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Saturday,05-July-2025
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कृषि सुधार पर क्यों हो रहा विवाद, पंजाब, हरियाणा में विधेयक पर बवाल

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Congress

कृषि क्षेत्र में सुधार के नए कार्यक्रमों को लागू करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन अहम विधेयकों को संसद की मंजूरी मिल चुकी है। लेकिन विधेयक पर विवाद कम नहीं हुआ है। इन तीनों विधेयकों पर सबसे ज्यादा बवाल पंजाब और हरियाणा में मचा है। किसान संगठनों ने शुक्रवार को भारत बंद का एलान किया है। कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए उठाए गए कदमों पर विवाद की मुख्य वजह यह है कि किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर फसलों की खरीद को लेकर आशंकित हैं। हालांकि केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने किसानों को आश्वस्त किया है कि एमएसएपी पर फसलों की खरीद पूर्ववत जारी रहेगी। फिर भी पंजाब और हरियाणा में किसानों की शंका खत्म नहीं हुई है।

एमएसपी पर सबसे ज्यादा गेहूं या धान की खरीद इन दोनों राज्यों में व्यापक पैमाने पर होती है और किसानों को आशंका है कि नये कानून के बाद एमएसपी पर खरीद नहीं होने से उनको फसलों का उचित भाव नहीं मिल पाएगा।

दरअसल, कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक 2020 में ट्रेड एरिया में कृषि उत्पादों की खरीद पर कोई शुल्क नहीं है जबकि कृषि उपज विपणन समिति द्वारा संचालित मंडियों में विभिन्न राज्यों में अलग-अलग शुल्क है। पंजाब में यह शुल्क सबसे ज्यादा है, इसलिए मंडियों में खरीद नहीं होने की सूरत में उनकी फसलों की खरीद की व्यवस्था सुनिश्चित होने को लेकर किसान आशंकित हैं।

उनकी यह भी आशंका है कि अगर मंडियां समाप्त हो जाएगी तो फिर उनको औने-पौने भाव अनाज बेचना होगा। पंजाब में भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के प्रदेश अध्यक्ष और संगठन के ऑल इंडिया कोर्डिनेशन कमेटी के सीनियर कोर्डिनेटर अजमेर सिंह लखोवाल ने आईएएनएस से कहा कि केंद्र सरकार अगर किसानों के हितों में सोचती तो विधेयक में यह प्रावधान किया जाता कि किसानों के किसी भी उत्पाद (जिनके लिए एमएमपी की घोषणा की जाती है) की खरीद एमएसपी से कम भाव पर न हो। उन्होंने कहा कि विधेयक में कॉरपोरेट फॉमिर्ंग के जो प्रावधान किए गए हैं उससे खेती में कॉरपोरेट का दखल बढ़ेगा और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को फायदा मिलेगा।

कांग्रेस समेत विधेयक का विरोध करने वाले राजनीतिक दलों का भी यही कहना है कि इन विधेयकों के माध्यम से सरकार ने किसानों से ज्यादा कॉरपोरेट को फायदा पहुंचाने की कोशिश की है।

कृषि विपणन बाजार विशेषज्ञ बताते हैं कि पंजाब और हरियाणा में कृषि उत्पादों की खरीद का कल्चर और राज्यों से अलग है, वहां गेहूं, चावल जैसे खाद्यान्न हो या कपास जैसी नकदी फसल, इनकी खरीद एमएसपी पर ज्यादा होती है। इसलिए मंडियों में खरीद की व्यवस्था नहीं होने पर किसानों को एमएसपी मिलने को लेकर आशंका है।

हालांकि कृषि एवं खाद्य मामलों के एक विशेषज्ञ ने बताया कि देश में सबसे ज्यादा एमएसपी पर अनाजों की खरीद पंजाब और हरियाणा में होती है और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत सार्वजनिक वितरण प्रणाली के करीब 80 करोड़ लाभार्थियों को किफायती दरों पर अनाज मुहैया करवाना सरकार की जिम्मेदारी है, इसलिए नये कानून से किसानों को एमएसपी पर अनाज की खरीद को लेकर आशंकित होने की आवश्यकता नहीं है।

एपीडा के अधिकारी ए.के. गुप्ता ने कहा कि बासमती के लिए कोई एमएसपी नहीं है लेकिन पंजाब और हरियाणा के किसानों के लिए बासमती की खेती काफी लाभकारी साबित हुई है। उन्होंने कहा कि कृषि उत्पादों में सबसे ज्यादा निर्यात बासमती चावल का होता है। उन्होंने कहा कि विदेशी बाजार में भारतीय उत्पादों को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए आक्रामक रणनीति की जरूरत होती है जो बड़ी कंपनियों के इस क्षेत्र में प्रवेश से संभव हो पाएगा और इसका फायदा किसानों को मिलेगा।

कृषि से जुड़े तीन अहम विधेयकों, कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक 2020, कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक-2020 को भी संसद की मंजूरी मिल चुकी है। ये तीनों विधेयक कोरोना काल में पांच जून को घोषित तीन अध्यादेशों की जगह लेंगे।

पंजाब, हरियाणा ही नहीं, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की मंडियों के कारोबारियों का भी कहना है कि अगर प्रदेश सरकार मंडी शुल्क समाप्त कर देती या उसमें कटौती करती है तो मंडी की व्यवस्था पर नये कानून से ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा और अनाजों की खरीद मंडियों में पूर्ववत जारी रहेगी।

महाराष्ट्र

मुंबई: एनसीपी नेता नवाब मलिक के खिलाफ यास्मीन वानखेड़े के मामले में रिपोर्ट दाखिल न करने पर बांद्रा कोर्ट ने अंबोली पुलिस को फटकार लगाई

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मुंबई: बांद्रा स्थित मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट अदालत ने शुक्रवार को अंबोली पुलिस को कारण बताओ नोटिस जारी किया क्योंकि वह नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के पूर्व जोनल निदेशक समीर वानखेड़े की बहन यास्मीन द्वारा वरिष्ठ एनसीपी नेता नवाब मलिक के खिलाफ उनका पीछा करने और बदनाम करने की शिकायत पर जांच रिपोर्ट पेश करने में विफल रही।

यास्मीन, जो एक वकील भी हैं, ने सबसे पहले 2021 में अंधेरी मजिस्ट्रेट कोर्ट में शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन बाद में इसे बोरीवली के मजिस्ट्रेट कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया, जो एक एमपी-एमएलए कोर्ट था। जब बांद्रा की एक अदालत को भी एमपी-एमएलए कोर्ट के रूप में नामित किया गया, तो अधिकार क्षेत्र के आधार पर मामले को स्थानांतरित कर दिया गया। अधिकार क्षेत्र के मुद्दों के कारण सालों तक शिकायत पर सुनवाई नहीं हुई।

जनवरी में ही मजिस्ट्रेट कोर्ट ने पुलिस को मलिक के खिलाफ शिकायत में लगाए गए आरोपों की जांच करने का आदेश दिया था। कोर्ट ने पुलिस को 15 फरवरी तक जांच की रिपोर्ट पेश करने को कहा था। हालांकि, आज तक रिपोर्ट दाखिल नहीं की गई है।

आरोप है कि मलिक ने बदला लेने के लिए यास्मीन की तस्वीरें पोस्ट कीं और उन्हें ‘लेडी डॉन’ कहा। पीछा करने के लिए कार्रवाई की मांग करते हुए, उसने दावा किया कि उसकी तस्वीरों को विभिन्न प्लेटफार्मों से अवैध रूप से प्राप्त किया गया और कथित अपमानजनक टिप्पणियों के साथ प्रसारित किया गया।

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राष्ट्रीय समाचार

गर्व का क्षण! प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन से पहले त्रिनिदाद और टोबैगो की संसद में भारतीय राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ बजाया गया

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पोर्ट ऑफ स्पेन: 140 अरब भारतीयों के लिए गर्व का क्षण तब आया जब शुक्रवार (स्थानीय समय) को त्रिनिदाद और टोबैगो की संसद में राष्ट्रगान बजाया गया। त्रिनिदाद और टोबैगो की संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन से पहले ‘जन गण मन’ बजाया गया।

प्रधानमंत्री मोदी कैरेबियाई देश की संसद को संबोधित करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बन गए हैं। उल्लेखनीय है कि भारत ने 1968 में त्रिनिदाद और टोबैगो को संसद अध्यक्ष की कुर्सी उपहार में दी थी।

कैरेबियाई संसद में अपने संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री ने कहा कि आतंकवाद “मानवता का दुश्मन” है तथा उन्होंने आतंकवाद को कोई आश्रय या स्थान न देने के लिए एकजुट होने की आवश्यकता पर बल दिया।

उन्होंने कहा, “हमारी विकास साझेदारियां मांग आधारित, सम्मानजनक और बिना किसी शर्त के हैं।” उनका स्पष्ट संदर्भ वैश्विक दक्षिण के लिए भारत के दृष्टिकोण और चीन के दृष्टिकोण के बीच अंतर को स्पष्ट करना था।

भू-राजनीतिक प्रतिकूल परिस्थितियों पर चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने राजनीति और सत्ता की प्रकृति में मूलभूत बदलावों के साथ-साथ बढ़ते वैश्विक “विभाजन, विवाद और असमानताओं” के बारे में बात की।

उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि मुक्त व्यापार दबाव में है और विश्व जलवायु परिवर्तन, खाद्य, स्वास्थ्य और ऊर्जा सुरक्षा की चुनौतियों का सामना कर रहा है।

“पुरानी संस्थाएं शांति और प्रगति लाने के लिए संघर्ष कर रही हैं। साथ ही, वैश्विक दक्षिण उभर रहा है। वे एक नई और अधिक न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था देखना चाहते हैं।”

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “जब संयुक्त राष्ट्र 75 वर्ष का हुआ, तो विकासशील देशों में बड़ी उम्मीद जगी थी। उम्मीद थी कि लंबे समय से लंबित सुधार साकार होंगे। कि आखिरकार उनकी आवाज सुनी जाएगी। लेकिन यह उम्मीद निराशा में बदल गई।”

कैरेबियाई देश की अपनी दो दिवसीय यात्रा समाप्त करने के बाद प्रधानमंत्री मोदी आज अर्जेंटीना पहुंचे।

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राष्ट्रीय समाचार

वित्त वर्ष 2026 में भारत रिकॉर्ड 1.15 बिलियन टन कोयला उत्पादन करने के लिए तैयार है

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नई दिल्ली, 5 जुलाई। एक नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत वित्त वर्ष 2025-26 में 1.15 बिलियन टन का रिकॉर्ड कोयला उत्पादन हासिल करने की राह पर है।

केयरएज रेटिंग्स द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, देश का घरेलू कोयला उत्पादन वित्त वर्ष 2025 में 1,047.6 मिलियन टन के सर्वकालिक उच्च स्तर को छू गया, जो पिछले पांच वर्षों में 10 प्रतिशत की औसत वार्षिक दर से बढ़ रहा है।

यह वृद्धि कोयला खनन को अधिक कुशल और आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से नीति सुधारों की एक श्रृंखला द्वारा संचालित है।

सिंगल विंडो क्लीयरेंस सिस्टम, माइन डेवलपर और ऑपरेटर (एमडीओ) मॉडल, कोयला खनन में 100 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति और कोयला ब्लॉकों की नियमित नीलामी जैसी प्रमुख सरकारी पहलों ने घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने में मदद की है।

खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम में संशोधन ने भी नियामक बाधाओं को दूर करने और निजी खिलाड़ियों को आकर्षित करने में प्रमुख भूमिका निभाई है। कोयला उत्पादन में वृद्धि बिजली क्षेत्र की बढ़ती मांग के जवाब में हुई है, जिसका वित्त वर्ष 25 में कुल कोयला प्रेषण में 82 प्रतिशत हिस्सा था। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की कुल कोयला खपत वित्त वर्ष 21 में 922.2 मिलियन टन से बढ़कर वित्त वर्ष 25 में 1,270 मिलियन टन हो गई, जो उद्योगों, घरों और ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की बढ़ती जरूरतों के कारण है। कुल खपत में घरेलू कोयले की हिस्सेदारी भी बढ़ गई है – वित्त वर्ष 21 में 77.7 प्रतिशत से वित्त वर्ष 25 में 82.5 प्रतिशत हो गई। आत्मनिर्भरता की ओर इस बदलाव को जनवरी तक 184 कोयला खदानों के आवंटन से समर्थन मिला है, जिनमें से 65 ब्लॉकों में उत्पादन शुरू हो चुका है। रिपोर्ट में कहा गया है, “इन सक्रिय खदानों ने वित्त वर्ष 25 में लगभग 136.59 मिलियन टन उत्पादन किया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 34 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज करता है।” सबसे बड़े कोयला उत्पादक कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) ने वित्त वर्ष 25 में कुल उत्पादन में लगभग 74 प्रतिशत का योगदान दिया। निजी और कैप्टिव खनिकों ने भी बेहतर प्रदर्शन किया, बेहतर लॉजिस्टिक्स और बेहतर तकनीक ने कोयला ब्लॉकों की व्यवहार्यता को बढ़ाया। मार्च में शुरू की गई कोयला ब्लॉक नीलामी के 12वें दौर में घरेलू उत्पादन को और बढ़ाने के लिए 28 और खदानों की पेशकश की गई। इस बीच, बेहतर आपूर्ति स्थितियों और सहायक सरकारी नीतियों के कारण कोयले की कीमतों में लगातार गिरावट देखी गई है। रिपोर्ट के अनुसार, यह प्रवृत्ति वित्त वर्ष 26 में जारी रहने की उम्मीद है, जिससे उद्योगों के लिए कोयला अधिक किफायती हो जाएगा।

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