राजनीति
पटना : बीपीएससी कार्यालय घेराव करने पहुंचे छात्रों पर पुलिस ने चलाई लाठियां

पटना, 25 दिसंबर। बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) की 70वीं संयुक्त प्रारंभिक परीक्षा रद्द कराने की मांग को लेकर धरना पर बैठे अभ्यर्थी बुधवार को बीपीएससी कार्यालय घेराव करने पहुंचे। इस दौरान पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की। आरोप है कि जब वे नहीं रुके तो पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा।
छात्रों की मांग थी कि परीक्षा को लेकर जो समस्याएं उत्पन्न हुई हैं, उनका समाधान किया जाए। छात्र पीटी परीक्षा को रद्द कराने की मांग कर रहे हैं। इसी मांग को लेकर छात्र बीपीएससी कार्यालय पहुंचे थे। छात्रों का आरोप है कि पुलिस ने उन्हें दौड़ा-दौड़ाकर पीटा। इस लाठीचार्ज में कई छात्र घायल हो गए हैं।
दरअसल, 13 दिसंबर को आयोजित संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा में प्रदेश की राजधानी पटना के बापू भवन परीक्षा केंद्र पर प्रश्न पत्र लीक होने की अफवाह फैल गई थी, जिसके बाद सैकड़ों उम्मीदवारों ने अपना विरोध दर्ज कराने के लिए परीक्षा का बहिष्कार भी किया था।
बीपीएससी ने दावा किया कि ऐसी अफवाह फैलाने वाले असामाजिक तत्व थे। हालांकि, बीपीएससी ने बापू परीक्षा परिसर में परीक्षा देने वाले 5,000 से अधिक उम्मीदवारों के लिए फिर से परीक्षा आयोजित करने का आदेश दिया है। छात्र परीक्षा को रद्द कराने की मांग को लेकर पटना के गर्दनीबाग में धरने पर बैठे हुए हैं। इसके बाद छात्र बुधवार को बीपीएससी कार्यालय पहुंचे।
वहीं, बीपीएससी ने साफ कर दिया है कि अन्य केंद्रों में परीक्षा रद्द नहीं की जाएगी। बीपीएससी परीक्षा को लेकर सियासत भी गर्म है। विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने भी प्रदर्शनकारियों का समर्थन किया है। इसके अलावा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह भी धरनास्थल पहुंचकर धरने पर बैठे छात्रों का समर्थन कर चुके हैं। पूर्णिया के निर्दलीय सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने परीक्षा रद्द कराने की मांग को लेकर बिहार बंद की भी घोषणा की है।
अपराध
सिंडिकेट बैंक धोखाधड़ी मामला: सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ईडी ने घर खरीदारों को लौटाई संपत्ति

नई दिल्ली, 14 अक्टूबर: प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने सिंडिकेट बैंक (अब केनरा बैंक) धोखाधड़ी मामले में जब्त की गई ‘रॉयल राजविलास’ परियोजना की संपत्तियों को लौटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। यह कदम सुप्रीम कोर्ट के 10 अक्टूबर को दिए गए आदेश के बाद उठाया गया है।
यह मामला 2011 से 2016 के बीच सिंडिकेट बैंक से मुख्य आरोपी भरत बंब और अन्य द्वारा की गई 1267.79 करोड़ रुपए की बड़ी धोखाधड़ी से संबंधित है। सीबीआई ने इस संबंध में प्राथमिकी और आरोपपत्र दायर किए थे। ईडी ने इस धोखाधड़ी की आय को ‘रॉयल राजविलास’ परियोजना के अधिग्रहण और विकास में लगाने के आरोप में मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम 2002 के तहत जांच शुरू की थी।
जांच के दौरान, ईडी ने 2 अप्रैल 2019 को एक अनंतिम कुर्की आदेश जारी किया था, जिसके तहत 365 बिना बिके फ्लैट, 17 वाणिज्यिक इकाइयां और 2 प्लॉट कुर्क किए गए थे। इस कुर्की की पुष्टि एडजुडिकेटिंग अथॉरिटी ने भी की थी।
इसके बाद, याचिकाकर्ता कंपनी को कॉर्पोरेट देनदार के रूप में दिवाला और दिवालियापन संहिता 2016 के तहत कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) में लाया गया। सीआईआरपी के तहत, मुंबई स्थित एनसीएलटी ने 24 फरवरी 2022 को न केवल समाधान योजना को मंजूरी दी, बल्कि ईडी के कुर्की आदेश को भी रद्द कर दिया।
ईडी ने एनसीएटी के इस आदेश को यह कहते हुए राजस्थान उच्च न्यायालय, जयपुर में चुनौती दी कि एनसीएलटी के पास पीएमएलए के तहत पारित कुर्की आदेश को रद्द करने का अधिकार क्षेत्र नहीं है। यह कानूनी लड़ाई उच्च न्यायालय की एकल पीठ और खंडपीठ दोनों में चली। उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने 28 मार्च 2025 को अपने निर्णय में एकल पीठ के आदेश को रद्द कर दिया।
इसके बाद मामला मेसर्स उदयपुर वर्ल्ड एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड की ओर से दायर एक एसएलपी के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने घर खरीदारों के हितों को सर्वोपरि मानते हुए ईडी को निर्दोष घर खरीदारों को संपत्ति वापस करने का निर्देश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने 10 अक्टूबर के अपने आदेश में निदेशालय के इस प्रयास की सराहना करते हुए निपटारा कर दिया। हालांकि, ईडी ने यह स्पष्ट किया है कि पीएमएलए के तहत सिंडिकेट बैंक धोखाधड़ी मामले में उसकी जांच अभी भी जारी है और यदि किसी घर खरीदार द्वारा किए गए भुगतान की राशि भविष्य की जांच में अपराध की आय से जुड़ी पाई जाती है, तो निदेशालय कानून के अनुसार उचित कदम उठाने का हकदार होगा।
अपराध
मुंबई: ऑनलाइन स्टॉक घोटाले में धोखाधड़ी और आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में चार गिरफ्तार

मुंबई: लोकल ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या करने वाले 20 वर्षीय युवक की मौत के तीन महीने बाद, कुर्ला रेलवे पुलिस ने शनिवार को चार लोगों पर धोखाधड़ी और आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया। नवीनतम जाँच से पता चला है कि विजय टेटे ने यह कदम इसलिए उठाया क्योंकि वह ऑनलाइन शेयर बाजार में 1.8 लाख रुपये की ठगी के बाद अवसाद में था। गिरफ्तार किए गए लोगों – गोविंद अहिरराव, सुनील कुमार मिश्रा, अमन अब्बास और हरजीत संधू – पर ठगी गई रकम का कुछ हिस्सा अपने खातों में जमा कराने का आरोप है। मुख्य साइबर जालसाजों की तलाश अभी जारी है।
17 जुलाई को, पवई निवासी और मास मीडिया एवं ग्राफिक डिज़ाइनिंग के अंतिम वर्ष के छात्र टेटे का घाटकोपर और विक्रोली स्टेशनों के बीच पटरियों पर शव मिला। कोई सुसाइड नोट नहीं मिला था और उस समय आकस्मिक मृत्यु का मामला दर्ज किया गया था। उनके पिता कस्टम विभाग में कार्यरत हैं।
पुलिस के मुताबिक, 15 जुलाई को टेटे ने एक ऑनलाइन ट्रेडिंग साइट पर ₹1,000 का निवेश किया और उसे तुरंत ₹1,000 का मुनाफ़ा हुआ। इससे उत्साहित होकर उसने दो बार ₹50,000 और एक बार ₹80,000 का निवेश किया। दो दिन बाद, उसने अपने पिता को फोन करके बताया कि साइट के मैनेजर उस पर ट्रेडिंग जारी रखने और ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने के लिए कम से कम ₹4 लाख निवेश करने का दबाव बना रहे हैं।
पिता की इस चेतावनी के बावजूद कि साइट फ़र्ज़ी हो सकती है, टेटे ने ज़ोर देकर कहा कि दूसरे यूज़र्स ने भी निवेश किया है, जिसके बाद पिता ने एक लाख रुपये ट्रांसफर कर दिए। गौरतलब है कि भारतीय स्टेट बैंक (मध्य प्रदेश शाखा) ने लाभार्थी के खाते में धोखाधड़ी होने का संकेत देते हुए, राशि वापस कर दी।
हालांकि, टेटे ने चेतावनी को नज़रअंदाज़ कर दिया और अपने पिता से पैसे दूसरे खाते में ट्रांसफर करने की ज़िद की, पुलिस ने बताया। उन्होंने बताया कि इसके साथ ही, साइट मैनेजर टेलीग्राम पर उसे और पैसे देने या मुनाफ़ा गँवाने की धमकी देते रहे। आखिरकार, उसने 1.8 लाख रुपये गँवा दिए, जो उसने पहले निवेश किए थे।
17 जुलाई की रात लगभग 8 बजे, टेटे अपने माता-पिता को बिना बताए कहीं चला गया। एक घंटे बाद, जब पुलिस ने उसके फ़ोन पर कॉल किया, तो पता चला कि उसके बेटे का एक्सीडेंट हो गया है।
राजनीति
राजनीतिक दलों को एमसीएमसी से पूर्व-प्रमाणित कराने होंगे विज्ञापन : चुनाव आयोग

नई दिल्ली, 14 अक्टूबर: भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 और दूसरे राज्यों के उपचुनावों को लेकर एक बड़ा कदम उठाया है। आयोग ने सभी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को निर्देश जारी किए हैं कि अब से वे किसी भी सोशल मीडिया या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम पर राजनीतिक विज्ञापन तभी जारी कर सकेंगे, जब उन्हें संबंधित मीडिया प्रमाणन और अनुरीक्षण समिति (एमसीएमसी) से पूर्व-प्रमाणन मिल जाए।
आयोग ने बताया कि यह निर्णय 6 अक्टूबर को घोषित हुए बिहार विधानसभा चुनावों और 6 राज्यों तथा जम्मू-कश्मीर संघ राज्य क्षेत्र के 8 विधानसभा क्षेत्रों में होने वाले उपचुनावों को ध्यान में रखकर लिया गया है।
आयोग ने प्रेस नोट में बताया कि 9 अक्टूबर को जारी आदेश में कहा गया था कि सभी राष्ट्रीय, राज्यीय और पंजीकृत राजनीतिक दलों तथा चुनाव लड़ने वाले हर उम्मीदवार के लिए यह प्रक्रिया अनिवार्य होगी। बिना प्रमाणन के किसी भी इंटरनेट आधारित प्लेटफॉर्म (जिसमें सोशल मीडिया वेबसाइटें भी शामिल हैं) पर कोई भी राजनीतिक विज्ञापन प्रकाशित नहीं किया जा सकेगा।
इसके लिए देशभर में जिला और राज्य स्तर पर एमसीएमसी समिति गठित कर दी गई है, जो विज्ञापनों के सत्यापन और प्रमाणन की जिम्मेदारी निभाएंगी। साथ ही ये समितियां मीडिया में चलने वाली पेड न्यूज जैसी संदिग्ध गतिविधियों पर भी सख्त निगरानी रखेंगी और आवश्यक कार्रवाई करेंगी।
आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि अब से उम्मीदवारों को नामांकन दाखिल करते समय अपने सभी प्रामाणिक सोशल मीडिया अकाउंट्स का विवरण देना अनिवार्य होगा। इसका उद्देश्य पारदर्शिता सुनिश्चित करना और फर्जी या भ्रामक अकाउंट्स के माध्यम से प्रचार को रोकना है।
भारत निर्वाचन आयोग ने यह भी कहा कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 77(1) और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, सभी राजनीतिक दलों को विधानसभा चुनाव समाप्त होने के 75 दिनों के भीतर अपने सोशल मीडिया प्रचार व्यय का विस्तृत विवरण आयोग को प्रस्तुत करना होगा।
इसमें इंटरनेट कंपनियों, वेबसाइटों और कंटेंट क्रिएटर्स को किए गए भुगतानों, सामग्री के प्रसार तथा सोशल मीडिया अकाउंट्स के संचालन में होने वाले खर्च को भी शामिल किया जाएगा।
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