अंतरराष्ट्रीय समाचार
पाकिस्तान ने सुरक्षा परिषद में भाषण देने के बारे में बोला झूठ

संयुक्त राष्ट्र में अलग-थलग पड़े पाकिस्तान ने अपने स्थायी मिशन की वेबसाइट पर एक झूठा बयान डाला है कि उसने सुरक्षा परिषद में भाषण दिया, जबकि उसके राजदूत ने आतंकवाद पर कोई भाषण नहीं दिया।
पाकिस्तान सोमवार को ऑनलाइन आयोजित वर्चुअल बैठक के लिए वक्ताओं की सूची में भी नहीं था, और न ही बैठक के वीडियो पर उसके स्थायी प्रतिनिधि मुनीर अकरम हैं।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के खिलाफ अपने अभियान के लिए समर्थन हासिल करने में नाकाम पाकिस्तान सुरक्षा परिषद के लिए एक गलत रिकॉर्ड बनाने का सहारा लेता मालूम पड़ा है। संयुक्त राष्ट्र में फर्जी चीजें पेश करना, गलत दावे करना, पाकिस्तान की एक पुरानी रणनीति है।
2017 के महासभा सत्र में, उस समय पाकिस्तान की स्थायी प्रतिनिधि मलीहा लोधी ने गाजा की एक घायल फिलिस्तीनी लड़की की एक तस्वीर दिखाकर दावा किया था कि वह एक कश्मीरी लड़की है।
भारत के संयुक्त राष्ट्र मिशन ने कहा, “हम यह समझने में विफल हैं कि पाकिस्तान के स्थायी प्रतिनिधि ने अपना बयान कहां दिया क्योंकि सुरक्षा परिषद का सत्र आज गैर-सदस्यों के लिए खुला नहीं था।”
फर्जी भाषण में भारत के खिलाफ लगाए गए आरोपों का उल्लेख करते हुए, बयान में कहा गया, “पाकिस्तान के बड़े झूठ उजागर हुए हैं।”
अकरम का फर्जी भाषण जो ट्विटर के माध्यम से भी सर्कुलेट हुआ, में कहा गया कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान और जमात-उल-अहरार को एक ‘भारतीय आतंकी सिंडिकेट’ द्वारा समर्थन हासिल है और नई दिल्ली ‘भाड़े के आतंकवादियों’ का इस्तेमाल कर रहा है।
यह बयान एक ऐसे देश से आ रहा है जो सीमा पार आतंकवाद को प्रायोजित करने के लिए जाना जाता है, उसने भारत पर भाड़े के आतंकवादियों का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है, जो हास्यास्पद है।
अकरम के फर्जी भाषण में चार लोगों को सूचीबद्ध किया गया था जिसमें कहा गया था कि वे भारतीय हैं और उनके नाम संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों के तहत अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादियों की सूची में शामिल होने के लिए पेश किए गए थे।
भारतीय मिशन ने कहा कि सुरक्षा परिषद की 1267 समिति की सूची, जो प्रतिबंधित अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादियों के बारे में है, यह सार्वजनिक है और इसमें कोई भी भारतीय शामिल नहीं है।
इसने कहा कि समिति सबूतों के आधार पर काम करती है न कि न समय जाया करने और ध्यान हटाने के लिए लगाए गए बिना सोचे-समझे आरोपों के आधार पर।
इसने उल्लेख किया कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने पिछले साल महासभा में स्वीकार किया था कि उनके देश के अंदर 40,000 से अधिक आतंकवादी हैं।
बयान में कहा गया है कि कई प्रतिबंधित आतंकवादियों और आतंकी सूमहों का पाकिस्तान के अंदर संचालन करना जारी है।
इसने अकरम के उस गलत दावे को भी खारिज कर दिया कि उसने अल कायदा को समाप्त कर दिया है और कहा कि अल कायदा का मारा जा चुका सरगना ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान में स्पष्ट रूप से रह रहा था और खान ने उसे ‘शहीद’ कहा था।
भारतीय मिशन ने बयान में कहा कि पाकिस्तान की अल्पसंख्यक आबादी 1947 के बाद से कम होकर महज 3 प्रतिशत तक रह गई है।
1947 में आजादी के दौरान, पाकिस्तान की अल्पसंख्यक आबादी 23 फीसदी थी।
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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने दक्षिण सूडान के खिलाफ हथियार प्रतिबंध को रिन्यू किया

संयुक्त राष्ट्र, 31 मई। सुरक्षा परिषद ने दक्षिण सूडान के खिलाफ हथियार प्रतिबंध को एक साल के लिए रिन्यू करने हेतु एक प्रस्ताव पारित किया, जो 31 मई, 2026 तक लागू रहेगा। इसके साथ ही व्यक्तियों और संस्थाओं के खिलाफ यात्रा प्रतिबंध और संपत्ति जब्त करने के लक्षित प्रतिबंध भी लागू होंगे।
मिडिया ने बताया कि ये प्रस्ताव 2781, जिसे नौ वोट के पक्ष में और छह वोट के बहिष्कार के साथ अपनाया गया। इस प्रस्ताव में विशेषज्ञों के पैनल का कार्यकाल भी 1 जुलाई, 2026 तक बढ़ा दिया गया है। यह पैनल दक्षिण सूडान प्रतिबंध समिति के काम में मदद करता है।
सुरक्षा परिषद के अफ्रीकी सदस्य – अल्जीरिया, सिएरा लियोन, सोमालिया ने चीन, पाकिस्तान और रूस के साथ वोट देने से परहेज किया।
इस प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि सुरक्षा परिषद हथियार प्रतिबंधों की समीक्षा करने के लिए तैयार है। अगर दक्षिण सूडान 2021 के प्रस्ताव 2577 में तय किए गए मुख्य लक्ष्यों पर प्रगति करता है, तो इन प्रतिबंधों को बदला, निलंबित किया या धीरे-धीरे हटाया जा सकता है। यह दक्षिण सूडान के अधिकारियों को इस संबंध में और प्रगति हासिल करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
सुरक्षा परिषद ने यह भी तय किया है कि इन प्रतिबंधों की लगातार समीक्षा की जाएगी। सुरक्षा परिषद ने स्थिति के जवाब में उपायों को समायोजित करने की तत्परता व्यक्त की है, जिसमें उपायों में संशोधन, निलंबन, हटाने या सुदृढ़ करना शामिल है।
प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र महासचिव से अनुरोध किया गया है कि वे दक्षिण सूडान में संयुक्त राष्ट्र मिशन और विशेषज्ञों के पैनल के साथ निकट परामर्श में 15 अप्रैल, 2026 तक प्रमुख मानदंडों पर हासिल की गई प्रगति का आकलन करें।
इसके साथ ही दक्षिण सूडान के अधिकारियों से भी अनुरोध किया गया है कि वे उसी तारीख तक इस संबंध में हासिल की गई प्रगति पर सैंक्शन कमेटी को रिपोर्ट करें।
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यूएस सुप्रीम कोर्ट ने किया ट्रंप सरकार का रास्ता साफ, 5 लाख लोगों पर मंडराया निर्वासन का खतरा

न्यूयॉर्क, 31 मई। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने ट्रंप सरकार का रास्ता साफ कर दिया है। कोर्ट ने फेडरल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के उस आदेश को हटा दिया है, जिसके तहत क्यूबा, हैती, निकारागुआ और वेनेजुएला के चार देशों के पांच लाख से अधिक प्रवासियों के लिए मानवीय पैरोल सुरक्षा को बरकरार रखा गया था।
मिडिया रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने ट्रंप प्रशासन को एक अन्य मामले में लगभग 350,000 वेनेजुएला के प्रवासियों के लिए अस्थायी कानूनी स्थिति को रद्द करने की भी अनुमति दी है।
स्थानीय मीडिया ने शुक्रवार को बताया कि इस कदम ने ट्रंप प्रशासन के लिए हजारों प्रवासियों के लिए अस्थायी कानूनी सुरक्षा को फिलहाल खत्म करने का रास्ता साफ कर दिया है और निर्वासन के दायरे में आने वाले लोगों की कुल संख्या को लगभग दस लाख तक पहुंचा दिया है।
अमेरिका-मेक्सिको बॉर्डर पर आने वाले प्रवासियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए, बाइडेन प्रशासन ने 2022 के अंत और 2023 की शुरुआत में क्यूबा, हैती, निकारागुआ और वेनेजुएला के लोगों के लिए पैरोल कार्यक्रम बनाया, जिसके तहत उन्हें कुछ प्रोसेस से गुजरने के बाद दो साल तक अमेरिका में काम करने की इजाजत दी गई। इस प्रोग्राम ने लगभग 5,32,000 लोगों को निर्वासन से बचाया।
लेकिन अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत के तुरंत बाद, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने होमलैंड सिक्योरिटी सेक्रेटरी क्रिस्टी नोएम को सभी पैरोल प्रोगाम को टर्मिनेट करने का निर्देश देते हुए एक कार्यकारी आदेश जारी किया। कार्यकारी आदेश पर कार्रवाई करते हुए नोएम ने मार्च में पैरोल प्रोग्राम को समाप्त करने की घोषणा की, जिसके तहत पैरोल के किसी भी अनुदान की वैधता 24 अप्रैल तक समाप्त हो जाएगी।
मैसाचुसेट्स में एक फेडरल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के जज ने नोएम द्वारा प्रवासियों की अस्थायी कानूनी स्थिति को पूरी तरह से रद्द करने के फैसले को रोकने पर सहमति जताई। उस समय कई पैरोलियों और एक गैर-लाभकारी संगठन सहित 23 व्यक्तियों के एक ग्रुप ने नोएम द्वारा प्रोग्राम को समाप्त करने को चुनौती दी थी।
ट्रंप प्रशासन ने पहले पहले सर्किट के लिए यूएस कोर्ट ऑफ अपील्स में अपील की, जिसने अपील लंबित रहने तक जिला न्यायालय के आदेश को रोकने से इनकार कर दिया और फिर सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग की।
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अमेरिकी युद्धविराम प्रस्ताव फिलिस्तीनी मांगों पर खरा नहीं : हमास

गाजा, 30 मई। हमास के एक वरिष्ठ नेता ने कहा है कि गाजा पट्टी में युद्ध रोकने के लिए अमेरिका का जो प्रस्ताव आया है, उस पर विचार किया जा रहा है। हालांकि, यह प्रस्ताव हमास और फिलिस्तीनी लोगों की मुख्य मांगों को पूरा नहीं करता।
मिडिया के मुताबिक, हमास के राजनीतिक ब्यूरो के सदस्य बासम नईम ने गुरुवार को एक बयान में कहा कि उन्हें अमेरिका के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ द्वारा पिछले हफ्ते दिए गए युद्धविराम प्रस्ताव पर इजरायल की प्रतिक्रिया मिल गई है।
नईम के मुताबिक, इजरायल ने फिलिस्तीन की मुख्य मांगों को नहीं माना। इनमें लड़ाई को पूरी तरह खत्म करना और गाजा पर लगी पुरानी नाकेबंदी हटाना शामिल है।
उन्होंने कहा कि यह प्रस्ताव युद्धविराम के दौरान भी इजरायल के कब्जे और लोगों की तकलीफों को जारी रहने देगा।
नईम ने कहा, “इसके बावजूद हमास का नेतृत्व फिलिस्तीनी जनता के खिलाफ जारी हिंसा और मानवीय संकट को ध्यान में रखते हुए ज़िम्मेदारी के साथ इस प्रस्ताव पर विचार कर रहा है।”
हमास ने पहले कहा था कि उसे मध्यस्थों के जरिए नया युद्धविराम प्रस्ताव मिला है। वह इसका मूल्यांकन इस तरह कर रहा है कि यह फिलिस्तीनी लोगों के हितों की रक्षा करे और गाजा के लोगों के लिए स्थायी शांति और राहत लाने में मदद करे।
हमास ने पहले कहा था कि वह विटकॉफ के साथ एक समझौते के “सामान्य ढांचे” पर सहमत हो गया है। इस समझौते का मकसद स्थायी युद्धविराम करना, इजरायल की गाजा से पूरी तरह वापसी सुनिश्चित करना, राहत सामग्री की आपूर्ति शुरू करना और हमास से एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी समिति को सत्ता सौंपना है।
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