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ब्रिक्स : विश्व की उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक प्रभावकारी आवाज

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जब गोल्डमैन सैक्स के अर्थशास्त्री जिम ओ नील ने 2001 में ब्रिक्स शब्द गढ़ा, जिसमें भविष्यवाणी की गई कि दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती बाजार अर्थव्यवस्थाएँ – ब्राजील, रूस, भारत, और चीन – साल 2050 तक वैश्विक अर्थव्यवस्था पर हावी हो जाएंगी, वैश्विक जीडीपी में उनका लगभग 15 प्रतिशत हिस्सा था। वहीं, साल 2010 में दक्षिण अफ्रीका को ब्रिक्स बनाने के लिए समूह में जोड़ा गया, और वैश्विक अर्थव्यवस्था में पांच देशों की संयुक्त हिस्सेदारी अब लगभग 24 प्रतिशत है।

यह वृद्धि मुख्य रूप से चीनी अर्थव्यवस्था की उल्लेखनीय वृद्धि के कारण है, जिसने उस अवधि के दौरान दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए फ्रांस, यूके, जर्मनी, और जापान को पीछे छोड़ दिया।

बहरहाल, 2009 में रूस के येकातेरिनबर्ग में पहले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के बाद से एक समूह के रूप में उनका सहयोग और आदान-प्रदान लगातार तेज हुआ है।

ब्रिक्स ढांचे के तहत मंत्रिस्तरीय स्तर की बैठकों के सामान्यीकरण के साथ, पांच देशों के बीच सहयोग अब व्यापार संबंधों से परे होते हुए वित्त और नवाचार, हरित विकास और सार्वजनिक स्वास्थ्य, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सुरक्षा तक पहुंच गये हैं।

ब्रिक्स देशों का प्रत्येक शिखर सम्मेलन एक मील का पत्थर है जो उनके सहयोग को व्यापक और गहरा करता है, न केवल अपने लोगों को बल्कि अन्य देशों में भी मूर्त लाभ प्रदान करता है। वीडियो लिंक के जरिए गुरुवार को आयोजित 13वां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन कोई अपवाद नहीं था।

13वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “हमें यह सुनिश्चित करना है कि ब्रिक्स अगले 15 वर्षों में और परिणामदायी हो। भारत ने अपनी अध्यक्षता के लिए जो थीम चुनी है, वह यही प्राथमिकता दशार्ती है। हाल ही में, पहले ब्रिक्स डिजिटल हेल्थ सम्मेलन का आयोजन हुआ। तकनीक की मदद से स्वास्थ्य तक पहुंच बढ़ाने के लिए यह एक नया कदम है।”

दरअसल, पिछले डेढ़ दशक में ब्रिक्स ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं। आज ब्रिक्स समूह विश्व की उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक प्रभावकारी आवाज है। विकासशील देशों की प्राथमिकताओं पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए भी यह मंच उपयोगी रहा है।

सहयोग पर जोर देने के साथ, शिखर सम्मेलन ने ब्रिक्स देशों को नये कोरोनवायरस के खिलाफ लड़ाई में अपने व्यावहारिक सहयोग को गहरा करने का अवसर प्रदान किया।

इस समय दुनिया के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता महामारी को जल्द से जल्द रोकना है। उस लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करने के लिए, ब्रिक्स देश न केवल सीमा-पार रोकथाम और नियंत्रण उपायों में अपने समन्वय को मजबूत करेंगे, बल्कि वैक्सीन सहयोग के लिए अधिक संसाधनों और प्रतिभाओं को भी एकत्रित करेंगे, जो वायरस को हराने के लिए सबसे शक्तिशाली हथियार है।

चीन ने इस मई में ब्रिक्स वैक्सीन रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर-चाइना सेंटर लॉन्च किया, जो पिछले साल के शिखर सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग द्वारा प्रस्तावित किए गए कार्यों को लागू करने के लिए एक कदम है।

वैक्सीन अनुसंधान एवं विकास केंद्र के निर्माण में तेजी लाना, उत्पादन सहयोग करना और वैश्विक वैक्सीन विभाजन को पाटना और यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि विकासशील देश कोविड-19 टीके प्राप्त कर सकें, जिनकी उन्हें सख्त आवश्यकता है।

व्यापार

चांदी ने तोड़े सारे रिकॉर्ड, इन पांच कारण से तेजी को मिल रही हवा

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मुंबई, 13 दिसंबर: कमोडिटी बाजार में चांदी ने इतिहास रच दिया है। भारत के मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर चांदी पहली बार 2 लाख रुपए प्रति किलो के पार पहुंच गई। यह चांदी का अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है।

एमसीएक्स पर शुक्रवार के कारोबारी सत्र के दौरान सिल्वर में जबरदस्त खरीदारी देखने को मिली और इसका भाव 2,01,615 रुपए प्रति किलो तक पहुंच गया। हालांकि, ऊंचे स्तर पर मुनाफावसूली के कारण बाजार बंद होते समय यह 1,92,615 रुपए प्रति किलो पर आ गई।

एक्सिस डारेक्ट के मुताबिक, 2024 में 20 प्रतिशत से ज्यादा रिटर्न देने के बाद 2025 में भी चांदी की तेजी जारी है। कीमतों में सालाना बढ़त 1979 के बाद सबसे ज्यादा रही है। लंबे समय तक स्थिर रहने के बाद अब चांदी एक मजबूत तेजी के दौर में प्रवेश कर चुकी है।

चांदी की कीमतों उच्च स्तर पर रहने के पांच बड़े कारण हैं।

1.इंडस्ट्रियल डिमांड में जबरदस्त बढ़ोतरी: एक्सिस म्यूचुअल फंड के अनुसार, 2025 में सोलर पैनल, इलेक्ट्रिक व्हीकल (ईवी) और 5जी टेक्नोलॉजी में चांदी की मांग बहुत तेजी से बढ़ी है। मांग ज्यादा और सप्लाई कम होने से कीमतें ऊपर चली गईं।

  1. निवेशकों की बढ़ती दिलचस्पी: निवेशक अब ज्यादा से ज्यादा कमोडिटी मार्केट की ओर रुख कर रहे हैं। सोना और अन्य धातुओं में मजबूती का असर चांदी पर भी पड़ा है।
  2. ग्लोबल मार्केट में सप्लाई की कमी: अमेरिका के कॉमेक्स एक्सचेंज पर चांदी 65.085 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच गई, जो कई वर्षों का उच्चतम स्तर है। दुनिया भर में सप्लाई कम होने से भारतीय बाजार भी प्रभावित हुआ।
  3. डॉलर-रुपए में उतार-चढ़ाव: डॉलर के मुकाबले रुपए में कमजोरी आने से भारत में चांदी और अन्य कीमती धातुएं महंगी हो गईं।
  4. अमेरिका की ट्रेड पॉलिसी का डर: बाजार में आशंका है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चांदी पर आयात शुल्क (टैरिफ) लगा सकते हैं। अमेरिका अपनी जरूरत की लगभग दो-तिहाई चांदी आयात करता है। इस डर से अमेरिकी कंपनियों ने चांदी जमा करना शुरू कर दिया, जिससे वैश्विक बाजार में कमी पैदा हो गई और कीमतें तेजी से बढ़ गईं।
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व्यापार

मिलजुले वैश्विक संकेतों के बीच भारतीय शेयर बाजार सपाट खुला

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मुंबई, 11 दिसंबर: मिलेजुले वैश्विक संकेतों के बीच भारतीय शेयर बाजार गुरुवार को सपाट खुला। सुबह 9:18 पर सेंसेक्स 12 अंक की मामूली गिरावट के साथ 84,379 और निफ्टी 2 अंक की कमजोरी के साथ 25,762 पर था।

शुरुआती कारोबार में बाजार को ऊपर खींचने का काम आईटी, ऑटो, सरकारी बैंक और मेटल शेयर कर रहे थे। फार्मा, एफएमसीजी, रियल्टी, मीडिया, एनर्जी और इन्फ्रा में लाल निशान में कारोबार हो रहा था।

लार्जकैप के साथ मिडकैप और स्मॉलकैप में भी मिलाजुला कारोबार हो रहा है। निफ्टी मिडकैप 100 इंडेक्स 89 अंक या 0.15 प्रतिशत की मजबूती के साथ 59,097 और निफ्टी स्मॉलकैप 100 इंडेक्स 35.15 अंक या 0.21 प्रतिशत की गिरावट के साथ 17,055 पर था।

सेंसेक्स पैक में इन्फोसिस, टाटा स्टील, इटरनल, अदाणी पोर्ट्स, टेक महिंद्रा, टीसीएस, एसबीआई, बीईएल, एलएंडटी, एचडीएफसी बैंक, ट्रेंट और कोटक महिंद्रा बैंक गेनर्स थे। टाइटन, पावर ग्रिड, भारती एयरटेल, एनटीपीसी, बजाज फाइनेंस, आईटीसी, आईसीआईसीआई बैंक, बजाज फिनसर्व, एशियन पेंट्स और सन फार्मा लूजर्स थे।

वैश्विक बाजारों में मिलाजुला कारोबार हो रहा था। टोक्यो, शंघाई, बैंकॉक और सोल लाल निशान में थे, जबकि हांगकांग हरे निशान में था। अमेरिकी फेड की ओर से ब्याज दरों में कटौती के साथ अमेरिकी शेयर बाजार हरे निशान में बंद हुए थे।

पीएल कैपिटल के विक्रम कसात ने कहा कि फेड की ओर से ब्याज दरों में कटौती के बाद अमेरिकी शेयर बाजार हरे निशान में बंद हुआ। साथ ही कहा कि निफ्टी के लिए 25,750 से लेकर 25,800 एक अहम सोपर्ट जोन है।

कच्चे तेल में कमजोरी देखी जा रही है, हालांकि, यह मामूली है। ब्रेंट क्रूड 0.06 प्रतिशत की कमजोरी के साथ 62.17 डॉलर प्रति बैरल और डब्ल्यूटीआई 0.03 प्रतिशत की कमजोरी के साथ 58.43 डॉलर प्रति बैरल पर था।

दूसरी तरफ कीमती धातुओं में तेजी का दौर जारी है। कॉमेक्स पर सोना 0.42 प्रतिशत बढ़कर 4,242 डॉलर प्रति औंस और चांदी 2.32 प्रतिशत बढ़कर 62.43 डॉलर प्रति औंस पर थी।

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व्यापार

अमेरिकी फेड पॉलिसी के नतीजों से पहले सोना-चांदी की कीमतें स्थिर बनी हुईं

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GOLD

मुंबई, 9 दिसंबर: अमेरिकी फेडरल रिजर्व के ब्याज दर पर फैसले से पहले निवेशकों के सतर्क रुझान के चलते मंगलवार के कारोबारी दिन सोना और चांदी की कीमतें स्थिर रहीं।

शुरुआती कारोबार के दौरान मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर सोने की फरवरी वायदा कीमतें 1,29,978 रुपए प्रति 10 ग्राम पर स्थिर बनी हुई थीं।

मार्केट एक्सपर्ट्स ने कहा, “घरेलू बाजार में एमसीएक्स पर सोने की फरवरी वायदा कीमतें 1,29,952 रुपए के आसपास कारोबार कर रही थीं, जो वैश्विक तेजी के रुझान को ट्रैक कर रही थीं और रुपए की कमजोरी का समर्थन प्राप्त कर रही थीं।”

उन्होंने आगे कहा, “1,29,200 रुपए का क्षेत्र एक महत्वपूर्ण शॉर्ट-टर्म सपोर्ट के रूप में काम करना जारी रखता है। जब तक यह लेवल बना रहता है, 1,30,000 रुपए से 1,31,000 रुपए के रेजिस्टेंस जोन की ओर रास्ता खुला रहता है।”

हालांकि, चांदी की कीमतों में कुछ बढ़त दर्ज की गई। एमसीएक्स पर चांदी की मार्च वायदा कीमतें 0.50 प्रतिशत की बढ़त के बाद 1,82,705 रुपए प्रति किलोग्राम पर बनी हुई थीं।

ग्लोबल मार्केट में अब फोकस फेडरल रिजर्व पर बना हुआ है, जो कि बुधवार को अपने नीतिगत निर्णय की घोषणा करेगा।

यह मीटिंग ऐसे समय में हो रही है जब यूएस जॉब मार्केट में कूलिंग के संकेत दिख रहे हैं, जबकि मुद्रास्फीति केंद्रीय बैंक के 2 प्रतिशत लक्ष्य से ऊपर बनी हुई है।

हाल के आंकड़ों बताते हैं कि पर्सनल कंजप्शन एक्सपेंडीचर (पीसीई) प्राइस इंडेक्स इस वर्ष सितंबर में 0.3 प्रतिशत बढ़ा, जो अगस्त में हुई वृद्धि के बराबर है। इंडेक्स सालाना आधार पर 2.8 प्रतिशत बढ़ा जो कि अगस्त की 2.7 प्रतिशत बढ़त से अधिक रही।

इस बीच, पिछले सप्ताह जारी किए गए यूएस प्राइवेट पेरोल डेटा से पता चला कि नवंबर में प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों में 32,000 की गिरावट आई है, जो कि 2 से अधिक वर्षों की एक तेज गिरावट को दिखाता है।

कोमेरिका के अर्थशास्त्रियों को फेडरल ओपन मार्केट कमेटी के फेडरल फंड रेट को 25 बेसिस पॉइंट से घटाने की उम्मीद है, जिससे यह 3.50 प्रतिशत से 3.75 प्रतिशत के बीच आ जाएगी।

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