राजनीति
चिराग के हर फैसले के साथ मजबूती से खड़ा हूं -राम विलास पासवान
बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले बिछ रही सियासती बिसात के बीच केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि उनको अपने पुत्र और लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान का हर फैसला मंजूर है। अस्पताल में भर्ती राम विलास पासवान ने शुक्रवार को ट्वीट के माध्यम से अपने पुत्र के संबंध में कहा, मुझे विश्वास है कि अपनी युवा सोच से चिराग पार्टी (लोजपा) व बिहार को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा। चिराग के हर फैसले के साथ मैं मजबूती से खड़ा हूं। मुझे आशा है कि मैं पूर्ण स्वस्थ होकर जल्द ही अपनों के बीच आऊंगा।
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का घटक लोजपा का अन्य घटक दल जनता दल यूनाइटेड से मतभेद को लेकर बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले सियासी अटकलें तेज हो गई हैं। राजग कुनबे में कलह से लोजपा के अलग राह चलने के कयास लगाए जा रहे हैं।
बिहार में राजग को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की अगुवाई में महागठबंधन से मुख्य चुनौती है। कांग्रेस महागठबंधन का हिस्सा है। ऐसे में लोजपा संस्थापक और पार्टी के संरक्षक राम विलास पासवान का यह बयान काफी अहमियत रखता है। हाल ही में मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और बिहार के प्रभारी रह चुके कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने राम विलास पासवान और लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान को पुराने घर में वापस आने का न्योता दिया है।
राम विलास पासवान ने एक अन्य ट्वीट में कहा, कोरोना संकट के समय खाद्य मंत्री के रूप में निरंतर अपनी सेवा देश को दी और हर संभव प्रयास किया कि सभी जगह खाद्य सामग्री समय पर पहुंच सके। इसी दौरान तबीयत खराब होने लगी लेकिन काम में कोई ढिलाई ना हो इस वजह से अस्पताल नहीं गया। मेरी खराब तबीयत का एहसास जब चिराग को हुआ तो उसके कहने पर मैं अस्पताल गया और अपना इलाज करवाने लगा।
उन्होंने आगे कहा, मुझे खुशी है कि इस समय मेरा बेटा चिराग मेरे साथ है और मेरी हर संभव सेवा कर रहा है। मेरा खयाल रखने के साथ साथ पार्टी के प्रति भी अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रहा है। मुझे आशा है कि मैं पूर्ण स्वस्थ होकर जल्द ही अपनों के बीच आऊँगा।
बिहार की मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल नवंबर में समाप्त हो रहा है जिससे पहले विधानसभा चुनाव होने की संभावना है।
राष्ट्रीय समाचार
लोकसभा में सुप्रिया सुले ने उठाए गंभीर सवाल, कहा- महाराष्ट्र में कोई चुनाव आयोग नहीं

SUPRIYA SULE
नई दिल्ली, 9 दिसंबर: राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) की सांसद सुप्रिया सुले ने मंगलवार को लोकसभा में चुनाव आयोग की कड़ी आलोचना की। उन्होंने आरोप लगाया कि आयोग अब तटस्थ नहीं रह गया है, भ्रष्टाचार और हिंसा को रोकने में नाकाम रहा है, और सिस्टम में मौजूद खामियों को नजरअंदाज कर रहा है, जो लोकतंत्र के लिए खतरा है।
लोकसभा में चुनाव सुधार पर चर्चा के दौरान सुले ने कहा कि आम जनता का चुनाव आयोग से भरोसा कम हो गया है। लोग मानने लगे हैं कि आयोग अब निष्पक्ष नहीं रहा। उन्होंने आरोप लगाया कि आयोग नफरत फैलाने वाले भाषणों को रोकने में असफल रहा और डिजिटल दुनिया में फैल रही झूठी खबरें, डीपफेक और लक्षित प्रचार को रोक नहीं पा रहा।
सुले ने कहा कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति भी राजनीतिक झुकाव वाली होती जा रही है, जिससे संस्था की विश्वसनीयता कमजोर हो रही है। उनका कहना है कि राजनीतिक पार्टियां रोजाना खर्च की सीमा को तोड़ती हैं और आयोग इससे आंखें मूंद लेता है। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि चुनावी गलतियां खासकर शहरी गरीबों, प्रवासियों और हाशिए पर रहने वाले समूहों को प्रभावित करती हैं।
उन्होंने वीवीपीएटी सत्यापन प्रक्रिया की भी आलोचना की और कहा कि यह बहुत सीमित और अपारदर्शी है। अधिकारियों के तबादले भी अक्सर राजनीतिक लगाव वाले लगते हैं। सुले ने तंज कसते हुए कहा, “क्या चुनाव आयोग लोकतंत्र की रक्षा करेगा, या लोकतंत्र को खुद अपनी रक्षा करनी पड़ेगी?”
सुले ने महाराष्ट्र की हालिया पंचायत चुनावों का जिक्र करते हुए कहा कि स्थिति बहुत ही गंभीर थी। उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव में खुलेआम कैश बांटा गया। उ
उन्होंने यह भी कहा कि नामांकन और नाम वापसी में गड़बड़ी की गई, हिंसा रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गई, वाहनों को तोड़ा गया, बंदूकें दिखाई गईं, और ईवीएम के लॉक तक तोड़े गए। उन्होंने कहा, “महाराष्ट्र में कोई चुनाव आयोग नहीं है।”
सुले ने साफ किया कि चुनाव आयोग को लोकतंत्र का तटस्थ रक्षक बनना चाहिए, न कि सरकार का सहायक।
राजनीति
अखिलेश यादव बोले, चुनाव सुधार की शुरुआत आयोग से होनी चाहिए; एसआईआर को छिपा हुआ एनआरसी बताया

नई दिल्ली, 9 दिसंबर: लोकसभा में मंगलवार को चुनाव सुधार पर चर्चा के दौरान सपा सांसद अखिलेश यादव ने चुनाव आयोग और सरकार पर गंभीर सवाल खड़े किए। उन्होंने यूपी में हुए उपचुनाव का जिक्र करते हुए कहा कि चुनाव में निष्पक्ष कार्यवाही कहीं भी देखने को नहीं मिली। रामपुर उपचुनाव में भाजपा नेतृत्व और मुख्यमंत्री ने तय किया था कि यहां से भाजपा की जीत होगी।
उन्होंने कहा वोटिंग के दिन हमने देखा कि किस तरह से पुलिस-प्रशासन इस बात पर ध्यान दे रहा था किकोई वोटर घर से न निकले। पहली बार भाजपा वहां से लोकसभा चुनाव जीती। हमने चुनाव आयोग को एक-एक घटना की सूचना दी, लेकिन आयोग ने किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। अगर कोई कार्रवाई हुई हो तो बता दें। समजवादी पार्टी के सांसद ने कहा कि चुनाव में हार-जीत होती है, लेकिन आयोग का काम निष्पक्ष रहना है। एक समय था जब कांग्रेस से लड़ते थे, आज आपसे लड़ रहे हैं। एक समय था जब हमारी पार्टी के सिर्फ पांच सांसद थे, आज यूपी में सबसे बड़ी पार्टी हैं।
सपा सांसद अखिलेश यादव ने सीईसी की नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव को लेकर कांग्रेस की मांग का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि बैलेट पेपर से वोटिंग होनी चाहिए। जो लोग तकनीक की दुहाई दे रहे हैं, वह देख लें कि तकनीक में जापान-जर्मनी जैसे देश कहां खड़े हैं और भारत कहां है। इसके बावजूद जब जापान-जर्मनी जैसे देश बैलेट पेपर से वोटिंग करा सकते हैं, तो हम क्यों नहीं?
फ्रीबिज को लेकर सवाल उठाते हुए अखिलेश ने कहा कि हमने यूपी में एक नई नीति बनाई। उस वक्त भाजपा ने कहा कि यह चुनाव प्रभावित करने के लिए किया गया है और आयोग से रोक लगवाने का काम किया गया था। टीवी पर बराबर स्पेस मिलना चाहिए, सोशल मीडिया पर निगेटिव कैंपेन में भाजपा हजारों करोड़ रुपए खर्च कर रही है। इलेक्टोरल बॉन्ड्स सबसे ज्यादा भाजपा को और दूसरे नंबर पर कांग्रेस को मिले।
अखिलेश यादव ने चुटकी लेते हुए आगे कहा कि कांग्रेस भी हमें यह नहीं बताती कि मिलता कहां से है। यह खेल दिखाई देने वाला खेल है, इसमें रीजनल पार्टियां कहां टिकेंगी? वहीं, एसआईआर को लेकर अखिलेश यादव ने कहा कि यूपी में 10 लोगों की जान जा चुकी है।
अखिलेश यादव ने कहा कि चुनाव सुधार की प्रक्रिया सबसे पहले चुनाव आयोग से ही शुरू होनी चाहिए। चंडीगढ़ में जिस तरह वोट चोरी हुई, मतदाताओं को वोट डालने से रोका गया, एक ही व्यक्ति ने कई बार वोट डाला और वोटिंग के दिन सरकारी योजनाओं के जरिए मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश की गई, ऐसी घटनाओं पर सख्ती से रोक लगनी चाहिए। वन नेशन-वन इलेक्शन के साथ-साथ वोटर लिस्ट को भी एक करने की बात हो रही है, लेकिन उत्तर प्रदेश में तो आधार कार्ड जैसी पहचान को भी मान्यता नहीं दी जा रही। यह एसआईआर नहीं है, यह अंदरखाने में एनआरसी जैसा काम चल रहा है।”
राजनीति
सुप्रीम कोर्ट ने बीएलओ की सुरक्षा पर जारी किया नोटिस

नई दिल्ली, 9 दिसंबर: पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया में शामिल बूथ लेवल अधिकारियों (बीएलओ) की सुरक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नया नोटिस जारी किया है। यह कदम राज्य में बीएलओ की बढ़ती सुरक्षा चिंताओं और उनके कार्यभार के बढ़ते दबाव के मद्देनजर उठाया गया है।
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “हम इस बात को लेकर चिंतित हैं कि तमाम राजनेता इस मुद्दे को लेकर कोर्ट पहुंच रहे हैं। ऐसा लगता है कि यह मंच उन्हें हाईलाइट करने का माध्यम बन गया है।”
सुनवाई के दौरान जस्टिस जॉयमाल्य बागची ने कहा कि बीएलओ पर बढ़ती धमकियों और हिंसा के कई मामलों में सिर्फ एक एफआईआर दर्ज है। याचिका में उठाई गई बाकी हिंसा की घटनाएं पुरानी हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आम तौर पर चुनाव से पहले पुलिस प्रशासन सीधे चुनाव आयोग के नियंत्रण में नहीं दिया जाता।
चुनाव आयोग के वकील ने भी बीएलओ की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग का समर्थन किया।
गौरतलब है कि इससे पहले 4 दिसंबर को बीएलओ की मौत पर तमिलनाडु की राजनीतिक पार्टी टीवीके द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बीएलओ की मौतों को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की थी। कोर्ट ने कहा था कि बीएलओ पर बढ़ते काम के बोझ को कम करने के लिए अतिरिक्त कर्मचारियों की तैनाती तत्काल की जानी चाहिए। देशभर में अब तक लगभग 35-40 बीएलओ अत्यधिक कार्यभार और तनाव के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं। याचिकाकर्ताओं ने पीड़ित परिवारों को मुआवजा देने की भी मांग की थी।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और जस्टिस बागची की पीठ ने कहा था कि एसआईआर प्रक्रिया एक वैध प्रशासनिक कार्रवाई है, जिसे समय पर पूरा करना बेहद आवश्यक है। उन्होंने स्पष्ट किया था कि यदि कहीं स्टाफ की कमी है, तो राज्य सरकारों को अतिरिक्त कर्मचारी नियुक्त करने का कार्य करना अनिवार्य है।
कोर्ट ने यह भी कहा था कि बीमार, असमर्थ या अत्यधिक दबाव में काम कर रहे अधिकारियों के लिए राज्य सरकारों को संवेदनशील रवैया अपनाना चाहिए और तुरंत वैकल्पिक स्टाफ तैनात करना चाहिए। इससे बीएलओ के कार्य घंटे कम होंगे और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
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