राजनीति
पेलोसी ने कोविड-19 राहत पैकेज को लेकर आशा व्यक्त की

अमेरिका की हाउस स्पीकर नैंसी पेलोसी ने आशा व्यक्त किया कि डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन सांसद वर्ष के अंत तक एक नए कोविड-19 राहत पैकेज को लेकर एक समझौते पर पहुंच सकते हैं।
पेलोसी ने शुक्रवार को एक वीकली न्यूज कॉन्फ्रेंस में कहा, “जैसा कि आप जानते हैं, हम ऑम्निबस बिल पर बातचीत में लगे हुए हैं। जब मैंने कल लीडर मैककॉनेल से बात की, तो हमने बिल में एक कोविड पैकेज डालने की बात की।”
उन्होंने कहा, “हम सरकार को खुला रखने जा रहे हैं। आप जानते हैं, हम एक सतत संकल्प नहीं करेंगे। लेकिन हमें ऐसा करने के लिए समय निकालने की आवश्यकता है।”
पेलोसी ने कहा,”हमें इसे पूरा करना होगा .. (छुट्टियों के लिए वाशिंगटन से) जाने से पहले। हम इसके बिना नहीं जा सकते।”
उन्होंने कहा कि उन्हें खुशी है कि अब तक जो बात हुई है उससे उन्हें काम होने के संकेत मिल रहे हैं।
पेलोसी की यह टिप्पणी गुरुवार को सीनेट के मेजोरिटी लीडर मिच मैककॉनेल के साथ फोन पर हुई बातचीत के बाद आई है।
राजनीति
राजनीतिक दलों को एमसीएमसी से पूर्व-प्रमाणित कराने होंगे विज्ञापन : चुनाव आयोग

नई दिल्ली, 14 अक्टूबर: भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 और दूसरे राज्यों के उपचुनावों को लेकर एक बड़ा कदम उठाया है। आयोग ने सभी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को निर्देश जारी किए हैं कि अब से वे किसी भी सोशल मीडिया या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम पर राजनीतिक विज्ञापन तभी जारी कर सकेंगे, जब उन्हें संबंधित मीडिया प्रमाणन और अनुरीक्षण समिति (एमसीएमसी) से पूर्व-प्रमाणन मिल जाए।
आयोग ने बताया कि यह निर्णय 6 अक्टूबर को घोषित हुए बिहार विधानसभा चुनावों और 6 राज्यों तथा जम्मू-कश्मीर संघ राज्य क्षेत्र के 8 विधानसभा क्षेत्रों में होने वाले उपचुनावों को ध्यान में रखकर लिया गया है।
आयोग ने प्रेस नोट में बताया कि 9 अक्टूबर को जारी आदेश में कहा गया था कि सभी राष्ट्रीय, राज्यीय और पंजीकृत राजनीतिक दलों तथा चुनाव लड़ने वाले हर उम्मीदवार के लिए यह प्रक्रिया अनिवार्य होगी। बिना प्रमाणन के किसी भी इंटरनेट आधारित प्लेटफॉर्म (जिसमें सोशल मीडिया वेबसाइटें भी शामिल हैं) पर कोई भी राजनीतिक विज्ञापन प्रकाशित नहीं किया जा सकेगा।
इसके लिए देशभर में जिला और राज्य स्तर पर एमसीएमसी समिति गठित कर दी गई है, जो विज्ञापनों के सत्यापन और प्रमाणन की जिम्मेदारी निभाएंगी। साथ ही ये समितियां मीडिया में चलने वाली पेड न्यूज जैसी संदिग्ध गतिविधियों पर भी सख्त निगरानी रखेंगी और आवश्यक कार्रवाई करेंगी।
आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि अब से उम्मीदवारों को नामांकन दाखिल करते समय अपने सभी प्रामाणिक सोशल मीडिया अकाउंट्स का विवरण देना अनिवार्य होगा। इसका उद्देश्य पारदर्शिता सुनिश्चित करना और फर्जी या भ्रामक अकाउंट्स के माध्यम से प्रचार को रोकना है।
भारत निर्वाचन आयोग ने यह भी कहा कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 77(1) और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, सभी राजनीतिक दलों को विधानसभा चुनाव समाप्त होने के 75 दिनों के भीतर अपने सोशल मीडिया प्रचार व्यय का विस्तृत विवरण आयोग को प्रस्तुत करना होगा।
इसमें इंटरनेट कंपनियों, वेबसाइटों और कंटेंट क्रिएटर्स को किए गए भुगतानों, सामग्री के प्रसार तथा सोशल मीडिया अकाउंट्स के संचालन में होने वाले खर्च को भी शामिल किया जाएगा।
राष्ट्रीय समाचार
मुंबई मेट्रो 3: वर्ली स्टेशन से ‘नेहरू’ नाम हटाने पर विवाद, कांग्रेस का सरकार पर हमला

मुंबई, 14 अक्टूबर: मुंबई मेट्रो 3 के वर्ली स्टेशन से ‘नेहरू’ नाम हटाए जाने को लेकर विवाद गहरा गया है।
महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस ने भाजपा सरकार पर निशाना साधते हुए इसे देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की स्मृति का अपमान बताया है। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि भाजपा ने जानबूझकर ‘नेहरू’ नाम हटाकर स्टेशन का नाम केवल ‘साइंस सेंटर’ रखा, क्योंकि उन्हें ‘नेहरू’ नाम से एलर्जी है।
कांग्रेस का कहना है कि वर्ली का यह इलाका लंबे समय से ‘नेहरू साइंस सेंटर’ के नाम से जाना जाता है। यहां तक कि मुंबई मेट्रो 3 के आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल पर ‘डिस्कवरी हब्स’ की सूची में भी इस स्थान को ‘नेहरू साइंस सेंटर’ ही कहा गया है। पार्टी ने इसे पंडित नेहरू के योगदान को मिटाने की साजिश करार दिया और चेतावनी दी कि अगर स्टेशन का नाम ‘नेहरू साइंस सेंटर’ नहीं रखा गया तो वे आंदोलन शुरू करेंगे।
वहीं, सरकार ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि मेट्रो परियोजना का प्रस्ताव जब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने रखा था, तभी से इस स्टेशन का नाम ‘साइंस सेंटर’ प्रस्तावित था। सरकार ने स्पष्ट किया कि इसमें कोई राजनीति नहीं की गई है और कांग्रेस को इस मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए।
यह विवाद तब और गहरा गया जब कांग्रेस ने इसे भारत रत्न पंडित नेहरू की विरासत के साथ छेड़छाड़ का मामला बताया। पार्टी का कहना है कि यह कदम न केवल आपत्तिजनक है, बल्कि देश के स्वतंत्रता संग्राम और विकास में नेहरू के योगदान को कमतर करने की कोशिश है। दूसरी ओर, सरकार का तर्क है कि यह निर्णय प्रशासनिक है और इसका कोई राजनीतिक मकसद नहीं है। इस मुद्दे पर दोनों पक्षों के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है।
राजनीति
बिहार चुनाव : भाजपा-जदयू में बराबर का सीट बंटवारा, ‘बड़े भाई’ का बढ़ता दबदबा

पटना, 13 अक्टूबर: बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर एनडीए ने सीट बंटवारे का फॉर्मूला तय कर लिया है। फॉर्मूले के तहत, भाजपा और जदयू इस बार 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी। वहीं, एनडीए के सहयोगी दलों को 41 सीटें दी गई हैं।
सहयोगी दलों में लोजपा (रामविलास) को 29 सीटें, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) को 6-6 सीटें दी गई हैं। इस बार भाजपा और जदयू दोनों बराबर सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं।
इंफो इन डाटा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, “2025 के बिहार चुनावों में, भाजपा और जेडीयू प्रत्येक 101 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे, जबकि सहयोगी एलजेपी (आरवी), एचएएम और आरएलएम 41 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। पहली बार, भाजपा और जेडीयू दोनों बराबर सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं, जो राज्य में भाजपा के बढ़ते प्रभुत्व और प्रभाव को दर्शाता है।”
इससे पहले के सीट बंटवारे पर अगर हम नजर डालें तो 2005 के अक्टूबर में हुए विधानसभा चुनाव में जदयू 139 सीटों और भाजपा 102 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। इस चुनाव में जदयू को 88 सीटों पर, जबकि भाजपा को 55 सीटों पर सफलता मिली थी।
इसी तरह, 2010 के विधानसभा चुनाव में जदयू 141 और भाजपा 102 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। इस चुनाव में जदयू ने 115 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि भाजपा को 91 सीटें मिलीं।
2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और जदयू के रास्ते अलग-अलग हो गए थे। इस चुनाव में जदयू महागठबंधन के साथ थी और नीतीश कुमार ने राजद और कांग्रेस के सहयोग से सत्ता में वापसी की थी। इस चुनाव में भाजपा ने 157 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन केवल 53 सीटों पर ही जीत हासिल की थी। इसके अलावा, 86 सीटों पर एनडीए के सहयोगी दलों ने अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें महज 5 सीटों पर ही जीत दर्ज की थी।
वहीं, 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू 115 सीटों पर, भाजपा 110 सीटों पर और अन्य सहयोगी दल 18 सीटों पर चुनाव लड़े थे। इस चुनाव में भाजपा ने 74 सीटों पर और जदयू ने 43 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसके अलावा, सहयोगी दल 8 सीट जीतने में कामयाब रहे थे।
हालांकि, 2025 में भाजपा और जदयू के बीच 101-101 सीटों का बराबर बंटवारा हुआ है। इस बदलाव से यह साफ है कि भाजपा बिहार की राजनीति में अब जूनियर पार्टनर नहीं रही। राजनीतिक जानकारों की मानें तो यह बराबरी का फॉर्मूला चुनावी मैदान में दोनों दलों के बीच समान साझेदारी का संदेश देगा।
-
व्यापार5 years ago
आईफोन 12 का उत्पादन जुलाई से शुरू होगा : रिपोर्ट
-
अपराध3 years ago
भगौड़े डॉन दाऊद इब्राहिम के गुर्गो की ये हैं नई तस्वीरें
-
महाराष्ट्र3 months ago
हाईकोर्ट ने मुंबई पुलिस और महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नोटिस जारी किया, मस्जिदों के लाउडस्पीकर विवाद पर
-
अनन्य3 years ago
उत्तराखंड में फायर सीजन शुरू होने से पहले वन विभाग हुआ सतर्क
-
न्याय1 year ago
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के खिलाफ हाईकोर्ट में मामला दायर
-
अपराध3 years ago
बिल्डर पे लापरवाही का आरोप, सात दिनों के अंदर बिल्डिंग खाली करने का आदेश, दारुल फैज बिल्डिंग के टेंट आ सकते हैं सड़कों पे
-
अपराध3 years ago
पिता की मौत के सदमे से छोटे बेटे को पड़ा दिल का दौरा
-
राष्ट्रीय समाचार8 months ago
नासिक: पुराना कसारा घाट 24 से 28 फरवरी तक डामरीकरण कार्य के लिए बंद रहेगा