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Wednesday,27-August-2025
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जीडीपी में गिरावट भारत के सब के लिए चेतावनी : रघुराम राजन

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Raghuram-Rajan

एक सप्ताह पहले वित्तवर्ष 2020-21 की तिमाही अप्रैल-जून के दौरान भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में गिरावट की खबर सामने आने के बाद रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर और जाने माने अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने कहा है कि जीडीपी में नकारात्मक बढ़ोतरी हर किसी के लिए खतरे की घंटी की तरह है। हालिया परिदृश्य में सरकारी राहत या समर्थन के महत्व को लेकर उन्होंने इसे ‘अल्प’ माना।

लिंकडिन पर प्रकाशित नोट में उन्होंने यह भी कहा कि यदि अनौपचारिक क्षेत्रों के नुकसान को ध्यान में रखा जाए तो क्वार्टर-1 के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 23.9 प्रतिशत गिरावट और भी बुरा होगा।

राजन ने कहा, “वित्तवर्ष 2020-21 की पहली तिमाही के लिए हाल ही में जारी त्रैमासिक जीडीपी विकास के आंकड़े को लेकर हम सभी को चिंतित होना चाहिए। भारत में 23.9 प्रतिशत गिरावट (और संभवत: तब और बुरा होगा, यदि हम अनौपचारिक क्षेत्र में क्षति का अनुमान लगाते हैं) की तुलना इटली में 12.4 फीसदी और संयुक्त राज्य अमेरिका में 9.5 फीसदी की गिरावट के साथ की गई है, हालांकि ये दोनों सर्वाधिक कोविड प्रभावित हैं।”

इनकी तुलना में भारत और भी ज्यादा खराब स्थिति में है।

राजन ने कहा कि चूंकि कोरोना वायरस महामारी अभी भी भारत में फैला हुआ है, इसलिए सोच-समझ कर किए गए खर्च, खास तौर पर रेस्तरां और उससे जुड़े रोजगार, जहां संक्रमण के फैलने का ज्यादा खतरा है, वे वायरस के रहने तक निचले पायदान पर ही रहेंगे। उन्होंने साथ ही कहा कि इस परिदृश्य में सरकारी राहत और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।

उन्होंने कहा कि हालांकि हालिया परिदृश्य में खासकर, गरीब परिवारों को मुफ्त खाद्यान्न और छोटे और मध्यम (एसएमई) फर्मों को ऋण देने के लिए बैंकों को क्रेडिट गारंटी के रूप में सरकार की पहल या समर्थन बहुत ही कम है।

पूर्व गवर्नर ने कहा, “आज और अधिक समर्थन करने की सरकार की अनिच्छा आंशिक प्रतीत हो रही है, क्योंकि वह संभावित भविष्य के लिए संसाधनों का संरक्षण करना चाहती है। यह रणनीति खुद को पीछे करने वाली है।”

उनके अनुसार, ऐसे समय में जब सरकार को अधिक खर्च करने और अधिक कार्रवाई करने के लिए संसाधनों का विस्तार करना चाहिए, तब भारत सरकार प्रारंभिक विस्फोट के बाद पीछे हटती प्रतीत हो रही है।

उन्होंने कहा कि सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र की फर्मो को अपने भुगतान जल्दी से पूरे कर देने चाहिए, ताकि लिक्विडिटी निगमों तक पहुंच सके।

इसके अलावा, एक निश्चित आकार से नीचे की छोटी फर्मो को कॉर्पोरेट आय और पिछले साल या उसके कुछ हिस्से का भुगतान किए गए जीएसटी कर के आधार पर छूट दी जा सकती है।

राजन ने कहा, “यह उनकी ईमानदारी के लिए पुरस्कार के तौर पर हार्ड-टू-मैनिपुलेट मीट्रिक के आधार पर छोटी, व्यवहार्य फर्मो की मदद करने के उद्देश्य की तरह होगा।”

राजन के अनुसार, निजी क्षेत्र से भी मदद के लिए आग्रह किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा, “एमेजॉन, रिलायंस, और वॉलमार्ट जैसे कैश-रिच प्लेटफॉर्म छोटे आपूर्तिकर्ताओं को अपने पैरों पर वापस खड़ा करने में मदद कर सकते हैं, यहां तक कि उनमें से कुछ को फंडिंग भी कर सकते हैं। सभी बड़ी फर्मों को अपने प्राप्य को जल्दी से क्लियर करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।”

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राजनीति

भारत की जीडीपी अगले तीन वर्षों में सालाना 6.8 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान : एसएंडपी ग्लोबल

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नई दिल्ली, 14 अगस्त। एसएंडपी ग्लोबल ने गुरुवार को कहा कि भारत दुनिया की सबसे अच्छी प्रदर्शन करने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक बना हुआ है और हमें उम्मीद है कि मध्यम अवधि में विकास की गतिशीलता जारी रहेगी। इसी के साथ, अगले तीन वर्षों में देश की जीडीपी में सालाना 6.8 प्रतिशत की वृद्धि होगी।

भारत राजकोषीय कंसोलिडेशन को प्राथमिकता दे रहा है, जो मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर को बनाए रखते हुए सस्टेनेबल पब्लिक फाइनेंस प्रदान करने के लिए सरकार की राजनीतिक प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

ग्लोबल रेटिंग एजेंसी ने एक नोट में कहा, “हमारा अनुमान है कि इस वर्ष भारत की रियल जीडीपी वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत रहेगी, जो व्यापक वैश्विक धीमी गति के बीच उभरते बाजारों के समकक्षों की तुलना में अनुकूल है।”

इसमें कहा गया है, “मजबूत आर्थिक विस्तार का भारत के क्रेडिट मेट्रिक्स पर सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है और हमें उम्मीद है कि मजबूत आर्थिक बुनियादी ढांचे अगले दो से तीन वर्षों में विकास की गति को सहारा देंगे। इसके अलावा, मौद्रिक नीति सेटिंग्स मुद्रास्फीति संबंधी अपेक्षाओं के प्रबंधन के लिए तेजी से अनुकूल हो गई हैं।”

पिछले पांच-छह वर्षों में सरकारी खर्च की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। वर्तमान प्रशासन ने बजट आवंटन को इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च करने के लिए तेजी से स्थानांतरित किया है। इसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) वित्त वर्ष 2026 में बढ़कर 11.2 ट्रिलियन रुपए या सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 3.1 प्रतिशत हो जाएगा।

यह एक दशक पहले के सकल घरेलू उत्पाद के 2 प्रतिशत से ज्यादा है। राज्यों द्वारा किए गए पूंजीगत व्यय को जोड़ने पर इंफ्रास्ट्रक्चर में कुल सार्वजनिक निवेश सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 5.5 प्रतिशत होने का अनुमान है, जो अन्य संप्रभु समकक्षों के बराबर या उससे अधिक है।

ग्लोबल रेटिंग एजेंसी ने कहा, “हमारा मानना है कि भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर और कनेक्टिविटी में सुधार से वे रुकावटें दूर होंगी, जो दीर्घकालिक आर्थिक विकास में बाधा बन रही हैं।”

पिछले तीन वर्षों में, वैश्विक ऊर्जा कीमतों में उतार-चढ़ाव और आपूर्ति-पक्ष के झटकों के बावजूद, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की वृद्धि दर औसतन 5.5 प्रतिशत रही। हाल के महीनों में, यह भारतीय रिजर्व बैंक के 2 प्रतिशत-6 प्रतिशत के लक्ष्य की निचली सीमा पर रही।

ये घटनाक्रम, घरेलू पूंजी बाजार की मजबूती के साथ, मौद्रिक परिदृश्य के लिए एक अधिक स्थिर और सहायक वातावरण को दर्शाते हैं।

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व्यापार

आरबीआई 2025 की चौथी तिमाही में रेपो रेट में कर सकता है 25 आधार अंक की कटौती: एचएसबीसी

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नई दिल्ली, 13 अगस्त। जून से जारी हाई-फ्रीक्वेंसी डेटा में अगर नरमी कायम रहती है तो भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) इस वर्ष की चौथी तिमाही में रेपो रेट में 25 आधार अंक की कटौती कर सकता है। यह जानकारी बुधवार को जारी रिपोर्ट में दी गई।

एचएसबीसी ग्लोबल इन्वेस्टमेंट रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार,अगर हाई-फ्रीक्वेंसी इंटीकेटर्स आने वाले महीनों में कमजोर रहते हैं तो आरबीआई विकास दर का अनुमान घटा सकता है। ऐसे में केंद्रीय बैंक द्वारा 2025 की चौथी तिमाही में रेपो रेट को 0.25 प्रतिशत घटाकर 5.25 प्रतिशत किया जा सकता है।

आरबीआई की ओर से अगस्त की मौद्रिक नीति में रेपो रेट को 5.5 प्रतिशत पर रख गया था। इससे पहले जून की मौद्रिक नीति में केंद्रीय बैंक ने रेपो रेट में 0.50 प्रतिशत की कटौती की थी।

जुलाई में खुदरा महंगाई दर सालाना आधार पर 1.55 प्रतिशत रही है। यह महंगाई का आठ वर्ष का निचला स्तर था। खाद्य उत्पादों की कीमतों में मामूली बढ़ोतरी है, लेकिन ऊर्जा की कीमतों और मुख्य महंगाई दर में नरमी जारी है।

रिपोर्ट में बताया गया कि वित्त वर्ष 26 में महंगाई औसत 3.2 प्रतिशत पर रहने की उम्मीद है। इसकी वजह कम आधार होना, अनाज का अच्छा भंडार, खरीफ फसलों की अच्छी बुआई और कमोडिटी की कीमतों का कमजोर होना है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सब्जियों की कीमतें, जो पहले छह महीने तक अवस्फीति में थीं, उम्मीद से ज्यादा तेजी से बढ़ी हैं, जिसके कारण आंकड़े अप्रत्याशित रहे।

सब्जियों को छोड़कर, मुख्य महंगाई दर घटकर 3.6 प्रतिशत रह गई, जो पहले 3.8 प्रतिशत थी।

खाद्य पदार्थों की कीमतें छह महीने बाद अपस्फीति से उबरीं, जिनमें 0.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 9.7 प्रतिशत भार वाले भारी अनाजों में लगातार दूसरे महीने गिरावट जारी रही।

रिपोर्ट में आगे कहा गया है, “दालों, चीनी और फलों की गिरती कीमतों ने खाद्य तेल, अंडे, मांस, मछली और सब्जियों की कीमतों में वृद्धि की आंशिक रूप से भरपाई कर दी। वार्षिक महंगाई लाल निशान में रही, जिससे मुख्य आंकड़े आठ साल के निचले स्तर पर आ गए।”

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अंतरराष्ट्रीय

डोनाल्ड ट्रंप का 50 प्रतिशत वाला टैरिफ बम, भारत के लिए ‘अब्बा-डब्बा-जब्बा’

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PM MODI

नई दिल्ली, 8 अगस्त। अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा रह-रहकर भारत को टैरिफ का दिखाया जा रहा डर अब उनके लिए ही परेशानी का कारण बनता जा रहा है। पिछले कुछ दिनों में जिस तरह से अमेरिका भारत के खिलाफ टैरिफ बम फोड़ने की धमकी दे रहा है, उसका माकूल जवाब भारत सरकार की तरफ से दिया जा रहा है।

दरअसल, भारत एक ऐसा वैश्विक बाजार बन चुका है, जिसकी जरूरत दुनिया के देशों को अपना व्यापार चलाने के लिए है। इसकी सबसे बड़ी वजह भारत की परचेजिंग पावर पैरिटी है। भारत इस मामले में अमेरिका से आगे है और यही वजह है कि भारत के बाजार पर पूरी दुनिया की नजर है।

पिछले कुछ दिनों में भारत को अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा दी जा रही टैरिफ धमकी का जवाब जिस तरह से दिया जा रहा है, वह भारत की वैश्विक ताकत को दिखाता है। एक तरफ जहां भारत के खिलाफ टैरिफ की धमकी अमेरिका के राष्ट्रपति दे रहे हैं तो उनका जवाब भारत की तरफ से देने के लिए विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता सामने आ रहे हैं। मतलब दुनिया के सबसे ताकतवर देश होने का दंभ भरने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति की धमकी का जवाब भी भारत के प्रधानमंत्री या विदेश मंत्री स्तर के नेता के द्वारा नहीं दिया जा रहा है।

अब एक बार भारत की तरफ से किए गए निश्चय पर ध्यान दें तो आपको पता चल जाएगा कि आखिर भारत अमेरिका की टैरिफ वाली धमकी को इतनी गंभीरता से क्यों नहीं ले रहा है। भारत ने ट्रंप की टैरिफ वाली धमकी पर जो जवाब दिया है, उसका संदेश साफ है। भारत की तरफ से दिए गए जवाब को देखेंगे तो इससे स्पष्ट होता है कि अमेरिका के टैरिफ की भारत को कोई चिंता नहीं है और इसकी सबसे बड़ी वजह भारत का खुद आत्मनिर्भर बनना है। चाहे वह रक्षा का मामला हो या सुरक्षा का। दूसरी तरफ यह भी देखा जा रहा है कि अमेरिका से डील की किसी डेडलाइन की चिंता भारत में दिख नहीं रही है और सरकार की तरफ से साफ संदेश जा रहा है कि भारत प्रेशर में आने वाला नहीं है, ना ही प्रेशर में आकर कोई डील करेगा। इसके साथ ही भारत ट्रंप की मंशा भी अच्छी तरह से समझ रहा है कि अमेरिका भारत के पूरे बाजार में बेरोकटोक एक्सेस चाहता है जो किसी हाल में भारत देने को तैयार नहीं है।

इसके साथ ही नरेंद्र मोदी सरकार देश के किसानों और छोटे व्यवसायियों को किसी भी हाल में नुकसान होने देने के मूड में नहीं दिख रही है। वहीं, अमेरिका की तरफ से इस टैरिफ धमकी के जरिए इस पर भी दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है कि भारत अपने सबसे पुराने मित्र रूस से अपनी दोस्ती समाप्त कर ले तो भारत का यह संदेश भी स्पष्ट है कि ऐसा कभी होने वाला नहीं है।

भारत की अर्थव्यवस्था को ‘डेड’ बताने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को भी पता है कि भारत का बाजार जिस दिन अमेरिका के लिए बंद हुआ, उस दिन उनकी कई कंपनियों पर ताले लग जाएंगे। इसकी सबसे बड़ी वजह भारत की परचेजिंग पावर पैरिटी है। अब एक बार जानिए कि परचेजिंग पावर पैरिटी है क्या?

दरअसल, क्रय-शक्ति समता (परचेजिंग पावर पैरिटी- पीपीपी) अंतरराष्ट्रीय विनिमय का एक सिद्धांत है। जिसको आसान भाषा में समझिए कि यह एक-दूसरे देश में जीवन शैली पर किए गए व्यय के अनुपात को दर्शाता है। इसके अनुसार विभिन्न देशों में एकसमान वस्तुओं की कीमत समान रहती है। मतलब परचेजिंग पावर पैरिटी विभिन्न देशों में कीमतों का माप है, जो देशों की मुद्राओं की पूर्ण क्रय शक्ति की तुलना करने के लिए विशिष्ट वस्तुओं की कीमतों का उपयोग करती है।

यानी प्रत्येक देश में सामान और सेवाएं खरीदने के लिए एक देश की मुद्रा को दूसरे देश की मुद्रा में परिवर्तित करना होता है। अब इसे ऐसे समझें कि भारत के मध्यम वर्ग के लिए एक साल का बजट अगर 25 लाख का होता है, तो अमेरिका के मध्यम वर्गीय परिवार के लिए यही बजट यहां की मुद्रा के अनुसार 80 लाख से ज्यादा होता है।

अब भारत ने अमेरिका के उस दोहरे रवैये को भी उजागर कर दिया है, जिसमें अमेरिका भारत को रूस से दोस्ती और व्यापार खत्म करने के लिए धमकी दे रहा है। वहीं, वह खुद रूस से भारी मात्रा में तेल, गैस और फर्टिलाइजर खरीदता है।

हालांकि, भारत का विपक्ष अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत के ‘डेड’ इकोनॉमी वाले दावे पर सरकार को घेरने की कोशिश तो कर रहा है। लेकिन, विपक्ष के शशि थरूर, मनीष तिवारी और राजीव शुक्ला के साथ कई अन्य नेता भी हैं, जो ट्रंप के इस दावे को भद्दा मजाक तक बता दे रहे हैं। मतलब भारत में तो ट्रंप के दावे को भी मजाक में ही लिया जा रहा है।

डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका की सत्ता में वापसी के बाद दुनिया के 70 से ज्यादा देशों पर टैरिफ बम फोड़ रखा है और उसे भी यह पता है कि इससे अमेरिका को भी बड़ा नुकसान होने वाला है। इसको सबसे पहले टेस्ला के मालिक एलन मस्क ने समझा और उन्होंने सबसे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति का विरोध करते हुए उनका साथ छोड़ दिया। ट्रंप के टैरिफ बम वाले दिखावे की वजह से अमेरिका के उद्योगपति भी घबराए हुए हैं। डोनाल्ड ट्रंप के साथ जिन देशों ने ट्रेड डील करने का दावा किया, उन्हें भी इस टैरिफ के मामले में नहीं बख्शा गया है। अब पाकिस्तान को हीं देख लें, जिस देश का सेना प्रमुख डोनाल्ड ट्रंप के लिए नोबेल शांति पुरस्कार की मांग कर रहा है, उस पर भी ट्रंप ने 19 प्रतिशत टैरिफ ठोंक रखा है।

वैसे भी ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की व्यापक सफलता के बाद से भारत में निर्मित हथियारों की दुनिया में तेजी से मांग बढ़ी है। ऐसे में अमेरिका, जो अपने आप को आधुनिक हथियारों का सबसे बड़ा डीलर मानता है, उसकी चिंता ज्यादा बढ़ गई है।

दूसरा, भारत तेल की खरीदारी भी भारी मात्रा में रूस से करता है, जबकि अमेरिका इस पर भी नजरें गड़ाए बैठा है कि भारत रूस को छोड़कर उससे तेल का सौदा करे। लेकिन, इस सब के बीच जैसे ही ट्रंप ने भारत के खिलाफ 50 प्रतिशत टैरिफ की बात कही, उससे पहले पीएम मोदी के चीन दौरे और फिर राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे की खबर ने उसकी बेचैनी बढ़ा दी है। अमेरिका जानता है कि रूस, चीन और भारत अगर एक बेस पर आ गए तो अमेरिका के लिए यह बड़ा महंगा पड़ सकता है। डोनाल्ड ट्रंप भी इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि भारत के खिलाफ जो उनका टैरिफ बम है, वह उनके देश की सेहत को भी नुकसान पहुंचाएगा। अमेरिका में दवाएं, ज्वेलरी, गोल्ड प्लेटेड गहने, स्मार्टफोन, तौलिये, बेडशीट, बच्चों के कपड़े तक महंगे हो जाएंगे।

अभी ये तो भारत की बात थी, लेकिन देखिए कैसे अमेरिका के खिलाफ दुनिया के और देश आगे आए हैं। भारत की वैश्विक ताकत का अंदाजा इससे लगाइए कि अभी कुछ दिन पहले विदेशी मीडिया की खबरों के अनुसार ब्राजील के राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा ने अमेरिकी टैरिफ के मुद्दे को सुलझाने के लिए ट्रंप से बात करने के सवाल पर साफ कह दिया कि उन्हें इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। इसके बजाय वे भारत के पीएम नरेंद्र मोदी को कॉल कर लेंगे, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को कॉल कर लेंगे, लेकिन वे ट्रंप को कॉल नहीं करेंगे।

लूला ने जो कहा उसके अनुसार, ”मैं ट्रंप को कॉल नहीं करूंगा क्योंकि वे बात ही नहीं करना चाहते हैं, मैं शी जिनपिंग को कॉल करूंगा, मैं पीएम मोदी को कॉल करूंगा, मैं पुतिन को इस समय कॉल नहीं करूंगा क्योंकि वे अभी यात्रा करने की स्थिति में नहीं हैं, लेकिन मैं कई और राष्ट्रपतियों को कॉल करूंगा।”

लूला के इस बयान से ट्रंप को कैसी मिर्ची लगी होगी, यह तो सभी जानते हैं। उधर, पीएम मोदी का जिस अंदाज में लूला ने नाम लिया, वह भी ट्रंप के लिए चुभने वाला है। लूला ने तो ट्रंप की नीतियों को “ब्लैकमेल” बताते हुए साफ कर दिया कि अमेरिका ब्राजील पर टैरिफ लगाकर देखे, ब्राजील भी इसका जवाब शुल्क लगाकर देगा।

इसके साथ ही भारत और रूस की दोस्ती ही केवल अमेरिकी राष्ट्रपति की घबराहट की वजह नहीं है। दरअसल, भारत-पाकिस्तान और कंबोडिया और थाइलैंड के बीच सीजफायर को लेकर ट्रंप ने जैसे अपनी पीठ बिना किसी बात के थपथपाई वही कोशिश वह रूस-यूक्रेन के बीच भी सीजफायर होने के बाद करना चाह रहे थे। लेकिन, यूक्रेन-रूस की जंग रोकने के लिए ट्रंप ने जितने हथकंडे अपनाए सब फेल हो गए। पुतिन को ट्रंप ने हाई टैरिफ की धमकी भी दी, लेकिन रूस पर फिर भी कोई असर नहीं पड़ा तो ट्रंप बैखला गए। इसके बाद ट्रंप ने रूस के मित्र देशों और उनके साथ व्यापार करने वालों को निशाना बनाना शुरू किया। इसमें सबसे पहले ट्रंप के निशाने पर भारत, चीन और ब्राजील आए, लेकिन तीनों ही देशों पर ट्रंप की धमकी का वैसा ही असर पड़ा, जैसा रूस पर पड़ा था। अब ट्रंप गुस्से से आग बबूला होकर लगातार बयानबाजी कर रहे हैं।

वहीं, ट्रंप ब्रिक्स देशों के फाउंडर रहे भारत के खिलाफ तो टैरिफ की धमकी दे ही रहे हैं। वह ब्रिक्स में शामिल अन्य देशों के खिलाफ भी 10 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ की धमकी दे चुके हैं। ब्रिक्स दुनिया की उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों का समूह है, जिसमें, ब्राजील, रूस, भारत, चीन, साउथ अफ्रीका, ईरान, मिस्र, इथियोपिया, इंडोनेशिया और संयुक्त अरब अमीरात शामिल है। इन ब्रिक्स देशों की तरफ से एक-दूसरे से अपनी करेंसी में ट्रेड किया जाता है, वहीं इस समूह ने एक प्रपोजल भी दिया था कि इन देशों के बीच ट्रेड के लिए एक इंटरनेशनल करेंसी तैयार की जाए, ऐसे में डॉलर पर बड़े देशों या कहें कि उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों की निर्भरता कम हो जाने से अमेरिका का विश्व में प्रभुत्व बरकरार रखने पर भी खतरा मंडराएगा। ट्रंप को यह चिंता भी सता रही है।

जिस तरह से भारत डोनाल्ड ट्रंप की तमाम धमकियों के बाद भी अपने रुख पर अड़ा हुआ है और भारतीय बाजार को अमेरिका के लिए उसकी शर्तों पर खोलने के लिए तैयार नहीं हो रहा है। इससे भी ट्रंप के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ उभर आई हैं। ऐसे में अब ट्रंप को भारत से जिस भाषा में जवाब मिल रहा है, वह स्पष्ट संकेत दे रहा है कि अमेरिका की टैरिफ धमकी भारत के लिए ‘अब्बा-डब्बा-जब्बा’ जैसी है, इससे ज्यादा कुछ नहीं।

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