राजनीति
गीता धार्मिक किताब नहीं बल्कि दर्शन शास्त्र – राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अध्यक्ष सयैद शेहजादी

गुजरात सरकार ने नए शिक्षण सत्र से माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूलों के सिलेबस में भगवद गीता को जोड़ने का फैसले पर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की कार्यवाहक अध्य्क्ष सैयद शहजादी ने स्कूलों में गीता पढ़ाई जाने को सही ठहराते हुए कहा है कि भगवत गीता धार्मिक किताब नहीं बल्कि दर्शन शास्त्र है।
आयोग के मुताबिक, हालांकि अभी तक आयोग के पास इस मसले पर कहीं से कोई आपत्ति दर्ज नहीं की कराई गई है, इसलिए हम पहले से कोई कदम नहीं उठा सकते।
उन्होंने आगे कहा कि, गीता के अलावा अन्य धर्म की किताबों को पढ़ाने पर उस जगह की जनता तय करे, हम इसपर कुछ नहीं कह सकते। देश एक भावना से नहीं चलता। सबके अपने अपने इसपर विचार हैं।
दरअसल सरकार ने इस फैसले के तहत शैक्षणिक सत्र 2022-23 से कक्षा छठवीं से 12वीं तक के पाठ्यक्रम में भगवद गीता को शामिल किया जाएगा।
इसके अलावा पश्चिम बंगाल के बीरभूम में टीएमसी नेता की हत्या के बाद हिंसा फैल गई, यहां गुस्साई भीड़ ने करीब एक दर्जन घरों को आग के हवाले कर दिया है। हिंसा में 8 लोगों की जलकर मौत हो गई है, इसपर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव को नोटिस भेजने की तैयारी कर रहा है।
हिंसा में मरने वालों में 3 महिलाएं और 2 बच्चे भी शामिल हैं। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की कार्यवाहक अध्यक्ष सयैद शेहजादी ने बताया कि, हम मुख्य सचिव को नोटिस भेज कर रिपोर्ट मांगेंगे और आयोग के सदस्य जल्द घटनास्थल का दौरा करने पर भी विचार कर रहा है।
राजनीति
सरकारी विज्ञापनों में पूर्व सीएम के नाम और पार्टी चिन्ह पर प्रतिबंध के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची तमिलनाडु सरकार

नई दिल्ली, 4 अगस्त। तमिलनाडु सरकार ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया है, जिसमें सरकार द्वारा संचालित कल्याणकारी योजनाओं के विज्ञापनों में जीवित व्यक्तियों, पूर्व मुख्यमंत्रियों, नेताओं या राजनीतिक पार्टी के प्रतीकों की छवियों का उपयोग करने पर रोक लगा दी गई थी।
वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी के तमिलनाडु सरकार की विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) का उल्लेख करने के बाद, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) ने इस मामले को इसी सप्ताह तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्त की।
रोहतगी ने कहा, “यह एक अत्यंत आवश्यक और असामान्य मामला है। मद्रास उच्च न्यायालय ने आदेश पारित किया है कि राज्य सरकार की किसी भी योजना में मुख्यमंत्री या किसी अन्य राजनीतिक व्यक्ति का नाम नहीं हो सकता। हम (राज्य सरकार) किसी योजना का नाम क्यों नहीं रख सकते? ये योजनाएं गरीबों के कल्याण के लिए हैं।”
मद्रास उच्च न्यायालय ने 31 जुलाई को पारित एक आदेश में कहा था कि वर्तमान मुख्यमंत्री की तस्वीरें तो अनुमन्य हो सकती हैं, लेकिन सरकारी योजनाओं में वैचारिक हस्तियों, पूर्व मुख्यमंत्रियों या पार्टी के चिन्हों का उपयोग सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के विरुद्ध होगा।
मुख्य न्यायाधीश मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति सुंदर मोहन की पीठ अन्नाद्रमुक सांसद सी. वी. षणमुगम की एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रही थी। षणमुगम ने आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ द्रमुक सरकार ने जन कल्याणकारी योजनाओं की ब्रांडिंग मुख्यमंत्री के नाम और तस्वीर के साथ-साथ पार्टी के पूर्व नेताओं और वैचारिक दिग्गजों की तस्वीरों के साथ करके सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया है।
सरकारी विज्ञापनों की सामग्री को विनियमित करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी किए गए क्रमिक निर्देशों और साथ ही भारत के चुनाव आयोग के 2014 के सरकारी विज्ञापन (सामग्री विनियमन) दिशानिर्देशों का हवाला देते हुए, मुख्य न्यायाधीश एम.एम. श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक अंतरिम आदेश पारित किया। इस आदेश में तमिलनाडु सरकार को कल्याणकारी योजनाओं से संबंधित विज्ञापनों में किसी भी जीवित राजनीतिक व्यक्ति का नाम, या किसी भी राजनीतिक दल के पूर्व मुख्यमंत्रियों या वैचारिक नेताओं की तस्वीरें शामिल करने पर रोक लगा दी गई।
मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा, “सरकारी योजना के नामकरण में किसी जीवित राजनीतिक व्यक्ति का नाम उल्लेखित करना स्वीकार्य नहीं होगा। इसके अलावा, किसी भी सत्तारूढ़ राजनीतिक दल के नाम, उसके प्रतीक चिन्ह/लोगो/प्रतीक/झंडे का उपयोग करना भी प्रथम दृष्टया सर्वोच्च न्यायालय और भारत के चुनाव आयोग के निर्देशों के विरुद्ध प्रतीत होता है।”
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उसका आदेश सरकारी कल्याणकारी कार्यक्रमों के शुभारंभ या कार्यान्वयन पर प्रतिबंध नहीं लगाता है।
राजनीति
दिल्ली विधानसभा का मानसून सत्र : शिक्षा बिल की पक्ष ने की तारीफ तो विपक्ष ने गिनाई खामियां

नई दिल्ली, 4 अगस्त। दिल्ली विधानसभा का मानसून सत्र सोमवार से शुरू हुआ। इस सत्र में शिक्षा बिल, भ्रष्टाचार के आरोपों और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर चर्चा के साथ कई अहम मुद्दे उठाए गए। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और आम आदमी पार्टी (आप) के विधायकों ने सत्र की शुरुआत पर अपनी-अपनी बातें रखीं, जिसमें सरकार के फैसलों की सराहना और आलोचना दोनों शामिल रहीं।
मिडिया से बातचीत में मंत्री पंकज सिंह ने शिक्षा बिल की सराहना की और कहा कि यह बिल दिल्ली के उन बच्चों के लिए लाभकारी होगा, जो शिक्षा से वंचित हैं। उन्होंने मंत्री आशीष सूद की तारीफ करते हुए कहा कि यह बिल माता-पिता को राहत देगा और शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा कदम साबित होगा।
मंत्री कपिल मिश्रा ने सत्र को शानदार और नवीन बताया और कहा कि इस बार विधानसभा में तकनीक का उपयोग हो रहा है, जो इसे पूरी तरह पेपरलेस बनाएगा। उन्होंने दावा किया कि पिछले दस सालों में जो काम नहीं हुए, वे अब पूरे होंगे। उन्होंने विधानसभा के बदले स्वरूप की तारीफ की और इसे आधुनिक बनाने के लिए सरकार के प्रयासों को सराहा।
भाजपा विधायक हरीश खुराना ने इसे ऐतिहासिक क्षण करार दिया और कहा कि दिल्ली विधानसभा पहली बार पूरी तरह पेपरलेस हो रही है, जो पहले हो जानी चाहिए थी।
खुराना ने पूर्व की ‘आप’ सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि अरविंद केजरीवाल की सरकार ने यह कदम क्यों नहीं उठाया? उन्होंने बताया कि सत्र में शिक्षा बिल पर चर्चा होगी और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की दो रिपोर्ट पेश की जाएंगी। इनमें पूर्व सरकार के कथित घोटालों, जैसे निर्माण श्रमिकों और भीम योजना से जुड़े मामले, पर भी चर्चा होगी।
वहीं, विपक्षी दल आम आदमी पार्टी (आप) ने सरकार के शिक्षा बिल और अन्य नीतियों की कड़ी आलोचना की। ‘आप’ विधायक कुलदीप कुमार ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद से दिल्ली के निजी स्कूलों की फीस लगातार बढ़ रही है।
उन्होंने कहा कि सरकार ने फीस नियंत्रण का वादा किया था, लेकिन यह बिल निजी स्कूलों को फीस बढ़ाने की छूट देता है, जो अभिभावकों के हितों के खिलाफ है। उन्होंने सरकार पर निजी स्कूलों के साथ खड़े होने का आरोप लगाया और कहा कि यह बिल अभिभावकों के अधिकारों को कमजोर करता है।
‘आप’ विधायक अनिल झा ने शिक्षा पारदर्शिता बिल को झूठा करार दिया। उन्होंने कहा कि एक तरफ सरकार झुग्गी-झोपड़ियों को हटा रही है, जहां से बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं, और दूसरी तरफ पारदर्शिता बिल की बात कर रही है।
उन्होंने दावा किया कि दिल्ली की 40 प्रतिशत आबादी झुग्गी बस्तियों और अनधिकृत कॉलोनियों में रहती है और सरकार की नीतियां इन लोगों को शहर से बाहर करने की हैं। उन्होंने कहा कि यह बिल पारदर्शिता के नाम पर केवल दिखावा है।
महाराष्ट्र
मुंबई: मदनपुरा में पोस्ट ऑफिस की इमारत ढही, कोई हताहत नहीं

मुंबई के मदनपुरा में एक पुरानी इमारत ताश के पत्तों की तरह ढह गई। इमारत पुरानी अवस्था में थी। इमारत खाली थी, जिसके कारण किसी के हताहत होने की खबर नहीं है। यह इमारत भायखला पश्चिम स्थित मदनपुरा पोस्ट ऑफिस बिल्डिंग में स्थित थी और इसमें ग्राउंड फ्लोर समेत तीन मंजिलें थीं। इमारत के गिरते ही यहां अफरा-तफरी मच गई। फायर ब्रिगेड, बीएमसी और संबंधित कर्मचारी मौके पर पहुंच गए और अब मलबा हटाने का काम भी चल रहा है। इमारत के गिरते ही एक जोरदार धमाका हुआ और हवा में धुआं फैल गया। इमारत गिरने के बाद यहां लोगों की भीड़ जमा हो गई, जिसके कारण यातायात व्यवस्था बाधित हो गई और ट्रैफिक जाम हो गया। जब हादसा हुआ, तब इमारत के आसपास कोई नहीं था। इमारत गिरने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है। प्रशासन ने हादसे के बाद सड़क से मलबा हटाने का काम शुरू कर दिया है यह वीडियो तेज़ी से वायरल हो गया, जिसमें पूरी इमारत कुछ ही पलों में ताश के पत्तों की तरह ढह गई।
मुंबई पुलिस ने मौके पर पहुँचकर लोगों को यहाँ से निकाला, साथ ही सड़क यातायात को सुचारू करने का प्रयास भी किया। मदनपुरा स्थित इमारत का मलबा हटाने का काम फिलहाल युद्धस्तर पर चल रहा है और गनीमत रही कि इस हादसे में कोई हताहत नहीं हुआ। बीएमसी ने इमारत को सी-1 श्रेणी में रखा था और इसे असुरक्षित घोषित किया था। पुलिस ने दुर्घटनास्थल पर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था कर दी है।
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