अंतरराष्ट्रीय समाचार
वियतनाम : राजधानी हनोई के एक कैफे में लगी भीषण आग, 11 लोगों की मौत
हनोई, 19 दिसंबर। वियतनाम की राजधानी हनोई के एक कैफे में कथित तौर पर पेट्रोल बम के कारण आग लगने से 11 लोगों की मौत हो गई। स्थानीय मीडिया ने गुरुवार को यह जानकारी दी।
रात करीब 11 बजे बाक तु लीम जिले में फाम वान डोंग स्ट्रीट पर स्थित इमारत में आग लगी।
वीएनएक्सप्रेस के अनुसार, यह कैफे गायन समारोहों के लिए एक लोकप्रिय स्थल है, जो आग की लपटों और धुएं में घिर गया और आग पड़ोसी घर तक फैल गया।
वीएनएक्सप्रेस ने बताया कि पुलिस ने 11 लोगों को मृत पाया और सात अन्य लोगों को बचाया, जिनमें से पांच की हालत स्थिर है और दो लोगों का अस्पताल में इलाज जारी है।
वियतनाम समाचार एजेंसी के हवाले से शिन्हुआ समाचार एजेंसी ने बताया कि बाक तु लीम जिले की पुलिस ने पुष्टि की है कि आग के लिए कथित रूप से एक 51 वर्षीय व्यक्ति जिम्मेदार था, जो हनोई के डोंग एनह जिले में रहता था।
पुलिस ने आरोपी के खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू कर दी है, जिस पर डकैती और चोरी के दो पूर्व मामले दर्ज थे। उसने कबूल किया कि कैफे के कर्मचारियों से बहस के बाद उसने गैसोलीन खरीदा और कैफे की पहली मंजिल पर डाल दिया।
इससे पहले 24 मई को हनोई में एक किराये की इमारत में आग लगने से 14 लोगों की मौत हो गई थी और तीन अन्य घायल हो गए थे।
यह इमारत 100 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैली हुई थी, लगभग दो मीटर चौड़ी एक संकरी गली में स्थित थी। जिससे घटनास्थल तक दमकल गाड़ियों का पहुंचना मुश्किल था।
किराये की बहुमंजिला इमारत में प्रत्येक मंजिल पर दो कमरे थे, जिनमें से पहली मंजिल का इस्तेमाल इलेक्ट्रिक साइकिल की बिक्री और मरम्मत के लिए किया जाता था। शुरुआत में इलेक्ट्रिक साइकिल के शॉर्ट सर्किट को आग लगने का मुख्य कारण बताया गया था। रात के 12 बजकर 30 मिनट पर आग लगी थी। इस साल के पहले चार महीनों में वियतनाम में कुल 1,555 आग और विस्फोट हुए, जिनमें 28 लोग मारे गए और 26 अन्य घायल हो गए।
देश के सामान्य सांख्यिकी कार्यालय के अनुसार, इन हादसों से लगभग 89.8 बिलियन वियतनामी डोंग ($3.5 मिलियन) की संपत्ति का नुकसान हुआ।
अंतरराष्ट्रीय समाचार
सीरिया में 8,80,000 से अधिक लोग हुए विस्थापित : यूएन
संयुक्त राष्ट्र, 17 दिसंबर। सीरिया में हिंसक संघर्ष बढ़ने के बाद 8,80,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए है। संयुक्त राष्ट्र के मानवीय सहायताकर्ताओं ने यह बात कही।
रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र के सहयोगियों ने अनुमान लगाया है कि लगभग 6 प्रतिशत विस्थापित कम से कम एक प्रकार की विकलांगता के साथ जी रहे हैं।
मानवीय मामलों के समन्वय के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (ओसीएचए) ने कहा, “वापसी की गतिविधियां तेज हुई हैं, सहयोगियों ने रविवार को 2,20,000 से अधिक लोगों के लौटने की सूचना दी है। वहीं, इसके अतिरिक्त, 40,000 से अधिक विस्थापित लोग पूर्वोत्तर सीरिया में लगभग 250 सामूहिक केंद्रों में रह रहे हैं।”
कार्यालय ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र और भागीदार भोजन, पानी, नकदी, टेंट और कंबल की सप्लाई कर रहे हैं। वहीं, वैश्विक टीम मेडिकल टीम और आपूर्ति भी तैनात कर रहा है।
सीरियाई अरब रेड क्रिसेंट और रेड क्रॉस की अंतरराष्ट्रीय समिति ने संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूएनआईसीईएफ) के सहयोग से शुक्रवार को सीरिया के अलेप्पो प्रांत में तिशरीन बांध की सुविधा की तत्काल और महत्वपूर्ण मरम्मत के लिए एक संयुक्त मिशन चलाया।
यूएनआईसीईएफ ने बैकअप जनरेटर को बिजली देने के लिए ईंधन की भी व्यवस्था की, जिससे बांध की सुरक्षित जल निकासी और जल आपूर्ति की सुरक्षा हो सके। पिछले सप्ताह बांध के पास हिंसा के कारण बिजली सप्लाई बाधित हुई, पानी और अन्य प्रमुख सेवाएं बाधित हुईं, जिससे क्षेत्र के लाखों लोग प्रभावित हुए।
सोमवार को, मानवीय मामलों के लिए संयुक्त राष्ट्र के अवर महासचिव और इमरजेंसी रिलीफ कोऑर्डिनेटर टॉम फ्लेचर ने राहत प्रतिक्रिया पर चर्चा करने के लिए दमिश्क में सीरियाई संक्रमणकालीन अधिकारियों से मुलाकात की।
ओसीएचए ने अपनी एक सप्ताह की मध्य पूर्व यात्रा के बारे में कहा, “क्षेत्र में इतने तेजी से हो रहे बदलावों और दीर्घकालिक जरूरतों के समय, फ्लेचर की यात्रा में लेबनान, तुर्की और जॉर्डन में भी रुकना शामिल होगा।” –आईएएएनएस एससीएच/एमके
अंतरराष्ट्रीय समाचार
ईयर एंडर 2024 : संघर्षों में उलझते देश, भविष्य के लिए मुश्किल संकेत
नई दिल्ली, 17 दिसंबर। साल 2024 में विश्व शांति के लिहाज से निराशाजनक रहा। ऐसी घटनाएं हुईं जिसके बाद जानकार यह आशंका जताने लगे कि क्या दुनिया अगले कुछ वर्षों में एक बड़े युद्ध का सामना करने जा रही है। आखिर वो कौन सी घटनाएं इस साल घटीं जो निकट भविष्य में एक बड़े संकट की तरफ इशारा कर रही हैं।
रूस-यूक्रेन युद्, इजरायल-हमास संघर्ष: रूस और यूक्रेन युद्ध 2024 में भी जारी रहा। अमेरिका और उसके सहयोगी जहां यूक्रेन के साथ डटकर खड़े रहे वहीं रूस भी पीछे हटने को तैयार नही है। साल के आखिर में दो ऐसी घटनाएं हुईं जिन्होंने ये संकेत दिया कि निकट भविष्य में शांति कायम होने की उम्मीद बहुत कम है।
पिछले दिनों वाशिंगटन ने यूक्रेन को रूस के भीतर लंबी दूरी की अमेरिकी मिसाइलों के इस्तेमाल की अनुमति दे दी। इसके अमेरिका ने एक और बड़ा फैसला लेते हुए यूक्रेन को एंटी-पर्सनल लैंडमाइंस भेजने का फैसला किया है। इसकी प्रतिक्रिया में रूस ने अपनी परमाणु नीति में संशोधन कर दिया। इसमें नई शर्तें तय की गई हैं कि कब परमाणु हथियारों का इस्तेमाल किया जा सकता है। रूस के इस कदम को भी यूक्रेन युद्ध से जोड़कर देखा गया है।
इजरायल-हमास संघर्ष : 7 अक्टूबर 2023 इजरायल में हमास के बड़े हमले के जवाब में यहूदी राष्ट्र ने फिलिस्तीनी ग्रुप के कब्जे वाली गाजा पट्टी में सैन्य अभियान शुरू किया था। हमास के हमले में करीब 1200 लोग मारे गए थे जबकि 250 से अधिक लोगों को बंधक बनाया गया था। 2024 में गाजा युद्ध अपने सबसे क्रूर और भीषणतम चरण में प्रवेश कर गया। हमास को तबाह करने पर उतारू इजरायल ने गाजा पट्टी को खंडहर में तब्दील कर दिया। तमाम अतंरराष्ट्रीय आलोचना के बावजूद इजरायल के रवैये में कोई बदलाव नहीं आया। युद्ध के दौरान अमेरिका उसके साथ चट्टान के साथ खड़ा रहा है। लिहाज कोई भी इंटरनेशनल प्रेशर यहूदी राष्ट्र को परेशान नहीं कर पाया।
इजरायल-हिजबुल्लाह : गाजा युद्ध ने इजरायल-हिजबुल्लाह तनाव को भी चरम पर पहुंचा दिया। इजरायली सेना ने 23 सितंबर से लेबनानी ग्रुप पर बड़े पैमाने पर हवाई हमले शुरू कर दिए। उसने सीमा पार एक ‘सीमित’ जमीनी अभियान भी चलाया, जिसका उद्देश्य कथित तौर पर हिजबुल्लाह को कमजोर करना बताया गया। इजरायली हमलों में हिजबुल्लाह के चीफ हसन नसरल्लाह समेत कई कमांडरों की मौत हो गई और उसके कई ठिकानों को भारी नुकसान पहुंचा। लंबे खूनी संघर्ष के बाद इजरायल और लेबनान की बीच एक समझौता हो गया। लेकिन विश्लेषकों ने इस बेहद ‘कमजोर सुलह’ बताया। समझौते के बाद भी इजरायल के हमले जारी रहे।
सीरिया; 13 साल से गृहयुद्ध में उलझा यह देश पिछले कुछ वर्षों में अपेक्षकृत शांत रहा लेकिन 2024 में हालात बदल गए। विद्रोही गुटों ने नंवबर में सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल सद के खिलाफ बड़ा ऑपरेशन शुरू कर दिया। लंब समय से विद्रोहियों का सफलतापूर्व मुकाबला करने वाले असद इस बार अपनी सत्ता नहीं बचा पाए। 8 दिसंबर को उन्हें सत्ता छोड़कर भागना पड़ा। फिलहाल सीरिया का भविष्य अधर में है। विश्लेषक मानते हैं कि सीरिया के लिए आने वाला समय बेहद कठिन है, यह भी कहना मुश्किल है कि क्या सीरिया एक रह पाएगा।
इजरायल-ईरान संघर्ष : 2024 में पहली बार ईरान और इजरायल में सीधा सैनिक टकराव देखने को मिला। गाजा में इजरायली सैन्य कार्रवाई का ईरान तीखा विरोध कर रहा था। वह हिजबुल्लाह का भी समर्थक है ऐसे में उसके सीधे इजरायल के साथ टकराव की स्थिति बनने लगी।
1 अप्रैल को, इजरायल ने सीरिया के दमिश्क में एक ईरानी वाणिज्य दूतावास परिसर पर बमबारी की, जिसमें कई वरिष्ठ ईरानी अधिकारी मारे गए। जवाब में, ईरान और उसके प्रतिरोध सहयोगियों की धुरी ने इजरायल से जुड़े जहाज एमएससी एरीज को जब्त कर लिया। तेहरान और उसके सहयोगियों ने 13 अप्रैल को इजरायल के अंदर मिसाइल और ड्रोन हमले किए। इसके बाद इजरायल ने 19 अप्रैल को ईरान और सीरिया में जवाबी हमले किए।
31 जुलाई को तेहरान में हमास के राजनीतिक नेता इस्माइल हानिया की हत्या के बाद तनाव बढ़ गया। ईरान और हिजबुल्लाह ने इजरायल पर हत्या का आरोप लगाया। अक्टूबर 2024 में ईरान ने यहूदी राष्ट्र पर मिसाइलें दागी। इसके बाद इजरायल ने 25 अक्टूबर को ईरान के खिलाफ और जवाबी हमले किए।
सूडान : सूडान 15 अप्रैल 2023 से गृहयुद्ध में जारी हैं। अर्धसैनिक रैपिड सपोर्ट फोर्सेज (आरएसएफ) और सूडानी सशस्त्र बल (एसएएफ) खूनी संघर्ष में उलझे हैं। अंतरराष्ट्रीय संगठनों के अनुमानों के अनुसार, सूडान में चल रहे युद्ध में 27,120 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और 14 मिलियन से अधिक लोग देश के भीतर या विदेश में विस्थापित हुए हैं।
अंतरराष्ट्रीय समाचार
डोनाल्ड ट्रम्प फिर से अमेरिका के राष्ट्रपति बनेंगे, भारत के लिए इसका क्या मतलब हो सकता है?
डोनाल्ड ट्रंप अब सिर्फ़ अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति नहीं रह गए हैं, बल्कि वे एक बार फिर राष्ट्रपति चुने गए हैं। ट्रंप ने हाल ही में हुए 2024 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में मौजूदा उपराष्ट्रपति और डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार कमला हैरिस को हराया। व्हाइट हाउस में ट्रंप की वापसी ने उनके समर्थकों में जोश भर दिया है, लेकिन दुनिया के कुछ हिस्सों में चिंता भी पैदा कर दी है। आखिरकार, एक अमेरिकी राष्ट्रपति दुनिया की राजनीति को उस तरह से प्रभावित कर सकता है, जैसा शायद कोई दूसरा राष्ट्राध्यक्ष नहीं कर सकता। ट्रंप के दूसरे राष्ट्रपति बनने से भारत को क्या हासिल होगा या क्या नुकसान? आइए एक नज़र डालते हैं।
भारत-चीन प्रतिद्वंद्विता
दोनों देशों ने हाल ही में लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपनी सेनाओं के बीच गतिरोध को समाप्त किया है।
ट्रंप चीन के कटु आलोचक माने जाते हैं। कोविड के मुद्दे से लेकर उच्च टैरिफ तक, ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान चीन की बार-बार आलोचना की है। यहां तक कि उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से अमेरिका को बाहर करने की धमकी भी दी थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि शीर्ष निकाय चीन के खिलाफ पर्याप्त सख्त नहीं है।
यह संभावना है कि ट्रम्प की समग्र चीन विरोधी भावना भारत को चीन के साथ अपनी प्रतिद्वंद्विता में लाभ पहुंचाएगी। लेकिन तेजी से मुखर होते चीन द्वारा इस दबाव का भी विरोध किए जाने की संभावना है।
अप्रवासन
ट्रम्प का हमेशा से ही अवैध अप्रवासियों और आम तौर पर अप्रवास के खिलाफ़ कड़ा रुख रहा है। 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से पहले, उन्होंने यह भी कसम खाई थी कि वे अवैध अप्रवासियों को अमेरिका में प्रवेश करने से रोकने के लिए अमेरिका-मेक्सिको सीमा पर दीवार बनवाएंगे। यह भव्य परियोजना साकार नहीं हुई, लेकिन भौतिक अवरोध पर जोर देना ट्रम्प के रुख को रेखांकित करता रहा।
ट्रंप का दृष्टिकोण अमेरिका-केंद्रित है और वे अक्सर विदेशी नागरिकों को नौकरी देने से पहले अमेरिकी पेशेवरों को नौकरी देने की बात करते हैं। भारत उन देशों में से एक है जो एच1-बी वीजा पर बड़ी संख्या में कुशल पेशेवरों को भेजता है।
ट्रम्प वीज़ा व्यवस्था को किस प्रकार संशोधित/पूरी तरह से बदलने/जारी रखने का निर्णय लेते हैं, इसका हजारों भारतीय परिवारों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।
टैरिफ और व्यापार
ट्रम्प ने अतीत में बार-बार कहा है कि भारत द्वारा अमेरिकी उत्पादों पर लगाए जाने वाले उच्च टैरिफ और करों के कारण ये वस्तुएं भारतीय बाजार में महंगी हो जाती हैं, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता खत्म हो जाती है।
अपने पहले कार्यकाल के दौरान ट्रंप ने भारत से हार्ले डेविडसन मोटरसाइकिलों पर कर कम करने को कहा था। अगर वह अपने अगले कार्यकाल में फिर से सख्त रुख अपनाते हैं, तो भारत के पास कुछ व्यापार वार्ताएँ हो सकती हैं।
मानव अधिकार
2019 में जब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया था, तब ट्रंप ने इसके खिलाफ कोई बड़ी टिप्पणी नहीं की थी। दूसरी ओर, बाइडेन प्रशासन ने संभावित मानवाधिकार उल्लंघन के बारे में संकेत देना ही बेहतर समझा।
भारत-कनाडा संबंध
हालांकि ट्रम्प द्वारा भारत का समर्थन करने के लिए अमेरिका और कनाडा के बीच संबंधों को पूरी तरह से त्यागने की संभावना नहीं है, लेकिन यह ध्यान देने योग्य है कि अपनी जीत के बाद, उन्होंने कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात करने का विकल्प चुना।
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