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Monday,01-December-2025
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मदरसों को स्कूल में बदलने का कानून, मुस्लिम पक्ष की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का नोटिस जारी

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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को गुवाहाटी उच्च न्यायालय के एक फैसले को चुनौती देने वाली एक अपील पर नोटिस जारी किया है। दरअसल, साल 2020 में असम विधानसभा में एक कानून पारित किया गया था, जिसके अनुसार राज्य सरकार द्बारा संचालित मदरसों को सामान्य स्कूलों में बदला जाना था। इस कानून को गुवाहाटी हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखने का फैसला सुनाया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष अनुमति याचिका दाखिल की गई थी। इस याचिका पर मंगलवार यानी आज हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने गुवाहाटी हाईकोर्ट के फैसले पर नोटिस जारी किया है। न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार ने असम सरकार और अन्य से जवाब मांगा। अधिवक्ता अदील अहमद के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि उच्च न्यायालय ने गलत तरीके से देखा कि याचिकाकर्ता मदरसे सरकारी स्कूल हैं, और राज्य द्वारा पूरी तरह से प्रांतीयकरण होता है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 28(1) से प्रभावित होते हैं और इस तरह, नहीं कर सकते। धार्मिक शिक्षा प्रदान करने की अनुमति दी जाए। अपील उस निर्णय को चुनौती देती है जिसने असम में मौजूदा प्रांतीय मदरसों को नियमित सरकारी स्कूलों में बदल दिया था।

याचिकाकर्ताओ का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने पीठ के समक्ष तर्क दिया कि उच्च न्यायालय का फैसला गलत था क्योंकि उसने राष्ट्रीयकरण के साथ प्रांतीयकरण की बराबरी की थी। याचिका में यह भी कहा गया है कि साल 1995 का अधिनियम मदरसों में कार्यरत शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों को वेतन का भुगतान करने और परिणामी लाभ प्रदान करने के लिए राज्य के उपक्रम तक सीमित था। साथ ही के लिए भी इन धार्मिक संस्थानों के प्रशासन, प्रबंधन और नियंत्रण का अधिकार था। हालांकि, साल 2020 का कानून अल्पसंख्यकों की संपत्ति छीन रहा है और धार्मिक शिक्षा प्रदान करने के अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकार को प्रभावित करता है।

याचिका में कहा गया है- मदरसों से संबंधित भूमि और भवनों की देखभाल याचिकाकर्ता द्वारा की जाती है और बिजली और फर्नीचर पर खर्च याचिकाकर्ता मदरसों द्वारा स्वयं वहन किया जाता है। 2020 का निरसन अधिनियम मदरसा शिक्षा की वैधानिक मान्यता के साथ युग्मित संपत्ति को छीन लेता है और राज्यपाल द्वारा जारी 12.02.2021 के आक्षेपित आदेश ने 1954 में बनाए गए ‘असम राज्य मदरसा बोर्ड’ को भंग कर दिया। याचिका में आगे तर्क दिया गया कि यह विधायी और कार्यकारी शक्तियों दोनों के मनमाने ढंग से प्रयोग के बराबर है और याचिकाकर्ता मदरसों को धार्मिक शिक्षा प्रदान करने वाले मदरसों के रूप में जारी रखने की क्षमता से वंचित करना है।

याचिका में कहा गया है कि पर्याप्त मुआवजे के भुगतान के बिना याचिकाकर्ता मदरसों के मालिकाना अधिकारों में इस तरह का अतिक्रमण भारत के संविधान के अनुच्छेद 30(1ए) का सीधा उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका, मोहम्मद इमाद उद्दीन बरभुइया और असम के 12 अन्य निवासियों द्वारा दायर की गई है, जिसमें अंतरिम राहत के रूप में उच्च न्यायालय के संचालन पर रोक लगाने की मांग की गई है।

इस साल फरवरी में पारित उच्च न्यायालय के फैसले का विरोध करने वाली याचिका में कहा गया है, हाईकोर्ट के फैसले के संचालन के परिणामस्वरूप मदरसों को बंद कर दिया जाएगा। साथ ही, इस शैक्षणिक सत्र में पुराने पाठ्यक्रमों के लिए छात्रों को प्रवेश देने से रोक दिया जाएगा।

अपराध

अल फलाह यूनिवर्सिटी के फाउंडर जावेद सिद्दीकी की बड़ी रिमांड, 14 दिन की ईडी हिरासत में भेजा गया

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नई दिल्ली, 1 दिसंबर: अल फलाह यूनिवर्सिटी के फाउंडर जावेद अहमद सिद्दीकी को साकेत कोर्ट ने 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। अब मामले की अगली सुनवाई 15 दिसंबर को होगी।

जावेद अहमद सिद्दीकी से पूछताछ के दौरान कई अहम खुलासे होने की संभावनाएं हैं।

बता दें कि इससे पहले भी जावेद अहमद सिद्दीकी को ईडी की 13 दिनों की हिरासत में भेजा गया था। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) शीतल चौधरी प्रधान ने 20 नवंबर को जावेद अहमद सिद्दीकी को ईडी रिमांड पर भेजने का आदेश दिया था।

अपने आदेश में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने कहा था कि ईडी ने धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के प्रावधानों का पालन किया है और अपराध की गंभीरता को देखते हुए सिद्दीकी को 13 दिनों के लिए ईडी की हिरासत में भेजा जाना चाहिए।

यूनिवर्सिटी के फाउंडर जावेद को 19 नवंबर को दिल्ली में लाल किले के पास हुए आतंकी हमले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में गिरफ्तार किया गया था।

यूनिवर्सिटी की तरफ से किए जा रहे कथित फर्जी मान्यता और भ्रामक दावों की पड़ताल में एक बड़ा खुलासा हुआ था।

रिमांड नोट के अनुसार, इस संस्था ने कथित तौर पर पिछले कई सालों में छात्रों को भ्रमित कर न सिर्फ एडमिशन लिए, बल्कि भारी भरकम रकम भी वसूली है। आईटीआर के विश्लेषण से यह भी पता चला है कि वित्तीय वर्ष 2014-15 से 2024-25 तक यूनिवर्सिटी ने करोड़ों रुपए की आय दिखाई थी।

ईडी की जांच में सामने आया कि वित्तीय वर्ष 2014-15 और 2015-16 में क्रमश: 30.89 करोड़ और 29.48 करोड़ रुपए को स्वैच्छिक योगदान यानी वॉलंटरी कंट्रीब्यूशन बताया गया था, लेकिन 2016-17 के बाद इनकम को सीधे मेन ऑब्जेक्ट या एजुकेशनल रेवेन्यू के रूप में दिखाया जाने लगा था।

जांच में पता चला कि वित्तीय वर्ष 2018-19 में 24.21 करोड़ रुपए और वित्तीय वर्ष 2024-25 में 80.01 करोड़ रुपए की आय दर्ज की गई थी। कुल मिलाकर कथित तौर पर फर्जी मान्यता के नाम पर लगभग 415.10 करोड़ रुपए की रकम हासिल की गई थी।

एजेंसियों का दावा है कि यूनिवर्सिटी ने झूठे दावों और भ्रामक प्रैक्टिस के जरिए छात्रों के विश्वास, भविष्य और उम्मीदों के साथ खिलवाड़ किया है। इस मामले में ईडी की जांच दिल्ली पुलिस की एफआईआर से शुरू हुई, जिसके आधार पर अब मनी लॉन्ड्रिंग के एंगल से भी पड़ताल जारी है।

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अपराध

दिल्ली ब्लास्ट मामले में बड़ी कार्रवाई, एनआईए ने जम्मू-कश्मीर में 10 ठिकानों पर की छापेमारी

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नई दिल्ली, 1 दिसंबर: दिल्ली के लाल किले के पास हुए ब्लास्ट मामले में जांच अब और तीव्र हो गई है। सोमवार सुबह राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने जम्मू-कश्मीर में 10 स्थानों पर व्यापक तलाशी अभियान चलाया। यह छापेमारी पुलवामा, शोपियां और आसपास के कई इलाकों में की गई, जिसका उद्देश्य सबूत जुटाना और ब्लास्ट से जुड़े व्यक्तियों की भूमिका खंगालना है।

जांच एजेंसी ने शोपियां में मुफ्ती इरफान अहमद वागे के घर और पुलवामा में डॉ. अदील अहमद राथर, डॉ. मुअज्जमिल शकील और अमीर राशिद के घरों पर छापे मारे। सूत्रों के अनुसार, जांच एजेंसी डिजिटल सबूत, दस्तावेज और किसी तरह की आपत्तिजनक सामग्री की तलाश कर रही है।

शनिवार को दिल्ली की एक अदालत ने मामले में गिरफ्तार चार आरोपियों की एनआईए हिरासत 10 दिनों के लिए बढ़ा दी। गिरफ्तार चार आरोपियों में डॉ. मुअज्जमिल शकील, डॉ. शहीन सईद, मुफ्ती इरफान अहमद वागे और डॉ. अदील अहमद राथर के नाम शामिल हैं।

अदालत से अनुमति मिलने के बाद सभी आरोपियों को पटियाला हाउस कोर्ट से एनआईए मुख्यालय ले जाया गया, जहां उनसे गहन पूछताछ जारी है।

10 नवंबर को दिल्ली के लाल किले के पास स्थित रेड फोर्ट मेट्रो स्टेशन के करीब एक कार अचानक विस्फोट से उड़ गई थी। शाम 6:52 बजे हुए इस धमाके में 13 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि कई गंभीर रूप से घायल हो गए थे। घटनास्थल पर कारों के मलबे और क्षत-विक्षत शवों से पूरा इलाका दहल गया था।

जांच में सामने आया कि इस हमले को ‘व्हाइट कॉलर टेरर नेटवर्क’ ने अंजाम दिया, जिसका संबंध आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद से बताया गया। धमाके से पहले ही कई राज्यों में गिरफ्तारियां हो चुकी थीं और ‘इंटरस्टेट मॉड्यूल’ के सुराग मिलने लगे थे।

एनआईए ने इस मामले में अब तक 7 लोगों को गिरफ्तार किया है। ब्लास्ट वाली कार डॉ. उमर मोहम्मद चला रहा था। ये कार आमिर राशिद अली के नाम रजिस्टर्ड थी, जो अब जांच एजेंसी की कस्टडी में है।

आरोपियों में शामिल डॉ. शकील पुलवामा, डॉ. राथर अनंतनाग, वागे शोपियां और डॉ. शाहीन सईद लखनऊ से ताल्लुक रखता है।इन लोगों ने हमले को अंजाम देने में अहम भूमिका निभाई।

वहीं आरोपी जसीर बिलाल वानी ने आतंकवादी को टेक्निकल मदद दी और शोएब ने कथित तौर पर उमर को पनाह दी और ब्लास्ट से कुछ समय पहले लॉजिस्टिक मदद दी, जिन्हें पहले ही हिरासत में लिया जा चुका है।

एनआईए की लगातार जारी छापेमार कार्रवाई से साफ है कि एजेंसी इस पूरे मॉड्यूल को जड़ों तक तोड़ने के लिए अब और तेज कदम उठा रही है।

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अपराध

पंजाब: सीबीआई कोर्ट ने 7.8 करोड़ रुपए के बैंक फ्रॉड केस में सात आरोपियों को तीन साल की सजा सुनाई

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चंडीगढ़, 29 नवंबर: केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की कोर्ट ने पंजाब के साहिबजादा अजीत सिंह नगर में 7.8 करोड़ रुपए के बैंक फ्रॉड मामले में सात आरोपियों को दोषी ठहराते हुए तीन साल की सजा सुनाई है।

मामले के मुख्य आरोपियों मनीष जैन और रमेश कुमार जैन को तीन साल की कठोर कारावास (आरआई) और प्रत्येक पर 35,000 रुपए का जुर्माना लगाया गया, जबकि अन्य आरोपियों रचना जैन, भूपिंदर सिंह, प्रतीपाल सिंह, संजीव कुमार जैन और अनीता जैन को तीन साल की जेल की सजा और प्रत्येक पर 15,000 रुपए का जुर्माना लगाया गया है।

यह मामला 4 नवंबर 2016 को बैंक ऑफ़ बड़ौदा की शिकायत पर दर्ज किया गया था। शिकायत में आरोप लगाया गया था कि मनीष ट्रेडर्स के पार्टनर मनीष जैन, रमेश कुमार जैन और कांता जैन ने बैंक के कुछ अज्ञात अधिकारियों के साथ मिलकर 7.83 करोड़ रुपए का फ्रॉड किया। सीबीआई की जांच में सामने आया कि इस साजिश के तहत बैंक को गलत तरीके से बड़ी राशि का नुकसान पहुंचाया गया।

जांच पूरी होने के बाद सीबीआई ने 28 जून 2017 को इस मामले में सात आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। कोर्ट ने सभी सबूतों और गवाहों की सुनवाई के बाद दोषियों को सजा सुनाई।

सीबीआई के अधिकारियों ने बताया कि इस मामले में साजिश के तहत बैंक को हानि पहुंचाना और फर्जीवाड़ा करना आरोपियों का मुख्य उद्देश्य था। अदालत ने मामले की पूरी जांच और चार्जशीट के आधार पर फैसला सुनाया और सभी दोषियों को सजा के साथ-साथ जुर्माना भी लगाया।

इस मामले में दोषियों को दी गई सजा तीन साल की है, लेकिन जुर्माना और कड़ी निगरानी के कारण आरोपियों के खिलाफ आगे की कार्रवाई की संभावना भी बनी हुई है। सीबीआई ने कहा है कि वे भविष्य में भी ऐसे मामलों में सख्त और निष्पक्ष जांच जारी रखेंगे।

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