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Monday,05-May-2025
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ओपनएआई ने एलन मस्क का 97.4 अरब डॉलर का खरीद प्रस्ताव ठुकराया

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सैन फ्रांसिस्को, 15 फरवरी। ओपनएआई ने एलन मस्क का 97.4 बिलियन डॉलर में कंपनी खरीदने का प्रस्ताव ठुकरा दिया। ओपनएआई को सैम ऑल्टमैन चला रहे हैं। ओपनएआई के बोर्ड चेयरमैन ब्रेट टेलर ने कहा कि मस्क का यह प्रस्ताव सिर्फ़ अपने प्रतिस्पर्धियों को बाधित करने की कोशिश है।

टेलर ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर लिखा, “ओपनएआई बिक्री के लिए नहीं है, और बोर्ड ने सर्वसम्मति से मिस्टर मस्क के प्रतिस्पर्धा को बाधित करने के नवीनतम प्रयास को खारिज कर दिया है।”

टेलर ने ओपनएआई के बॉर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की तरफ से कहा, “किसी भी तरह का पुनर्गठन ओपनएआई को और मजबूत करेगा, ताकि एजीआई (आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस) का लाभ पूरी मानवता को मिल सके।”

रिपोर्ट्स के मुताबिक, ओपनएआई ने मस्क के वकील को एक पत्र भेजा, जिसमें कहा गया कि यह प्रस्ताव उनकी संस्था के उद्देश्यों के अनुकूल नहीं है।

इससे पहले मस्क की एआई कंपनी एक्सएआई और कुछ निवेशकों ने मिलकर ओपनएआई के गैर-लाभकारी संगठन को 97.4 अरब डॉलर में खरीदने की पेशकश की थी, लेकिन ओपनएआई के बोर्ड ने इसे खारिज कर दिया।

ओपनएआई के वकील एंडी नुसबॉम ने कहा कि मस्क का प्रस्ताव गैर-लाभकारी संस्था के लिए कोई उचित मूल्य तय नहीं करता और यह संस्था बिक्री के लिए उपलब्ध नहीं है।

गौरतलब है कि मस्क ओपनएआई के सह-संस्थापक रह चुके हैं, लेकिन अब उन्होंने ओपनएआई और सैम आल्टमैन पर मुकदमा दायर किया है। मस्क का आरोप है कि ओपनएआई ने प्रतिस्पर्धा को दबाने और धोखाधड़ी जैसी गतिविधियों में संलिप्तता दिखाई है।

पिछले साल अक्टूबर में भी मस्क ने ओपनएआई के खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू की थी। इस याचिका में ओपनएआई, इसके सीईओ ऑल्टमैन, अध्यक्ष ग्रेग ब्रॉकमैन, माइक्रोसॉफ्ट, लिंक्डइन के सह-संस्थापक और ओपनएआई के पूर्व बोर्ड सदस्य रीड हॉफमैन, और ओपनएआई के पूर्व बोर्ड सदस्य और माइक्रोसॉफ्ट के उपाध्यक्ष दी टेम्पलटन पर “विभिन्न अवैध गतिविधियों” का आरोप लगाया गया है और उन्हें रोकने की मांग की गई है।

उन्होंने आरोप लगाया कि ओपनएआई ने अपने गैर-लाभकारी स्वरूप को बदलकर मुनाफा कमाने वाली कंपनी बना दिया और अपनी बौद्धिक संपदा का हस्तांतरण भी किया।

ओपनएआई ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि मस्क की यह चौथी कोशिश है, जिसमें वे बार-बार वही निराधार आरोप दोहरा रहे हैं। कंपनी पहले भी इन आरोपों को बेबुनियाद बता चुकी है।

अंतरराष्ट्रीय समाचार

पाकिस्तानी झंडे वाले जहाजों की भारतीय बंदगाहों में ‘नो एंट्री’, मोदी सरकार का बड़ा फैसला

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नई दिल्ली, 3 मई। पत्तन, पोत परिवहन एवं जलमार्ग मंत्रालय ने पाकिस्तानी झंडे वाले जहाजों के भारतीय बंदरगाहों में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके साथ ही भारतीय झंडे वाले जहाजों के पाकिस्तान के बंदरगाहों पर जाने पर रोक लगा दी है। पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कई सख्त कदम उठाए नवीनतम आदेश इसी सिलसिले की एक कड़ी है।

ये प्रतिबंध तत्काल प्रभाव से मर्चेंट शिपिंग अधिनियम, 1958 की धारा 411 के तहत भारतीय परिसंपत्तियों, कार्गो और बंदरगाह अवसंरचना की सुरक्षा के लिए लगाए गए हैं।

मंत्रालय की तरफ से जारी आदेश में कहा गया, “अधिनियम का उद्देश्य राष्ट्रीय हितों की पूर्ति के लिए सर्वोत्तम तरीके से भारतीय व्यापारिक नौवहन के विकास को बढ़ावा देना और उसका कुशल रखरखाव सुनिश्चित करना है।”

सुरक्षा को मजबूत करने और भारत के समुद्री हितों के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के प्रयासों के तहत यह आदेश अगली सूचना तक लागू रहेगा।

आदेश के मुताबिक, “पाकिस्तान का झंडा लगे जहाज को किसी भी भारतीय बंदरगाह पर जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी और भारतीय झंडा लगे जहाज को पाकिस्तान के किसी भी बंदरगाह पर जाने की अनुमति नहीं मिलेगी।”

इसमें यह भी कहा गया कि आदेश से किसी भी छूट की “जांच की जाएगी और मामले-दर-मामला आधार पर निर्णय लिया जाएगा।”

इससे पहले भारत ने पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद पड़ोसी देश के साथ बढ़ते तनाव के बीच पाकिस्तान से सभी प्रकार के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष आयात पर प्रतिबंध लगा दिया।

वाणिज्य मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार, “पाकिस्तान में उत्पन्न या वहां से निर्यातित सभी वस्तुओं का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष आयात या पारगमन, चाहे वे स्वतंत्र रूप से आयात योग्य हों या अन्यथा अनुमत हों, तत्काल प्रभाव से अगले आदेश तक प्रतिबंधित रहेगा।”

अधिसूचना में कहा गया, “यह प्रतिबंध राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक नीति के हित में लगाया गया है। इस प्रतिबंध में किसी भी अपवाद के लिए भारत सरकार की पूर्व स्वीकृति आवश्यक होगी।”

2 मई की अधिसूचना में कहा गया कि इस संबंध में विदेश व्यापार नीति (एफटीपी) 2023 में एक प्रावधान जोड़ा गया है, ताकि ‘पाकिस्तान में उत्पन्न या वहां से निर्यात किए जाने वाले सभी सामानों के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष आयात या पारगमन पर रोक लगाई जा सके।’

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अंतरराष्ट्रीय समाचार

बांग्लादेश : अवमानना के मामले में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को कारण बताओ नोटिस

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ढाका, 2 मई। बांग्लादेश के अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी) ने गुरुवार को पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और अवामी लीग की प्रतिबंधित छात्र शाखा बांग्लादेश छात्र लीग (बीसीएल) के नेता शकील आलम बुलबुल को अदालत की कथित अवमानना ​​के मामले में कारण बताओ नोटिस जारी किया।

स्थानीय मीडिया ने बताया कि आईसीटी अभियोजक गाजी एमएच तमीम ने दोनों व्यक्तियों को 15 मई तक कारण बताओ नोटिस का जवाब देने का निर्देश दिया है।

न्यायाधिकरण के अध्यक्ष न्यायमूर्ति गुलाम मुर्तुजा मुजुमदार की अध्यक्षता में सोशल मीडिया पर लीक हुए एक वायरल ऑडियो क्लिप की सामग्री पर यह आदेश पारित किया गया, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री को दिखाया गया था, जिसके माध्यम से उन्होंने कथित तौर पर न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप किया और न्यायाधिकरण को धमकी दी।

आईसीटी अभियोजक ने कहा कि जांच एजेंसी ने फोरेंसिक परीक्षण कराया और पुष्टि की कि आवाज शेख हसीना की है।

पिछले वर्ष अगस्त में सत्ता में आने के बाद मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री, उनके परिवार के सदस्यों और अवामी लीग समर्थकों के खिलाफ कई गिरफ्तारी वारंट जारी किए हैं।

पिछले महीने बांग्लादेश के एक न्यायाधिकरण ने 2013 में ढाका के शापला छत्तर में हुए कथित सामूहिक हत्याकांड के लिए हसीना और पूर्व पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी) बेनजीर अहमद सहित चार अन्य के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया था।

इससे पहले जनवरी में ढाका में एक विशेष न्यायाधिकरण ने पूर्व प्रधानमंत्री हसीना और 11 अन्य लोगों के खिलाफ जबरन गायब किए जाने की घटनाओं के संबंध में गिरफ्तारी वारंट जारी किया था।

विडंबना यह है कि इस न्यायाधिकरण की स्थापना शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा अंतर्राष्ट्रीय अपराध (न्यायाधिकरण) अधिनियम के तहत की गई थी, जिसका उद्देश्य 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान बांग्लादेश के भूभाग में पाकिस्तानी सेना द्वारा अपने स्थानीय सहयोगियों की मदद से किए गए नरसंहार, मानवता के विरुद्ध अपराध, युद्ध अपराध और अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत अन्य अपराधों के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों का पता लगाना, उन पर मुकदमा चलाना और उन्हें दंडित करना था।

विश्लेषकों का मानना ​​है कि यह घटनाक्रम यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार द्वारा किया जा रहा एक बड़ा राजनीतिक प्रतिशोध है, क्योंकि अगस्त 2024 में उनके पद से हटने के तुरंत बाद पूर्व प्रधानमंत्री और उनके समर्थकों के खिलाफ तुच्छ आधार पर कई मामले दर्ज किए गए थे।

देश में लोकतंत्र की बहाली के संघर्ष में अग्रणी आवाज रहीं बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की बेटी हसीना को अपमानजनक तरीके से देश छोड़कर 5 अगस्त को भारत में शरण लेनी पड़ी थी।

फरवरी में भारत से अवामी लीग समर्थकों को ऑनलाइन संबोधित करते हुए अपदस्थ प्रधानमंत्री ने यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार पर देश को कथित तौर पर ‘आतंकवाद’ और ‘अराजकता’ के केंद्र में बदलने का आरोप लगाया था।

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अंतरराष्ट्रीय समाचार

ट्रंप ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार वॉल्ट्ज को हटाया, उपराष्ट्रपति वेंस बोले ये ‘प्रमोशन’

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वाशिंगटन, 2 मई। अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वाल्ट्ज को पद से हटाए जाने और संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत पद पर चुने जाने को ‘प्रमोशन यानि पदोन्नति’ के रूप में पेश करने की कोशिश की है। उन्होंने मीडिया पर आरोप लगाया है कि वह शीर्ष राष्ट्रीय सुरक्षा पद से उनके हटने को बर्खास्तगी के रूप में पेश कर रहा है।

वेंस ने गुरुवार को चार्ल्सटन, साउथ कैरोलिना में फॉक्स न्यूज को एक साक्षात्कार में बताया- “उन्हें जाने नहीं दिया गया। उन्हें संयुक्त राष्ट्र में राजदूत बनाया जा रहा है, जिसे निश्चित तौर पर सीनेट ने कंफर्म किया है। मुझे लगता है कि आप एक अच्छा तर्क दे सकते हैं कि यह एक प्रमोशन है।”

उन्होंने आगे कहा, “मीडिया इसे बर्खास्तगी के रूप में दिखाना चाहता है। डोनाल्ड ट्रंप ने बहुत से लोगों को निकाल दिया है। लेकिन वह उन्हें बाद में सीनेट द्वारा कंफर्म की गई नियुक्तियां नहीं देते हैं। उन्हें लगता है कि माइक वाल्ट्ज उस भूमिका में प्रशासन (सबसे महत्वपूर्ण रूप से अमेरिकी लोगों) की बेहतर सेवा कर सकते हैं।”

वेंस ने कहा कि रक्षा सचिव पीट हेगसेथ की नौकरी “सुरक्षित” है, जब उनसे पूछा गया कि क्या राष्ट्रपति के वरिष्ठ अधिकारियों के पद पर और बदलाव होने वाले हैं, और विशेष रूप से क्या हेगसेथ की नौकरी सुरक्षित है।

उन्होंने कहा, “हमें पीट पर पूरा भरोसा है।” और इस बात पर जोर देने पर कि क्या यह कदम ट्रंप प्रशासन के शीर्ष राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकारियों के साथ सिग्नल चैट में वाल्ट्ज की कार्रवाइयों का प्रत्यक्ष परिणाम था, वेंस ने कहा, “नहीं, ऐसा नहीं है।”

उन्होंने स्थिति को मोटे तौर पर इस प्रकार वर्णित किया कि वाल्ट्ज राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में जाना एक तरह से हमारी प्रशासनिक शुरुआत थी, उन लोगों को निकाल दिया गया जो निष्ठाहीन थे, और “वास्तव में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद को क्रियाशील बनाने के लिए सही लोगों का समूह” लाए।

वेंस ने आगे कहा, “बेशक। हां। हम अपने सभी नियुक्त किए गए लोगों के लिए लड़ते हैं,” जब पूछा गया कि क्या ट्रंप सीनेट की पुष्टि प्रक्रिया के दौरान वाल्ट्ज के लिए लड़ने की योजना बना रहे हैं। उन्होंने इस संभावना से भी इनकार किया कि वाल्ट्ज के खिलाफ हाल ही में उठाया गया कदम सिग्नल-गेट में उनकी संलिप्तता से जुड़ा हो सकता है।

दरअसल, आरोप है कि पूर्व एनएसए ने यमन में हूती विद्रोहियों पर ट्रंप की हमले की योजनाओं पर चर्चा करने वाले उच्च-रैंकिंग अधिकारियों के चैट समूह में द अटलांटिक पत्रिका के संपादक को जोड़ा था। सिग्नल-गेट में यमन पर अमेरिकी हमले को लेकर विस्तृत जानकारी सामने आई थी और इससे प्रशासन को शर्मिंदा होना पड़ा था। इसके बाद ही वाल्ट्ज जांच के दायरे में आ गए।

पूर्व एनएसए ने कहा था कि वह इस प्रकरण की पूरी जिम्मेदारी लेते हैं।

व्हाइट हाउस ने इस प्रकरण को एक “गलती” बताया, लेकिन उनका बचाव करते हुए कहा कि इस खुलासे से अमेरिकियों को कोई नुकसान नहीं हुआ।

पेंटागन के महानिरीक्षक सिग्नल के उपयोग की जांच कर रहे हैं, और उन्हें डेमोक्रेट और यहां तक कि कुछ रिपब्लिकन की आलोचना का सामना करना पड़ा है।

वाल्ट्ज के लिए एक नई भूमिका की घोषणा करते हुए, ट्रंप ने कहा कि विदेश मंत्री मार्को रुबियो अंतरिम भूमिका में वाल्ट्ज के कर्तव्यों को संभालेंगे और उन्होंने “अमेरिका और दुनिया को फिर से सुरक्षित बनाने के लिए अथक संघर्ष करने” की कसम खाई।

ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर लिखा, “मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि मैं माइक वाल्ट्ज को संयुक्त राष्ट्र में अगले अमेरिकी राजदूत के रूप में नामित करूंगा। युद्ध के मैदान में वर्दी में रहने से लेकर कांग्रेस में और मेरे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में माइक वाल्ट्ज ने हमारे राष्ट्र के हितों को सबसे पहले रखने के लिए कड़ी मेहनत की है।”

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