राष्ट्रीय
जमा बीमा रद्द करें, अग्रिमों के लिए बीमा लाएं: एआईबीईए

अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ (एआईबीईए) ने कहा है कि सार्वजनिक क्षेत्र के वाणिज्यिक बैंक अनावश्यक रूप से जमा बीमा का क्रॉस वहन कर रहे हैं और इसे रोका जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “जमा बीमा पर प्रीमियम कम करने का एक वैध मामला है क्योंकि दावों का अनुभव बहुत अच्छा है और प्रीमियम केवल बीमा कवर की राशि पर लगाया जाना चाहिए न कि कुल जमा पर।”
उन्होंने कहा, “वैकल्पिक रूप से, सरकार बैंकों द्वारा दिए गए ऋणों का बीमा करने पर विचार कर सकती है ताकि ऋण बट्टे खाते में डाला जा सके और खराब ऋणों के प्रावधानों से बचा जा सके।”
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को लिखे पत्र में, एआईबीईए के महासचिव सीएच वेंकटचलम ने कहा, “प्रीमियम की गणना के लिए, पूरी जमा राशि को ध्यान में रखा जाता है, लेकिन कवरेज केवल 100,000 रुपये प्रति जमा खाते के लिए है। सरकार कवरेज राशि को बढ़ाकर 500,000 रुपये करने का प्रस्ताव कर रही है।”
वेंकटचलम ने कहा, “इस प्रकार बैंक उन जमाराशियों के लिए भी प्रीमियम का भुगतान कर रहे हैं जिनका बीमा नहीं है।”
उनके अनुसार वर्ष 2019-20 के दौरान जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम (डीआईसीजीसी) को बैंकों द्वारा भुगतान किया गया कुल प्रीमियम 13,230 करोड़ रुपये (वाणिज्यिक बैंक 12,310 करोड़ रुपये, सहकारी बैंक 920 करोड़ रुपये) था।
इसमें से डीआईसीजीसी द्वारा सहकारी बैंक जमाकर्ताओं को 80.65 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था और वाणिज्यिक बैंकों के मामले में दावे शून्य थे।
उनके अनुसार, वर्तमान में जमा बीमा कोष 110,380 करोड़ रुपये है और स्थापना के बाद से भुगतान किए गए कुल दावे केवल 5,200 करोड़ रुपये हैं।
वेंकटचलम ने आईएएनएस को बताया, “दावे का अनुभव बहुत अच्छा है और इसलिए प्रीमियम दरों को मौजूदा 0.12 पैसे प्रति 100 रुपये से कम करने की बजाय सरकार के प्रस्ताव को बढ़ाने की जरूरत है।”
वेंकटचलम ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की कुल जमा राशि लगभग 77 लाख करोड़ रुपये है, जिसमें से केवल 30 प्रतिशत या 23 लाख करोड़ रुपये अब तक 1 लाख रुपये के बीमा के तहत कवर किए गए हैं (56 प्रतिशत या कवरेज के बाद 44 लाख करोड़ रुपये जमा राशि बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दी गई है।)
बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1947 की धारा 45 का हवाला देते हुए, वेंकटचलम ने कहा कि सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने सार्वजनिक हित में, किसी भी बैंक को किसी अन्य बैंक के साथ सम्मलित करने और इस प्रकार बैंकों को बंद करने और जमा के परिणामी नुकसान को रोकने के लिए शक्तियां प्राप्त की हैं।
वेंकटचलम ने कहा, “इसीलिए, जबकि 1960 से पहले सैकड़ों बैंक बंद हो रहे थे, बैंकिंग विनियमन अधिनियम में इस संशोधन के साथ, एक भी वाणिज्यिक बैंक का परिसमापन या बंद नहीं हुआ है।”
डीआईसीजीसी के दायरे में आने वाले 2,067 बैंकों में से 1923 बैंक सहकारी बैंक हैं। उन्होंने कहा कि केवल इन बैंकों को बंद होने और परिसमापन की समस्या का सामना करना पड़ रहा है और इन बैंकों की जमा राशि को डीआईसीजीसी द्वारा कवर करने की जरूरत है।
उनके अनुसार, सहकारी बैंकों को भी बैंकिंग विनियमन अधिनियम की धारा 45 के तहत कवर किया जा सकता है।
वेंकटचलम ने कहा, “यहां तक कि इन बैंकों के मामले में, केवल बीमा कवर द्वारा कवर की गई जमाओं की सीमा तक, प्रीमियम लगाया जाना चाहिए, न कि कुल निर्धारण योग्य जमा पर जो बहुत अधिक है।”
एआईबीईए नेता ने सीतारमण से सार्वजनिक क्षेत्र/वाणिज्यिक बैंकों को जमा बीमा से छूट देने का अनुरोध किया और सहकारी बैंकों का प्रीमियम बीमा कवरेज पर लगाया जाना चाहिए न कि उनके पूरे जमा आधार पर।
वेंकटचलम द्वारा प्रदान की गई प्रीमियम आय और दावों के आंकड़ों के अनुसार, डीआईसीजीसी के लिए अपनी प्रीमियम दर को बढ़ाने के बजाय कम करने का एक वैध मामला है।
उन्होंने जमा बीमा प्रीमियम के भुगतान पर वाणिज्यिक बैंकों की चुप्पी पर भी आश्चर्य जताया, जिसकी कोई आवश्यकता नहीं है।
सरकारी बैंकों द्वारा भारी मात्रा में फंसे कर्ज और कर्ज को बट्टे खाते में डालने का हवाला देते हुए वेंकटचलम ने कहा कि जमा के बजाय बैंक ऋण/गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों के लिए बीमा हो सकता है।
राष्ट्रीय
नवी मुंबई अग्निकांड : रहेजा रेजीडेंसी हादसे में चार की मौत, भाविन ने बचाई छह जिंदगियां

मुंबई, 21 अक्टूबर : महाराष्ट्र के नवी मुंबई के वाशी इलाके में सोमवार देर रात एक दर्दनाक हादसा हुआ। एमजी कॉम्प्लेक्स स्थित रहेजा रेजीडेंसी में आग लग गई, जिसने कुछ ही पलों में पूरे इलाके में दहशत फैला दी। इस हादसे में चार लोगों की मौत हो गई, जबकि कई लोगों को दमकलकर्मियों और स्थानीय निवासियों की मदद से सुरक्षित बाहर निकाला गया।
जानकारी के मुताबिक, घटना रात करीब 1 बजे की है। लोगों को जब तक कुछ समझ आता, कई लोग धुएं के कारण बेहोश हो चुके थे। दमकल विभाग की कई गाड़ियां मौके पर पहुंचीं और घंटों की मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया गया।
नवी मुंबई महानगरपालिका आयुक्त कैलाश शिंदे ने घटनास्थल का निरीक्षण किया। उन्होंने कहा कि यह बहुत ही दुखद हादसा है, जिसमें चार लोगों की जान गई। भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए पालिका सख्त कदम उठाएगी।
शिंदे ने बताया कि एक बुजुर्ग महिला, जो बिस्तर पर लेटी हुई थीं, उन्हें बचाया नहीं जा सका, जबकि तीन लोगों की मौत दम घुटने से हुई।
इस घटना में भाविन पूनिया नाम के एक व्यक्ति ने इंसानियत की मिसाल पेश की। उन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर लगभग छह लोगों की जिंदगी बचाई। बताया जाता है कि भाविन ने कई घरों के दरवाजे तोड़कर अंदर फंसे लोगों को बाहर निकाला। इस दौरान उन्हें हाथ में चोटें भी आईं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उनके साथ दो पुलिसकर्मी भी राहत कार्य में जुटे रहे।
आग लगने के वक्त किरण जैन नामक निवासी अपने परिवार के साथ उसी मंजिल पर थे। उन्होंने बताया कि हम आग लगते ही तुरंत बाहर निकल आए, लेकिन हमारे बगल वाले फ्लैट में रहने वाला परिवार बाहर नहीं निकला। हमने दरवाजा खटखटाया, पर उन्होंने खोला नहीं। कुछ ही देर में वहां से धुआं निकलने लगा और अंदर मौजूद तीनों लोगों की मौत हो गई।
उन्होंने बताया कि उसी फ्लोर पर रहने वाला तीसरा परिवार समय रहते बाहर निकल गया और उनकी जान बच गई।
इस भयावह हादसे ने पूरे वाशी इलाके को झकझोर दिया है। फिलहाल आग लगने के कारणों की जांच की जा रही है। नगर प्रशासन ने सुरक्षा मानकों की समीक्षा के आदेश दिए हैं ताकि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।
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महाराष्ट्र: नवी मुंबई के कामोठे में आग लगने से मां-बेटी की दर्दनाक मौत

नवी मुंबई, 21 अक्टूबर : नवी मुंबई के कामोठे सेक्टर 36 में स्थित आंबे श्रद्धा सहकारी सोसायटी में सोमवार रात एक भीषण अग्निकांड में मां और बेटी की दर्दनाक मौत हो गई। यह हादसा रात करीब 9 बजे के आसपास हुआ, जब बिल्डिंग के दूसरे माले पर एक फ्लैट में अचानक आग भड़क उठी। इस घटना ने पूरे क्षेत्र में सनसनी फैला दी और स्थानीय निवासियों में दहशत का माहौल पैदा कर दिया।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, आग इतनी तेजी से फैली कि फ्लैट में मौजूद लोगों को संभलने का मौका तक नहीं मिला। जानकारी मिलते ही नवी मुंबई अग्निशमन विभाग की टीम तुरंत मौके पर पहुंची और आग बुझाने के प्रयास शुरू किए। अग्निशमन कर्मियों ने कड़ी मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया, लेकिन तब तक मां और बेटी की जान जा चुकी थी।
प्राथमिक जानकारी के मुताबिक, फ्लैट में उस समय पांच लोग मौजूद थे। इनमें से तीन लोग समय रहते सुरक्षित बाहर निकल आए, लेकिन मां और बेटी आग की चपेट में आकर फंस गए, जिसके चलते उनकी दम घुटने से मौत हो गई।
अग्निशमन विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि आग लगने का सटीक कारण अभी तक स्पष्ट नहीं हो सका है। हालांकि, प्रारंभिक जांच में शॉर्ट सर्किट को आग का संभावित कारण माना जा रहा है।
स्थानीय पुलिस और अग्निशमन विभाग ने घटनास्थल का मुआयना शुरू कर दिया है और मामले की गहन जांच की जा रही है। फोरेंसिक विशेषज्ञों की एक टीम भी मौके पर पहुंची है, जो आग लगने के सही कारणों का पता लगाने में जुटी है।
घटना की सूचना मिलते ही सोसायटी के अन्य रहवासियों को तत्काल सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया। अग्निशमन विभाग की त्वरित कार्रवाई के कारण आग को अन्य फ्लैट्स तक फैलने से रोक लिया गया, जिससे एक बड़ा हादसा टल गया।
स्थानीय लोगों ने बताया कि आग की लपटें और धुआं इतना घना था कि कुछ समय के लिए आसपास का इलाका धुएं से भर गया था।
इस हादसे ने एक बार फिर रिहायशी इमारतों में अग्नि सुरक्षा उपायों की कमी को उजागर किया है। स्थानीय निवासियों ने मांग की है कि प्रशासन ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए।
पुलिस ने मृतकों के शवों को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया है और उनके परिजनों को सूचित कर दिया गया है।
राष्ट्रीय
प्रदूषण में सांस लेना हो रहा मुश्किल : इन चीजों को खाने में करें शामिल और बनाएं फेफड़ों को मजबूत

नई दिल्ली, 21 अक्टूबर : दीपावली के बाद देश के कई हिस्सों में वायु प्रदूषण बढ़ने लगता है। आसमान में धुंध छा जाती है, सांस लेना मुश्किल हो जाता है और सबसे ज्यादा असर हमारे फेफड़ों पर पड़ता है। छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, खांसी, जुकाम और सांस की तकलीफें आम हो जाती हैं।
जब हम प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं, तो उस हवा के साथ सूक्ष्म जहरीले कण हमारे शरीर में चले जाते हैं। ये कण शरीर में इन्फ्लेमेशन और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस पैदा करते हैं, जिससे इम्युनिटी कमजोर होती है और सांस की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। लेकिन अगर हम अपने खाने में कुछ चीजों को शामिल करें, तो इस खतरे से काफी हद तक खुद को सुरक्षित रख सकते हैं।
आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान दोनों ही मानते हैं कि कुछ प्राकृतिक चीजें ऐसी होती हैं जो शरीर की रक्षा प्रणाली को मजबूत बनाकर फेफड़ों की सेहत को बेहतर कर सकती हैं।
हल्दी: हल्दी को आयुर्वेद में ‘हर रोग की दवा’ कहा गया है। हल्दी में ‘करक्यूमिन’ नामक तत्व होता है, जो एक बेहद शक्तिशाली एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट है। जब प्रदूषण के कारण हमारे फेफड़ों में सूजन होती है, तो करक्यूमिन उस सूजन को कम करने में मदद करता है। अगर इसे काली मिर्च के साथ लिया जाए तो शरीर इसे बहुत बेहतर तरीके से सोख पाता है। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि काली मिर्च करक्यूमिन के अवशोषण को बढ़ाने में मददगार है। यही वजह है कि रात को हल्दी वाला दूध पीना या खाना बनाते समय हल्दी और काली मिर्च का इस्तेमाल करना फेफड़ों के लिए फायदेमंद होता है।
गुड़: गुड़ श्वसन प्रणाली की सफाई में कारगर है। इसमें आयरन और एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो शरीर में खून का बहाव सुधारते हैं और फेफड़ों में ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाते हैं। गुड़ शरीर से जहरीले तत्वों को बाहर निकालने में भी मदद करता है। खाना खाने के बाद इसका छोटा सा टुकड़ा लेना या सर्दी-जुकाम के दौरान इसे अदरक के साथ चबाना बहुत लाभकारी माना गया है।
खट्टे फल: संतरा, नींबू और आंवला जैसे खट्टे फल विटामिन-सी के प्रमुख स्रोत हैं। विटामिन-सी एक ऐसा एंटीऑक्सीडेंट है जो फेफड़ों की कोशिकाओं को नुकसान से बचाता है और इम्युनिटी को तेजी से बढ़ाता है। रोज सुबह आंवला जूस पीना, नींबू-पानी में शहद मिलाकर पीना या संतरे को नाश्ते में शामिल करना इन दिनों बेहद जरूरी है।
अदरक और तुलसी: अदरक फेफड़ों में जमी गंदगी और बलगम को बाहर निकालने में सहायक है, वहीं तुलसी को सदियों से फेफड़ों के डिटॉक्स में इस्तेमाल किया जा रहा है। अदरक-तुलसी की चाय या काढ़ा रोज दो बार पीने से न सिर्फ गले को आराम मिलता है बल्कि अंदर से भी शरीर मजबूत बनता है।
हरी पत्तेदार सब्जियां: पालक, मेथी और ब्रोकली जैसी सब्जियां बीटा-कैरोटीन, फोलेट और विटामिन-ई जैसे तत्वों से भरपूर होती हैं, जो फेफड़ों की मरम्मत करने और उनकी कार्यक्षमता को बेहतर बनाने में मदद करते हैं।
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