हृदय रोग और स्ट्रोक सहित कई पुरानी बीमारियों के लिए तम्बाकू का उपयोग एक प्रमुख जोखिम कारक है। यह भारत में मृत्यु और बीमारी के प्रमुख कारणों में से एक है और हर साल लगभग 1.35 मिलियन मौतों का कारण है।

ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे इंडिया, 2016-17 के अनुसार, भारत में लगभग 267 मिलियन वयस्क (15 वर्ष और उससे अधिक) (सभी वयस्कों का 29 प्रतिशत) तंबाकू के उपयोगकर्ता हैं। इसलिए, तंबाकू का उपयोग भारत के लिए एक बड़ा स्वास्थ्य खतरा है।

ऐतिहासिक रूप से, भारत ने वैश्विक तम्बाकू नियंत्रण संधियों का अनुसमर्थन करना शुरू किया और स्वास्थ्य पर तम्बाकू सेवन के संभावित नुकसान की वैधानिक चेतावनी प्रदान कर तम्बाकू के विनियमन की शुरुआत की। तम्बाकू उपभोग के अधिक नुकसान के साक्ष्य सामने आने के साथ, सरकारों ने धूम्रपान और गैर-धूम्रपान स्थानों को विनियमित करने और तम्बाकू उत्पादों के विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाने जैसे कड़े कदम उठाए।

इसके अलावा, तंबाकू से निकलने वाले धुंए के प्रभाव के बारे में जागरूकता के साथ, तम्बाकू उत्पादों को विनियमित करने के लिए ²ष्टिकोण अधिक सशक्त हो गया (उदाहरण के लिए, सिगरेट पैक पर स्वास्थ्य प्रभावों की ग्राफिक इमेजिस को अनिवार्य करना और सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर प्रतिबंध लगाना)। भारत में क्षेत्रीय कानून- सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद (व्यापार और वाणिज्य, उत्पादन, आपूर्ति और वितरण के विज्ञापन और विनियमन का निषेध) अधिनियम, 2003 (सीओटीपीए) के प्रावधानों को सख्ती से लागू कर भारत में वर्तमान तंबाकू नियंत्रण उपायों को मजबूत किया जा सकता है, जो सीओटीपीए की अनुसूची में वर्णित किसी भी रूप में तम्बाकू युक्त सभी उत्पादों पर लागू है।

सीओटीपीए, सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पादों के विज्ञापन को प्रतिबंधित करने और व्यापार और वाणिज्य के विनियमन, और उत्पादन, आपूर्ति और वितरण, और उससे जुड़े या प्रासंगिक मामलों के लिए प्रदान करने के उद्देश्य से अधिनियमित किया गया था।

भारत को उच्च करों जैसे आर्थिक प्रोत्साहनों का उपयोग जारी रखना चाहिए, धूम्रपान के नुकसान के बारे में जागरूकता को आक्रामक रूप से बढ़ावा देना चाहिए और उन उपयोगकर्ताओं के लिए अधिक परामर्श सुविधाएं/हेल्पलाइन/क्विटलाइन स्थापित करना चाहिए जो धूम्रपान छोड़ना चाहते हैं या कुछ मामलों में कम हानिकारक उत्पाद में स्थानांतरित हो जाते हैं।

प्रश्न : नीति निर्माण में अनुसंधान और नवाचार की क्या भूमिका है?

उत्तर : नीति निर्माण एक स्थिर नीति वातावरण में काम करता है, जहां कई हितधारकों से परामर्श किया जाता है और सामूहिक नीति बनाई जाती है। अनुसंधान और नवाचार वास्तव में नीति निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि समय बदल रहा है और एक नीति जो 20 साल पहले प्रासंगिक थी, उसे अब प्रासंगिक नहीं कहा जा सकता। इसलिए, अनुसंधान और नवाचार एक ऐसी नीति तैयार करने में बहुत मदद करते हैं जो वर्तमान समय में प्रासंगिक है। नीति निर्माण में नवाचार कोई नई अवधारणा नहीं है और लंबे समय से हमारे देश में इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता रहा है।

भारत विश्व स्तर पर सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और नवाचार ने इस स्थिति को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत ने नवाचार को एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता के रूप में पहचाना है और दुनिया भर में अपने अभिनव पदचिह्न् को और प्रभावित करने के लिए प्रतिबद्ध है। हमने बार-बार नवाचार को बढ़ावा देने पर भारत सरकार के फोकस को देखा है। उदाहरण के लिए, भारत सरकार की प्रमुख मेक इन इंडिया पहल देश के विनिर्माण क्षेत्र में नवाचार और निवेश को प्रोत्साहित करके अतिरिक्त रोजगार के अवसरों के निर्माण पर केंद्रित है।

हाल के दिनों में, कोविड-19 ने भारत में भी नई तकनीकों/नवाचारों को अपनाने में तेजी लाई है। इस महामारी ने कई पाथ ब्रेकिंग विचारों को जन्म दिया। इससे पहले कभी भी नई तकनीकों और नवाचारों को अपनाने और अपनाने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई थी। विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय एक विज्ञान, प्रौद्योगिकी, नवाचार नीति पर काम कर रहा है, जिसका उद्देश्य अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने वाले एक पोषित पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर अल्पकालिक, मध्यम अवधि और दीर्घकालिक मिशन मोड परियोजनाओं के माध्यम से गहरा बदलाव लाना है।

ऐसे अन्य उदाहरणों में 7 दिसंबर, 2012 को अधिसूचित मौजूदा राष्ट्रीय फार्मास्युटिकल प्राइसिंग पॉलिसी (एनपीपीपी) शामिल है, जिसे दवाओं के मूल्य निर्धारण के लिए एक नियामक ढांचा तैयार करने के उद्देश्य से तैयार किया गया था ताकि उचित मूल्य पर आवश्यक दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके। नीति ने दवा नीति, 1994 के तहत पहले लागत आधारित ‘मूल्य निर्धारण से बाजार आधारित’ मूल्य निर्धारण में बदलाव किया। एनपीपीपी, 2012 के अनुसरण में, सरकार ने ड्रग्स (कीमत नियंत्रण) आदेश, 2013 (डीपीसीओ-2013) को अधिसूचित किया।

डीपीसीओ, 2013 के प्रावधानों के अनुसार, राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची (एनएलईएम) में आने वाले सभी अनुसूचित फॉर्मूलेशन की अधिकतम कीमत तय करता है। इन दवाओं के सभी निर्माताओं को अपने प्रोडक्ट को अधिकतम मूल्य के बराबर या उससे कम पर बेचने की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, एनपीपीए गैर-अनुसूचित दवाओं की कीमतों की निगरानी करता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके मैक्सिमम रिटेल प्राइस (एमआरपी) में वृद्धि पिछले बारह महीनों के दौरान प्रचलित 10 प्रतिशत से अधिक न हो।

प्रश्न : एक अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ता नीति विशेषज्ञ के रूप में, डब्ल्यूएचओ-एफसीटीसी के कार्यान्वयन में भारत आज कहां है, इस पर आपका क्या विचार है?

उत्तर : भारत 2004 में डब्ल्यूएचओ एफसीटीसी की पुष्टि करने वाले अग्रणी देशों में से एक था, जो तंबाकू नियंत्रण के वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करने वाली पहली अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य संधि थी। मुझे अच्छी तरह से याद है कि कैसे हमने 2000 से एफसीटीसी वार्ताओं में इसके प्रावधानों को अंतिम रूप देने के लिए अग्रणी भूमिका निभाई और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के लिए क्षेत्रीय समन्वयक थे।

एफसीटीसी साक्ष्य-आधारित उपायों की सिफारिश करता है और संधि के समानांतर भारत ने अपने व्यापक तम्बाकू नियंत्रण कानून यानी सीओटीपीए को अपनाया जो 1 मई, 2004 को लागू हुआ था। इसके अलावा, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार ने संधि के दायित्वों को लागू करने के लिए एक व्यक्त प्रतिबद्धता के रूप में, कानून को व्यवहार में लाने की दिशा में एक कदम उठाया और राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम (एनटीसीपी) को अपनाया।

डब्ल्यूएचओ-एफसीटीसी आपूर्ति, मांग और नुकसान कम करने की रणनीतियों सहित ‘तंबाकू नियंत्रण’ के लिए विभिन्न उपाय प्रदान करता है। तंबाकू की मांग और आपूर्ति को कम करने के लिए विभिन्न उपाय हैं।

भारत ने अनुच्छेद 6 से 14 में निहित मांग में कमी की रणनीतियों को कुछ सफलता के साथ अपनाया और लागू किया है जिसमें तम्बाकू की मांग को कम करने के लिए मूल्य और कर उपाय शामिल हैं। तम्बाकू की मांग को कम करने के लिए गैर-मूल्य उपाय, पुराने तम्बाकू के जोखिम से सुरक्षा धूम्रपान, तम्बाकू कंटेंट और उत्पाद विनियमन, तम्बाकू उत्पादों की पैकेजिंग और लेबलिंग, शिक्षा, संचार, प्रशिक्षण और जन जागरूकता, तम्बाकू विज्ञापन, प्रचार और प्रायोजन और तम्बाकू निर्भरता और समाप्ति से संबंधित मांग में कमी के उपाय शामिल हैं।

इसके अलावा, अनुच्छेद 15 से 17 में निहित कमी रणनीतियां जैसे तंबाकू उत्पादों में अवैध व्यापार, नाबालिगों को और उनके द्वारा बिक्री और आर्थिक रूप से व्यवहार्य वैकल्पिक गतिविधियों के लिए समर्थन का प्रावधान है। हालांकि, उपायों का तीसरा सेट जो ‘नुकसान में कमी’ है जैसा कि अनुच्छेद 1 में शामिल है, भारत द्वारा अभी तक अपनाया जाना बाकी है। 1975 के प्रारंभिक सिगरेट अधिनियम के विपरीत, सीओटीपीए के तहत तम्बाकू नियंत्रण प्रयासों में एक उल्लेखनीय सुधार स्पष्ट था क्योंकि इसमें न केवल सिगरेट शामिल थी बल्कि अन्य सभी प्रकार के तम्बाकू उत्पादों (धूम्रपान और धुएं रहित दोनों) को विधायी नियंत्रण के दायरे में लाया गया था।

हालांकि, नवोन्मेषी नुकसान कम करने वाले उत्पाद जैसे हीट नॉट बर्न प्रोडक्ट्स (जो तम्बाकू उत्पाद हैं लेकिन ज्वलनशील सिगरेट से कम हानिकारक हैं) को अभी सीओटीपीए के तहत विनियमित किया जाना है। वैज्ञानिक अध्ययन, उचित नियमन और बाजार के बाद की निगरानी यह सुनिश्चित कर सकती है कि अभिनव नुकसान में कमी या धूम्रपान-मुक्त उत्पादों के संभावित लाभों का एहसास हो और गैर-धूम्रपान करने वालों और नाबालिगों द्वारा उपयोग का जोखिम कम हो।

इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट (उत्पादन, निर्माण, आयात, निर्यात, परिवहन, बिक्री, वितरण, भंडारण और विज्ञापन) अधिनियम, 2019 के निषेध पर फिर से विचार करने का यह सही समय है और मौजूदा अनुसूची के हिस्से के रूप में नुकसान कम करने वाले उत्पादों तक उपभोक्ताओं को सशक्त बनाने के लिए विज्ञान पर आधारित सूचित पसंद के अधिकार को बहाल करने के लिए इसे शिड्यूल का हिस्सा बनाएं।

व्यापार

नीति आयोग ने राज्यों के साथ स्ट्रक्चर्ड एंगेजमेंट को बढ़ावा देने के लिए वर्कशॉप किया आयोजित

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नई दिल्ली, 3 जून। नीति आयोग ने मंगलवार को जानकारी देते हुए बताया कि राज्यों के साथ स्ट्रक्चर्ड एंगेजमेंट को बढ़ावा देने के लिए देहरादून में स्टेट सपोर्ट मिशन (एसएसएम) के अंतर्गत एक दिवसीय रिजनल वर्कशॉप आयोजित की गई।

इस वर्कशॉप का आयोजन नीति आयोग ने उत्तराखंड सरकार के स्टेट इंस्टीट्यूट फॉर एम्पावरिंग एंड ट्रांसफोर्मिंग उत्तराखंड (सेतु) आयोग के सहयोग से किया था।

नीति आयोग की ओर से एक आधिकारिक बयान में कहा गया, “सेंट्रल सेक्टर स्कीम के तहत स्टेट इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफोर्मेशन (एसआईटी) के माध्यम से नीति आयोग और राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के बीच स्ट्रक्चर्ड एंगेजमेंट को बढ़ावा देने के लिए यह सीरीज की पहली वर्कशॉप है।”

इस वर्कशॉप का उद्देश्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एसएसएम पहलों पर अपने अनुभव साझा करने और एक-दूसरे से सीखने के लिए एक साथ एक मंच पर लाना है।

उद्घाटन सत्र में नीति आयोग के सदस्य डॉ. वी.के. सारस्वत, सेतु आयोग के उपाध्यक्ष राज शेखर जोशी, उत्तराखंड के मुख्य सचिव आनंद वर्धन, सेतु आयोग के सीईओ शत्रुघ्न सिंह और नीति आयोग के वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया।

उन्होंने राज्यों के विकास और राज्य के दृष्टिकोण को दिशा देने में परिवर्तन के लिए राज्य संस्थानों की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया।

बिहार, चंडीगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब और उत्तराखंड के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी विचार-विमर्श में भाग लिया।

डेटा-ड्रिवन गवर्नेंस पर सेशन में साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने के लिए एनआईटीआई फॉर स्टेट्स पोर्टल और नीति आयोग में विकसित भारत स्ट्रैटेजी रूम जैसे प्लेटफार्मों पर प्रकाश डाला गया।

इस रिजनल वर्कशॉप में क्लाइमेट मिटिगेशन, मॉनिटरिंग एंड इवैल्यूएशन, स्टेट विजन फॉरम्यूलेशन, कैपेसिटी बिल्डिंग जैसी महत्वपूर्ण प्राथमिकताओं पर चर्चा की गई। साथ ही, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एसआईटी कार्यान्वयन पर विचार करने महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि साझा करने और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक मंच प्रदान किया गया।

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व्यापार

भारत का मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई मई में 57.6 रहा : एचएसबीसी

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नई दिल्ली, 2 जून। भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की गतिविधियां मजबूत बनी हुई है और मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई मई में 57.6 पर रहा। यह जानकारी एचएसबीसी इंडिया की ओर से सोमवार को दी गई।

एसएंडपी ग्लोबल द्वारा संकलित किए गए डेटा में बताया गया कि मई में पीएमआई अप्रैल के 58.2 से मामूली रूप से कम रहा है। जब भी पीएमआई 50 से ऊपर होता है तो यह वृद्धि को दिखाता है।

एचएसबीसी के भारत में मुख्य अर्थशास्त्री प्रांजुल भंडारी ने कहा, “भारत के मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई में एक और महीने मजबूत वृद्धि दर्ज की गई है।”

उन्होंने आगे कहा, “मई में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में रोजगार वृद्धि दर एक और नए उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है, जो कि एक सकारात्मक बदलाव है। हालांकि, इस दौरान इनपुट कॉस्ट में इजाफा हुआ है और लेकिन मैन्युफैक्चरर्स आउटपुट की कीमतों को बढ़ाकर, इसे ग्राहकों तक स्थानांतरित कर रहे हैं।”

यह मजबूत वृद्धि घरेलू और विदेशी मांग के साथ-साथ सफल मार्केटिंग प्रयासों के कारण हुई, जिसने निर्यात ऑर्डर को पिछले तीन वर्षों के सबसे उच्च स्तर पर पहुंचा दिया।

एचएसबीसी की ओर से किए गए पीएमआई सर्वेक्षण में देश भर की फर्मों ने एशिया, यूरोप, पश्चिम एशिया और अमेरिका के प्रमुख बाजारों से बढ़ती रुचि के बारे में बताया है।

मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों में मई में भर्ती में भी तेजी लाई है, जिससे पीएमआई सर्वेक्षण शुरू होने के बाद से रोजगार सृजन रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया।

सर्वेक्षण में सामने आया कि व्यवसायों ने अपने स्थायी कर्मचारियों को बढ़ाने और सुचारू संचालन एवं कार्यभार के अधिक कुशल प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित किया।

एल्युमीनियम, सीमेंट, लोहा, चमड़ा, रबर और रेत जैसी वस्तुओं के साथ-साथ माल ढुलाई और श्रम के कारण इनपुट लागत में मामूली वृद्धि देखी गई।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्वेक्षण में निर्माताओं ने अच्छे मार्जिन बनाए रखने के लिए बिक्री मूल्यों में तेज गति से वृद्धि की है, यह दिखाता है कि मांग मजबूत बनी हुई है।

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राष्ट्रीय

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 6.99 बिलियन डॉलर बढ़कर 692.7 बिलियन डॉलर के पार

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नई दिल्ली, 31 मई। आरबीआई के लेटेस्ट साप्ताहिक आंकड़ों के अनुसार, 23 मई को समाप्त सप्ताह के दौरान भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 6.99 बिलियन डॉलर की शानदार वृद्धि दर्ज की गई, जो बढ़कर 692.72 बिलियन डॉलर हो गया।

आंकड़ों के अनुसार, विदेशी मुद्रा भंडार का एक प्रमुख घटक, विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां 4.52 बिलियन डॉलर बढ़कर 586.17 बिलियन डॉलर हो गईं।

आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, इस सप्ताह के दौरान स्वर्ण भंडार घटक के मूल्य में भी जबरदस्त वृद्धि हुई, जो 2.37 बिलियन डॉलर बढ़कर 83.58 बिलियन डॉलर हो गई।

स्पेशल ड्राइंग राइट्स (एसडीआर) 81 मिलियन डॉलर बढ़कर 18.571 बिलियन डॉलर हो गए।

आंकड़ों के अनुसार, सप्ताह के दौरान आईएमएफ के साथ भारत की आरक्षित स्थिति 30 मिलियन डॉलर बढ़कर 4.401 बिलियन डॉलर हो गई।

16 मई को समाप्त हुए पिछले सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 4.89 बिलियन डॉलर घटकर 685.73 बिलियन डॉलर रह गया था।

हालांकि, इससे पहले 9 मई को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 4.5 बिलियन डॉलर बढ़कर 690.62 बिलियन डॉलर हो गया था।

देश के विदेशी मुद्रा भंडार में किसी भी तरह की मजबूती से अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए को मजबूती मिलती है।

विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि अर्थव्यवस्था की मजबूत बुनियाद को दर्शाती है और आरबीआई को अस्थिर होने पर रुपए को स्थिर करने के लिए अधिक गुंजाइश देती है।

मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार आरबीआई को रुपए को गिरने से रोकने के लिए अधिक डॉलर जारी कर स्पॉट और फॉरवर्ड करेंसी मार्केट में हस्तक्षेप करने में सक्षम बनाता है।

इसके विपरीत, गिरता विदेशी मुद्रा भंडार आरबीआई को रुपए को सहारा देने के लिए बाजार में हस्तक्षेप करने के लिए कम जगह देता है।

इस बीच, वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारत का बाह्य क्षेत्र मजबूत होकर उभरा है। वस्तुओं एवं सेवाओं के कुल निर्यात में अप्रैल में 12.7 प्रतिशत की जोरदार वृद्धि दर्ज की गई तथा यह 73.8 अरब डॉलर के स्तर को छू गया, जबकि पिछले साल इसी महीने में यह 65.48 अरब डॉलर था।

देश का वस्तु निर्यात इस महीने में 9.03 प्रतिशत बढ़कर 38.49 अरब डॉलर हो गया, जिसमें उच्च मूल्य वाले इलेक्ट्रॉनिक्स और इंजीनियरिंग सामान में सर्वाधिक वृद्धि दर्ज की गई, जो देश के बढ़ते विनिर्माण आधार को दर्शाता है।

इलेक्ट्रॉनिक सामान का निर्यात अप्रैल में 39.51 प्रतिशत बढ़कर 3.69 अरब डॉलर हो गया, जबकि पिछले साल इसी महीने यह 2.65 अरब डॉलर था।

इंजीनियरिंग सामान का निर्यात इस महीने में 11.28 प्रतिशत बढ़कर 9.51 अरब डॉलर हो गया, जबकि पिछले साल अप्रैल में यह 8.55 अरब डॉलर था।

आभूषण निर्यात 10.74 प्रतिशत बढ़कर 2.26 बिलियन डॉलर से 2.5 बिलियन डॉलर हो गया।

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