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भारत को चीन पर सैन्य बढ़त : अमेरिकी थिंक टैंक

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India-&-China

क्या चीन को भारत पर सैन्य बढ़त हासिल है? इसका जवाब कुछ रिपोर्ट नहीं में दे रहीं हैं। इनमें कहा गया है कि चीन की बढ़त एक गलत धारणा है। भारत ने 1962 से एक लंबा सफर तय किया है। अगर चीन कहता है कि इतिहास को मत भूलना, तो हम भी उनसे यही कहते हैं।

दोनों देशों के बीच तनाव कम करने के लिए वार्ताएं चल रही हैं और ऐसे में कुछ विशेषज्ञ यह साबित करने के लिए ओवरटाइम काम कर रहे हैं कि युद्ध की स्थिति में चीन की सैन्य शक्ति भारत की तुलना में कहीं बेहतर है। उनका दावा है कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को अपने संख्या बल, हथियारों और तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) में बुनियादी ढांचे की वजह से भारतीय सेना पर निर्णायक बढ़त है।

चीनी मीडिया में भी हथियारों और लॉजिस्टिक की कथित कमी पर भारत का मजाक उड़ाया जा रहा है।

लेकिन, क्या चीन की बेहतर सैन्य ताकत का ‘पारंपरिक ज्ञान’ सही है? हार्वर्ड में बेलफर सेंटर और सेंटर फॉर ए न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी (सीएनएएस) द्वारा किए गए हाल के अध्ययनों से एक अलग ही तस्वीर सामने आई है। इन शोधों से पता चलता है कि ऊंचाई वाले पर्वतीय युद्ध की स्थिति में भारत को चीन पर बढ़त हासिल है।

1962 में भारत और चीन ने युद्ध लड़ा, जिसे भारत हार गया। लेकिन, यह 58 साल पहले की बात है। तब से बहुत कुछ बदल गया है।

रिपोर्ट कहती है, “हमारा आकलन है कि भारत के पास चीन के खतरों और हमलों को कम कर देने वाली महत्वपूर्ण लेकिन कम प्रसिद्ध पारंपरिक बढ़त (कन्वेंशनल एडवांटेज) है। भारत आमतौर पर चीन के खिलाफ अपनी सैन्य स्थिति में अधिक आत्मविश्वास दिखा रहा है, जो बात भारतीय बहसों में नजर नहीं आती है। इससे देश को परमाणु पारदर्शिता और संयम की दिशा में अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के नेतृत्व का अवसर मिला है।”

किसी को भी दोनों देशों के बीच पूर्ण पैमाने पर युद्ध की संभावना नहीं दिख रही है और परमाणु युद्ध का तो कोई सवाल नहीं है। फिर भी, विशेषज्ञ हमेशा दोनों की परमाणु शक्ति की तुलना करते हैं। बेलफर की रिपोर्ट के अनुसार, चीन के परमाणु हथियारों में जमीन व समुद्र आधारित बैलिस्टिक मिसाइल और विमान का इस्तेमाल परमाणु बमवर्षकों के रूप में किया जा सकता है। एक अनुमान के मुताबिक, चीन के पास 104 मिसाइलें हैं जो पूरे भारत में हमला कर सकती हैं। जहां तक भारत का संबंध है तो उसका अधिकांश मिसाइल बल चीन से अधिक पाकिस्तान की सीमा के पास स्थित है।

रिपोर्ट के अनुसार, “लगभग दस अग्नि-3 लांचर पूरे चीनी मुख्य भूमि तक पहुंच सकते हैं। आठ अग्नि-2 लांचर केंद्रीय चीनी लक्ष्यों तक पहुंच सकते हैं। जगुआर आईएस के दो स्क्वाड्रन और मिराज 2000एच लड़ाकू विमानों का एक स्क्वाड्रन, लगभग 51 विमान, को परमाणु मिशन सौंपा जा सकता है। ये विमान परमाणु ग्रैविटी बमों से लैस तिब्बती हवाई क्षेत्र तक पहुंच सकते हैं। हालांकि, यह निश्चित है कि वे तिब्बत से चीन में और अंदर तक बढ़ने से पहले हवाई बचाव प्रणाली द्वारा पहचाने और ट्रैक कर लिए जाएंगे। तिब्बत-केंद्रित मिशनों में जो कुछ हासिल किया जा सकेगा, वह चीन में कहीं और मिशनों में पाना संभव नहीं होगा, क्योंकि तिब्बत के पार जाने के लिए भारतीय वायुयानों को जो आवश्यक अतिरिक्त समय चाहिए होगा, उतने में चीनी हवाई सुरक्षा सतर्क हो जाएगी।”

बेलफर रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि भारत की कुल स्ट्राइक फोर्स 2,25,000 के आसपास होगी, जिसे उत्तरी, मध्य और पूर्वी कमान में चीन के खिलाफ तैनात किया जाएगा। हालांकि चीन में संख्यात्मक श्रेष्ठता हो सकती है लेकिन रिपोर्ट में कई कारकों पर प्रकाश डाला गया है जो भारत को चीन पर बढ़त दिलाते हैं। इसमें कहा गया है कि 1965 से भारत, पाकिस्तान के साथ कई प्राक्सी लड़ाई लड़ चुका है। भारत ने 1999 में पाकिस्तान के खिलाफ कारगिल की निर्णायक लड़ाई लड़ी।

रिपोर्ट में कहा गया है, “पश्चिमी जगत के सैनिकों ने युद्धाभ्यास में सदैव अपने भारतीय समकक्षों की सामरिक रचनात्मकता और अनुकूलनशीलता के उच्च स्तर की प्रशंसा की है।”

उधर, पीएलए का अंतिम संघर्ष 1979 का वियतनाम युद्ध रहा है जहां उसे अमेरिकी युद्ध से और जुझारू हो उठे वियतनामी सैनिकों के हाथों काफी नुकसान का सामना करना पड़ा था। सीएनएएस का अनुमान है कि कुल संख्या में भारतीय जमीनी बल एलएसी की निकटता को देखते हुए और साथ ही आगे की वायु संपत्तियों की तैनाती को देखते हुए चीनियों पर भारी पड़ेंगे। भारत विभिन्न पठारों, पर्वतीय दर्रो और घाटियों में बड़ी संख्या में सैन्य और अर्धसैनिक बल रखता है, जो ट्रांस-हिमालयन प्रवेश के सबसे स्पष्ट संभावित बिंदु प्रदान करते हैं जबकि चीन अपने सीमावर्ती रक्षा के सिद्धांत के अनुसार संघर्ष की स्थिति में आगे बढ़ने के लिए पारंपरिक बलों को आंतरिक स्तर पर रखता है।

सेंटर फॉर अ न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी की अक्टूबर 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने चीन के दृष्टिगत इस क्षेत्र में कई अड्डे विकसित किए हैं। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि संभावित पीएलए हमले का सामना करने के लिए भारत ने बुनियादी सैन्य ढांचे को मजबूत करने पर अधिक जोर दिया है।

रिपोर्ट यह भी कहती है कि अपाचे और चिनूक रोटरी-विंग परिसंपत्तियों के भारतीय अधिग्रहण और सी-130 और सी-17 ग्लोबमास्टर जैसे सैन्य परिवहन विमानों ने अलग-थलग भारतीय सैनिकों के लिए महत्वपूर्ण तेजी से दी जाने वाली मदद को संभव बनाया है। जबकि, चीन के पास थिएटर में चौथी पीढ़ी के लगभग 101 फाइटर्स हैं, जिनमें से कई को रूसी रक्षा के लिए उसे तैनात करना होता है। जबकि, भारत में इसके लगभग 122 मॉडल हैं, जिनका निशाना पूरी तरह से चीन की तरफ है।

संभावित भारत-चीन युद्ध में चीन काफी हद तक अकेला हो सकता है, जबकि भारत ऐसे देशों से रक्षा संबंध विकसित कर रहा है जो चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति से सशंकित हैं। भारत हाल के वर्षों में अमेरिकी सेना के करीब हुआ है। अमेरिका ने द्विपक्षीय और बहुपक्षीय प्रशिक्षण को बढ़ाते हुए भारत को प्रमुख रक्षा भागीदार के रूप में वर्णित करना शुरू किया है।

चीन की मुख्य चिंता अमेरिका के साथ भारत के बढ़ते संबंध हैं। रिपोर्ट के अनुसार, “दक्षिण एशिया में चीन का असली जवाब भारत है। दक्षिण एशिया में, दक्षिण-पूर्व, पूर्व या मध्य एशिया के विपरीत एक महत्वपूर्ण ताकत है और वह है भारत। चीन इसे आसानी से नहीं भुला सकता।”

भारत ने पारंपरिक रूप से चीन को श्रेष्ठ के बजाय बराबर के रूप में देखा है। वह चीन द्वारा भारतीय परिधि में होने वाली संदिग्ध गतिविधियों को लेकर सावधान है। इन दोनों अध्ययनों में कहा गया है कि ‘भारत के पास पारंपरिक सैन्य बढ़त (एडवांटेज) है जो चीनी खतरों और हमलों की संभावनाओं को कम करती है लेकिन जो कम प्रसिद्ध है और जिन्हें ठीक से मान्यता नहीं मिली है।’

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अंतरराष्ट्रीय समाचार

वियतनाम में बुआलोई तूफान ने 51 लोगों की ली जान, 14 लोग अब भी लापता; 608 मिलियन यूएसडी नुकसान का अनुमान

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हनोई, 2 अक्टूबर : वियतनाम में तूफान बुआलोई और उसके बाद आई बाढ़ और भूस्खलन ने भारी तबाही मचाई है। न्यूज एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार बुआलोई तूफान की चपेट में आने से मौत का आंकड़ा 51 तक पहुंच गया। 14 लोगों का अब तक कुछ पता नहीं चल पाया है, जबकि 164 लोग घायल हुए।

वियतनाम आपदा एवं डाइक प्रबंधन प्राधिकरण ने शुक्रवार को आपदा से जुड़ी एक रिपोर्ट साझा की। इसके अनुसार तूफान बुआलोई और उसके बाद आई बाढ़ और भूस्खलन से उत्तरी और मध्य वियतनाम में 51 लोगों की मौत हो गई, 14 अन्य लापता हो गए और 164 लोग घायल हो गए। शुरुआती आर्थिक क्षति का अनुमान लगभग 15.9 ट्रिलियन वियतनामी डोंग (लगभग 608 मिलियन अमेरिकी डॉलर) लगाया जा रहा है।

इस तूफान में 238,000 से अधिक घर क्षतिग्रस्त या जलमग्न हो गए, लगभग 89,000 हेक्टेयर चावल और अन्य फसलें बर्बाद हो गई। इसके अलावा, 17,000 हेक्टेयर से अधिक जलीय कृषि और लगभग 50,300 हेक्टेयर जंगलों को नुकसान पहुंचा है।

रिपोर्ट के अनुसार, तूफान ने बुनियादी ढांचे को भी गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया, 8,800 से अधिक बिजली के खंभे गिर गए और लगभग 468,500 घरों में अभी भी बिजली नहीं है। इसके साथ ही लगभग।

स्थानीय अधिकारी राहत कार्य जारी रखे हुए हैं, क्षतिग्रस्त हुई सड़कों को साफ करने, सभी आवश्यक सेवाओं को बहाल करने और प्रभावित समुदायों की सहायता के लिए उपकरण जुटा रहे हैं।

इस बीच, वियतनाम न्यूज एजेंसी ने शुक्रवार को बताया कि प्रधानमंत्री फाम मिन्ह चिन्ह ने गुरुवार को आपातकालीन राहत के लिए 15 प्रभावित इलाकों के लिए सहायता पैकेज को मंजूरी दी। इससे पहले, उन्होंने 30 सितंबर को स्थानीय अधिकारियों और विभागों को प्रभावित निवासियों की सहायता और प्रभावितों को तत्काल मदद पहुंचाने का निर्देश दिया था।

प्रधानमंत्री ने शोक संतप्त परिवारों, पार्टी संगठनों, प्रशासन और आपदाओं से हुए नुकसान और कठिनाइयों को झेल रहे निवासियों के प्रति अपनी गहरी संवेदना जताई। उन्होंने जन समितियों के अध्यक्षों को आदेश दिया कि वे जल्द से जल्द अलग-थलग पड़े इलाकों में पहुंचने के लिए सेना और वाहन जुटाएं। क्षतिग्रस्त घरों की मरम्मत करवाएं और प्रभावित निवासियों के लिए आश्रयों की व्यवस्था करें। इसके साथ ही उन्होंने 5 अक्टूबर से पहले क्षतिग्रस्त शैक्षणिक और चिकित्सा सुविधाओं की मरम्मत कराने का निर्देश भी दिया है।

वियतनाम के कई हिस्सों में 300 मिलीमीटर से अधिक बारिश हुई है। उत्तरी मध्य वियतनाम के कई गांव जलमग्न हो गए थे और यातायात व बिजली गुल थी।

बुआलोई एक हफ्ते में एशिया के लिए खतरा बनने वाला दूसरा बड़ा तूफान था। पिछले कई वर्षों में आए सबसे शक्तिशाली तूफानों में से एक, रागासा तूफान ने उत्तरी फिलीपींस और ताइवान में कम से कम 28 लोगों की जान ले ली। इससे पहले कि यह चीन में पहुंचा और वियतनाम में फैल गया।

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अंतरराष्ट्रीय समाचार

वियतनाम में ‘बुआलोई’ से 3 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान, 34 लोगों ने गंवाई जान

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हनोई, 2 अक्टूबर : वियतनाम में तूफान बुआलोई और उसके बाद आई बाढ़ और भूस्खलन में 34 लोगों की मौत हो गई, जबकि 140 लोग घायल हो गए। इस प्राकृतिक आपदा में 20 लोग लापता हो गए। करीब 8.78 ट्रिलियन वियतनामी डोंग (करीब 3,156 करोड़ रुपए) का आर्थिक नुकसान का अनुमान लगाया गया है।

सिन्हुआ की रिपोर्ट के मुताबिक तूफान से बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान पहुंचा। 8,200 से ज्यादा बिजली के खंभे गिर गए और लगभग 27 लाख घरों की बिजली गुल हो गई, जबकि बाढ़ और भूस्खलन के कारण 3,000 से ज्यादा सड़कें ब्लॉक हो गईं।

स्थानीय अधिकारी बिजली और दूरसंचार बहाल करने और प्रभावित निवासियों की सहायता के लिए नुकसान की रिपोर्ट बना रहे हैं।

इससे पहले, 30 सितंबर को, वियतनामी प्रधानमंत्री फाम मिन्ह चिन्ह ने स्थानीय अधिकारियों और विभागों को प्रभावित निवासियों की सहायता और प्रभावितों को तत्काल मदद पहुंचाने का निर्देश दिया था।

प्रधानमंत्रीने शोक संतप्त परिवारों, पार्टी संगठनों, प्रशासन और आपदाओं से हुए नुकसान और कठिनाइयों को झेल रहे निवासियों के प्रति अपनी गहरी संवेदना और सहानुभूति भी व्यक्त की।

उन्होंने जन समितियों के अध्यक्षों को आदेश दिया कि वे जल्द से जल्द अलग-थलग पड़े इलाकों में पहुंचने के लिए सेना और वाहन जुटाएं। क्षतिग्रस्त घरों की मरम्मत करवाएं और प्रभावित निवासियों के लिए आश्रयों की व्यवस्था करें। उन्होंने 5 अक्टूबर से पहले क्षतिग्रस्त शैक्षणिक और चिकित्सा सुविधाओं की मरम्मत कराने को कहा है।

वियतनाम के कई हिस्सों में 300 मिलीमीटर से अधिक बारिश हुई है। उत्तरी मध्य वियतनाम के कई गांव जलमग्न हो गए थे और यातायात व बिजली गुल थी।

बुआलोई एक हफ्ते में एशिया के लिए खतरा बनने वाला दूसरा बड़ा तूफान था। पिछले कई वर्षों में आए सबसे शक्तिशाली तूफानों में से एक, रागासा तूफान ने उत्तरी फिलीपींस और ताइवान में कम से कम 28 लोगों की जान ले ली। इससे पहले कि यह चीन में पहुंचा और वियतनाम में फैल गया।

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अंतरराष्ट्रीय समाचार

विश्व व्यापार को मिल रही चुनौतियों का मुकाबला करे ब्रिक्स : एस. जयशंकर

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संयुक्त राष्ट्र, 27 सितंबर। भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा है कि ब्रिक्स देशों को वैश्विक व्यापार व्यवस्था पर हो रहे दबाव और चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा।

उन्होंने कहा कि बढ़ते संरक्षणवाद, ऊंचे-नीचे शुल्क और गैर-शुल्क बाधाएं व्यापार को प्रभावित कर रही हैं, ऐसे में ब्रिक्स को बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था की रक्षा करनी चाहिए। उन्होंने यह बात शुक्रवार को ब्रिक्स देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में कही।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले ही धमकी दी थी कि ब्रिक्स देशों पर अतिरिक्त शुल्क लगाया जाएगा। इसके अलावा, उन्होंने अन्य आधारों पर भारत और ब्राजील पर कुल 50 प्रतिशत और दक्षिण अफ्रीका से होने वाले अधिकांश आयातों पर 30 प्रतिशत टैरिफ लगाया है।

हालांकि जयशंकर ने अपने बयान में अमेरिका का नाम सीधे तौर पर नहीं लिया।

बैठक में भाग लेने वाले इथियोपिया के विदेश राज्य मंत्री हदेरा अबेरा अदमासु ने भी संयुक्त कार्रवाई का प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा कि ब्रिक्स को शांति स्थापित करने, वैश्विक संस्थाओं में सुधार लाने और विकासशील देशों के लिए न्यायपूर्ण व सुरक्षित माहौल बनाने में अहम भूमिका निभानी चाहिए।

जयशंकर ने यह भी कहा कि जब बहुपक्षीय व्यवस्था दबाव में है, तब ब्रिक्स ने हमेशा विवेकपूर्ण और सकारात्मक बदलाव की आवाज उठाई है।

उन्होंने आईबीएसए (भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका का समूह) के विदेश मंत्रियों की बैठक में भी हिस्सा लिया। उन्होंने ‘एक्स’ पर लिखा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की जरूरत पर जोर दिया गया। साथ ही आईबीएसए के शैक्षणिक मंच, समुद्री अभ्यास, ट्रस्ट फंड और आपसी व्यापार पर चर्चा हुई।

ब्रिक्स मंत्रियों की बैठक में संयुक्त राष्ट्र सुधारों पर भी चर्चा हुई। जयशंकर ने मंत्रियों से कहा, “व्यापार प्रणाली से परे, ब्रिक्स को संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख अंगों, विशेष रूप से सुरक्षा परिषद में व्यापक सुधार के लिए भी जोरदार प्रयास करना चाहिए।”

उन्होंने कहा, “एक अशांत विश्व में, ब्रिक्स को शांति स्थापना, संवाद, कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय कानून के पालन के संदेश को सुदृढ़ करना चाहिए।”

ब्रिक्स एक संगठन है जिसका नाम इसके पहले पांच सदस्य देशों ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के शुरुआती अक्षरों से बना है। अब इसमें कुल दस उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं। इन देशों का मकसद आर्थिक और सामाजिक विकास के मुद्दों पर मिलकर काम करना है।

अगले साल भारत ब्राज़ील की जगह ब्रिक्स का अध्यक्ष बनेगा। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि भारत की प्राथमिकता खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन और सतत विकास होगी। इसके लिए डिजिटल बदलाव, स्टार्टअप्स, नवाचार और मजबूत विकास साझेदारी पर ज़ोर दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी और नवाचार ब्रिक्स सहयोग के अगले चरण को परिभाषित करेंगे।

दूसरी ओर, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स पर नाराजगी जताई है। उनका कहना है कि ब्रिक्स अपनी अलग मुद्रा बनाकर अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलर को चुनौती देना चाहता है। हालांकि भारत ने साफ कर दिया कि ब्रिक्स की कोई नई मुद्रा लाने की योजना नहीं है।

ब्रिक्स का एक अहम कार्यक्रम न्यू डेवलपमेंट बैंक (एनडीबी) है। यह बैंक विकासशील देशों को कम ब्याज पर कर्ज देता है।

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